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बाइडेन ने इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में ट्रंप की विदेश नीति को आगे बढ़ाया

क्वाड, जो चार देशों का समूह है, वह बाइडेन प्रशासन में महत्वाकांक्षी पकड़ बना रहा और यह घोषित करने में जल्दबाज़ी कर रहा है कि "अमेरिका वापस आ गया है।"
म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट के बाद मध्य समतल भूमि में विरोध प्रदर्शन जारी
म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट के बाद मध्य समतल भूमि में विरोध प्रदर्शन जारी

जापानी समाचार एजेंसी क्योदो ने रविवार को वाशिंगटन के "एक स्रोत" के हवाले से बताया कि बाइडेन प्रशासन ने नई दिल्ली, टोक्यो और कैनबरा को "क्वाड" के नेताओं की एक ऑनलाइन शिखर बैठक आयोजित करने का प्रस्ताव दिया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “कि इस वार्ता का जल्द होना भारत पर निर्भर करता है, जिसे (क्वाड) के ढांचे पर अपेक्षाकृत रूप से सतर्क रुख अपनाने के लिए जाना जाता है। क्वाड का यह एकमात्र सदस्य है जो चीन के साथ सीमा साझा करता है और अमेरिका के नेतृत्व वाले सुरक्षा गठबंधनों के बाहर काम करता है।”

राष्ट्रपति जोए बाइडेन ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की और म्यांमार के घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में "क्वाड की एक मजबूत क्षेत्रीय वास्तुकला" और आपसी मज़बूत सहयोग के आसपास केंद्रित मुद्दों पर चर्चा की।

व्हाइट हाउस के रीडआउट के अनुसार, बाइडेन और मोदी ने नोट किया कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति साझा प्रतिबद्धता अमेरिका-भारत संबंधों का मुख्य आधार है और "यह संकल्प किया कि बर्मा में कानून का शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखा जाना चाहिए।"

मंगलवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से म्यांमार में तख्तापलट पर फोन पर चर्चा की। व्हाइट हाउस के रीडआउट में कहा गया है कि, "दोनों पक्ष क्वाड के माध्यम से विस्तारित क्षेत्रीय सहयोग के लिए तत्पर हैं।"

क्वाड को नेतृत्व के उच्चतम स्तर तक "अपग्रेड" करने का निर्णय बाइडेन प्रशासन का एक प्रमुख कदम है। रातोरात क्वाड इंडो-पैसिफिक रणनीति में भाले की नोक बन गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने हाल ही में एक ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान संकेत दिया था कि चीन के बढ़ते साए का सामना करने के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी नीति में क्वाड एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

सुलिवन ने कहा, "मुझे लगता है कि वास्तव में हमें (क्वाड) के प्रारूप को आगे बढ़ाना चाहिए, एक ऐसा तंत्र जो मूलभूत है, एक ऐसी नींव जिस पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए मजबूत अमेरिकी नीति का निर्माण किया जा सकता है।" दिलचस्प बात यह है कि ट्रम्प के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ'ब्रायन ने भी इसी मंच से कहा था कि क्वाड उच्च स्तरीय "नाटो के बाद सबसे महत्वपूर्ण संबंध" वाला मंच हो सकता है।“

2004 में हिंद महासागर में आए भूकंप और सुनामी के जवाब में इसकी परिकल्पना की गई थी, लेकिन एक दशक तक निष्क्रिय रहने के बाद क्वाड को 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने पुनर्जीवित किया था और उसके बाद यह तेजी से विकसित हुआ है, इसका मुख्य आकर्षण प्रशांत क्षेत्र में "स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी" संबंधों को आगे बढ़ाना था। वास्तव में, क्वाड पुनर्जीवित करना ट्रम्प प्रशासन की विदेश नीति की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है, जोकि अन्यथा एक अस्पष्ट परिदृश्य है।

ट्रम्प की विरासत को निभाने के लिए बाइडेन प्रशासन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। चीन के खिलाफ नए प्रशासन का यह पहला और प्रमुख आक्रमण है, जो बाइडेन के उस वादे के अनुरूप है कि कूटनीति उसकी विदेश नीति के केंद्र में होगी। क्वाड की मजबूती इस बात का सबूत है कि अमेरिका चीन का सामना करने में अमेरिकी सहयोगियों देशों के साथ मज़बूत एकजुट मोर्चा बनाने की उम्मीद करता है।

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ऐसे समय में हुआ जब क्वाड उस देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए खुद को मज़बूत सहयोगी के रूप में पेश कर सकता है या लोकतंत्र की बाहाली के लिए सहयोग कर सकता है। इसका गहरा असर होगा। 

चीन बड़े शानदार ढंग से एशिया-प्रशांत में अपने आर्थिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में सफल रहा है। अमेरिका संभवतः उस जमीन को पुनः हासिल नहीं कर सकता है। लेकिन मानवाधिकारों और लोकतंत्र के ध्वज वाहक के रूप में खुद को पेश कर, क्वाड एक राजनीतिक डोमेन बना सकता है, जहां चीन को एक "बाहरी शक्ति" के रूप में माना जाएगा। 

अलग तरीके से कहें, तो क्वाड आसियान देशों को अपने साथ लाने का एक मंच बन गया है जो वाशिंगटन और बीजिंग में से किसी की भी तरफदारी से चिंतित रहते थे। इस बीच, क्वाड प्लेटफॉर्म संभावित रूप से अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों को भी आकर्षित कर सकता है, जैसे कि जर्मनी, जिसके अन्यथा चीन के साथ मजबूत आर्थिक संबंध हैं। वास्तव में, चीन को कोने ठिकाने लगाने के लिए और इस क्षेत्र में इसे अलग-थलग करने की बहुत सारी संभावनाएं पैदा होती हैं।

म्यांमार के हालत क्वाड के असर की जांच होगी क्योंकि यह इस क्षेत्र में यह लोकतांत्रिक बदलाव  का फव्वारा है। म्यांमार में तख्तापलट का सामना करते हुए, आसियान ने अब तक किसी भी सदस्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के मूल सिद्धांत को बनाए रखा है। लेकिन आसियान देश म्यांमार के मसले पर विभाजित है।

मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसी पश्चिम समर्थक सरकारों ने म्यांमार पर गहरी चिंता व्यक्त की है, जबकि थाईलैंड और कंबोडिया जो इसकी सीमा वाले दो देश हैं वे गैर-हस्तक्षेप के कार्डिनल सिद्धांत का पालन करते हैं और लाओस और वियतनाम उनके साथ सहानुभूति रखते हैं। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुलिवन ने थाई नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के जनरल नताफ़ोंन नर्कफ़ानिट को सोमवार को "थाई प्रदर्शनकारियों की हालिया गिरफ्तारियों पर चिंता व्यक्त करने और साथ ही बर्मा में तख्तापलट के बारे में राष्ट्रपति बाउड़न की गहरी चिंता से अवगत कराने के लिए फोन किया था।” वास्तव में, सुलिवन ने थाई सैन्य नेतृत्व को म्यांमार के वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग को किसी भी तरह का समर्थन देने के लिए चेतावनी दी है। 

क्वाड म्यांमार के हालत पर आसियान देशों को एक साथ लाने की कठिन चुनौती का सामना कर रहा है। यदि वह सफल होता है, तो क्षेत्रीय संतुलन अमेरिका के पक्ष में झुक जाएगा।  लेकिन जैसी स्थिति हैं, आसियान भू-राजनीति के इस्तेमाल को पसंद करेगा और चाहेगा कि सेना और विपक्ष के बीच सुलह सर्वसम्मति से हो। वास्तव में, म्यांमार सेना भी गतिरोध से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रही है और शायद आसियान के अच्छे देशों के लिए यह रास्ता खुला है।

इसी तरह, बाइडेन प्रशासन भारत को भी "लॉक इन" करना चाहता है, जिसने पारंपरिक रूप से म्यांमार सेना की रचनात्मक सलाह की नीति का पालन किया है। भारतीय विश्लेषकों ने म्यांमार सेना को देश के उत्तर-पूर्वी इलाके में आतंकवादी समूहों की सीमा-पार गतिविधियों का मुकाबला करने के प्रति सहयोग और समर्थन देने की आलोचना को रेखांकित किया है।

लेकिन, मूल रूप से, म्यांमार की राजनीतिक अर्थव्यवस्था भारत के समान ही है, जो एक बहुसंख्यक, बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज है, जिसने औपनिवेशिक शासन से आज़ादी हासिल की थी और आधुनिक इतिहास में पहली बार राष्ट्र का दर्जा हासिल किया था। देश में आठ मुख्य जातीय समूह और करीब 135 देशज जातीय समूह शामिल हैं। बहुमत समूह बर्मन हैं जो देश की 55 मिलियन की आबादी का आधे और दो तिहाई हैं। संक्षेप में कहा जाए तो सबसे बड़ा जातीय अल्पसंख्यक समूह- शान, करेन, अरकानी, आदि- सैन्य और लोकतांत्रिक विपक्ष (जो बड़े पैमाने पर बर्मन का प्रतिनिधित्व करते हैं) के बीच नैपीटाव में सत्ता-बंटवारे से बाहर खड़े हैं।

अब, एक क्षेत्रीय विभाजन भी है, क्योंकि बहुसंख्यक बर्मन समुदाय मुख्य रूप से मध्य समतल भूमि में रहते हैं, जिसमें यांगून और मांडले शहर शामिल हैं, जबकि जातीय अल्पसंख्यक समूह देश के पर्वतीय सीमा के आसपास रहते हैं। मामले को बढ़ाते हुए बहुसंख्यक बर्मन द्वारा बसाई गई म्यांमार की केंद्रीय घाटी एक घोड़े की नाल के आकार की पहाड़ी की परिधि से घिरी हुई है जो पड़ोसी देशों की म्यांमार की ओवरलैंड की पहुंच को नियंत्रित करती है।

इस परिधि के अलावा, जो देशज जातीय अल्पसंख्यकों का घर है, जो देश के क्षेत्र और समुद्र तट के आधे से अधिक का हिस्सा है, और अधिकांश प्राकृतिक संसाधन भी यही है। फिर, मध्य समतल भूमि में बर्मन बौद्ध ईसाई धर्म को एक खतरे के रूप में मानते हैं, जबकि इसके बाहरी हिस्से में रहने वाली जनजातियों ने औपनिवेशिक काल के बाद राज्य के दमन के खिलाफ ईसाई धर्म को अपनाया था।

इसे समझने के लिए बहुत चतुर होने की जरूरत नहीं है कि यदि संवैधानिक शासन विफल हो  जाता है और लंबी सामाजिक अशांति छा जाती है अनिवार्य रूप से ऐसे जातीय अल्पसंख्यक जो विशिष्ट जातीय, सांस्कृतिक और भाषा की पहचान रखते हैं, वे खासकर सेना के शासन को कमजोर करने या उसे नेस्तनाबूद करने के लिए संघर्ष करेंगे। वास्तव में, कोई भी जातीय समूह किसी मज़बूत या एकीकृत ताक़त के रूप में जोर देने में सक्षम नहीं है। इसके अलावा देश में हथियारों की भरमार है।

यह कहना काफी होगा कि जो लोग क्वाड का रथ हांक रहे हैं, वे म्यांमार के मामले में अस्थिर लोकतंत्र को कुछ अधिक ही अधीरता से देख रहे हैं जो अवास्तविक हैं और इसलिए वे सैन्य तख्तापलट की कल्पना पाठ्यपुस्तक के पाठ से रहे हैं। वे देश की जटिल संस्थागत और जातीय भौगोलिक स्थिति और लोकतंत्र की उनकी मूल समझ को समझने में कमी कर रहे हैं। रोहिंग्या संकट के दौरान आंग सान सू की ज़िद्द कि वह पश्चिमी खेल नहीं खेलेगी या म्यांमार की सेना को कमजोर करने से उनके इनकार- फिर उनके कठोर राष्ट्रवाद को उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

जाहिर है, म्यांमार की जातीय उठापटक एक टिंडरबॉक्स की तरह है। मुस्लिम रोहिंग्या कार्यकर्ताओं को इस बात की समझ है कि स्वतंत्रता के उनके संघर्ष के लिए एक निर्णायक समय आ रहा है। पूर्व यूगोस्लाविया के विघटन का प्रेत म्यांमार को परेशान कर रहा है।

अमेरिका के भू-राजनीतिक विचारों का हुक्मनामा कहता है कि थाईलैंड और म्यांमार चीन के हिंद महासागर में अपने तथाकथित "मलक्का दुविधा" को कम करने के लिए अपनी भूमि के गलियारों के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देंगे। लेकिन, आसियान देशों- या उस मामले में भारत पर म्यांमार और थाईलैंड के विघटन का निश्चित रूप से बड़ा असर होगा।

क्वाड बाइडेन प्रशासन में महत्वकांक्षी पकड़ बना रहा और यह घोषित करने की जल्दी कर रहा है कि "अमेरिका वापस आ गया है।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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