अमेरिका ने ईरान पर फिर लगाम लगाई

दक्षिणी नेगेव के रेगिस्तान में इजरायली विदेश मंत्री याइर लापिड द्वारा 27-28 मार्च को आयोजित अरब राजनयिकों का शिखर सम्मेलन बिना शक एक ऐतिहासिक परिघटना है। इस सम्मेलन में अरब दुनिया से संयुक्त अरब अमीरात के अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान, बहरीन के अब्दुल्लातिफ बिन राशिद अल-जयानी, मोरक्को के नासिर बौरिता और मिस्र के समेह शौकरी ने भाग लिया जबकि अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन एकमात्र "अतिरिक्त क्षेत्रीय" प्रतिभागी के रूप में मौजूद थे।
यह उम्मीद की गई थी कि अब्राहम समझौते में अधिक से अधिक पश्चिम एशियाई देश शामिल होंगे, वह तो पूरी नहीं हुई परंतु पर्दे के पीछे इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और सऊदी अरब के बीच सुरक्षा और सैन्य संबंध काफी गहरे हुए हैं। अलबत्ता मिस्र भी इस नवजात साझेदारी में शामिल हो गया है।
अरब-इजरायल शिखर सम्मेलन के स्थल के परिवेश का भी अपना एक प्रतीकात्मक महत्त्व है: इज़राइल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन, सडे बोकर (Sde Boker) में रहते थे और उनको मरणोपरांत ज़िन जंगल में दफनाया गया था। लापिड को उम्मीद है कि उनके मेहमान बेन के समाधिस्थल भी जाएंगे।
ब्लिंकन के बारे में एक बात तय है कि आजकल वे जहां भी जाते हैं, उनके एजेंडा में यूक्रेन संघर्ष पर चर्चा करना जरूर शामिल होता है। इस लिहाजन अपेक्षित ही था कि वे रूस को दुनिया में अलग-थलग करने के लिए यहां भी एक पिच बनाएंगे और अपने अरब वार्ताकारों से यूक्रेन के समर्थन में पश्चिम के प्रयासों में शामिल होने का आग्रह करेंगे। लेकिन उनके इस एजेंडे को इस शिखर सम्मेलन के मेजबान एवं अपने पुराने दोस्त इजरायल ने बहुत तवज्जो नहीं दिया, और अमेरिका के अरब सहयोगियों के साथ तो उन्हें इस बारे में बहुत ही कम सफलता मिली है।
इजरायल कई कारणों से रूस का विरोध करने को लेकर बहुत सावधान है (हालांकि उसने अमेरिकी दबाव के में आकर रूसी बलों के हमले में घायल लोगों के इलाज के लिए यूक्रेन क्षेत्र के अंदर एक फील्ड अस्पताल स्थापित किया है और युद्ध क्षेत्र में मानवीय सहायता आपूर्ति के कई शिपमेंट भी भेजे हैं)। इजरायल ने हथियारों के लिए कीव की तरफ से बारहां किए गए अनुरोधों को भी मानने से इनकार कर दिया है।
इजरायल रूसी कुलीन वर्ग के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की अमेरिकी अगुवाई वाली योजना में भी शामिल नहीं हुआ है। उसके इस फैसले से बाइडेन प्रशासन खुश नहीं है। राजनीतिक मामलों के लिए अमेरिकी उप विदेश मंत्री विक्टोरिया नुलैंड की तीखी जुबान चैनल 12 को दिए गए एक इंटरव्यू में बाहर आ गई, "जो पुतिन के युद्ध को बढ़ावा देने वाले गंदे पैसे के लिए आप (इजरायल) आश्रय क्यों बनना चाहते हैं।”
इजरायल ने उस कड़वी जुबान को नज़रअंदाज़ कर दिया। इजरायल ने शुरू में संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी, लेकिन हाल ही में उसने इस काम से अपने आप को पीछे खींच लिया। और वैसे भी, इस युद्ध को समाप्त करने के लिए रूस को वास्तव में किसी पंच की आवश्यकता नहीं है, बस उसका यह विशेष ऑपरेशन सफलतापूर्वक समाप्त हो जाए। कुल मिलाकर, इज़रायल यूक्रेन और रूस दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए एक तनी हुई रस्सी पर चलने की कोशिश कर रहा है।
खाड़ी देशों की जहां तक बात है तो वे इस संघर्ष में एक तटस्थ रुख अपनाने का नाटक भी नहीं करते हैं। इनमें से कोई भी देश रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के पश्चिमी आह्वान पर राजी नहीं हुआ है। कतर और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री रूस से द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करने पर चर्चा के लिए हाल ही में मॉस्को गए थे।
इसकी मूल वजह है कि खाड़ी के प्रमुख तेल उत्पादक देश ओपेक+ को न केवल अपनी आमदनी के मौजूदा लेवल को बनाए रखने के लिए, बल्कि ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने की प्रत्याशा में हैं, जिससे वैश्विक तेल बाजारों में ईरानी कच्चे तेल का पूर्ण प्रवाह वापस आ जाए।
मुद्दा यह है कि ईरान एक महान तेल शक्ति बना हुआ है, जिसके पास 157 बिलियन बैरल कच्चे तेल का भंडार है, जो दुनिया के कुल का तेल स्रोत का लगभग 10 फीसद है और कुल ओपेक के हिस्से का 13 फीसद है। ओपेक+ के भीतर ईरान की मौजूदगी सभी तेल उत्पादक देशों के लिए एक पूर्ण आवश्यकता है। अब, वैश्विक तेल कीमतों पर ईरान के प्रवेश के अल्पकालिक और दीर्घकालिक मंदी दोनों प्रभावों का लाभ उठाने के लिए रूस की एक प्रमुख भूमिका है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि ईरान छह महीने के भीतर पूर्ण तेल उत्पादन की 80 फीसद उत्पादन कर सकता है और 12 महीने के भीतर वह 100 फीसदी उत्पादन क्षमता को हासिल कर सकता है। और ईरान से प्रतिबंध हटाने का तत्काल प्रभाव यह पड़ेगा कि तेल की कीमतों में 5 से 10 फीसदी की रातों रात कमी आ जाएगी।
फिर भी, यूक्रेन संघर्ष तो एक तरफ है, फिलहाल नेगेव रेगिस्तान में हुए इज़राइल-अरब राजनयिक शिखर सम्मेलन का वास्तविक महत्त्व इससे कहीं ज्यादा माना जाना चाहिए। प्रथमदृष्टया, यह इजरायल के लिए एक राजनयिक तख्तापलट है, क्योंकि अरब परिवार में उसके एकीकरण के प्रयास तेज हो रहे हैं। इस दृष्टिकोण के लिए आकर्षक बात यह है कि यह पश्चिम एशिया में अमेरिका के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करता है।
मित्रों और पड़ोसियों को प्रभावित करने के लिए कूटनीति पर प्रधानमंत्री नाफ्ताली बेनेट का संभाषण उत्पादक साबित हो रहा है। इजरायल को अब एक क्षेत्रीय देश के रूप में चलने के लिए नए रास्ते बनाने को लेकर अमेरिका पर निर्भर नहीं है। यह एक क्रांतिकारी बदलाव है।
मुख्य रूप से, इजरायल अरब दुनिया में इस बात को लेकर परेशान है कि ईरान बहुत जल्द एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरने के लिए कमर कस रहा है और यह अभी स्पष्ट नहीं है कि उसकी भविष्य की नीतियों क्या रूप लेंगी। वास्तव में, नेगेव रेगिस्तान में यही राजनयिक घटना का एक आवर्ती विचार (लेटमोटिफ) है।
तत्काल संदर्भ में, इज़रायल और अरब राज्यों का मानना है कि हाल ही में हौथिस द्वारा किया गया तीव्र ड्रोन हमला केवल ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की मदद और यहां तक कि उसकी भागीदारी के बिना ही संभव है, जो उसे मिसाइल, रॉकेट, ड्रोन, खुफिया उपकरण देता है और उसे प्रशिक्षण देता है। उन्हें आशंका है कि ईरान की प्रतिरोध राजनीति एक नई बढ़त का संकेत दे रही है, यह उत्तरी इराक के इरबिल में तथाकथित इजरायली संपत्ति पर हालिया मिसाइल हमले से जाहिर होता है।
सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात अमेरिका द्वारा निर्मित एंटी-मिसाइल डिफेंस, मुख्य रूप से वे पैट्रियट सिस्टम पर निर्भर रहे हैं, लेकिन उन मिसाइलों का प्रदर्शन कम संतोषजनक रहा है। अतः इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और सऊदी अरब के बीच "संयुक्त हवाई सुरक्षा" बनाने का एक आश्चर्यजनक विचार हाल ही में मूर्त रूप लिया है।
आखिरकार, इज़रायल ने प्रसिद्ध आयरन डोम, डेविड के स्लिंग सिस्टम (जो 200 किमी की दूरी से ही हमलावर मिसाइलों की टोह ले सकता है) और एरो बैटरी पर विकसित एक बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली विकसित करने में विशेषज्ञता हासिल कर ली है, जो बैलिस्टिक मिसाइलों सहित 2,000 किमी तक लंबी दूरी की मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने और उसको नष्ट करने में सक्षम हैं। इजरायली की तीन परत वाली प्रणाली उन्नत रडार से जुड़ी है और उसको प्रारंभिक चेतावनी उपकरणों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
यह वाकई दिलचस्प है कि इजरायली हवाई रक्षा प्रणाली भी एक शक्तिशाली अमेरिकी रडार से जुड़ी हुई है, जो नेगेव रेगिस्तान में स्थित है, जहां मिस्र, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के अरब राजनयिक दो दिवसीय कार्यक्रम के लिए इकट्ठे हुए थे।
शिखर सम्मेलन में ब्लिंकन का मिशन मुख्य रूप से क्षेत्रीय सहयोगियों को वियना में बातचीत के आसन्न निष्कर्ष के लिए तैयार करने के लिए है, जिसमें ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध हटाए जा सकते हैं। बाइडेन प्रशासन ने अभी तक IRGC को एक "विदेशी आतंकवादी संगठन" के रूप में नामित करने पर रोक नहीं लगाई है। अमेरिका के क्षेत्रीय सहयोगियों, खासकर इजरायल, ने इस कदम का जी जान से विरोध किया है।
लेकिन अमेरिका को ईरान का तेल उत्पादन विश्व बाजार में बढ़ाने को लेकर थोड़ी जल्दी है। हालांकि, इससे ईरान के खिलाफ वाशिंगटन की नियंत्रण नीति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। इसकी बजाय, यह एक नए रूप में जारी रहेगा। वास्तव में, तेहरान से उसकी अपनी क्षेत्रीय नीतियों के बारे में बिना किसी आश्वासन के प्रतिबंध को हटाने पर अमेरिका को मजबूरन रोकथाम की रणनीति को भू-राजनीतिक उपकरण के रूप में निकट भविष्य तक जारी रखना होगा।
ब्लिंकन की भागीदारी के साथ अरब-इजरायल शिखर सम्मेलन इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका-ईरान उलझाव को फिर से कायम किया जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए जेसीपीओए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इज़रायल भी हाल ही में इस सोच के साथ आगे बढ़ता लगा है। पश्चिम एशिया में ईरान का मुकाबला करने के लिए अब्राहम समझौते एक नए अमेरिकी समर्थित सुरक्षा ढांचे की नींव रख रहे हैं।
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