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उज्जैन: थूक फेंकने के आरोप में जेल गए बच्चों का क्या है सामाजिक जीवन, प्रशासन ने तोड़ दिया था घर

"सोडा की दुकान से दाल रोटी से ज़्यादा नहीं हो पाता। गर्मी के दिनों में थोड़ी कमाई ज़रूर बढ़ती है लेकिन 15 लाख रुपये जमा करने में तो 20 साल लग जाएंगे।"
Ujjain

उज्जैन: दोपहर के लगभग 12 बजे थे। 18 साल के अदनान शहर के टंकी चौक स्थित अपनी सोडे की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ को सोडा पिला रहे थे।

अदनान, पांच महीने उज्जैन के भैरवगढ़ सेंट्रल जेल में रह कर आए हैं। अदनान, उसके 15 साल के छोटे भाई और उसके नाबालिग दोस्त को एक धार्मिक यात्रा पर छत पर से थूक फेंकने के आरोप में पिछले साल 2023 में जुलाई में गिरफ़्तार किया गया था।

उन पर धार्मिक यात्रा के दौरान उन्माद फैलाने का आरोप लगाकर रात में पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था। ख़बर में धार्मिक रंग होने की वजह से चंद घंटों में यह ख़बर इंटरनेशनल हो गई थी।

घटना के एक दिन बाद आधे घंटे का नोटिस देकर उज्जैन नगर निगम ने टंकी चौक स्थित उसके घर को सुबह सुबह तोड़ दिया। उस तीन मंजिला घर में अदनान के पिता अपने दो भाईयों के परिवार के साथ रहते थे। उसी घर के नीचे सोडे की दुकान थी जिससे उनका पूरा परिवार का खर्च चलता था। प्रशासन की क्रूरता का आलम यह था कि उन्हें सामान निकालने तक की मोहलत नहीं दी गई।

प्रशासन ने इस मकान को जर्जर बता कर तोड़ दिया। इतना ही नहीं, इसे धार्मिक रंग देने के लिए डीजे पर भक्ति के गाने और ढोल-नगाड़े के बीच तोड़ा गया। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने घर तोड़ने का वीडियो ट्विटर पर डाल कर लिखा था जो हमारे बाबा महाकाल का अपमान करेगा उसे नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।

बहरहाल, एक कहावत है झूठ के पैर नहीं होते, ठीक वैसे ही जब यह मामला कोर्ट में गया, शिकायतकर्ता सावन लोट और गवाह अजय खत्री ने पुलिस पर फर्जी FIR का आरोप लगाते हुए इस घटना से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि सब पुलिस का किया कराया है उन्होंने कोई शिकायत नहीं की।

मामले की सुनवाई इंदौर की हाईकोर्ट खंडपीठ में चल रही है। न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने कहा कि शिकायतकर्ता सावन लोट और प्रत्यक्षदर्शी अजय खत्री से ट्रायल कोर्ट के समक्ष पूछताछ की गई। जहां दोनों ही अपने बयान से मुकर गए हैं।

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि मुख्य शिकायतकर्ता सावन न केवल मुकर गया बल्कि उसने 'अपनी एफआईआर के प्रासंगिक हिस्से से भी इनकार कर दिया'। न्यायाधीश ने कहा कि अदनान की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है इसलिए इसे जमानत दी जाती है।

कोर्ट द्वारा तीनों बच्चों को जमानत देने के बाद पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठना वाजिब है।

शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान से स्पष्ट हो रहा है कि पुलिस ने बिना जांच के FIR दर्ज की और निर्दोष बच्चों को जेल भेज दिया।

नाबालिग होने की वजह से दो बच्चे तो 68 दिन में छूट गए पर अदनान जो जेल जाने के कुछ दिन पहले ही 18 साल के हुए थे, पांच महीने तक जेल में रहे।

मैं जब अदनान से उसकी दुकान पर मिला तो उन्होंन कहा, "भैया मुझे पॉलिटिक्स और हिन्दू-मुस्लिम कुछ पता नहीं था... मुझे तो जेल में पता चला कि देश में इन दिनों माहौल ठीक नहीं है और हमारे खिलाफ एक गलत केस किया गया है।"

सारी बातें उन्हें झकझोर देने वाली थीं। वह उस रात सो नहीं पाए।

उन्होंने बताया कि अभी वह इस बात से उबर रहा था कि जेल में आए एक नए कैदी ने उसे (अदनान) बताया कि प्रशासन ने डीजे बजा कर उसका घर तोड़ दिया और सब जय श्री राम के नारे लगा रहे थे।

पांचवी ड्रॉपआउट अदनान को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह आख़िर उनके साथ यह क्या हो रहा है। उनके परिवार में बहुत ज़्यादा तालीम को तरजीह नहीं दी गई थी। उनके पिता अशरफ़ हुसैन तीन भाइयों में सबसे छोटे है और किसी ने तालीम हासिल नहीं की। पहले टायर रिपेयर की दुकान चलाते थे फ़िर उसे बंद कर सोडा बेचने का काम शुरू किया।

परिवार से बात करने पर पता चला कि अदनान, उसके छोटे भाई और उसके दोस्त पर इस घटना का काफ़ी गहरा सामाजिक असर पड़ा। अदनान काफ़ी चुप चाप रहने लगा है और सोडा की दुकान चलाता है। उसके छोटे भाई ने स्कूल जाना छोड़ दिया। वह एक टीचर से सुबह सुबह पढ़ने जाता है क्योंकि सुबह और कोई पढ़ने नहीं आता है।

न तो यह बच्चे अब खेलने जाते हैं न ही किसी की शादी या मेले में। मां, पिता और दुकान के इर्द गिर्द ही इनकी ज़िंदगी सिमट कर रह गई है।

इस घटना को लेकर मैं परिवार से मिलना चाहता था और परिवार व बच्चों पर इस घटना का क्या असर रहा मुझे इस बात को समझनी थी। पर अदनान और उसके परिवार से मिलना आसान नहीं था। घटना के बाद से वह किसी पर भरोसा नहीं करते थे।

तभी मुझे उनके वकील देवेंद्र सेंगर के बारे में पता चला। उनसे बात होने के अगले हफ़्ते मैं उनसे मिलने उज्जैन ज़िला कोर्ट पहुंच गया।

सेंगर एक ज़मीनी वकील हैं जो उज्जैन जैसी सांप्रदायिक जगह पर सच्चे मन से वकालत करते हैं। उनके पास ज्यादातर वैसे केस आते हैं जिसे कोई लड़ना नहीं चाहता। 2021 में उज्जैन में मुहर्रम के जुलूस के दौरान क़ाज़ी साहब जिंदाबाद के नारे को जब पाकिस्तान जिंदाबाद का रंग दिया गया इस केस में भी सेंगर ही पैरवी कर रहे हैं।

कोर्ट के ट्रायल से पहले हुआ मीडिया ट्रायल

सेंगर मिलते ही कहते हैं "आप लोगों के पेशे में सिर्फ झूठ है। हमारे यहां कोर्ट का ट्रायल शुरू भी नहीं होता है की आप लोग मीडिया ट्रायल शुरू कर देते हैं और खुद ही फैसला भी सुना देते हैं।"

बहरहाल, थोड़े परिचय और बातचीत के बाद वह खुल गए।

आश्वस्त होने के बाद उन्होंने पीड़ित परिवार के पास मुझे भेजा। टंकी चौक पहुंचते ही टूटा हुआ घर और उसके नीचे सोडा का दुकान देख मैंने अदनान को पहचान लिया था।

हमारे पहुंचते ही अदनान आवाज देकर अपने छोटे भाई को भी बुला लेता है।

छोटा भाई इस केस के कारण कम उम्र में ही "सांप्रदायिकता", "न्याय" और "संविधान" जैसे भारी भरकम शब्द समझने लगा था।

अब वह बाहर खेलने नहीं जाता कारण पूछने पर कहता है, "भैया... मामला सेंसिटिव था न" इसलिए पापा बोलते हैं बाहर मत जाया करो।

एक झूठे केस ने न सिर्फ इन तीन बच्चों को बल्कि उनके परिवार के कई लोगों के जीवन में आमूलचूल बदलाव लेकर आया।

17 जुलाई 2023 को याद कर बच्चे आज भी सहम जाते हैं। श्रावण माह का दूसरा सोमवार था। हर सोमवार को बाबा महाकाल की सवारी शिप्रा नदी से लौटती है और खारा कुआं थाने के पास लोहे की टंकी से होकर गुजरती है।

सवारी में भारी भीड़ होने के कारण पुलिस ने दुकानें बंद करवा दी थीं, मुस्लिम दुकानदारों को ख़ास हिदायत दी गई थी। उस दिन दोपहर के करीब तीन बजे अदनान के पिता अशरफ ने अपने सोडे की दुकान बंद कर दी।

बच्चों को बाहर ना जानें कि हिदायत दे कर अशरफ दुकान बंद कर सोने चले गए। घर में मौजूद तीनों बच्चे सवारी देखने के लिए छत पर चले गए।

अदनान, उसका छोटा भाई और उसका दोस्त तीनों बच्चे छत पर थे। सवारी आने में अभी काफी देर थी। थोडी ही देर में उसके घर के नीचे कुछ पुलिस वाले आकर उन्हें कुछ इशारा करते हैं। अदनान बताते हैं कि वे पानी मांग रहे थे। तीनों बच्चे बोतल लेकर नीचे जाते हैं। वहां टीआई व अन्य को ठंडा पानी पिलाते हैं और फिर ऊपर आ जाते हैं।

करीब साढ़े 6 बजे सवारी गुजरने के बाद तीनों बच्चे नीचे आकर दुकान खोलने में पिता अशरफ की मदद करते हैं और दुकान में ही बैठ जाते हैं।

आगे क्या होने वाला है इस बात से सभी लोग अनभिज्ञ थे। थोड़ी ही देर में कुछ पुलिसकर्मी आए और अशरफ से बात करने लगे। अशरफ से तीनों बच्चों का नाम पूछते हैं और फिर उन्हें पास बुलाते हैं।

तीनों बच्चों को अब तक कुछ पता नहीं था कि उनके साथ क्या होने वाला है। पुलिस के लोग थोड़ी देर मोबाइल फोन पर बात करते हैं और फिर उन्हें साथ चलने के लिए कहते हैं।

अदनान समेत तीनों बच्चे पैदल ही पुलिस के साथ पास में ही स्थित खाराकुआं थाने पहुंचते हैं। थाने आने पर उन्हें पता चला कि उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत हुई है।

पुलिस ने उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 295 ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य), 153 ए (पूजा स्थल पर किया गया अपराध), 296 (धार्मिक सभा को परेशान करना), 505 (सार्वजनिक उत्पात फैलाने वाले बयान) और सामान्य इरादा के तहत केस दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

तत्कालीन एडिशनल एसपी आकाश भूरिया ने तब मीडिया से कहा था कि उन बच्चों द्वारा उज्जैन शहर का सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की गई थी। हालांकि, बच्चे कहते हैं कि सांप्रदायिक सौहार्द क्या होता हमें तो तब ये पता भी नहीं था।

इसके अगले दिन यानी 18 जुलाई को दोनों नाबालिग बच्चों को बाल संप्रेक्षण गृह भेज दिया गया जबकि डेढ़ महीने पहले 18 वर्ष पूरा कर चुके अदनान को सेंट्रल जेल भैरवगढ़ भेज दिया गया।

अदनान के पिता अशरफ कहते हैं कि उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बच्चों ने ऐसा क्या कर दिया जो उन्हें जेल भेज दिया गया। न्यूज में उन लोगों के खिलाफ तरह-तरह की बातें कही जा रही थी।

कोर्ट, कानून, थाना, पुलिस सब कुछ अशरफ के लिए नया था। उनके घर में कभी किसी के ऊपर आजतक कोई मुकदमा नहीं हुआ था।

वे अभी कुछ समझ पाते की प्रशासन ने घर जर्जर होना बताकर उन्हें खाली करने का आदेश दे दिया।

डीजे बजाकर तोड़ा गया था घर

19 जुलाई की सुबह प्रशासनिक अमले के साथ पुलिस गाजे बाजे लेकर उनके घर पहुंच गई। डीजे पर देशभक्ति गीत बजाए जा रहे थे और उन्हें घर से बाहर आने को कहा गया। उन्हें पता चल गया था कि उनका घर तोड़ा जाएगा। वे कुछ घंटे की मोहलत मांगते हैं ताकि वे सामान निकाल सके।

लेकिन उन्हें इसके लिए समय नहीं दिया जाता है, क्योंकि इसे कवर करने के लिए पूर्वनिर्धारित समय पर मीडिया कर्मियों को भी बुलाया गया था और सभी जल्दी से घर टूटने का विजुअल्स अपने कैमरों में कैद करना चाहते थे। कुछ ही देर में घर के साथ उनका पूरा गृहस्थी उजड़ गया था।

घर का कुछ हिस्सा जो जेसीबी से नहीं टूट सका था उसे तोड़ने के लिए बाद में हथौड़े के साथ मजदूर भेजे गए। अशरफ के सामने अब समस्या यह थी की बच्चों के वकील को देने के लिए रुपए लाएं या रहने के लिए आशियाना ढूंढे। इस घटना के कारण डर से पड़ोस में उन्हें कोई अपने घर में किराए पर कमरा देने तक के लिए तैयार नहीं था।

वह अपने परिवार के साथ दूसरे रिश्तेदार के घर में रहने लगे।

मुकदमे में खर्च के लिए रूपयों की व्यवस्था करना अशरफ के लिए बड़ी चुनौती थी। अशरफ कहते हैं कि घटना के बाद एक-डेढ़ महीने तक डर से वे दुकान भी नहीं खोल सके थे। हालांकि, बाद में प्रशासन के लोगों ने ही उनसे कहा कि आप दुकान चलाओ, तब उन्हें हिम्मत मिली और उन्होंने दुकान खोलना शुरू किया।

अशरफ के मुताबिक उनका तीन मंजिला घर 200 स्क्वायर फीट के प्लॉट पर निर्मित था। आज के समय इसे बनाने में 15 लाख रुपये से ज्यादा खर्च होंगे।

यह पूछने पर कि इतने रुपये जमा करने में उन्हें कितना समय लगेगा। वह रुआंसे हो जाते हैं। अशरफ कहते हैं कि सोडा की दुकान से दाल रोटी से ज्यादा नहीं हो पाता। गर्मी के दिनों में थोड़ी कमाई जरूर बढ़ती है लेकिन 15 लाख रुपये जमा करने में तो 20 साल लग जाएंगे।

अब उनका घर कभी होगा भी या नहीं इस सवाल पर वे कहते हैं सोडा दुकान की कमाई से घर नहीं बनाया जा सकता। वे कहते हैं कि इस केस में वकील का फीस व अन्य खर्चे मिलाकर करीब सवा लाख रुपये खर्च हो गए हैं।

बाल संप्रेक्षण गृह गए दोनों नाबालिग अपने अनुभवों पर कहते हैं कि शुरू में तो वे बहुत रोते थे। लेकिन बाद में उन्हें ठीक लगने लगा था। अदनान का छोटा भाई बताता है कि जब वे दोनों रोते थे तो संप्रेक्षण गृह के कर्मचारियों द्वारा उनका ढांढस बंधाया जाता था। उन्हें कहा जाता था कि सावन खत्म होते ही उन्हें छोड़ दिया जाएगा।

छोटे भाई के मुताबिक बाल संप्रेक्षण गृह में वे योगा करते थे, उन्हें बहुत कुछ पढ़ाया और सिखाया जाता था। मैडम पढ़ाने आती थीं। 15 अगस्त को ध्वजारोहण कार्यक्रम के लिए जेल प्रशासन की ओर से उन्हें नए-नए कपड़े भी दिए गए थे।

गिरफ्तारी के वक्त पुलिस के व्यवहार को लेकर भी वे कहते हैं कि अंकल लोग ठीक थे। लेकिन थाने में उन्हें किसी अनजान व्यक्ति ने जरूर ये कहते हुए गालियां दी की तुमने मेरे भगवान पर थूका है।

अदनान जेल के अनुभवों को लेकर कहते हैं कि चूंकि मामला ज्यादा सेंसिटिव था इसलिए उन्हें एक अलग कमरे में रखा गया था। हफ्ते भर बाद उन्हें एक बैरक में लाया गया जहां कम लोग ही थे। वहीं एक महीने बाद उन्हें सामान्य कैदियों की तरह रखा जाने लगा।

अदनान कहते हैं कि जेल में सभी को पहले से पता था कि वे किस मामले में अंदर आए हैं। हालांकि, इसके बावजूद उनके साथ किसी ने कभी कोई बदसलूकी नहीं की।

वे कहते हैं कि जेल में कोई जाति धर्म नहीं होता। वहां सबका एक ही धर्म होता है और वे कैदी होते हैं। सब अपनी-अपनी बारी का इंतजार करते हैं कि कब उनकी जमानत होगी।

अदनान के मुताबिक घर वाले उनसे जेल में मिलने आते थे लेकिन कुछ बताते नहीं थे। उनके पिता अशरफ रूंधे गले से कहते हैं कि भैया हमलोगों ने तय किया था कि बच्चों को कुछ भी नहीं बताना है कि घर टूट गया या केस में बहुत खर्च हो रहा है। क्योंकि वे पहले से जेल में थे ये सब सुनकर हिम्मत और टूट जाती। इसलिए बस इन्हें कहते थे सब ठीक है बस अब छूटने ही वाले हो।

चुनाव में बलि का बकरा बना हमारा परिवार

उनका घर क्यों तोड़ा गया यह पूछने पर अशरफ कहते हैं कि आप लोग को तो सब पता ही है। तीन महीने बाद चुनाव होना था और सरकार को हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा उछालना था। हर बार तो चुनाव के पहले यही होता है। इस बार बलि का बकरा हमारा परिवार बन गया।

आगे क्या होगा ये पूछे जाने पर अशरफ कहते हैं कि कोर्ट में हिन्दू मुस्लिम थोड़े होता है। वे जोर देकर कहते हैं कि जज कभी पक्षपात नहीं करते।

अशरफ जाते वक्त कहते हैं कि केस जल्द खत्म हो जाएगा तो बाबा महाकाल के आशीर्वाद से सभी बच्चे बरी भी हो जाएंगे। ये सुनना थोड़ा नया था क्योंकि जिन महाकाल पर थूकने का आरोप उनके बच्चों पर लगाया गया उन पर भी अशरफ को इतना ही विश्वास था कि यदि उनमें शक्ति होगी तो वे किसी के साथ भी अन्याय नहीं होने देंगे।

इस एक केस ने न केवल बच्चों को बल्कि पीढ़ियों को प्रभावित किया। बंधुत्व जैसे संवैधानिक मूल्यों के ह्रास का यह एक जीवंत उदाहरण है। इस केस के दौरान हुए मीडिया ट्रायल ने न जाने कितने दिलों में नफरत के बीज बोए होंगे। सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने में शासन-प्रशासन की ओर से भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई।

राजनीतिक दबाव में बनाया गया मामला

बच्चों के खिलाफ इतना गंभीर आरोप क्यों लगाया गया यह पूछे जाने पर उनके वकील देवेंद्र सेंगर कहते हैं कि राजनीतिक दबाव में यह पूरा मामला बनाया गया था।

उज्जैन कोर्ट के माहौल को लेकर वह कहते हैं कि सौभाग्य है उज्जैन कोर्ट का माहौल बहुत बढ़िया है। यहां हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर वकीलों में भेदभाव नहीं होता।

वे कहते हैं कि कुछ लोगों ने जरूर उन्हें कहा था कि भगवान से जुड़ा मामला है इसे वे नहीं लें, लेकिन किसी ने ज्यादा दबाव नहीं बनाया।

सेंगर ये जरूर कहते हैं कि इस तरह के मामलों में भीड़ का डर होता है। हाल के वर्षों में कोर्ट के भीतर भीड़ द्वारा वकील अथवा आरोपियों के पीटे जाने के कई मामले सामने आ चुके हैं।

(ऋषभ राज सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।) 

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