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"उमर हमारा हौसला नहीं टूटने देता", बेटे को जेल में दो साल होने पर उमर ख़ालिद की मां

"उमर जब छोटा था तो बाबरी मस्जिद को ढहते हुए देखा। थोड़ा बड़ा हुआ, समझदार हुआ तो बाटला हाउस एनकाउंटर देखा। इन सब बातों का उसपर बहुत असर हुआ। उसने सवाल करना शुरू किया। ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना शुरू किया। ज़ुल्म के खिलाफ सवाल करना, उनके खिलाफ खड़े होना ही आज उसके सलाखों के पीछे होने के कारण बन गया। लेकिन मुझे कोई अफ़सोस नहीं है। 
Umar Khalid Mother

"उमर को गिरफ्तार हुए पूरे दो साल हो गए हैं। दो साल पहले का वो दिन मेरी आँखों में बार-बार घूम रहा है जब वो जेल की सलाखों के पीछे एक ऐसे कमरे में क़ैद हैं जिसका ताला लगा है और चाबी किसी और के पास है। सोचिए की ये एक इंसान के लिए कितना मुश्किल होता होगा"

ये बात उमर खालिद की अम्मी साबिया खानम ने कहीं, उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने 13 सितंबर, 2020 को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था, और अब उन्हें जेल में पूरे दो साल बीत चुके हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह उनकी जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

"जल्द रिहा होगा उमर"

न्यूज़क्लिक को दिए इंटरव्यू में साबिया खानम ने बताया कि उन्हें पूरा भरोसा है कि उमर जल्द जेल की सलाखों से आज़ाद होकर बाहर आ जाएंगे। वो कहती हैं, "बेशक ये बतौर माँ मेरे लिए मुश्किल है कि मैं दो साल से अपने बेटे से दूर हूँ, लेकिन मैं जानती हूँ कि उमर बेकसूर है और वो बहुत जल्द बाहर आएगा। सरकार ज़ुल्म की बुनियाद पर उन आवाज़ों को दबाना चाहती है जो सरकार की गलत नियत पर सवाल करती हैं। लेकिन बीते सालों में जितना ज़ुल्म हुआ है, उमर और उसके जैसे नौजवानों का हौसला उतना ही बढ़ा है।" 

"घर की खुशियां उमर के बिना अधूरी लगती है"

उन्होंने एक किस्सा साझा करते हुए बताया कि हाल ही में उमर की बहन का रिश्ता तय हुआ है। बहन हरगिज़ तैयार नहीं है। कहती है कि मैं उमर भाई के बिना शादी नहीं करुँगी। भाई जेल में है। हम खुशियां कैसे मना सकते हैं। हमने ये बात उमर तक पहुंचाई। उमर का जवाब आया और उसने कहा  "आप लोग मुझे घटाकर घर के फैसले लिया कीजिए, ज़िंदगी सिर्फ इसलिए नहीं रुक सकती कि मैं जेल में हूँ। आपके जो भी काम हैं आप करिए।"

साबिया अपने दुख का इजहार करते हुए कहती हैं, "लेकिन हमारे लिए ये बहुत मुश्किल है, मुझे हर ऐसे मौके पर बेचैनी होने लगती है, ज़िंदगी की हर ख़ुशी उमर के बिना अधूरी लगती है।"

"बहुत सिम्पल ज़िंदगी जीने वाला एक उसूल पंसद लड़का"

वे उमर के बचपन पर बात करते हुए बताती हैं कि, "उमर को खाने-पीने, अच्छे कपड़े पहनने का कभी शोक नहीं रहा। वे बहुत ही सभ्य, सरल बच्चा रहा और आज भी वैसा ही है। लेकिन अपने उसूलों से किसी तरह का कभी समझौता नहीं किया। पढ़ने में बहुत तेज़ था, हर बात पर सवाल करने की आदत थी। मैंने हमेशा कोशिश की कि उसके सवालों का बेहतर जवाब दूँ।"

"उमर ने मज़लूमों के साथ खड़े होने का फैसला लिया"

वे बताती हैं कि उमर अपनी पढ़ाई में इतना होशियार और तेज़ था कि वो अपना करियर बनाकर एक आराम की ज़िंदगी जी सकता था। उसके अपने भाई-बहन देश से बाहर बहुत बेहतर नौकरी कर रहे हैं, अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं। लेकिन उमर ने ये सब छोड़कर मज़लूमों के साथ खड़े होने का फैसला लिया था।

वे उसके बचपन को याद करते हुए कहती हैं, "उमर जब छोटा था तो बाबरी मस्जिद को ढहते हुए देखा। थोड़ा बड़ा हुआ, समझदार हुआ तो बाटला हाउस एनकाउंटर देखा। इन सब बातों का उसपर बहुत असर हुआ। उसने सवाल करना शुरू किया। ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना शुरू किया। ज़ुल्म के खिलाफ सवाल करना, उनके खिलाफ खड़े होना ही आज उसके सलाखों के पीछे होने के कारण बन गया। लेकिन मुझे कोई अफ़सोस नहीं है। मैं बहुत फ़ख़ के साथ कहती हूँ कि वो इस समाज के लिए लड़ रहा है।"

"अपने दिल से डर को निकाल दीजिए"

सरकार किसी का भी घर बुलडोज़र के ज़रिए ढहा देती है। सवाल करने वालों को जेल में डाल दिया जाता है। सरकार हमें डरना चाहती है। हमारे हौसले पस्त करना चाहती है, लेकिन मैं हिंदुस्तान के नौजवानों से ये कहना चाहती हूँ कि इस डर को दिल से निकाल दीजिए, जैसे उमर और उसके दोस्तों ने निकाल दिया है। ज़ालिमों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत जिस दिन पैदा हो जाएगी उस दिन अँधेरा ख़त्म होगा और रोशनी  दिखाई देगी।

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