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किसान आंदोलन: बढ़ती चुनौतियां, नई अंगड़ाई

यह देखना अफ़सोसनाक है कि कृषि में कारपोरेटीकरण के समर्थक बुद्धिजीवी अपने पक्षपातपूर्ण एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए कैसे-कैसे कुतर्कों पर उतर आए हैं!
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फाइल फ़ोटो। पीटीआई

1 फरवरी को इस मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पेश होने जा रहा है। उसके ठीक पहले प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख बिबेक देब्रॉय ने कृषि आय पर टैक्स लगाने की जोरदार वकालत की है। इसके लिए बाकायदा मीडिया में लेख लिखकर वे जनमत तैयार करने में भी उतरे।

उनका तर्क है कि भारत में ऐसे गाँव हैं जो दुनियां में सबसे समृद्ध हैं, फिर किसानों से टैक्स क्यों नहीं वसूला जाना चाहिए? उनके इस sweeping generalisation में  हमारी कृषि आज जिस गहरे संकट में है, क्या आपको उसकी कोई समझ और संवेदनशीलता दिखती है, जिसके कारण दस लाख से ऊपर किसान आत्महत्या कर चुके हैं?

वे पूछते हैं कि जब 1947 के पहले यह टैक्स वसूला जाता था तो फिर आज क्या किसान पहले से गरीब हो गए हैं? प्रधानमंत्री जी के आर्थिक सलाहकार महोदय क्या 1947 के पहले के औपनिवेशिक दौर को वापस ले आना चाहते हैं जब ऐसी ही नीतियों द्वारा हुई कृषि क्षेत्र की बर्बादी से 3 करोड़ से ऊपर हिंदुस्तानी अकाल में मर गए थे?

इसी बीच सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े रहे कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने, जिन्हें इतिहास के कूड़ेदान में जा चुके 3 बदनाम कृषि कानूनों का भी मुख्य शिल्पकार माना जाता है, कृषि क्षेत्र को मिलने वाली सब्सिडी पर निशाना साधा है।

प्रधानमंत्री द्वारा रेवड़ी संस्कृति पर हमले का जिक्र करते हुए वे कहते हैं कि अगले बजट में मुफ्त अनाज योजना पर 2 लाख करोड़, फर्टिलाइजर पर 2 लाख करोड़, PM-किसान निधि पर 60 हजार करोड़, कृषि ऋण तथा फसल बीमा पर सब्सिडी को जोड़कर कृषि क्षेत्र में कुल लगभग 5 लाख करोड़ सब्सिडी सरकार को देनी पड़ेगी।

इसका पुरजोर विरोध करते हुए वे तर्क देते हैं कि कृषि में हमारी आधी आबादी लगी है, जबकि चीन में केवल 25% लोग कृषि क्षेत्र में employed हैं, फिर भी हमसे कम जमीन पर वे हमसे दोगुना उत्पादन कर रहे हैं। इसका मूल कारण उनकी मौलिक "खोज" के अनुसार यह है कि वहां रेवड़ी कल्चर नहीं है ! दोनों देशों के ठोस ऐतिहासिक आर्थिक-राजनीतिक सन्दर्भ और जटिलताओं  से काटकर ऐसी सरलीकृत तुलना न सिर्फ हास्यस्पद है, बल्कि एक तरह की logical fallacy  है।

यह देखना अफसोसनाक है कि कृषि में कारपोरेटीकरण के समर्थक बुद्धिजीवी अपने पक्षपातपूर्ण एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए कैसे-कैसे कुतर्कों पर उतर आए हैं !

बहरहाल, रेवड़ी के नाम पर कृषि सब्सिडी पर अशोक गुलाटी के हमले से प्रो. प्रभात पटनायक की उस आशंका की ही पुष्टि हुई है कि कथित रेवड़ी कल्चर पर मोदी का हमला मूलतः कृषि सब्सिडी को खत्म करने की ओर लक्षित है।

मोदी-राज के सबसे चहेते सलाहकारों के बयानों से समझा जा सकता है कि इस समय सत्ता के गलियारों में किसानों और कृषि क्षेत्र को लेकर हवा किस ओर बह रही है और किस रणनीति पर काम चल रहा है। कहाँ आंदोलन वापसी के समय सरकार द्वारा दिए गए आश्वासन के आधार पर किसान MSP की कानूनी गारंटी की आस लगाए थे और कहाँ अब बची खुची सब्सिडी खत्म करने और उनके ऊपर टैक्स लगाने की सलाह दी जा रही है। प्रो. पटनायक ने सही ही चेतावनी दी थी कि अनुकूल माहौल मिलते ही सरकार कारपोरेटीकरण के एजेंडे पर फिर आगे बढ़ेगी, किसी नए फॉर्म में।

शायद 2024 के निर्णायक चुनावों के पहले सरकार इस एजेंडा को लागू करने की हिमाकत न करे, लेकिन उसकी नीतिगत दिशा बिल्कुल स्पष्ट है और यदि 2024 में मोदी-भाजपा की पुनर्वापसी हुई तो साम्राज्यवादी पूँजी और उससे गठजोड़ बनाये एकाधिकारी भारतीय पूँजी की मांग के अनुरूप कृषि के कारपोरेटीकरण के रास्ते पर तेजी से उसका बढ़ना तयशुदा है।

यह स्वागतयोग्य है कि कारपोरेटपरस्त सत्ता प्रतिष्ठान की किसान विरोधी साजिशों तथा मोदी सरकार की वायदाखिलाफी का माकूल जवाब देने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने लड़ाई का बिगुल फूंक दिया है।

" दिल्ली कूच का समय आ गया है। किसान ट्रैक्टर तैयार रखें। "-गणतंत्र दिवस पर जींद में आयोजित महापंचायत में किसान नेताओं की हुंकार ने आने वाले दिनों के लिए उनके इरादे का ऐलान कर दिया है।

26 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर हरियाणा के जींद में आयोजित विराट महापंचायत में किसान नेताओं ने ताल ठोंकी, " इस बार दिल्ली का मोर्चा आर-पार का मोर्चा होगा। 13 महीने के संघर्ष की जो थकान थी, वह उतार ली है। हम दिल्ली लौटेंगे और सरकार से बचा हुआ इंसाफ लेंगे। 2023 में मोदी सरकार को घुटनों पर लाएंगे।"

यह दुहराते हुए कि देश में भाजपा नहीं, कंपनी की सरकार चल रही है, राकेश टिकैत ने किसानों का आह्वान किया, " 15 मार्च से 22 मार्च के बीच दिल्ली में किसानों का जमावड़ा होगा, हमें पता है कि सरकार हमें दिल्ली में प्रदर्शन के लिए कोई जगह देने वाली नहीं है, इसलिये अगर आप को अपनी नसल और फसल बचानी है तो अपने ट्रैक्टरों को तैयार रखना।"

दिल्ली कूच पार्ट-2 का ऐलान 26 जनवरी के दिन कर, किसान नेताओं ने 2 साल पूर्व इसी दिन केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा उनके आंदोलन को तोड़ने और कुचलने के लिये रची गयी भयानक साजिश की किसानों को फिर याद दिला दी।

इसी बीच लखीमपुर किसान जनसंहार के मुख्य अभियुक्त मन्त्रीपुत्र को उच्चतम न्यायालय ने सशर्त जमानत दे दी है। ज्ञातव्य है कि थार जीप से रौंदकर किसानों  की बर्बर हत्या के आरोपी आशीष मिश्र को जनाक्रोश तथा किसान आंदोलन के दबाव में लाख कोशिशों के बावजूद अब तक जमानत नहीं मिल सकी थी। पूर्व में उच्च न्यायालय द्वारा दी गयी जमानत को स्वयं उच्चतम न्यायालय खारिज़ कर चुका था। उधर गृहराज्यमंत्री टेनी को मोदी जी अब तक मन्त्रिमण्डल में बनाये हुए हैं। जाहिर है, मंत्री और मंत्रीपुत्र का बचाव करने वाली सरकार के खिलाफ इससे किसानों का आक्रोश और भड़केगा और किसान-आंदोलन को नया आवेग मिलेगा। जींद रैली ने संकल्प व्यक्त किया,  "किसान हत्यारोपियों को सजा दिलाने तक चैन से नहीं बैठेंगे। "

इस समय किसान जगह-जगह पंजाब हरियाणा से लेकर UP के आज़मगढ़ और बिहार के बक्सर तक, स्थानीय स्तर पर अपनी माँगों को लेकर लड़ाई में डटे हुए हैं। आज़मगढ़ के खिरियाबाग में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के नाम पर किसानों की असहमति के बावजूद  बलात जमीन अधिग्रहण के खिलाफ जारी आंदोलन के 100 दिन  से ऊपर हो  गए हैं, संवेदनहीन प्रशासन किसानों की न्यायोचित मांग को मानने की बजाय साजिश और दमन पर उतारू है। पर इन सारी कोशिशों को धता बताते हुए किसान, जिनमें महिलाओं की उल्लेखनीय भागेदारी है, अपनी लड़ाई को जारी रखे हुए हैं।

यह स्वागतयोग्य है कि किसान नेता अपने आंदोलन की स्वायत्तता को हर हाल में कायम रखते हुए और अपनी पूरी ताकत मूलतः अपने आंदोलन के पुनर्जीवन ( rejuvenation ) पर केंद्रित करते हुए अपने सवालों को लेकर विपक्ष के साथ भी interact कर रहे हैं तथा कारपोरेट-फासीवादी राजनीति के खिलाफ हर लोकतान्त्रिक पहल का समर्थन कर रहे हैं।

देश के लोकतान्त्रिक जनमत से जुड़ते हुए किसान नेताओं ने भी भारत जोड़ो यात्रा का स्वागत किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा में किसान यूनियन के कार्यकर्ता यात्रा में शामिल भी हुए। यात्रा के दौरान राकेश टिकैत की भी राहुल गाँधी से मुलाकात हुई।

वैसे तो यात्रा नफरत और विभाजन के विरुद्ध एकता और सौहार्द की थीम पर केंद्रित रही, परन्तु यात्रा के बीच में पत्रकार वार्ता के दौरान राहुल गाँधी ने MSP की कानूनी गारंटी के सवाल पर जो गोलमटोल बातें कीं, वे आश्वस्तकर नहीं हैं, वे दरअसल पूरी तरह non-committal रहे।

इसके निहितार्थ बहुत स्पष्ट हैं : किसानों को MSP की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी समेत अपने प्रमुख सवालों पर न सिर्फ मोदी सरकार के खिलाफ पहले से भी बड़े आंदोलन में उतरना होगा बल्कि कांग्रेस और विपक्ष को भी इन पर commitment के लिए, इन्हें अपने कार्यक्रम तथा घोषणा पत्र में शामिल करने के लिए बाध्य करना होगा।

तभी देश की विराट किसान आबादी अपने हितों के प्रति सचेत होकर विनाशकारी मोदी राज के खिलाफ 2024 में लामबंद हो सकेगी। आज कारपोरेटीकरण से कृषि को बचाने की लड़ाई, भाजपा-मोदी राज से देश बचाने और लोकतन्त्र बचाने की लड़ाई के साथ अभिन्न है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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