Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मानवतावाद की ख़ातिर सैन्यवाद के ख़ात्मे और जंग को रोके जाने को लेकर एक विश्वव्यापी अपील

बॉफ़िचा अपील आख़िर उन लोगों की आकांक्षाओं का प्रतीक क्यों बन गयी है, जो धरती पर सैन्यकृत हिंसा का अंत चाहते हैं।
Humanity to End Militarism and Stop War

15 मार्च, 1950 को विश्व शांति परिषद ने स्टॉकहोम अपील की थी, यह अपील बहुत ही कम शब्दों में की गयी थी, और इस अपील में परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाये जाने का आह्वान किया गया था और जिस पर अंततः लगभग 2 मिलियन लोगों ने हस्ताक्षर किये थे। वह अपील तीन शानदार वाक्यों से सजी हुई थी:

• हम लोगों को डराने वाले और बड़े पैमाने पर हत्या करने वाले हथियार के तौर पर परमाणु हथियारों के बहिष्कार की मांग करते हैं। हम इस उपाय को लागू करने के लिए सख़्त अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण की मांग करते हैं।

•  हमारा मानना है कि कोई भी सरकार, जो सबसे पहले किसी अन्य देश के ख़िलाफ़ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगी, उसे मानवता के ख़िलाफ़ अपराध माना जायेगा और उससे युद्ध अपराधी के तौर पर निपटा जाना चाहिए।

• हम दुनिया भर के सभी सद्भावना वाले पुरुषों और महिलाओं से इस अपील पर हस्ताक्षर करने का आह्वान करते हैं।

इस अपील को हुए 70 साल गुज़र चुके हैं और इतने सालों बाद अब तो परमाणु शस्त्रागार कहीं अधिक घातक हो गया है, और पारंपरिक हथियार अपने आप में उस परमाणु बम को भी बौना क़रार देते हैं, जिसे 1945 में संयुक्त राज्य की तरफ़ से हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराया गया था। 1950 में कुल 304 परमाणु प्रक्षेपास्त्र (जिसमें अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका के पास 299) थे, जबकि अब इनकी संख्या 13,355 हो गयी हैं; और 2020 का हर प्रक्षेपास्त्र इस भयानक तकनीक के शुरुआती वर्षों के बनिस्पत कहीं ज़्यादा विनाशकारी है। ऐसे में स्टॉकहोम अपील की तरह का क़दम का उठाया जाना इस समय बेहद ज़रूरी हो गया है।

सामूहिक विनाश के हथियारों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान महज अमूर्त मुद्दा नहीं है; बल्कि यह वह ठोस मुद्दा है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले देशों के उस समूह की ओर सीधे-सीधे इशारा करता है, जो अपने वैश्विक प्रभुत्व को बनाये रखने और उसका विस्तार करने के लिए ताक़त का इस्तेमाल करने को लेकर अड़ा हुआ है। इस वैश्विक महामारी के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने चीन, ईरान और वेनेजुएला के साथ संघर्ष को मज़बूत करने की धमकी दी है, जिसमें वेनेजुएला के बंदरगाहों को प्रभावी ढंग से प्रतिबंधित करने और फ़ारस की खाड़ी में जहाजों की चलहक़दमी को लेकर एक नौसैनिक वाहक समूह का उतारा जाना भी शामिल है,ताकि अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा क्षेत्र में ईरानी नौकाओं के अधिकार को चुनौती दी जा सके; इसी बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि वह चीन की चारों ओर एक घेरा बनाने के लिए आक्रामक मिसाइलों और एंटी मिसाइल रडार की श्रृंखलाओं की तैनाती करेगा।

चीन, ईरान और वेनेजुएला में से किसी भी देश ने संयुक्त राज्य अमेरिका के इस क़दम के ख़िलाफ़ कोई आक्रामक क़दम नहीं उठाया है; यह संयुक्त राज्य अमेरिका ही है,जिसने इन देशों पर संघर्ष को थोप दिया है। अगर किसी अपील का मसौदा अभी तैयार किया जाना है, तो उसे कमज़ोर, और विश्वव्यापी शैली में नहीं बनाया जा सकता है। हमारे दौर में शांति के लिए किये जाने वाले किसी भी आह्वान को ख़ास तौर पर साम्राज्यवादी और युद्ध की वक़ालत किये जाने के ख़िलाफ एक आह्वान होना चाहिए, जो इसी भावना से निकलता हो, न कि सिर्फ़ वाशिंगटन, डी.सी. ने उसे तैयार किया हो।

संयुक्त राज्य द्वारा युद्ध की स्थिति के थोपे जाने का हमारा आकलन इन चार बिंदुओं पर आधारित है:

1.संयुक्त राज्य अमेरिका के पास पहले से ही सबसे बड़ा सैन्य शस्त्रागार है और दुनिया भर में उसकी सबसे ज़्यादा सैन्य मौजूदगी है। सबसे हालिया आंकड़ों के मुताबिक़, अमेरिकी सरकार ने 2019 में अपनी सेना पर कम से कम  732 बिलियन डॉलर खर्च किये थे; हम "कम से कम" शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहे हैं,क्योंकि बड़े पैमाने पर ख़ुफ़िया विभागों के लिए धन का गुप्त वितरण किया जाता है,जिसका सार्वजनिक रूप से कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। 2018 से 2019 तक संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने सैन्य बजट में 5.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है, जिस बढ़ोत्तरी की मात्रा कुल जर्मन सैन्य बजट के बराबर है। वैश्विक सैन्य ख़र्च का क़रीब 40 प्रतिशत संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ख़र्च किया जाता है। दुनिया के क़रीब-क़रीब हर देश में संयुक्त राज्य अमेरिका के कुल मिलाकर  500 से ज़्यादा सैन्य ठिकानें हैं। संयुक्त राज्ये अमेरिका के नौसेना के पास दुनिया के 44 सक्रिय विमान वाहकों में से 20 विमान वाहक हैं, जबकि अन्य अमेरिकी सहयोगी देशों के पास उनमें से 21 विमान वाहक हैं; इसका मतलब यह है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के पास 44 विमान वाहक विमानों में से 41 विमान वाहक विमान (शेष विमान वाहक विमानों में से चीन के पास दो और रूस के पास एक) हैं। अमेरिकी सैन्य बल की इस ज़बरदस्त श्रेष्ठता को लेकर कोई संदेह नहीं है।

2.इसके बावजूद संयुक्त राज्य अमेरिका अब अपनी संपूर्ण क्षमता का इस्तेमाल परमाणु और पारंपरिक वर्चस्व को अंतरिक्ष और साइबर स्पेस में अपने स्पेस कमांड (2019 में फिर से स्थापित) और साइबर कमांड (2009 में निर्मित) के विस्तार देने में कर रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक इंटरसेप्टर बैलिस्टिक मिसाइल (एसएम -3) विकसित की है,जिसका परीक्षण उसने अंतरिक्ष में किया है, और यह पार्टिकल-बीम हथियार, प्लाज्मा-आधारित हथियार और काइनेटिक बमबारी जैसे काल्पनिक हथियारों का परीक्षण कर रहा है। ट्रम्प ने 2017 में इसी तरह के नये हथियारों को लेकर अपनी सरकार की प्रतिबद्धता की घोषणा की थी। अमेरिकी सरकार 2018 और 2024 के बीच कम इन नये उन्नत हथियार सिस्टम को विकसित करने पर कम से कम 481 बिलियन डॉलर ख़र्च करेगी, जिनमें ऑटोनॉमस व्हिकल, काउंटर-ड्रोन, साइबर-हथियार और रोबोटिक्स शामिल हैं। अमेरिकी सेना ने पहले से ही अपने उन उन्नत हाइपरसोनिक हथियार का परीक्षण किया हुआ है,जो 5 मैक (ध्वनि की गति से पांच गुना) की गति से चल सकते हैं, ताकि यह धरती की किसी भी जगह पर एक घंटे के भीतर पहुंच सके; यह हथियार अमेरिकी सेना के पारंपरिक प्रोम्प्ट ग्लोबल स्ट्राइक कार्यक्रम का हिस्सा है।

3.अमेरिकी सैन्य परिसर ने अपने हाइब्रिड युद्ध कार्यक्रम को भी विकसित कर किया है, जिसमें सरकारों और राजनीतिक परियोजनाओं को कमज़ोर किये जाने की तकनीक शामिल है। इन तकनीकों में शामिल हैं-सरकारों को बुनियादी आर्थिक गतिविधि के प्रबंधन से रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों (जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक, और स्विफ़्ट वायर सर्विस) पर संयुक्त राज्य की शक्ति की लामबंदी, सरकारों को अलग करने के लिए अमेरिकी राजनयिक शक्ति का इस्तेमाल, निजी कंपनियों को कुछ सरकारों के साथ व्यापार करने से रोकने के लिए प्रतिबंध विधियों का इस्तेमाल, सरकारों और राजनीतिक ताक़तों को अपराधी या आतंकवादी बताने को लेकर सूचना युद्ध का इस्तेमाल और इसी तरह के और भी दूसरे तरीक़े का उपयोग। उपायों का यह शक्तिशाली तौर-तरीक़े सरकारों को सरेआम अस्थिर करने और शासन परिवर्तन को सही ठहराने में सक्षम हैं।

4.अंत में अमेरिकी सरकार अपने नाटो सहयोगियों के साथ-साथ अमेरिकी और यूरोपीय हथियार निर्माताओं के साथ दुनिया को सबसे घातक हथियारों से पाटने का काम जारी रखे हुई है। शीर्ष पांच हथियार निर्यातक (लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, नॉर्थ्रॉप ग्रुमैन, रेथियॉन और जनरल डायनेमिक्स) संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित हैं। साल 2018 में दुनिया के हथियार डीलर की बिक्री के शीर्ष 100 में इन पांच निर्यातक कंपनियों की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत हिस्सा थी(सबसे हालिया आंकड़े); उस साल की सभी हथियारों की बिक्री में कुल अमेरिकी हथियारों का बिक्री प्रतिशत 59 थी। यह 2017 की अमेरिकी बिक्री पर 7.2 प्रतिशत की वृद्धि थी। इन हथियारों को उन देशों को बेचा जाता है, जिन्हें इसकी ख़रीदारी पर ख़र्च किये जाने के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और खाद्य कार्यक्रमों पर अपना क़ीमती अधिशेष को ख़र्च करना चाहिए। मिसाल के तौर पर, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ़्रीका में लोगों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा न केवल उनके टोयोटा हिलक्स के आतंकवादी है, बल्कि यह वातानुकूलित होटल के कमरे में हथियारों का डीलर भी है।

स्टॉकहोम अपील अब पुरानी पड़ चुकी है। इस समय एक नयी अपील की ज़रूरत है। हमने इसे ट्यूनीशिया के बॉफ़िचा में चर्चा के दौरान विकसित किया था; आइए इसे हम बॉफ़िचा अपील के नाम से पुकारें।

हम, दुनिया के लोग:

• युद्ध भड़काने में लगे रहने वाले उस अमेरिकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ खड़े हों, जो पहले से ही चूर-चूर हो चुकी इस धरती पर ख़तरनाक युद्ध थोपना चाहता है।

• सभी प्रकार के हथियारों से पटी इस दुनिया में और हथियारों से पाटे जाने वाले उस रवैये के ख़िलाफ़ खड़े हों, जो टकराहटों को भड़काते हैं और अक्सर राजनीतिक प्रक्रियाओं को एक अंतहीन युद्ध की ओर ले जाते हैं।

• दुनिया के लोगों के सामाजिक विकास को रोकने वाले सैन्य शक्ति के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ खड़े हों, ताकि वे देश अपनी संप्रभुता और अपनी गरिमा का निर्माण कर सकें।

यह लेख इंडिपेंडेंट मीडिया इस्टिट्यूशन की एक परियोजना, ग्लोबेट्रोटेर की ओर से तैयार किया गया है।

(अब्दुल्ला एल हरीफ़ डेमोक्रेटिक वे (मोरक्को रेडिकल लेफ़्ट पार्टी) के संस्थापक हैं; वह इसके पहले राष्ट्रीय सचिव थे और इस समय अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के प्रभारी उप राष्ट्रीय सचिव हैं। एल हरीफ़ एक इंजीनियर है,जिन्होंने माइन्स पेरिसटेक से पढ़ाई की है। वह मोरक्को के उस गुप्त संगठन के सदस्य थे,जिसने राजा हसन द्वितीय की तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी; लोकतंत्र और समाजवाद की लड़ाई में उनकी भूमिका के लिए एल हरिफ़ को सत्रह साल तक जेल में रखा गया था।

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वह इंडिपेंडेंट मीडिया इस्टिट्यूशन की परियोजना, ग्लोबट्रॉट्टर में एक फ़ेलो राइटर और मुख्य संवाददाता हैं। वह लेफ़्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। इन्होंने बीस से ज़्यादा किताबें लिखी हैं, जिनमें द डार्कर नेशंस और द पुअररर नेशंस शामिल हैं। उनकी हालिया किताब,वाशिंगटन बुल्लेट्स है, जिसमें ईवो मोरालेस आयमा ने इसकी भूमिका लिखी है।)

सौजन्य: इंडिपेंडेंट मीडिया इस्टिट्यूशन

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

A Universal Appeal for Humanity to End Militarism and Stop War

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest