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बनारस की जंग: क्या टूट रहा पीएम मोदी का जादू!

"बनारस और इस शहर की तहजीब बुद्ध, कबीर, रैदास, और तुलसीदास की सोच पर खड़ी हुई है। भाजपा के लोग उसे मज़हब के संकीर्ण दायरों में बांधने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके चलते पीएम का जादू बेअसर होता जा रहा है।"
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उत्तर प्रदेश के बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब सात बरस पहले जो बड़े-बड़े वादे किए थे और बड़े-बड़े सपने दिखाए थे वो तेजी से मटियामेट हो गए। मोदी अब काशी आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन बनारसियों में न कोई हलचल होती है, न ही चर्चा। वह बनारस के ऐसे सांसद हैं जिन्होंने इस शहर के लोगों से कांग्रेस के 60 साल के बदले तरक्की के लिए सिर्फ़ 60 महीने मांगे थे। ताजा स्थिति यह है कि 92 महीने गुजर चुके हैं, लेकिन हालात जस के तस हैं। बनारस के भी और देश के भी। हाल यह है कि बनारस के लोग अब इनकी बातों को जुमला मानने लगे हैं। 

बनारस इस बात का गवाह है कि देश का कोई भी प्रधानमंत्री यहां किसी चुनाव में रोड शो करने कभी नहीं आया। इस मिथक को सिर्फ मोदी ने तोड़ा और उनके इस सियासी जुनून को अब बनारस तोड़ता नजर आ रहा है। इसी 27 फरवरी 2022 को मोदी बूथ लेबल के कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने का मंत्र देने बनारस आए और लौट भी गए, लेकिन यहां न कोई हलचल हुई, न अड़ियों पर चर्चा। अलबत्ता चाय-पान की दुकानों पर इस बात पर बहस सुनी गई कि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को आखिर क्यों नहीं जुटा पाई? संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के मैदान की ज्यादातर कुर्सियां खाली क्यों रह गईं?

दिलचस्प बात यह है कि जिस समय मोदी बूथ लेबल के कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे, ठीक उसी समय यूपी के पूर्व आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने सोशल मीडिया पर इस कार्यक्रम का वीडियो जारी कर दिया, जिसमें पीएम भाषण दे रहे हैं और तमाम कुर्सियां खाली दिख रही हैं। यूपी में 5वें फेज की वोटिंग के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस पहुंचे थे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के मैदान में इन्हें 20 हजार बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करना था। सम्मेलन में खाली कुर्सियां देख वह ज्यादा देर नहीं रुक पाए। कुछ ही देर बाद वह रोड शो करते हुए विश्वनाथ मंदिर पहुंच गए। लोगों को याद है कि मोदी पहले बनारस आते थे तो इस शहर की जनता छतों से फूल बरसाया करती थी, लेकिन अबकी ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला, जबकि भाजपा ने अंदरखाने रोड शो की तैयारी पहले से ही कर रखी थी। 

बेअसर हो रहा पीएम का जादू

मोदी के विखरते तिलिस्म पर चुनाव विश्लेषक प्रदीप कुमार का नजरिया कुछ अलग है। वह कहते हैं, "बनारस और इस शहर की तहजीब बुद्ध, कबीर, रैदास, और तुलसीदास की सोच पर खड़ी हुई है। भाजपा के लोग उसे मजहब के संकीर्ण दायरों में बांधने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके चलते पीएम का जादू बेअसर होता जा रहा है। बनारस को मोदी से बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन इस शहर के बड़े हिस्से के बीच यह सवाल मजबूती से उठ खड़ा हुआ है कि कोई बाहर से आकर हमें यह बताएगा कि हमारी सोच क्या हो? बनारसियों को अब काशी का गौरवशाली अतीत याद आने लगा है। इस धार्मिक और सांस्कृतिक शहर ने समूची दुनिया को दिशा दी है और अब कोई बाहर से आकर यह बताने का दुस्साहस करे कि काशी को क्या करना चाहिए, तो बात नागवार गुजरेगी ही? यही चीज मोदी के जादुई तिलिस्म को तोड़ता है। 

दूसरी बात, पिछले सात सालों में बाहर से आकर तमाम राजनीतिक शख्शियतों ने काशी की परंपरा और संस्कृति पर जितना आघात किया है उसे लेकर लोग खासे बेचैन हैं और नाराज भी। विकास का मायाजाल फैलाकर जिस तरह से मंदिरों और धरोहरों पर बुल्डोजर चलाया गया और गंगा को 30 मीटर तक पाटकर नदी का प्रवाह रोका गया उससे लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर जबर्दस्त खरोंच लगी है, जो अब गुस्से में तब्दील हो रही है।"

प्रदीप कहते हैं, "टूटते तिलिस्म की तीसरी बड़ी वजह है मोदी में राजनीतिक चेतना का अभाव। बनारसियों को उनका न मेगा इवेंट भा रहा है, न ही उनका विकास। धार्मिक-सांस्कृतिक धरोहरों पर कुठाराघात बनारसियों को नागवार गुजर रहा है। गंगा निर्मलीकरण के मुद्दे पर भी वो बुरी तरह फ्लाप रहे। अंतर्राष्ट्रीय मोर्चों पर विफलताओं के चलते भी मोदी की चमक फीकी पड़ती जा रही है। भाजपा को अंदाजा हो गया है कि सड़क पर ताकत दिखाने में वह पिछड़ सकती है। इसीलिए बूथ लेबल के कार्यकर्ताओं को जुटाया गया, फिर भी तमाम कुर्सियां खाली रह गईं।"

विफलता को ढांप रही भाजपा

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पीएम नरेंद्र मोदी को आरएसएस पहले ही बता चुका है कि बनारस के लोगों में निराशा बढ़ती जा रही है। मोदी के फेवर में आजकल सिर्फ दो ही बातें हैं। इनमें एक है, मजबूत और एकजुट विपक्ष का गायब होना और दूसरा, आतंकवाद के चलते दुनिया भर में मुसलमानों के प्रति व्याप्त नफरत, जिससे हिन्दुओं का ध्रुवीकरण होना। ये दोनों फैक्टर भी ज्यादा दिन असरदार नहीं रह पाएंगे, क्योंकि पूर्वांचल में बहुसंख्यक हिन्दू उदारवादी हैं और वो लंबे समय तक किसी समुदाय के प्रति नफ़रत नहीं रख सकते। सरकार के कामों का असर अगर ज़मीन पर नहीं दिखा तो आज जो हिन्दू भाजपा सरकार के साथ खड़े हैं, कल वही कहेंगे कि विफलता छिपाने के लिए बांटने वाली राजनीति की जा रही है। यह अनुपस्थिति भी तभी तक रहेगी, जब तक कि जनता की निराशा हद से अधिक नहीं बढ़ती। 

दरअसल, बनारस के लोग पीएम मोदी को 60 महीने के बजाय 92 महीने का भरपूर मौका दे चुके हैं। अब इनके कामकाज की समीक्षा का वक्त आ चुका है। मोदी के कामकाज की समीक्षा होनी भी चाहिए, क्योंकि मोदी ने बनारस पहुंचकर पहले दिन भी कहा था, "मैं आया नहीं हूं बुलाया गया हूं। हमें मां गंगा ने बुलाया है।" उस समय भी मोदी ने बनारसियों से बड़े-बड़े वादे किए और खूब सपने भी दिखाए थे। सौ करोड़ आधार कार्ड, 30 करोड़ जनधन खाता, आठ करोड़ मुद्रा लोन और एक करोड़ रसोई गैस सिलिंडर बांटने के बावजूद करोड़ों लोगों की जिंदगी की उलझनों की पेंच उलझती चली गई। नौजवानों को न तो रोजगार मिला, न किसानों की आदमनी बढ़ी और न ही महंगाई कम हुई। अखबारों में छपने वाले सुनहरे आंकड़ों और गोदी मीडिया की एकतरफा रिपोर्टिंग भी जनता के दिलों पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाई। 

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार अमितेश पांडेय कहते हैं, "भाजपा के बूथ लेबल के कार्यकर्ताओं का बड़े पैमाने पर आवभगत के बावजूद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के मैदान में कुर्सियों का खाली रह जाना भाजपा के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। पीएम मोदी बनारस में अपने सभी प्रत्याशियों को जिताना तो चाहते हैं, लेकिन उनके लिए वह यहां सभा करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे हैं। शायद उन्हें अहसास हो गया है कि उनका तिलिस्म टूट चुका है और जादू भी बेअसर हो गया है। बनारस के लोग उन दिनों को नहीं भूल पाए हैं जब कोरोनाकाल में डबल इंजन की सरकार लापता हो गई थी। शहर लाशों से पट गया था और यहां कपड़ों से ज्यादा कफन बिक रहे थे। शवों को जलाने के लिए शमशान घाट कम पड़ गए थे। गंगा के किनारे 40 नए शमशान घाट बन गए थे,  इसके बावजूद शवों के अंतिम संस्कार के लिए लंबी कतारें लगानी पड़ रही थीं। जिन घाटों पर महीने में एक-दो लाशें जला करती थीं, वहां हर रोज 40 से 50 लाशें तक जलाई गईं। आक्सीजन संकट के चलते अपनों के खोने के गम बनारस के लोग आखिर कैसे भूल जाएंगे?  मोदी का तिलिस्म तो कोरोना के संकटकाल में ही खत्म हो गया था। बचा-खुचा भरोसा विश्वनाथ कारिडोर में उनके मेगा इवेंट के बाद टूटता चला गया।"

अमितेश यह भी कहते हैं, "काशी में करीब आठ सालों से विकास के नाम पर जो पागलपन चल रहा है वह बनारसियों के दिलों में बुरी तरह चुभ रहा है। काशी की जनता मोदी के झूठे-खोखले वादे और जुमले सुनकर ऊब चुकी है। भाजपा का हर कार्यक्रम अब इसलिए फ्लाप हो रहा है कि कार्यकर्ताओं को पिछले पांच साल तक कहीं सम्मान नहीं मिला। उनकी न बातें सुनी गईं, न उनके मनोभावों को समझने के प्रयास किया गया। वो हताश और निराश थे। योगी से शासन में बनारस में भाजपा के जिला महामंत्री सुरेंद्र पटेल के घर में घुसकर पुलिस ने महिलाओं-बच्चों को बुरी तरह पीटा और घर में डाका भी डाला, लेकिन क्या न्याय मिल पाया? जब यह हाल भाजपा नेताओं का है, तो आम जनता का क्या होगा, आसानी से समझा जा सकता है? सबसे बड़ी बात यह है कि डबल इंजन की सरकार ने बीते पांच सालों में यूपी को थोड़ा भी बदला होता तो मोदी को बनारस आने की जरूरत ही नहीं पड़ती और यह शहर खुद उनके नुमाइंदों को विधानसभा में पहुंचा देता।"

"जागरूक हूं, जाहिल नहीं हूं" 

मोदी मैजिक के बेअसर होने की बड़ी वजह खुद भाजपा के जनप्रतिनिधि भी हैं। बनारस की जनता उनसे तीस सालों का हिसाब मांग रही है। इस शहर में दशकों से सिर्फ भाजपा के ही मेयर और विधायक चुने जाते रहे हैं, फिर यहां विकास सपना क्यों हैं? भाजपा नुमाइंदों के आगे यह सवाल अब हर बनारसी खड़ा कर रहा है। भाजपा के एक पुराने कार्यकर्ता रविंद्र सहाय कैलाशी ने अपने कबीरचौरा स्थित आवास के गेट पर एक बड़ा सा इश्तेहार चस्पा कर रखा है जिस पर एक स्लोगन लिखा है- "जागरूक हूं, जाहिल नहीं हूं"। इश्तेहार में प्रधानमंत्री से अर्ज की गई है कि संत और संगीत के मोहल्ले को सिर्फ आश्वासन देने वाले आपके विधायक-मंत्री व उनके समर्थक वोट न मांगने आएं। दरअसल पर्यटन मंत्री रहे नीलकंठ तिवारी ने इस इलाके के लोगों को भरोसा दिलाया था कि हृदय योजना से हेरिटेड वाक पथ की मरम्मत कराई जाएगी। दावे पर दावे करने के बावजूद उन्होंने इस इलाके के विकास के लिए कोई पहल नहीं की। हालात पहले से ज्यादा खराब होते चले गए। बनारस में सर्वाधिक शिकायत शहर दक्षिणी के प्रत्याशी नीलकंठ तिवारी से है। ये अधिवक्ता समाज से आते हैं और इनके अपने लोग ही अबकी इनसे खफा है। 

वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "बनारसियों को मोदी और उनके नुमाइंदे अब रास नहीं आ रहे हैं। उनके रोड शो में उतनी भी भीड़ नहीं दिखी, जितनी इस शहर में बहरुपियों और कभी-कभी साड़ों की लड़ाई देखने के लिए जुट जाया करती है। रही बात वर्चस्व की तो मोदी फिर तीन दिन के लिए बनारस रह रहे हैं तो उन्हें यहां बड़ी सभा करनी चाहिए। शायद उन्हें इस बात का डर है कि कुछ महीने पहले करखियांव की तरह चुनावी रैली भी कहीं फ्लाप न हो जाए। पिछली मर्तबा के मुकाबले मोदी का ग्राफ सिमटकर 20 से 30 फीसदी रह गया है। मंदिरों पर बुल्डोजर और गंगा के साथ छेड़छाड़ किए जाने से बड़ी संख्या में लोग भाजपा से बिदक गए हैं।"

"बनारस में मोदी की नाक का सवाल बनी शहर दक्षिणी सीट अबकी बच पाएगी, यह कह पाना भी कठिन है। खांटी बनारसी इस बात से ज्यादा क्रोधित हैं कि भाजपा नेता अपनी सभाओं में बात-बात पर बुल्डोजर चलाने की बात कह रहे हैं। पूर्वांचल के लोगों को अच्छी तरह से पता है कि योगी का बुल्डोजर कभी पलिया के निर्दोष दलितों के घरों पर चला तो कभी गोधौरा में दलितों का घर ढहाने के लिए। मोदी-योगी ने मिलकर बनारस शहर की आत्मा पर ही बुल्डोर चलवा दिया और यहां न जाने पुरातन कितने मंदिरों को धराशायी करा दिया। वोटरों को लुभाने के लिए मोदी भले ही भावुक अपील कर रहे हैं, बनारस के लोग उनके झांसे में आने वाले नहीं हैं।"

आत्मक्रंदन कर रहे काशी के प्रबुद्ध  

पीएम नरेंद्र मोदी के बनारस दौरों पर बेबाक टिप्पणी करते हुए काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "अबकी मोदी आए तो भीड़ जुटाने के लिए सरकारी कर्मचारी नहीं मिले तो लाचारी में मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार से करीब ढाई सौ बसों में भरकर कार्यकर्ताओं को बुलाया गया। जो आए भी उन्हें मोदी का मंत्र पसंद नहीं आया और वो विश्वनाथ मंदिर दर्शन करने निकल गए। ये वो लोग थे जिन्हें कारिडोर दिखाने और बनारस घुमाने के बहाने लाया गया और मोदी के सामने बैठा दिया गया। हमें मंदिर परिसर में कई लोग मिले, जिनसे बातचीत हुई तब राज खुला कि लालच देकर उन्हें बनारस बुलाया गया था। काशी के लोगों का कष्ट कोई समझने वाला नहीं है। चुनाव के समय यहां जो भी नकारात्मक बातें फैलाई जा रही हैं उससे प्रबुद्ध लोग आत्मक्रंदन कर रहे हैं।"

डबल इंजन की सरकार पर सवाल खड़ा करते हुए महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "मोदी अपना भाषण जल्दी में खत्म करके विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने क्यों पहुंच गए? शायद वह बनारसियों को बताना चाहते थे कि मंदिर के गर्भगृह में जो सोना मढ़ा गया है, वह उनकी देन है। नंगा सच यह है कि बाबा विश्वनाथ के मंदिर के गर्भगृह के लिए सोने का डोनेशन कर्नाटक के एक रेड्डी परिवार ने दान में दिया है और शोहरत लूटने की कोशिश कर रहे हैं मोदी। यह तो वही बात हुई, "आन क आटा, आन क घी, भोग लगावैं बाबा जी"। विश्वनाथ मंदिर में सोना मढ़ने के लिए रेड्डी ने अपना कारिगर भी भेजा था, यहां काम करने वाली गुजराती कंपनियों ने उन्हें भगा दिया और अपने कारीगरों को बुलवाकर इस काम को पूरा कराया। मंदिर के गर्भगृह में मढ़े गए सोने की विश्वसनीय़ता भी अब संदेह के घेरे में आ गई है। यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि बाबा विश्वनाथ के एक भक्त की आस्था का यहां किस तरह दोहन किया गया? "

बनारसियों को लगता है कि अब भाजपा के "मोदी मैजिक" की पुड़िया कहीं गुम हो गई है। डबल इंजन की सरकार चलाने वाले चुनाव के समय विश्वनाथ कारिडोर की बात करने से खौफ खाने लगे हैं। उनके कारिडोर के मुद्दे की हवा निकल चुकी है और इनकी असलियत जनता के सामने आ गई है। सीनियर जर्नलिस्ट अमित मौर्य कहते हैं, "काठ की हाड़ी आखिर कितनी मर्तबा चढ़ेगी? खासतौर पर उस आदमी की जिसके झूठ गिनाया नहीं जा सकता। लोकतंत्र में "मन की बात" कहने की आजादी जनता की होनी चाहिए। मोदी भले ही प्रधानमंत्री हैं, लेकिन वह जनता के सेवक हैं और लोगों की सुनने के लिए ही उन्हें पीएम की कुर्सी पर बैठाया गया है। मगर वो सुन कहां रहे हैं। जी में आता है तो वो गंगा की धारा रोकवा देते हैं और रेत में नहर खोदवा देते हैं। ऐसे लीडर से बनारस को भला क्या मिलने वाला?"  

अमित कहते हैं, "पीएम मोदी समझते हैं कि लोग उनके पीछे हैं, लेकिन हमें लगता है कि लोग सपनों के पीछे भाग रहे हैं। जब सपने टूटते हैं तो बड़ी-बड़ी मूर्तियां टूट जाती हैं। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं का तिलिस्म टूट जाता है। इन जैसे नेताओं के पैर छूने वाले लोग तक नहीं मिलते। पांच-दस साल की सत्ता से कोई आदमी वह जगह नहीं ले सकता जो चार-पांच दशक के संघर्ष से हासिल करता है। पार्टी हमेशा उसी की रहती है, जिसने उसे बनाया हो। हाल के कुछ सालों में मोदी-योगी की साख पर जितनी खरोंचें आई हैं, उतनी शायद ही कभी नहीं दिखी होंगी। मुमकिन है कि यूपी में भाजपा जोड़-तोड़कर के दोबारा सत्ता में आ जाए, लेकिन जनता के दिलो-दिमाग पर असर छोड़ने में वह पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है।"

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