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उत्तराखंड चुनाव : रुद्रप्रयाग में दस साल पहले प्रस्तावित सैनिक स्कूल अभी तक नहीं बना, ज़मीन देने वाले किसान नाराज़!

रुद्रप्रयाग विधानसभा के जखोली विकासखंड के थाती-बड़मा गांव में 2013 में सैनिक स्कूल प्रस्तावित किया गया था मगर आज तक यहाँ सरकार स्कूल नहीं बनवा पाई है। पढ़िये न्यूज़क्लिक संवाददाता मुकुंद झा की यह ग्राउंड रिपोर्ट।
Uttarakhand

रुद्रप्रयाग विधानसभा के जखोली विकासखंड के थाती-बड़मा गांव के लोगों ने चुनाव बहिष्कार करने की धमकी दी क्योंकि पिछले लगभग दस साल से बीजेपी और पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने इन्हें धोखा दिया है। इस गांव में 2013 में ही सैनिक स्कूल बनने का प्रस्ताव पास हो गया था लेकिन आजतक यहां स्कूल का नामो-निशान तक नहीं है। हालांकि इस स्कूल के निर्माण के लिए भूमि पूजन और शुभारंभ कई बार और कई मुख्यमंत्रियों ने किया है।

बड़मा क्षेत्र के लगभग सौ से अधिक गांवों के लोगों के लिए ये एक ड्रीम प्रोजेक्ट था जिसके लिए बड़मा ग्रामीणों ने बिल्कुल मुफ़्त में अपनी खेती की एक हज़ार नाली भूमि दान दे दी, लेकिन फिर भी वहां स्कूल निर्माण नहीं हुआ है जिससे ग्रामीणों में भारी गुस्सा है। इस बार विधानसभा चुनाव में सैनिक स्कूल जखोली विकासखंड के बड़मा पट्टी के लिए एक बड़ा मुद्दा दिख रहा है। 

न्यूज़क्लिक की चुनावी टीम जब इस गांव में पहुंची तो ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा कि वो दोनों राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) और कांग्रेस को वोट नहीं करेंगें क्योंकि दोनों ने ही उनके साथ धोखा किया है। इस बीच गांव के कई प्रमुख लोगों ने कहा उनकी आस-पास के ग्राम प्रधानों से बात चल रही है, वो इस चुनाव का बहिष्कार करेंगे।

आपको बता दें कि 2012-13 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने उत्तराखंड में इस सैनिक स्कूल को मंजूर किया था। उस समय राज्य में भी कांग्रेस सरकार थी तब से लेकर अब जब बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी है, आजतक सैनिक स्कूल नहीं बना है, बनना छोड़िए अभी कायदे से शुरू भी नहीं हुआ है। माना जाता है कि इसे पूर्व में तत्कालीन सैनिक कल्याण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने शुरू किया था परन्तु जब वो कांग्रेस तोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस प्रोजेक्ट पर रोक लगवा दी थी। हालांकि उसके बाद उनकी सरकार चली गई। हरक सिंह रावत दोबारा बीजेपी सरकार में कैबिनट मंत्री बने और अपना कार्यकाल लगभग पूरा कर कांग्रेस में आ गए है लेकिन स्कूल कब बनेगा या अब बन भी पाएगा यह कह पाना मुश्किल है। 

तत्कालीन सरकार ने 10 करोड़ का बजट दिया था जिसमें से लगभग 9 करोड़ भूमि समतल करने और एक दीवार बनाने में ही खर्च हो चुके हैं। इस मामले में निर्माण गड़बड़ी को लेकर कई अफसरों पर एफआईआर तक हुई है।

किसानों द्वारा दी गई एक हज़ार नाली से अधिक भूमि पर बनने वाले सैनिक स्कूल में मुख्य कैंपस के साथ छात्रावास, शिक्षक/कर्मचारी आवास निर्माण किया जाना था। इसके अलावा यहां सेमीनार हॉल, खेल मैदान व अन्य संसाधन भी जुटाए जाने थे। परन्तु अभी वहां एक बंजर मैदान बना हुआ है जिसपर स्थनीय युवा और बच्चे क्रिकेट और बाकि खेल - खेलते हैं।

स्कूल के लिए अपनी ज़मीन देने वाले दीपक सिंह रावत ने कहा, "सरकार कह रही है कि इसमें गड़बड़ी हुई और तकनीकी कारण से इसका निर्माण नहीं हो पाया लेकिन हमारा क्या हमनें अपने बच्चो और युवाओं के भविष्य और जिले राज्य के तरक्की के लिए सरकार को ज़मीन दी थी न की हमारी खेती की ज़मीन को बंजर मैदान बनाने के लिए। हमे किसी भी हाल में स्कूल चाहिए।"

जनता के दबाव में दो साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने स्कूल बनाने के लिए आश्वस्त किया और पुनः इसका  शिलान्यास कर फिर से निर्माण शुरू करने की घोषणा की लेकिन निर्माण अभी तक शुरू नहीं हो सका है। स्वीकृति मिलने से लेकर अब तक सैनिक स्कूल का दो बार शिलान्यास और भूमि पूजन हो चुका है। इसके साथ ही वर्तमान बने नए मुख्य्मंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी ग्रामीणों से कहा कि वो इसका पुनर्निर्माण शुरू कराएंगे लेकिन अभी कुछ होता नहीं दिख रहा है। 

ग्रामीण सुशीला देवी ने कहा, "हमारे विधायक भरत सिंह चौधरी ने कई आश्वासन दिए कि वो इसका निर्माण शुरू करवाएँगे एक बार तो उन्होंने कहा कि सरकार ने इसके निर्माण के लिए एक करोड़ रूपए दे दिए हैं लेकिन जब हमने उनसे इस आवंटन के कागज़ मांगे तो नहीं दिए। वो सरासर झूठ बोल रहे थे।"

सैनिक स्कूल संघर्ष समिति के मदन सिंह नेगी ने कहा, "थाती, बड़मा और अन्य गांवों के ग्रामीणों ने अपनी एक हजार नाली कृषि भूमि को बिना किसी शर्त सरकार को दान दी थी। क्योंकि हमें आशा थी कि सैनिक स्कूल बनने से क्षेत्र का कायाकल्प होगा और इस क्षेत्र में विकास की एक नई बयार बहेगी। परन्तु अब लग रहा है ये विनाश हो रहा है।"

गाँवो के युवाओं में भी इसको लेकर भारी गुस्सा है। ऐसे ही एक नौजवान अर्जुन सिंह जिनकी उम्र लगभग 25 वर्ष है उन्होंने कहा, "अगर स्कूल बनता तो देश भर से छात्र यहाँ रहने और पढ़ने आते।  इस क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिलता, सड़कें अच्छी होतीं और हम लोगों को भी अच्छी शिक्षा मिलती परन्तु अब न स्कूल बना और न ही कोई विकास कार्य हुआ है इसलिए हम इसबार चुनाव में किसी भी दल को वोट नहीं देंगे।"

गांव के प्रधान त्रिलोक सिंह रावत अपने साथ राज्य और केंद्र सरकार के शासन आदेश और उनके द्वारा किए गए पत्राचारों की एक पोथी सी लेकर आए और दिखाने लगे कि उन्हें कब और  किसने क्या आश्वासन दिया है। वो कहते हैं, "हमें दिल्ली से लेकर देहरादून तक केवल आश्वासन ही मिला है लेकिन हमें न्याय नहीं मिला है।"

बीजेपी इस चुनाव में अपने पिछले पांच साल के शासन में कह रही है कि उन्होंने धुआँधार काम किया है लेकिन इस सैनिक स्कूल के सवाल पर उसका ये कथन बेमानी लगता है। साथ ही हरीश रावत खुद को विकास पुरुष बताने का प्रयास कर रहे हैं परन्तु सच्चाई यह है कि दोनों ने ही इस मुद्दे को लटकाए रखा है। रक्षा मंत्रालय ने अपनी चिठ्ठी में साफ कहा है कि जैसे ही राज्य द्वारा भवन बन जाने की सूचना प्राप्त होगी वे वहां सैनिक स्कूल शुरू कर देंगें।

आपको बात दें रुद्रप्रयाग विधानसभा में सबसे बड़ा क्षेत्र जखोली है जहां इस विधानसभा के लगभग 70% मतदाता रहते हैं। ये पूरा इलाका इस स्कूल से प्रभावित है। इसलिए इस चुनाव में इस मुद्दे की काफ़ी अहमियत है क्योंकि ये मुद्दा यहाँ के लोगों की भावना के साथ-साथ उनके विकास से भी जुड़ा है। इस विधानसभा में कांग्रेस ने अपने युवा चेहरे ब्लॉक प्रमुख प्रदीप थपलियाल को तो वहीं बीजेपी ने अपने वर्तमान विधायक भरत सिंह चौधरी पर दांव खेला है। हालाँकि इस सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे भाजपा से मंत्री और विधायक रहे मातबर सिंह कंडारी ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।

(सभी तस्वीर अविनाश सौरभ ने ली है )

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