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सीएए विरोध लखनऊ : "एनआरसी में सरकार हमारे काग़ज़ नहीं मांगेगी तो हम धरने पर नहीं आएंगे!"

उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाली बाल कल्याण समिति के आदेश पर घंटाघर के प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह क़ानून जितना ख़राब व्यस्कों के लिए है, उतना ही ख़राब बच्चों के लिए भी है। इसीलिए बच्चे भी अपनी माँओं के साथ प्रदर्शन में आ रहे हैं।
CAA Ghanta Ghar

लखनऊ में घंटाघर (हुसैनाबाद) पर नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों को उत्तर प्रदेश सरकार की बाल कल्याण समिति ने बुधवार नोटिस देकर चेतावनी दी है कि वे अपने बच्चों को तत्काल प्रभाव से धरनास्थल से हटायें अन्यथा उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी। क़ानून के जानकारों का कहना है की यह नोटिस असंगत है। प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि बच्चों के बहाने धरने को ख़त्म करने की कोशिश की जा रही है।

समिति का आदेश

समिति ने कहा है, "लखनऊ के घंटाघर पर अपने बच्चों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे परिवार तत्काल प्रभाव से अपने बच्चों को धरना स्थल से घर भेजें। जिससे उनकी सामान्य दिनचर्या पुनः आरंभ हो सके।" समिति ने आदेश में कहा, ''कई बच्चे अपना विद्यालय छोड़ कर धरना स्थल पर हैं  जिसके कारण उनके सही समय से खाना, पढ़ाई तथा खेल आदि की व्यवस्था भी बिगड़ गयी है। बच्चों के सर्वोत्तम हित में तथा उनकी मानसिकता पर दुष्प्रभाव ना पडे़ इसलिए बच्चों को तत्काल प्रभाव से धरना स्थल से हटाया जाए अन्यथा "किशोर न्याय क़ानून" की धारा (75) के तहत उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी।" बाल कल्याण समिति ने सर्वसम्मति से यह आदेश दिया है जिस पर उसके अध्यक्ष कुलदीप रंजन के अलावा चार सदस्यों डॉ संगीता शर्मा , विनय कुमार श्रीवास्तव, सुधा रानी और ऋचा खन्ना के हस्ताक्षर हैं।

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समिति का कार्य 

किशोर न्याय बालकों की देखरेख व संरक्षण क़ानून 2015 के अनुसार, हर वह व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम का है ''बच्चा'' कहलाएगा। "बाल कल्याण समिति" इस अधिनियम की धारा (3-4) के अनुसार बालक-बालिकाओं के सर्वोत्तम हित के लिए काम करती है। जिससे बच्चों का बचपन, शिक्षा और स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सके।

महिलाओं की  प्रतिक्रिया

समिति के नोटिस के बावजूद बड़ी संख्या में महिलाएँ अपने बच्चों को लेकर प्रदर्शन में आ रही हैं। महिलाओं के अनुसार बच्चों के बहाने योगी आदित्यनाथ सरकार धरने को ख़त्म करने की कोशिश कर रही है।अपनी डेढ़ वर्ष की  बेटी के साथ प्रदर्शन में मौजूद गुलअफ़्शा कहती हैं, "सरकार बच्चों के बहाने देश को तोड़ने वाले क़ानून (सीएए) का विरोध ख़त्म करना चाहती है।" गुलअफ़्शा अपनी बेटी की तरफ़ इशारा करती हुई कहती हैं कि "हम इन्हीं बच्चों के भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्योंकि एक धर्मनिरपेक्ष देश में ही हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा।"

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अपने तीन वर्ष  के बच्चे के साथ धरने पर बैठीं आएशा कहती हैं कि उनके घर पर कोई दूसरा नहीं है जो बच्चे की देखभाल कर सके। ऐसे में सरकार बताए बच्चे को किस के पास छोड़ के आया करें। वो कहती हैं, "सीएए का विरोध करना भी ज़रूरी है वरना यही बच्चे अपने माता-पिता से बड़े होकर प्रश्न करेंगे कि जब देश में धर्म के नाम भेदभाव हो रहा था तो आप ने विरोध क्यों नहीं किया?"

धरने में लगातार शामिल होने वाली ख़ुशी कहती हैं कि उनका बच्चा केवल एक वर्ष का है और यह कैसे संभव है कि इतना छोटा बच्चा बिना माँ के अकेले रुक सके। उनके अनुसार, "सरकार (सीएए) वापिस कर ले, माँ और बच्चे सभी वापस चले जाएंगे।" बच्चों को ढाल बनाने की बात पर ख़ुशी कहती हैं, "बच्चों को धरने में लाने का सिर्फ़ एक मक़सद है कि छोटे बच्चे माँ के बिना नहीं रह सकते हैं। सरकार सिर्फ़ बच्चों के खाने,पढ़ाई तथा स्वास्थ के नाम पर नोटिस देकर और ढाल बनाने जैसी असंगत बातें कर के महिलाओं  को धरने से हटाना चाहती है।"

छात्र-छात्रा क्या कहते हैं?

घंटाघर पर आ रहे छात्र-छात्रा कहते हैं कि वह अपना स्कूल ख़त्म कर के धरने में शामिल होने आते हैं। धरने में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पेंटिंग बना रही ज़ैनब (17) न्यूज़क्लिक से कहती हैं कि वह अपने स्कूल भी जाती हैं और धरने पर भी आती हैं। ज़ैनब के अनुसार, "सरकार यह घोषणा करे कि जो आज 18 वर्ष से कम हैं उनके काग़ज़ एनआरसी में नहीं मांगे जाएंगे तो वह धरने पर नहीं आएंगी। अगर ऐसा नहीं है तो यह क़ानून जितना ख़राब वयस्कों के लिए है उतना ही बच्चों के लिए भी है।"

धरने पर बैठी देशभक्ति के गीत गा रहीं सना (16) ने पिछले वर्ष ही हाईस्कूल पास किया है। वह कहती हैं कि नागरिकशास्र में उन्होंने संविधान और अपने अधिकार दोनों के बारे में पढ़ा है और सीएए संविधान की किताब में जो लिखा है उस से अलग है। वो कहती हैं, “इसलिए मैं  भी अपने घर के बड़ों के साथ धरने में आती हूँ ताकि सीएए को ख़त्म किया जाए।“ धरना स्थल में बने अस्थायी पुस्तकालय में बैठी फ़िज़ा (16) कहती हैं, "हम को स्वयं अपनी पढ़ाई की फ़िक्र है इसीलिए मैं स्कूल के बाद या छुट्टी के रोज़ ही धरने पर आती हूँ। लेकिन ऐसी पढ़ाई से क्या फ़ायदा जिसके बाद जीवन डिटेंशन कैम्प में गुज़ारना पड़े। कल ऐसा वक़्त न आए इस लिए आज धरना ज़रूरी है।"

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भारत के इतिहासकार मानते हैं कि कई युवा लोगों ने भी देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब का कहना है, "भगत सिंह का इतिहास एक सामने का उद्धरण है। जिनको अंग्रेज़ सरकार ने मात्र 23 वर्ष की आयु में फाँसी दे दी थी। अपने 23 वर्ष (1907-1931) के जीवन काल में भगत सिंह ने कई क्रांतिकारी कारनामे अंजाम दिए थे।

क़ानून के जानकारों का मत

क़ानून के जानकार कहते हैं कि समिति द्वारा प्रदर्शनकारी परिवारों को दिया गया नोटिस असंगत है। प्रसिद्ध अधिवक्ता मोहम्मद हैदर कहते हैं, "किस आधार पर समिति ने यह कहा है कि धरने पर आने वाले बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। पहले यह देखा जाए की इस तरह का नोटिस देना समिति के अधिकार-क्षेत्र में आता भी है या नहीं। छोटे बच्चे अक्सर अपनी माँ के साथ बहार जाते हैं इस में आपत्तिजनक क्या है? वहीं घंटाघर पर चल रहे धरने के क़ानूनी सलाहकार महमूद प्राचा का कहना है, "नोटिस की कॉपी मिलते ही जवाब दिया जायेगा। अगर सरकार को बच्चों के स्वास्थ्य का ख़याल है तो घंटाघर पर सर्दियों में टेंट (तंबू) क्यों नहीं लगने दे रहे हैं। सब से बड़ी आपत्तिजनक बात तो यह है कि सरकार द्वारा माँ और बच्चे को अलग करने की बात की जा रही है। समिति द्वारा भेजा गया नोटिस पूरी तरह से ग़ैरक़ानूनी है।"

समिति के अध्यक्ष कुलदीप रंजन से न्यूज़क्लिक ने संपर्क किया, तो उन्होंने कहा, "बच्चों की पढ़ाई-स्वास्थ्य और खेल के अधिकार की दृष्टि से यह समिति की ज़िम्मेदारी थी कि वह माता-पिता को बच्चों को तत्काल प्रभाव से धरनास्थल से हटाए जाने की चेतावनी दे।

घंटाघर पर चले प्रदर्शन में शामिल बच्चों और उनके माता-पिता ने बताया है कि बच्चे लगातार स्कूल जा रहे हैं और उसके साथ-साथ धरने में भी शामिल हो रहे हैं।

घंटाघर में चल रहे प्रदर्शनों में बच्चों के लिए लाइब्रेरी भी बनाई गई है, जिसमें बच्चे आ कर किताबें पढ़ते हैं, गाने गाते हैं और पेंटिंग भी करते हैं।

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