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वाराणसी: सर्व सेवा संघ के साथ एकजुट हुए छात्र, बुद्धिजीवी और आम लोग, कहा- गांधी को फिर से नहीं मरने देंगे!

राजघाट पर छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, गांधीवादियों और विपक्ष के नेताओं का लगातार सत्याग्रह, उपवास और प्रदर्शन जारी है।
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बनारस का सर्व सेवा संघ बीते कई दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण उत्तर रेलवे की तरफ से संस्थान के 12.9 एकड़ के परिसर में स्थित कई भवनों के ध्वस्तिकरण का नोटिस है, जिसने गांधिवादियों और शासन-प्रशासन को आमने-सामने ला कर खड़ा कर दिया है। फिलहाल मामला इलाबाहाद हाईकोर्ट में है, जिस पर अगली सुनवाई 3 जुलाई यानी आगामी सोमवार को होनी है। तब तक न्यायालय ने पूरे मामले पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।

बता दें कि उत्तर रेलवे और सेवा संघ के बीच जमीन के स्वामित्व को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। जिस पर बीते 26 जून को वाराणसी के डीएम एस. राजलिंगम ने उत्तर रेलवे के पक्ष में फैसला सुनाया और ठीक इसके बाद उत्तर रेलवे द्वारा परिसर में ‘अतिक्रमण’ के ध्वस्तीकरण का नोटिस लगा दिया। इस नोटिस में साफ लिखा था कि उत्तर रेलवे प्रशासन 30 जून 2023 को सुबह 9:00 बजे सर्व सेवा संघ परिसर में स्थित सभी ‘अवैध निर्माण’ ध्वस्त करने जा रहा है। इस नोटिस के बाद सर्व सेवा संघ ने फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया और छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, गांधीवादियों और विपक्ष लगातार सत्याग्रह, उपवास और प्रदर्शन कर रहा है।

न्यूज़क्लिक ने इस पूरे मामले को लेकर राजघाट का दौरा किया, साथ ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, काशी विद्यापीठ समेत कई अन्य संस्थानों के छात्रों और सेवा संघ के पदाधिकारियों और इसके अलावा स्थानीय लोगों से भी बातचीत कर उनसे इसके महत्व को जानने और समझने की कोशिश की...

सेवा संघ के अध्यक्ष राम धीरज के मुताबिक 27 जून को करीब1:00 बजे जिलाधिकारी ने अपने फैसले की कॉपी सर्व सेवा संघ को दी और 2 बजे रेलवे ने सभी बिल्डिंगों पर नोटिस चिपका दिया कि 30 जून को पूरे परिसर को गिराया जाएगा। ये हैरानी की बात है कि इतने आनन-फानन में रेलवे को इस कार्यवाही से क्या हासिल होगा। 63 साल तक जिस रेलवे को इस जमीन से कोई मतलब नहींं था, जो संस्थान से पहले उसके खुद के रिकॉर्ड्स तक में नहीं थी, अब उसे इसे कब्जाने की इतनी जल्दी क्यों है। लेकिन यहां एक जिलचस्प बात ये भी रही कि इस समय जितना हिस्सा सर्व सेवा संघ के पास है नोटिस सिर्फ उस पर ही लगाए गए हैं, वहीं परिसर के जिस हिस्से पर इंदिरा गांधी कला केंद्र कब्ज़ा किए हुए हैं उसमें नोटिस नहीं लगाए गए।

रेलवे पर सरकार का दबाव!

राम धीरज की मानें, तो सरकार का रेलवे पर दबाव है। ऐसे में गांधीवादी लोग और सर्व सेवा संघ पहले से तैयार है कि यदि हाई कोर्ट में हमारी गुहार नहीं सुनी जाती, तो हम आगे सुप्रीम कोर्ट का रूख करेंगे। क्योंकि सर्व सेवा संघ के पास जमीन के सभी सही दस्तावेज़ हैं। 

धरने पर बैठे कई गांधीवादी आरोप लगाते हैं कि सरकार गांधी विद्या संस्थान और इसकी इमारत को गैर-क़ानूनी तरीके से केंद्र के तहत आने वाले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के हवाले करना चाहती है और इसलिए पिछले महीने स्थानीय प्रशासन ने जबरन संस्थान के ताले खोले और इसे आईजीएनसीए को सौंप दिया। सरकार यह नहीं समझ रही है कि हम मुजरिम नहीं हैं जिन पर वो बुलडोजर चला देगी। हम संस्थान के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।

सत्याग्रह पर बैठे कई गांधीवादी, जिनकी उम्र साठ साल से अधिक है, उनका कहना है कि इमरजेंसी के दौरान उन्हें जेल में डाला गया था, टॉर्चर किया गया था लेकिन तब भी सरकार उनकी भावनाओं को नहीं तोड़ सकी थी। अब एक बार गांधी की विरासत को बचाने का समय आया है, और ऐसे में वो गांधी को फिर से मार देने के बजाय जान देना बेहतर समझेंगे। हम देखना चाहते हैं सरकार के बुलडोजर में ज्यादा ताकत है या गांधी के विचारों में।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों के शोधकर्ता यहां अध्ययन करते हैं

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी कर चुकी डॉ. आकांक्षा सिंह बताती हैं कि सेवा संघ के पुस्तकालय में राजनीतिक शास्त्र, इतिहास, अर्थशास्त्र से जुड़ी कई पुस्तकें संग्रहित हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालय के शोधकर्ता यहां पढ़ने आते थे। जिस परिसर को लेकर ज्यादा विवाद है वहां सर्व सेवा संघ प्रकाशन, आर्थिक रूप से कमजोर तबके से आने वाले बच्चों के लिए एक निशुल्क प्री-स्कूल, एक गेस्ट हाउस, एक पुस्तकालय, मीटिंग हॉल, गांधी आरोग्य केंद्र (प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र), एक युवा प्रशिक्षण केंद्र और खादी भंडार संचालित होते हैं। ऐसे नेक कार्यों के निर्बाध संचालन के लिए इस संस्थान का जिंदा रहना बेहद जरूरी है।

वहीं काशी विद्यापीठ के छात्र आलोक सिंह के मुताबिक परिसर में बने गांधी विद्या संस्थान में चालीस कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते हैं। बताया जाता है कि साल 1963 में सोसाइटी एक्ट के अंतर्गत गांधी विद्या संस्थान का पंजीकरण हुआ और सर्व सेवा संघ ने अपनी जमीन का एक हिस्सा 20 साल के लिए संस्थान को दे दिया। नियम के अनुसार ये जमीन दोबारा सर्व सेवा संघ को मिल जानी चाहिए थी, लेकिन ये गंगा-वरूणा के तट पर बसा आश्रम कुछ लोगों की आंखों में बहुत पहले से ही खटक रहा था।

स्थानीय लोगों की समझ में भी ये जमीन गांधी की ही विरासत है। बारिश के बीच चाय की टपरी पर बैठे कई लोग बताते हैं कि काशी कोरिडोर के चलते इस जमीन को हथियाने की कोशिश हो रही है। कुछ लोग इसे जय प्रकाश नारायण का निवास स्थान तो कुछ इसे विनोबा भावे की कर्म भूमि मानते हैं। कई लोगों के अनुसार ये जगह तमाम सांप्रदायिकता विरोधी आंदोलनों की हिस्सा रही है। सर्व सेवा संघ में हमेशा से ही विभिन्न विषयों पर शोध होता आ रहा है, जैसे- खेती पर शोध हुआ, 1977 में पुलिस एनकाउंटर पर रिपोर्ट भी इस संस्था द्वारा प्रकाशित की गई। इसके द्वारा तमाम उर्दू एवं हिंदी की पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। बनारस के लोगों का साफ तौर पर मानना है कि गांधीवादी विचारों के इस अध्ययन केंद्र को किसी कीमत पर नहीं हटाया जाना चाहिए।

सर्व सेवा संघ को जाली कहना महान व्यक्तित्वों का अपमान है!

गौरतलब है कि सर्व सेवा संघ की वेबसाइट भी इसके इतिहास को लेकर बताती है कि इसकी स्थापना गांधी जी की हत्या के बाद 1948 में हुई। इसका प्रधान कार्यालय महादेव भाई भवन, महाराष्ट्र के वर्धा स्थित सेवाग्राम में है। वहीं, प्रकाशन ऑफिस वाराणसी के राजघाट पर बनाया गया है। अप्रैल, 1948 में पांच संगठनों-अखिल भारत चरखा संघ, अखिल भारत ग्राम उद्योग संघ, अखिल भारत गौ सेवा संघ, हिंदुस्तानी तालिमी संघ और महरोगी सावा मंडल के विलय के बाद यह अस्तित्व में आया था। महात्मा गांधी की मृत्यु के उपरांत पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, पूर्व राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर संपूर्णानंद, आचार्य विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण आदि लोगों की पहल से सर्व सेवा संघ को शुरू किया गया था।

बताया जाता है कि महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से सर्व सेवा संघ और गांधी विद्या संस्थान का गठन किया गया। सेवा संघ का दावा है कि 1963 में समाजवादी आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण ने गांधी विद्या संस्थान की स्थापना की। इसका उद्घाटन लाल बहादुर शास्त्री ने किया और रेलवे से जमीन लेकर इसकी रजिस्ट्री भी कराई गई थी। ऐसे में इस संस्थान के कागज़ों और नीयत पर सवाल उठाना देश की महान हस्तियों आचार्य विनोबा भावे, राधाकृष्ण बजाज, जयप्रकाश नारायण, लालबहादुर शास्त्री, जगजीवन राम एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जैसे व्यक्तित्वों का अपमान है, जिन्हें देश सच्चाई और ईमानदारी के लिए जानता है।

बनारस के राजघाट में बीते दो दिनों से गांधीवादियों का धरना, उपवास और संकल्प सहित पर्चा वितरण और अनेक कार्यक्रम जारी हैं, ऐसे में अनेक दलों के नेता भी इनके समर्थन में बनारस के राजघाट पहुंच रहे है, तो वहीं कुछ ट्विटर के माध्यम से अपनी एकजुटता जाहिर कर रहे हैं, लेकिन सर्व सेवा संघ जमीन के मालिकाना हक़ को लेकर बहुत आश्वस्त है और उसे पूरी उम्मीद है कि अदालत से उसे न्याय मिलेगा।

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