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वाराणसी: जेल से छूटने वालों ने बताई पुलिस बर्बरता की कहानी

वाराणसी में बजरडीहा में सीएए के विरोध में 20 दिसंबर 2019 हुए प्रदर्शन के बाद पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। करीब 26 दिन तक जेल में रहने के बाद इन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है।
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वाराणसी: वाराणसी के बजरडीहा क्षेत्र में 20 दिसंबर 2019 को जुमे की नमाज के बाद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में जुलूस निकाला गया। शांतिपूर्वक प्रदर्शन के बीच में पुलिस लाठीचार्ज कर दी। इस लाठीचार्ज में दर्जनों से अधिक लोग घायल हो गए, एक आठ साल के बच्चे की मौत हो गई। तनवीर नाम के एक 16 साल के बच्चे की स्थिति एक महीने के बाद भी नाजुक बनी हुई है।

यहां के बख्तियार अहमद बताते हैं, 'पहले से जुलूस निकालने की कोई तैयारी नहीं थी, लोग जुमे की नमाज़ पढ़कर निकले, दस-पंद्रह लोग आपस में बात करते हुए जा रहे थे, तभी कुछ लोग उनकी बात को सुनने लगे, इसी बीच नारेबाजी होने लगी और देखते ही देखते हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई।'

लाठीचार्ज के दो दिन के बाद ही पुलिस इस क्षेत्र के चार अलग-अलग लोगों को देर रात उनके घर से उठा ले गई। ये सभी लोग वो शख्स हैं, जो बताते हैं कि उनका इस जुलूस से कोई लेना-देना नहीं है, पुलिस उन्हें क्यों ले गई उन्हें अभी तक इस बात की जानकारी नहीं है।

करीब 26 दिन तक जेल में रहने के बाद इन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है, जेल से वापस आने के बाद ये बताते हैं कि पुलिस का रवैया कितना बर्बर था। इन लोगों को ना सिर्फ दो दिन तक भूखा रखकर मारा-पीटा गया, बल्कि इन्हें बलबाई, दंगाई और गद्दार भी कहा गया।

जमानत पर जेल से रिहा हुए एक नियाज (बदला हुआ नाम) बताते हैं, '21 दिसंबर की देर रात करीब एक बजे पुलिस हमारे घर आई, घर का दरवाजा तोड़कर पुलिस घर के अंदर घुसी। दरवाजा मेरे अब्बू के ऊपर गिर गया जिससे उनको चोट लग गई। इसके बाद पुलिस चिल्ला-चिल्लाकर मेरा नाम ले रही थी। सब लोग जाग गए। मेरी भी नींद खुल गई। जैसे ही मैंने आवाज़ दी, कई पुलिस वाले आकर मुझे घेर लिए, और घसीटकर बाहर लेकर आए। इसके बाद मुझे पुलिस वाले खूब मारे। मुझे मारते हुए चौकी (पुलिस चौकी) तक लेकर गए।'

वो आगे कहते हैं, 'वहाँ पर (बजरडीहा के पुलिस चौकी पर) मुझे पहले तो कुछ पुलिस वाले मारे, जो पुलिस वाला आ रहा था, मार रहा था, वहां पर और भी कुछ लोग थे, वो भी इसी मुहल्ले के थे, पुलिस वाले उन सबको मार रहे थे।'

जब चौकी पर मेरे ऊपर पुलिस हाथ उठा रही थी तो हमारे चौकी इंजार्च साहब ने कहा, 'ये सब बच्चे बेकसूर हैं। इन्हें मत मारो। नियाज ये भी बताते हैं कि, 'पुलिस वाले रात को जब मुझे मारते हुए पुलिस चौकी पर ले गए तो वहाँ पर बोले, भागो... भागो ना! जब तुम भागने लगोगे तो, तुम्हारा एनकाउंटर कर देंगे...। पुलिस वाले खूब गालियां दे रहे थे।'

ये बात बताते हुए नियाज की आंखों से आंसू बहने लगते हैं, कांपते होठों से नियाज बताते हैं कि, 'मुझे मारने वाले पुलिस अधिकारी बजरडीहा के नहीं थे। उसी रात (22 दिसंबर की सुबह होने से पहले) मुझे वहां से दूसरे थाने (मड़ुआंडीह थाना) में ले गए, वो हमारा थाना क्षेत्र नहीं है। उस थाने में हमें रात भर रखा गया।  वहां पर हमारे साथ कोई मारपीट नहीं हुई, किसी पुलिस वाले ने हमें मारा नहीं, किसी पुलिस वाले ने हमें गाली भी नहीं दी है। अगले दिन दोपहर बाद तक हमें भेलूपुर थाने (हमारे एरिया का थाना) में लेकर आए।'

वहां पर पुलिस वाले हमसे पूछ रहे थे कि तुम्हारे साथ और कौन-कौन था? हमारे साथ कोई रहेगा, तब ना हम बताएंगे। हमारे साथ तो कोई नहीं था। वहां पर (थाने में) हमें खूब टॉर्चर कर रहे थे, फिर उसके बाद अकेले रूम में लेकर गए, इतना कहते ही नियाज दीवार की टेक लगाकर बैठ जाते हैं और उनकी आंखों में आंसू भर आते हैं।

पुलिस की बर्बरता को याद करते हुए नियाज कहते हैं कि रूम में दो सिपाही पकड़े हुए थे, चार सिपाही मार रहे थे, हमें पीछे की तरफ डंडे से मार रहे थे। मारते हुए सिपाही कह रहे थे कि ये मियां है, इन्हें जितना मार दोगे... मार-मारकर मार डालोगे लेकिन इनके आंख से आंसू नहीं निकलवा सकते।

नियाज ने ये भी बताया कि जब मैं जेल में था तभी वहां के एक साथी ने अखबार पढ़कर बताया कि मेरे अब्बू का इंतकाल हो गया। मुझे जेल जाने से मेरे अब्बू को सदमा लग गया जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। मैं आखिरी वक्त तक अपने बाप को नहीं देख पाया।

जेल से जमानत पर रिहा हुए इसी क्षेत्र के कयूम (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि मुझे अभी तक नहीं मालूम ये पुलिस वाले मुझे क्यों लेकर गए थे। क्यों मुझे इतना मारा गया, मैं तो अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी किसी जुलूस में नहीं गया।

उस दिन (21 दिसंबर की रात की घटना) को याद करते हुए कयूम कहते हैं कि रात को मैं सो रहा था, अचानक बहुत लोगों की आवाज सुनाई या दी। नींद खुली, शायद रात को ग्यारह बजे हुए थे। आसपास करीब 100 पुलिस वाले थे, मेरा दरवाजा तोड़कर घर में घुस गए, सभी कमरों में घुस-घुस कर देख रहे थे, मेरी अम्मी और बहन जहां सो रही थी वहां पहुंच गए, उन्हें गंदी-गंदी गालियां दी। मेरे भैया-भाभी के कमरे में दरवाजा तोड़कर घुसे और उन लोगों को भी गालियां दी। इसके बाद मेरा हाथ पकड़कर मुझे मारते हुए लेकर जाने लगे। कभी पैर में पार रहे थे, कभी पीठ में मार रहे थे, कभी लाठी से मार रहे थे, तो कभी पैर से ही मार दे रहे थे।

मैं चिल्ला रहा था, बार-बार पूछ रहा था सर! क्या हुआ है, क्यों मुझे ले जा रहे हैं, मेरे ऊपर लाठीयां बरसाने लगे। अगले दिन मुझे भेलूपुर थाने ले गए। वहां पर मेरा नीचे का कपड़ा उतारकर मुझे मार रहे थे। मारने के बाद मेरी चोट देख रहे थे, गंदी गंदी गालियां दे रहे थे, एक पुलिस वाला कह रहा था- साला! मियां कहीं का.... बड़ा मोटा ताजा है, बता बे साले, किस चीज का गोश्त खाता है भैस का कि गाय का? कितना खाता है बे?

जिस समय पुलिस वाले मार रहे थे उस समय दो पुलिस वाले मेरे हाथ पकड़े हुए थे, मुझे दीवार में सटा दिया गया, उसके बाद दो पुलिस वाले लाठी से मेरे पीछे मुझे खूब मार रहे थे। मैं रो रहा था, चिल्ला रहा था, मदद की भीख मांग रहा था लेकिन कोई मेरी बात नहीं सुन रहा था। एक पुलिस वाला कह रहा था कि ये साले मुस्लिम हैं, इन कुत्तों को कितना भी मारो इन्हें दर्द नहीं होता है, वो पुलिस वाले मुझे मार रहे थे, पता नहीं कब तक मारे, मुझे याद है कि वो मार ही रहे थे तभी मैं जमीन पर गिर गया।

जेल से छूटकर आए एक अन्य व्यक्ति रहमान (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि उस दिन सुबह से मैं घर पर नहीं था, काम के सिलसिले में बाहर गया था, रात को भी देर से आया, बहुत थका हुआ था, नींद लग रही थी, भूख भी लगी थी, खाना खाया और सो गया। शायद घर में सभी लोग सो गए। अचानक से घर में शोर होने लगा। नींद खुली, मालूम हुआ कि सौ-दो सौ पुलिस वाले मेरे घर को घेर लिए हैं और दरवाजा खोलने के लिए कह रहे हैं। हमारे यहाँ रात को घर में ताला बंद हो जाता है, उस दिन भी बंद हो गया था। पुलिस वाले चिल्ला-चिल्लाकर ताला खोलने के लिए कह रहे थे, सबसे पहले मेरी बहन ताला खोलने गई, ताला नहीं खुला, फिर अम्मी गई, उनसे भी नहीं खुला, हमने ताली पुलिस वालों को ही छत से फेंककर दे दिया। (ताला ऐसा है जिससे दोनों तरफ से तरफ से ताला खोला जा सकता है) पुलिस वाले भी ताला खोले उनसे भी नहीं खुला, फिर उन लोगों ने ताला तोड़ दिया, और कई पुलिस वाले घर में घुस आए।

घर में घुसते ही पुलिस वालों से गंदी-गंदी गाली देनी शुरू कर दी। माँ-बहन की खूब गाली दी, इसके बाद घर का सामान भी उठाकर पटक रहे थे, फिर वो मेरे पास आए, और मेरा हाथ पकड़कर ले जाने लगे, जैसे ही हम पूछे... सर! आप मुझे कहाँ ले जा रहे हैं? इसके बाद एक पुलिस वाले ने ऐसा तमाचा मारा कि मेरे आँखों के सामने अंधेरा छा गया, मुझे चक्कर आने लगा। मैं गिर ही रहा था कि तब तक दूसरे पुलिस वाले ने एक लात मारी और मैं गिर गया। इसके बाद मारते हुए पुलिस चौकी ले जाया गया, वहाँ से थाने पर, उसके अगले दिन भेलूपुर थाने में।

भेलूपुर थाने में पुलिस वाले खूब मार रहे थे, गालियां दे रहे थे। पुलिस वाले इतनी गंदी-गंदी गालियां दे रहे थे कि मुझसे सुना नहीं जा रहा था। पुलिस की बर्बरता को याद करते हुए रहमान कहते हैं कि, 'थाने में पुलिस वाले प्लास्टिक की पाइप से मार रहे थे, तीन पुलिस वाले डंडे से पीट रहे थे। पुलिस वाले केवल पीछे की तरफ मार रहे थे, चोट ऐसी लगी है कि अभी तक बैठ नहीं पा रहे हैं।'

आपको बता दें कि जेल से जमानत पर रिहा होने वाले बजरडीहा के इन सभी लोगों को 21 दिसंबर की रात को इनके घरों से उठाया गया था, इन सभी लोगों को साथ-साथ सभी जगह ले जाया गया। पिटाई के दौरान इन्हें अलग-अलग कमरे और जगह पर रखा गया था। इन सभी लोगों की जमानत भी एक ही दिन हुई है।
 

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