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शर्म-बेशर्म: सरयू में एक चुंबन और धर्म-संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदार!

“हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा ”- महर्षि वाल्मीकि
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आप एक दृश्य की कल्पना कीजिए। सड़क पर एक पति-पत्नी झगड़ रहे हैं, आप कुछ देर तमाशा देखते हैं और फिर क्या करते हैं....?

आप यह कहते हुए लापरवाही से आगे बढ़ जाते हैं— ये तो इनका आपसी मामला है। हम क्या करें।

ये बहुत आम दृश्य है। सड़क चलते या फिर अपने मोहल्ले, अपनी सोसायटी में आपने ऐसे दृश्य ज़रूर देखे होंगे। और अपनी या अपने परिवार जनों की प्रतिक्रिया याद कीजिए।

लेकिन यही पति-पत्नी अगर यूं ही किसी भावना के क्षण में किसी पार्क या नदी, झरने, पहाड़ पर एक दूसरे का चुंबन ले लें तो तूफ़ान मच जाता है। धर्म के ठेकेदार सक्रिय हो जाते हैं और संस्कृति-अपसंस्कृति, श्लील और अश्लील,  भारतीय सभ्यता बनाम पश्चिमी सभ्यता की बहस शुरू हो जाती है। बहस तक भी बात ठीक है, लेकिन अयोध्या में तो इससे भी आगे जाकर बेशर्मी और हिंसा का जो प्रदर्शन हुआ, वो बेहद शर्मनाक और डराने वाला है।

कुछ लोग कहेंगे कि बेशर्म तो वे लोग हैं जो सरयू में किस यानी चुंबन कर रहे थे। लेकिन मैं बेशर्म उन लोगों को कह रहा हूं जो उन्हें ताक रहे थे, घूर रहे थे। शर्मनाक उनका चुंबन लेना नहीं, उनपर हमला करना है। उनकी सरेआम बेइज़्ज़ती करना है।

अजीब देश है हमारा। यहां नफ़रत सरेआम एलाउ है, हिंसा सरेआम एलाउ है, लेकिन प्यार नहीं! पार्क तक में प्रेमी जोड़ों को ढूंढकर पीटा जाता है। मुंह पर कालिख पोती जाती है। वैलेंटाइन डे पर तो बाकायदा ऐसे लोग गैंग बनाकर गले में भगवा गमछा डालकर, हाथ में हॉकी और डंडे लेकर भारतीय सभ्यता की रक्षा करने के लिए निकलते हैं।

अयोध्या में सरयू में स्नान के दौरान एक पति-पत्नी ने एक दूसरे किस क्या कर लिया, यहां भी ऐसे कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो गईं। हद है!

बहुत लोगों की भावनाएं नदी में नहाते हुए पेशाब कर देने या थूक निकल जाने से भी आहत हो जाती हैं। इसके लिए भी रोज़ नये ऐलान होते हैं, पाप-पुण्य का हवाला दिया जाता है, जबकि ये सब नैसर्गिक प्रक्रिया हैं, किसी के साथ भी हो सकता है। एक डुबकी लगाते ही नाक तो सबकी बहने लगती है, प्रेशर तो सबको बनने लगता है, लेकिन नहीं। इन कट्टरपंथियों को ये कुछ भी बर्दाश्त नहीं। हालांकि चुपके से यह खुद भी यह सब जाने कितनी बार कर चुके होंगे।

और यही नहीं आप को मालूम है कि ये कथित धार्मिक और हिंदुत्ववादी खुद कितने पाखंडी हैं। ये रात दिन चरस-गांजा और शराब पीकर गंगा स्नान करते हैं। यक़ीन न हो तो किसी शिवरात्रि पर हरिद्वार चले जाना। लेकिन इन्हें एक पति का पत्नी को चुंबन करना इतना नागवार गुज़रा कि उसकी सरेआम पिटाई करने लगे।

मैं बता सकता हूं कि इनमें से तमाम ऐसे भी लोग होंगे जो लड़कियों-महिलाओं को नहाते हुए न केवल घूरते होंगे बल्कि तैराकी और खेल के बहाने छेड़छाड़ भी करते होंगे। अगर आप घूमने या गंगा स्नान को जाते हैं तो आपका सामना भी ऐसे ग्रुपों से ज़रूर हुआ होगा।

वायरल वीडियो को देखकर लगता है कि जैसे ये लोग उस जोड़े को नहाते हुए काफी देर से घूर रहे थे। वरना ऐसे कैसे हुआ कि जैसे ही उन्होंने एक-दूसरे को चूमा, ये लोग एकदम से उनपर ख़ासकर पुरुष पर हमलावर हो गए।

साफ लग रहा है कि ये लोग झुंड बनाकर इसी जोड़े को निहार रहे थे और ताक में थे कि कुछ किया जाए। हो सकता है कि ये खुद किसी छेड़छाड़ की फिराक में थे। और फिर इन्हें मौका खुद को धर्म और सभ्यता-संस्कृति का ठेकादार दिखाने का मिल गया।  

खुद से पूछिए...हम किस कदर पाखंडी हैं...अजीब देश है हमारा। शिवलिंग को पूजने वाला देश, शिव और सती के प्रेम की महिमा गाने वाला देश, मैथुन क्रियाओं के मंदिर बनाने वाला देश, श्रीकृष्ण की प्रेम लीलाओं पर झूमने वाला देश और यहां तक कि अपनी पवित्र नदियों में महापर्व कुंभ के मौकों पर नग्न नागा साधुओं का पूरी धूमधाम और सम्मान के साथ शाही स्नान कराने वाला देश, नदी में नहाते एक पति-पत्नी के चुंबन लेने मात्र से ऐसा आहत हो गया...

शुक्र मनाइए ये पति-पत्नी थे। अगर ये बिना शादी-शुदा होते, प्रेमी-प्रेमिका होते....या हिंदू-मुसलमान होते...या फिर समलैंगिक होते...तो... तो ख़ैर नहीं थी। मॉब लिंचिंग का पूरा ख़तरा था।  

इसी बात को जनवादी नेता कविता कृष्णन ने बेहद विस्तार से तार्किक ढंग से समझाया है। उन्होंने ऐसे धर्म और संस्कृति के सभी स्वयंभू ठेकादरों को याद दिलाया है कि रामायण के रचियता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की प्रेरणा कैसे मिली।

कविता लिखती हैं-

इस पति-पत्नी ने अयोध्या की राम की पौडी में चुम्बन लिया तो पब्लिक ने उनकी पिटाई कार दी. अगर ये शादी शुदा न होते, या अगर पुरुष दलित या मुसलमान होते, या अगर ये समलैंगिक होते तो शायद पब्लिक उनकी हत्या कर देती. 

रामायण की प्रेरणा वाल्मीकि को तब मिली जब क्रौंच जोड़ी के मिलन के दौरान शिकारी द्वारा नर के मारे जाने पर उनके मुँह से दुनिया का पहला श्लोक निकला: 

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।

यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥

(अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।) 

वाल्मीकि रामायण में भरत जब अयोध्या लौटते हैं तो कहते हैं कि अयोध्या के उद्यानों को प्रेमियों ने क्यों त्याग दिया है, उद्यानों को ऐसा देख कर अयोध्या शहर ही जंगल जैसा लगने लगता है:

तानि अद्य अनुरुदन्ति इव परित्यक्तानि कामिभिः || 

अरण्य भूता इव पुरी सारथे प्रतिभाति मे |

किसी भी अच्छे समाज में (और वाल्मीकि के अयोध्या में भी) आम (पब्लिक) जगहों में प्रेमियों के होने और प्रेम जताने का स्वागत किया जाता है.  

यह पोस्ट भारत के उन सारे प्रेमी जुगलों के साथ साझीदारी में, जिनके प्रेम को नफ़रत और हिंसा का सामना करना पड़ता है. हमारे समाज में प्रेम के प्रति इतनी नफ़रत और हिंसा है, (जाति व्यवस्था भी इसी हिंसा पर टिकी हुई है), शायद इसलिए इसने एक नफ़रत और हिंसा-भरी राजनीति को जन्म दिया.

चुंबन पर आहत होने वालों से मैं कहता हूं आइए हम आहत होते हैं बच्चों और महिलाओं पर रात-दिन हो रही यौन हिंसा पर, हर मिनट हो रहे बलात्कारों पर, बलात्कार और हत्या के बाद राज्य मशीनरी द्वारा रात के अंधेरे में एक दलित लड़की की लाश को जला देने पर।

आइए हम आहत होते हैं- महंगाई, बेरोज़गारी, और बुलडोज़र की अन्यायी कार्रवाई पर...

आहत होने के लिए बहुत सारे ज़रूरी विषय हैं दोस्तों...मगर अफसोस हम न जाने किन बातों पर आहत हैं या आहत बताए जा रहे हैं, दिखलाए जा रहे हैं।  

खुद को मेनस्ट्रीम मीडिया कहने वालों की भी भाषा देखें तो शर्म आती है- कितनी हिंसक, कितनी अश्लील।

एक नमूना देखिए-

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ऐसी हिंसा और हमलों का समर्थन करने वाले, या इस पर मौन रह जाने वाले लोगों से मैं पूछना चाहता हूं, ख़ासकर उन युवाओं से, उन नौजवानों से जो प्रेम में हैं, जिनकी गर्ल या बॉय फ्रेंड है, क्या वे ऐसा ही कट्टरवादी भारत चाहते हैं, जहां पति-पत्नी तक को एक चुंबन के लिए सरेआम इस तरह पीटा जाता है, बेइज़्ज़त किया जाता है।

अगर आपका जवाब हां है, तो फिर आप सोच लीजिए कि जब पति-पत्नी के साथ ऐसा किया जा सकता है तो आपके साथ क्या सुलूक होगा। अगर आप फिर भी तैयार हैं तो इस नए भारत में आपका स्वागत है!!!

अगर नहीं, तो फिर उठिए और बोलिए...

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