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ख़बरों के आगे-पीछे: अडानी मामले में सेबी की टालमटोल, स्मार्ट सिटी का मौजूदा स्टेटस व अन्य ख़बरें..

अडानी मामले में सेबी की टालमटोल समेत शरद पवार का इस्तीफ़ा, राहुल की सज़ा, 45 करोड़ मामले में केजरीवाल की ख़ामोशी और स्मार्ट सिटी के मौजूदा स्टेटस पर अपने साप्ताहिक कॉलम में चर्चा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन।
SEBI

अडानी समूह को लेकर आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच के मामले में एक बड़ा दिलचस्प घटनाक्रम हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई है और साथ ही शेयर बाज़ार की नियामक संस्था सेबी को भी इसकी जांच के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को दो महीने में स्टेटस रिपोर्ट देने के लिए कहा था, जिसकी अवधि दो मई को पूरी हो गई है। इससे पहले सेबी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह जांच बहुत जटिल है और जो 12 संदिग्ध लेन-देन हुए हैं, उनकी जांच में बहुत समय लगेगा। इस आधार पर सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से जांच के लिए छह महीने का समय और मांगा है। लेकिन दिलचस्प यह है कि सेबी ने जो अनुरोध पत्र सुप्रीम कोर्ट को दिया है उसमें कहा है कि उसने पहले ही बताया हुआ है कि इसकी जांच में 15 महीने का समय लग सकता है। इस तरह से सेबी ने अपनी पोजिशनिंग कर दी है। सब जानते हैं कि सेबी यह टालमटोल किसके इशारे पर कर रही है। सेबी का रिकॉर्ड रहा है बड़े और जटिल मामलों में उसकी जांच सालों साल चलती रही है। अगर उसने छह महीने के बाद फिर समय मांगा और 15 महीने में जांच पूरी करने की बात कही तो इसका मतलब है कि उसकी रिपोर्ट अगले लोकसभा चुनाव के बाद आएगी। ज़ाहिर है कि विपक्ष के हाथ से एक बड़ा मुद्दा निकल जाएगा। आख़िर सरकार यही तो चाहती है।

मोदी अब गालियों को तौलते नहीं, गिनते हैं!

करीब छह महीने पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गालियों को तौला करते थे लेकिन अब गालियों को गिनने लगे हैं। उन्होंने 12 नवंबर 2022 को तेलंगाना में एक सभा को संबोधित करते हुए उनको मिलने वाली गालियों का वज़न बताया था। उन्होंने कहा कि उन्हें रोज़ाना दो-तीन किलों गालियां मिलती हैं, लेकिन उनके शरीर की बनावट ऐसी है कि उन्हें इन गालियों से ऊर्जा मिलती है और इसीलिए उन्हें थकान महसूस नहीं होती है। अब छह महीने बाद मोदी कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने गए तो शायद उन्हें किसी ने अल्लामा इक़बाल का यह शेर याद दिला दिया ''जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिसमें बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते।’’ इसीलिए उन्हें लगा होगा कि जब जम्हूरियत में बंदों को गिना जाता है तो गालियों को भी गिना ही जाना चाहिए। गिनने का वज़न ज़्यादा होता है और उसका असर भी। और सचमुच जब उन्होंने रोज़ाना दो-तीन किलो गालियां खाने की बात कही थी तो लोगों ने उसे मज़ाक समझा था और उस पर हंसे थे। लेकिन अब जब कि उन्होंने गिन कर बताया कि कांग्रेस ने उन्हें अब तक 91 मर्तबा गालियां दी हैं तो लोगों को इसकी गंभीरता समझ में आई और कांग्रेस को भी समझ में आया कि प्रधानमंत्री कार्यालय में गालियों का गिनने का भी चाकचौबंद सिस्टम है, इसलिए सोच-समझ कर बोलना चाहिए।

राहुल, स्टालिन भी चाहते थे कि शरद पवार बने रहे!

शरद पवार के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से लेकर उसे वापस लेने तक के घटनाक्रम से कई तरह के निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। ज़्यादातर विश्लेषक मान रहे हैं कि यह उनका मास्टरस्ट्रोक था और वे अब पहले से बड़े नेता हो गए हैं। लेकिन यह निष्कर्ष तभी सही साबित होगा, जब पार्टी पर उनकी पूरी पकड़ बने। पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव में उन्होंने अध्यक्ष बने रहना तो मंज़ूर कर लिया है लेकिन अब वे अगर अपने हिसाब से टीम बनाते हैं और पार्टी में कोई टूट-फूट नही होती है, तभी माना जाएगा कि पार्टी पर उनकी पूरी पकड़ है। अगर अजित पवार के साथ किसी मसले पर समझौता करना पड़ा तो उससे शरद पवार की ताकत घटेगी। फिर इसका असर राज्य की राजनीति में भी दिखेगा और राष्ट्रीय राजनीति में भी, जहां वे पहले ही अपनी भूमिका काफी हद तक गंवा चुके हैं। देश की दूसरी विपक्षी और एनसीपी की सहयोगी पार्टियों को भी अजित पवार पर भरोसा नहीं है। उनको लगता है कि वे कभी भी भाजपा के साथ जा सकते हैं। पिछले दिनों उनके भाजपा के संपर्क में होने की कई खबरें सामने आई थीं और उन्होंने भी प्रधानमंत्री की सार्वजनिक तौर पर तारीफ की थी। इसीलिए शरद पवार के इस्तीफे के तुरंत बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सुप्रिया सुले को फोन किया और इस्तीफे का कारण जानना चाहा। राहुल और स्टालिन ने सुप्रिया से यह भी कहा कि वे शरद पवार को इस्तीफा वापस लेने के लिए तैयार करें, यह विपक्षी एकता के लिए ज़रूरी है।

हर सीट पर मोदी के नाम पर वोट

भाजपा ने कर्नाटक चुनाव को ऐसा बना दिया है कि वह लोकसभा चुनाव की तरह लगने लगा है। वह हर सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रही है। खुद मोदी ने अपनी योजनाओं और अपनी सरकार के नौ साल के कामकाज पर वोट मांगे। अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पर मोदी और भाजपा ने जो भी हमला किया वह सोनिया व राहुल गांधी का नाम लेकर किया। यहां तक कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी को 'ज़हरीला सांप’ कहा तो भी मोदी या भाजपा के किसी बड़े नेता ने खरगे पर पलटवार नहीं किया। उनको निशाना भी बनाया गया तो बहुत नरम तरीके से। असली हमला सोनिया और राहुल गांधी पर हुआ। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप भी नहीं लगाए गए। मोदी ने नेहरू-गांधी परिवार पर हमला किया और कहा कि शाही परिवार ज़मानत पर बाहर है। उन्होंने यह नहीं कहा कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार घोटाले के आरोपी हैं और वे भी ज़मानत पर बाहर हैं। मोदी ने ज़्यादा से ज़्यादा विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया। उनकी हर रैली में छह से सात विधानसभा क्षेत्रों के प्रत्याशी आए और उनके क्षेत्र से लोगों की भीड़ लाई गई। हर दिन के प्रचार के बाद किसी बड़े शहर में रोड शो हुआ, जिसमें शहरी क्षेत्र कवर किए गए। भाजपा का हर प्रत्याशी प्रधानमंत्री के फोटो के साथ वोट मांगने गया। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशियों ने अपने और प्रदेश के तीन नेताओं- खरगे, सिद्धरमैया और शिवकुमार के नाम पर वोट मांगे।

राहुल सुप्रीम कोर्ट जाएंगे या इंतज़ार करेंगे?

कायदे से तो राहुल गांधी को मानहानि मामले में अपनी सज़ा पर रोक लगवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ही जाना चाहिए था। तीन अदालतों ने राहुल गांधी की सज़ा पर मुहर लगाई है। पहले सूरत की सीजेएम कोर्ट ने उन्हें मानहानि के मामले में दोषी ठहराते हुए जो अधिकतम सज़ा हो सकती है वह दी। उसके बाद जिला अदालत ने उस पर मुहर लगाई और अब हाई कोर्ट ने भी राहत नहीं दी है। अब अगर राहुल को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नही मिलती है तो वे न सिर्फ अगला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, बल्कि उन्हें जेल भी जाना होगा। गुजरात हाई कोर्ट ने कह दिया है कि उसका फैसला गर्मी की छुट्टियों के बाद आएगा। इसका मतलब है कि जून अंत में या जुलाई में फैसला आएगा। अगर उससे पहले सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो फिर चुनाव आयोग भी इंतज़ार नहीं करेगा और राहुल के अयोग्य होने से खाली हुई वायनाड सीट पर उपचुनाव की घोषणा कर देगा। चुनाव आयोग ऐसा न करे इसके लिए राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी होगी। उसे हाई कोर्ट के फैसले का अंदाजा हो गया है। वहां राहुल के वकील ने इस मामले में जल्दी फैसले की ज़रूरत बताते हुए सारे हालात बयान किए थे। लेकिन हाई कोर्ट के जज ने उस पर ध्यान नहीं दिया। इसलिए अब कांग्रेस को मामले की गंभीरता, सुप्रीम कोर्ट को, बता कर अंतरिम राहत हासिल करनी होगी। तभी चुनाव आयोग वायनाड सीट पर उपचुनाव की घोषणा नहीं करेगा या राहुल के ख़िलाफ़ पुलिस कार्रवाई नहीं होगी।

खामोश हो गए हैं केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरी तरह से खामोश हो गए हैं। जब से उनके सरकारी आवास की साज-सज्जा पर 45 करोड़ रुपए खर्च होने की खबर आई तब से वे चुप हैं और उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से भी दूरी बना रखी है। यहां तक कि कर्नाटक चुनाव में प्रचार के लिए भी वे नहीं गए, जबकि चुनाव की घोषणा के पहले उन्होंने कर्नाटक के कई दौरे किए थे और पूरी ताकत से चुनाव लडने का ऐलान किया था। बहरहाल अपने बंगले को लेकर चल रही कहानियों या उससे जुड़े रिकॉर्ड जब्त करने के उप राज्यपाल के आदेश या हर बार सुनवाई में मनीष सिसोदिया की ज़मानत खारिज होने जैसे मसले पर भी वे कुछ नहीं बोल रहे हैं। उलटे उनके पुराने वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें वे खुद को आम आदमी बता कर सादगी से रहने की कसमें खा रहे हैं। उनका एक पुराना ट्वीट भी वायरल हुआ है, जिसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर में 10 एसी लगे होने पर सवाल उठाया था और हैरानी जताई थी कि कोई कैसे इतने आलीशान घर में रह सकता है। अब उनके घर की साज-सज्जा पर 45 करोड़ रुपए खर्च होने के दस्तावेज सामने आ गए हैं। इससे केजरीवाल की आम आदमी वाली छवि को जो धक्का लगा है उसे ठीक करना उनके और पूरी पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है।

अगले चुनाव के बाद तैयार होंगी स्मार्ट सिटी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि वे जिस परियोजना का शिलान्यास करते हैं, उसका उद्घाटन भी करते हैं और पहले दशकों तक परियोजनाएं लटकी रहती थीं। सवाल है कि अगर मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाते है तो वे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट यानी स्मार्ट सीटी का उद्घाटन कैसे करेंगे? इस प्रोजेक्ट का ऐलान मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद किया था और उसके अगले साल इस परियोजना को लॉन्च किया था। निर्धारित समय सीमा के मुताबिक जून 2023 में यह परियोजना पूरी हो जाना चाहिए थी, लेकिन अब सरकार की ओर से बताया गया है कि यह परियोजना जून 2024 में पूरी होगी। उससे पहले मई 2024 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आ जाएंगे। सरकार ने बताया है कि यह परियोजना 2015 में लॉन्च हुई थी और उसके बाद यह तय करने में तीन साल लग गए थे कि वे कौन से 100 शहर होंगे, जिनको स्मार्ट बनाना है। 2016 से 2018 तक शहरों का चुनाव हुआ। उसके बाद पांच साल की समय सीमा तय की गई थी। लेकिन कुछ जगहो पर अभी 75 फीसदी काम ही पूरा हो पाया है तो कुछ जगह बताया जा रहा है कि 90 फीसदी काम हो चुका है। यह कुल मिला कर 71 हज़ार करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है, जिसमें 38 हज़ार करोड़ रुपए केंद्र के हैं और बाकी खर्च राज्यों व स्थानीय निकायों का है। इसमें से 90 फीसदी पैसा इस्तेमाल हो चुका है। आठ हज़ार करोड़ रुपए इस साल बजट में आवंटित हुआ है, जिससे अगले साल जून तक स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पूरा होगा।

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