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पश्चिम बंगाल : ठेका कर्मचारियों की आंदोलन की तैयारी, 7 फ़रवरी को प्रदर्शन

कार्यबल का एक बड़ा हिसा अस्थायी कर्मचारियों का होता है; और उन्हें यह चिंता सता रही है कि नई श्रम संहिता उनके हितों के ख़िलाफ़ हैं।
west bengal
प्रतीकात्मक तस्वीर। 

54 वर्षीय बेला पात्रा, राज्य विद्युत बोर्ड (एसईबी) में ठेका कर्मचारी हैं। बेला को  10,000 रुपए मासिक पारिश्रमिक मिलता है और महीने में 26 दिन काम करना पड़ता है और उसे काम-नहीं-तो-दाम-नहीं के आधार पर वेतन दिया जाता है।

बेला पात्रा कहती हैं, "इतनी मामूली आमदनी में हम क्या कर सकते हैं? हम में से कई अपने परिवार के सदस्यों का इलाज़ भी नहीं करा सकते हैं, और न ही हम अपने बच्चों की शिक्षा पर कुछ खर्च कर सकते हैं। काम से बर्खास्तगी का खतरा हमेशा हमारे सिर पर मंडराता रहता है। यदि कोई ठेकेदार अनियमितता बरतता है और उसे उसके पद से बर्खास्त कर दिया जाता है, तो अनुबंध कर्मचारियों को ही उसका दंश झेलना होता है और हम भी काम से बाहर हो जाते हैं।”

"ठेका कर्मचारियों खासकर कामकाजी महिलाओं के लिए न तो शौचालय है और न ही बच्चों की देखभाल के लिए कोई क्रेच है। पांच सदस्यीय परिवार अपना खर्चा 10,000 रुपये में नहीं उठा सकता है, हमारी मजदूरी दो वक्त के भोजन के लिए भी पर्याप्त नहीं है।"

एसईबी में बिजली के बिल के लिए अब स्मार्ट मीटर की व्यवस्था की जा रही है, जो मीटर रीडरों का काम कम कर देगा और मीटर रीडर बेरोजगार हो जाएंगे।

पात्रा कहती है, "हम स्मार्ट मीटर के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह सब, मीटर रीडर की काम की सुरक्षा की गारंटी के बाद ही किया जाना चाहिए। हम में से कई 40 और 50 के दशक में हैं। इस उम्र में हमें रोजगार कहां मिलेगा?" 

एसईबी की पूरी प्रणाली संविदा कर्मचारियों के साथ काम करने की है, जिसमें सुरक्षा, संचालन, बागवानी, कियोस्क बिलियन आदि शामिल हैं। 40,000 संविदात्मक कर्मचारियों की तुलना में लगभग 20,000 स्थायी कर्मचारी हैं।

कोविड काल के दौरान, जब कोई कर्मचारी उपलब्ध नहीं था, तब ठेका श्रमिकों ने राज्य के बिजली नेटवर्क को बनाए रखने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर ओवरटाइम काम किया था। कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक 43 वर्षीय संविदा कर्मचारी पूर्णा चंद्र मण्डल के अनुसार, सीटू के झंडे के तहत यूनियन बनाने के अधिकार को छीनने का मतलब उनके लिए आशावादी वेतन नहीं है।

कोविड के दौरान, हालांकि विश्वविद्यालय ने ठेके पर काम कर रहे अपने 130  कर्मचारियों का वेतन दिया, लेकिन ठेकेदार अरुण बसु ने वह वेतन कर्मचारियों को  नहीं दिया। 

"इसके खिलाफ, राज्य सीटू के नेतृत्व में, हमने रजिस्ट्रार और कुलपति सहित विश्वविद्यालय के शीर्ष अधिकारियों का घेराव किया और एक व्यापक आंदोलन खड़ा किया।

मंडल के मुताबिक, हमने कोलकाता हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कानून का सहारा भी लिया। आखिरकार, अदालत के आदेश के बाद हमारा 70 प्रतिशत वेतन चुका दिया गया। उक्त ठेकेदार पहले ही राज्य के पीएफ आयुक्त के क्रोध का शिकार हो चुका है, और हमारे पीएफ बकाया चुकाने के लिए उस पर भारी जुर्माना लगाया गया है।”

मण्डल ने, संघर्ष के दौरान पश्चिम बंगाल कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स फेडरेशन (WBCWF) के अध्यक्ष देबनजन चक्रवर्ती जैसे बड़े सीटू नेताओं की भी प्रशंसा की।

पश्चिम बंगाल कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स फेडरेशन के तहत 88 यूनियनें हैं, जिनमें लगभग 88,000 सदस्य हैं। राज्य के लगभग पांच से छह लाख ठेका श्रमिकों के बड़े हिस्से को यूनियन से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, देबनजन चक्रवर्ती ने कहा कि, जहां कहीं भी किसी भी क्षेत्र में यूनियन बढ़ती है, वहां ठेकेदार की समाप्ति का मतलब ठेका कर्मचारियों की समाप्ति नहीं है। समान काम समान वेतन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में फैसला आया है। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राज्य के ठेका मजदूरों की मांगों में से एक मानकर एक मजबूत आंदोलन खड़ा कर रहे हैं।

इसके अलावा, मान लीजिए कि ठेकेदार पीएफ, ईएसआई और अनुबंध कर्मचारी के ग्रेच्युटी बोनस का भुगतान नहीं करता है। उस मामले में, उक्त ठेका कर्मचारी का प्रमुख नियोक्ता, अनुबंध श्रम अधिनियम के अनुसार भुगतान करने को बाध्य होगा।

उन्होंने आगे कहा, "नई श्रम संहिताओं में, यह कहा गया है कि प्रमुख नियोक्ता की अवधारणा को बदल दिया जाएगा, और ठेकेदार प्रमुख नियोक्ता होगा। दूसरे शब्दों में, प्रमुख नियोक्ताओं के ऊपर से अनुबंध कर्मचारियों की जिम्मेदारी को दूर किया जा रहा है। हमारा इसके खिलाफ भी आंदोलन चलेगा।” साथ ही लाइसेंसिंग नियमों में भी संशोधन किया जा रहा है।

"पहले, एक ठेकेदार के तहत 20 या अधिक कर्मचारियों द्वारा काम करने पर लाइसेंस दिया जाता था। अब इसे बढ़ाकर 50 कर्मचारी कर दिया गया है, जो अनुबंध कर्मचारियों के हित के लिए हानिकारक है।" इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 6,000 करोड़ रुपये का ऋण लिया था, ऋण की शर्तों में यह शामिल था कि सरकार स्थायी कर्मचारियों के साथ काम नहीं करेगी। पिछले चार दशकों में, स्थायी श्रमिकों की संख्या में कमी आई है, और देश में अनुबंध कर्मचारियों की संख्या अधिक हो गई है।'

अधिकांश सार्वजनिक यूटिलिटी उपक्रमों में, जैसे कि रेलवे में संविदा कर्मचारी स्थायी कर्मचारियों से अधिक हैं। पेट्रोलियम और गैस उद्योग में, यह हिसा 70 प्रतिशत से अधिक है; कोयला, इस्पात संयंत्र और रासायनिक उद्योगों में यह 50 प्रतिशत है। इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि कोई भी उद्योग संविदा कर्मचारियों के बिना काम नहीं कर सकता है। स्थायी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने के बाद भी काम चलता रहता है।

देबनजन चक्रवर्ती ने कहा, "7 फरवरी को, हम रानी रश्मोनी एवेन्यू की घेराबंदी करने की योजना बना रहे हैं और श्रम मंत्री को एक ज्ञापन सौंपेंगे।"

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, कोलकाता स्टेट कॉन्ट्रैक्ट लेबर फेडरेशन के सौम्यजीत रजक ने मांग-पत्र के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि यूनियन ने विशिष्ट मांगों के साथ एक मजबूत आंदोलन खड़ा करने की योजना बनाई है।

मांगे: ठेकेदार का अनुबंध को समाप्त होने पर ठेका कर्मचारियों के रोज़गार की समाप्ति नहीं होनी चाहिए, नए श्रम कोडों को रद्द किया जाए जो अनुबंध कर्मचारियों के हितों के खिलाफ हैं, न्यूनतम मासिक वेतन 26,000 रुपये किया जाए, स्थायी काम में ठेका प्रथा समाप्त की जाए और पीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, पेंशन, अवकाश आदि मुहैया कराया जाए। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

WB: Contract Workers Plan to Forge a Strong Movement, Demonstration on February 7

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