Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बिल्क़ीस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ?

इस केस के सभी दोषियों को स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त 2022 को जेल से रिहा कर दिया गया था, जिसके ख़िलाफ़ शीर्ष अदालत में कई जनहित याचिकाएं दाख़िल हैं।
Bilkis Bano case
फ़ाइल फोटो। PTI

गुजरात दंगों की पीड़िता बिल्कीस बानो के 11 दोषियों की रिहाई का मामला लगातार सुर्खियों में है। बीते सोमवार, 7 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में इस पर रोज़ सुनवाई जारी है। बिल्कीस बानो ने शीर्ष अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि उनके बलात्कार के दोषियों की सज़ा पूरी होने से पहले रिहाई के फ़ैसले को रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि ये लोग किसी उदारता के पात्र नहीं हैं।

बता दें कि बिल्कीस बानो के अलावा सीपीआई नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने भी इस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ अब सुनवाई कर रही है। इस जनहित याचिका को दायर करने वाले लोगों में स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ यूनिवर्सिटी की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य नाम भी शामिल हैं।

ध्यान रहे कि इस केस के सभी दोषियों को स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त 2022 को जेल से रिहा कर दिया गया था। हालांकि अपनी एक टिप्पणी में शीर्ष अदालत ने इस साल 18 अप्रैल को कड़े शब्दों में 11 दोषियों को दी गई छूट पर गुजरात सरकार से सवाल किया था और कहा था कि नरमी दिखाने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था। कोर्ट ने आश्चर्य भी जताया था कि क्या इस मामले में विवेक का इस्तेमाल किया गया था।

अब तक क्या-क्या हुआ अदालत में?

सोमवार से जारी सुनवाई में बिल्कीस बानो की वकील शोभा गुप्ता ने इस केस के संबंध में कहा कि ये घटना इतनी दर्दनाक थी कि बिल्कीस आज भी पुरुषों का सामना करने से डरती हैं। भीड़ में या अजनबियों के आसपास नहीं रह सकतीं। वो अब तक उस ट्रॉमा से उबर नहीं पाई हैं। हमें लगा था कि न्याय मिल गया है, लेकिन फिर ये हो गया।

बिल्कीस बानो ने कोर्ट को बताया कि इन दोषियों ने उनका कई बार बलात्कार किया और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी थी, इसलिए सज़ा से पहले रिहाई के गुजरात सरकार के फ़ैसले को पलटा जाए। क्योंकि ये ऐसा मामला नहीं था जहां घटना अचानक घटी हो। चारों तरफ लाशें मिलीं। सिर फोड़े गए, चुन चुन कर हत्या की गई।

पीठ की अध्यक्षता करने वाली बीवी नागरत्ना ने पूछा कि क्या अदालतों ने कोई निष्कर्ष निकाला है कि जो अपराध "रेयर ऑफ़ द रेयरेस्ट" मामलों की श्रेणी में आता है वो सज़ा-ए-मौत के काबिल है।

बिल्कीस की वकील ने बार-बार कोर्ट में ये कहा कि वो लोग ख़ून के प्यासे थे, वे मुसलमानों का पीछा करते रहे थे। अपराध की प्रकृति इतनी भयावह और क्रूर थी, गर्भवती होने पर बिल्कीस के साथ गैंगरेप किया गया। बिल्कीस की पहली बेटी को चट्टान पर पटक-पटक कर मार डाला गया। बिल्कीस की मां के साथ गैंगरेप किया गया और उनकी हत्या कर दी गई। चचेरी बहन के साथ भी गैंगरेप किया गया। याचिकाकर्ता के चार नाबालिग़ भाई-बहनों की हत्या कर दी गई थी।

उन्होंने आगे कहा, “जो अपराधी इस अपराध में दोषी पाए गए, जिस तरह से उन्होंने इसे अंजाम दिया, क्या वो उदारता के पात्र हैं? ये मनमाना आदेश छोड़ दिया जाए, तो क्या ऐसा अपराध करने वाले उदारता दिखाने लायक हैं?

शोभा गुप्ता ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 432 के तहत सीबीआई ने ट्रायल कोर्ट के जज से इस रिहाई पर उनकी राय पूछी थी। जज ने एक विस्तृत राय देते हुए कहा कि दोषी किसी भी उदारता या रिहाई के हक़दार नहीं हैं। यहां तक कि सीबीआई ने भी कहा कि वे किसी भी तरह की नरमी के हक़दार नहीं हैं। इसके बावजूद उन्हें रिहा किया गया।

इससे पहले, 17 जुलाई को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम इस मामले में आखिरी सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर रहे हैं। तब तक सभी पक्ष अपने जवाब, लिखित दलीलें कोर्ट में सबमिट करें। सभी पक्ष ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।

ज्ञात हो कि बिल्कीस बानो ने पिछले साल 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की थीं। पहली याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें तुरंत वापस जेल भेजने की मांग की थी। वहीं, दूसरी याचिका में कोर्ट के दिए आदेश पर फिर से विचार करने की मांग की थी, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार करेगी। इस पर बिल्कीस ने कहा कि जब केस का ट्रायल महाराष्ट्र में चला था, फिर गुजरात सरकार फैसला कैसे ले सकती है?

गुजरात दंगे और बिल्कीस का दर्द

गौरतलब है कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान पांच महीने की गर्भवती बिल्कीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया। उनकी तीन साल की बेटी की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस दंगे में बिल्कीस बानो की मां, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 14 लोग मारे गए थे। मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने 11 लोगों को हत्या और गैंगरेप का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। इस मामले में पुलिस और डॉक्टर सहित सात लोगों को छोड़ दिया गया था। सीबीआई ने बॉम्बे हाई कोर्ट में दोषियों के लिए और कड़ी सज़ा की मांग की थी। इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने मई, 2017 में बरी हुए सात लोगों को अपना दायित्व न निभाने और सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर दोषी ठहराया था।

बीते साल स्वतंत्रता दिवस पर अचानक से बिल्कीस बानो मामले के 11 दोषी गोधरा की एक जेल से रिहा कर दिए गए। जेल के बाहर उनका स्वागत किया गया। टीका लगाकर सम्मान दिया गया और फिर फूल माला पहनाई गई। और ये सब तमाम विरोधों के बाद भी जारी रहा। जिसे लेकर देशभर में खूब आलोचना हुई और सरकार की मंशा पर सवाल भी उठे। फिलहाल सर्वोच्च अदालत में इस मामले पर लगातार सुनवाई जारी है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest