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21 दिनों के लॉकडाउन के बाद कोरोना से लड़ने के लिए क्या है सरकार का प्लान?

लॉक डाउन के बाद कोरोना वायरस का सामना कैसे किया जाएगा। इसे लेकर सरकार की तरफ से 20 पन्ने का कंटेनमेंट प्लान फॉर लार्ज ऑउटब्रेक ऑफ कोरोना वायरस जारी किया गया है।
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दिल्ली: मिनिस्ट्री ऑफ़ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर ने कोरोना वायरस से लड़ने की योजना के तौर पर एक डॉक्यूमेंट रिलीज किया है। डॉक्यूमेंट का नाम 'कंटेनमेंट प्लान फॉर लार्ज ऑउटब्रेक ऑफ कोरोना वायरस' है। नाम से ही जाहिर है कि ऐसा प्लान जो बड़े स्तर पर कोरोना वायरस के फैलने पर अख्तियार किया जा सकता है।

21 दिनों के लॉक डाउन के बाद कोरोना वायरस का सामना कैसे किया जाएगा। इस पर बहुत सारी जायज बातें की जा रही है। इसी क्रम में तकरीबन 20 पन्ने का सरकार की तरफ से कंटेनमेंट प्लान फॉर लार्ज ऑउटब्रेक ऑफ कोरोना वायरस जारी किया गया है। तो आइए इस प्लान का सार समझते हैं।  

- मोटे तौर पर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अभी तक की रणनीति को आगे भी अपनाये जाने की सम्भावना है। सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि पूरे देश को लॉकडाउन करने की जगह कुछ खास जगहों को चिह्निंत किया जाएगा। खास जगह का निर्धारण का आधार यह होगा कि संक्रमण की मात्रा कैसी है? इस आधार पर जिन इलाकों को चिह्निंत किया जाएगा, उनके भीतर और बाहर लोगों के सम्बन्ध को पूरी तरह से काट दिया जाएगा। अपवाद के तौर पर केवल जरूरी सामान लेन-देन करने की छूट होगी। तकनीकी शब्दावली में इसे जियोग्राफिक कवारन्टाइन से पुकारा जाएगा। संक्रमण के रोकथाम से जुड़ी इस पूरी रणनीति कलस्टर कन्टेनमेंट स्ट्रैटजी कहा जाएगा।

- इन जगहों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी। इन जगहों के हर एक संदिग्ध मरीज का टेस्ट किया जाएगा। टेस्टिंग क्षमता बढ़ाई जाएगी। सोशल डिस्टेंशिंग का सख्ती से पालन करवाया जाएगा। यहां पर काम करने वाले हेल्थ वर्करों को prophylaxis के तौर पर Hydroxy-chloroquine दिया जाएगा। prophylaxis यानी ऐसी दवाएं जो संभावित रोग से बचने के लिए पहले से शरीर के इम्युनिटी को बढ़ा देती हैं। ऐसी दवाएं ज्यादा कारगर नहीं होती, फिर भी बहुत अधिक बीमार होने से अच्छा है कि कम बीमार होकर लड़ते रहा जाए। इसलिए यह दवाएं उन सबको भी दी जाएगी जिनमें संक्रमण का खतरा सबसे अधिक हो। जैसे मरीज के परिवार और आस-पड़ोस के लोग।  

- भारत में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005, एपिडेमिक एक्ट 1897, सीआरपीसी और राज्य सरकार के स्वास्थ्य से जुड़े कानूनों से इस व्यवस्था को लागू करने में मदद मिल जाती है। इन कानूनों से सरकारों को महामारी को रोकने के लिए बहुत अधिक ताकत मिल जाती है।  सरकारों को यह अधिकार मिल जाता है कि महामारी को रोकने और नियंत्रित करने के लिए बिना किसी रोक टोक कदम उठाये।

- जियोग्राफिकल लेवल पर क्वारंटाइन से जुडी सभी तरह की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट मजिस्टेट्र के पास होगी। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेस्ट हर दिन लोकल लेवल के प्रशासन के साथ मिलकर योजना बनाएगा। इसी के योजना को लागू किया जाएगा। कौन से जरूरी सामान होंगे कौन से नहीं होंगे।  इन सबका निर्धारण केंद्र से तो होगा ही साथ ही साथ डिस्ट्रिक्ट से भी होगा। जैसे दवाई, सुरक्षा उपकरण से जुड़े सारे मसलों का फैसला डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन करेगा।  

- इमरजेंसी मेडिकल रिलीफ बनाई जाएगी। डिस्ट्रिक्ट रिस्पांस टीम बनाई जायेगी। मिनिस्ट्री ऑफ़ हेल्थ एंड फैमिली वेलफयर की तरफ से एक सेंट्रल रिस्पांस टीम बनाई जायेगी।  

- अगर ऐसी स्थिति बने कि पूरे के पूरे गाँव या पूरे के पूरे शहर में संक्रमण बढ़ गया हो तो इस पूरी जगह को बंद किया जा सकता है। जहां के नियम लॉकडाउन से कुछ ज्यादा सख्त होंगे। इन्हें कन्टेनमेंट ज़ोन कहा जाएगा। इसकी आस पास के इलाके में थोड़ी बहुत ढील दी जायेगी, जिसे बफर ज़ोन कहा जाएगा। जो भी इन जगहों से अंदर और बाहर आएगा और बाहर से अंदर जायेगा, उन सबका रिकॉर्ड रखा जाएगा। बाहर से अंदर जाने वालों को Hydroxy-chloroquine की टेबलेट दी जाएगी। ठीक यही काम गाड़ियों के साथ भी होगा। अंदर और बाहर जाने वाली गाड़ियों को सोडियम हाइपोक्लोराइट का छिड़काव किया जाएगा।  

- अगर जरूरी पड़े तो होटल, गेस्ट हाउस, स्कूल, खेलने के मैदान को भी हॉस्पिटल में तब्दील किया जा सकता है।  

- टेस्टिंग इंडियन मेडिकल रिसर्च सेंटर से मान्यताप्राप्त लेब्रोटरी में ही होंगे। इन लेब्रोटरी की व्यवस्था की जिम्मेदारी सरकार की होगी। किसी भी व्यक्ति का जब दो सैंपल टेस्ट निगेटिव होगा तभी माना जायेगा कि वह संक्रमण से मुक्त है।  

- इसके लिए पैसे की व्यवस्था स्टेट डिजास्टर फंड से होगी और गृह मंत्रालय के फंड से होगी।

- डॉक्टर से लेकर किसी भी तरह के सहयोगी स्वास्थ्यकर्मी को जरूरी सुरक्षा उपकरण जैसे पीपीई, ग्लव्स से लेकर थ्री लेयर्ड मास्क मुहैया कराने की जिम्मेदारी सरकार की होगी।  

- किसी भी जगह को तब तक लॉकडाउन में रखा जाएगा जब तक उस जगह से संक्रमण पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता। इसका पैमाना यह होगा कि उस जगह के सबसे अंतिम केस का दो सैंपल टेस्ट नेगटिव हो चुका हो।

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