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मदरसों पर कार्रवाई से क्या संदेश देना चाहती है भाजपा?

उत्तर प्रदेश से लेकर असम तक इन दिनों भाजपा सरकार के निशाने पर मदरसे हैं, कहीं इनका सर्वे कराया जा रहा है तो कहीं आतंकी अड्डा बताकर ढहा दिया जा रहा है। सवाल ये है कि इसके पीछे सरकार की मंशा क्या है?
Madrasa

इन दिनों देश में सरकारेें और राजनीतिक पार्टियां काम की बात छोड़ बाकी सबकुछ कर रही हैं। जिसमें हमेशा की तरह भारतीय जनता पार्टी नंबर एक है। दिल्ली का ही उदाहरण लें... तो इन दिनों बहस का एक मुद्दा यह भी रहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने स्कूलों में कमरे ज़्यादा क्यों बनवाए? पिछले दिनों तो दोनों पार्टियों के नेता सड़क पर ही लड़ गए।

कहने का अर्थ है कि हर दिन देश की ख़राब हालत को आईना दिखाती हुई एक नई रिपोर्ट सामने आ जाती है। कभी बेरोज़गारी की बातें लिखी होती हैं, कभी महिलाओं के साथ अत्याचार में बढ़ोत्तरी की बातें, कभी दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या का खाका, तो कभी बच्चों के शोषण और बलात्कार की ख़बरें चिंता बढ़ा देती हैं। इन मुद्दों पर चर्चा को छोड़ भारतीय जनता पार्टी मदरसों में सर्वे कराने में लगी है।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कह रही है कि प्रदेश में ज़्यादातर मदरसे ग़ैर मान्यता प्राप्त हैं। इन्ही ग़ैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वेक्षण करवाने के लिए योगी सरकार ने एक टीम का गठन किया है, जो 10 सितंबर को ज़िलों ज़िलाधिकारी को अपनी-अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इस सर्वेक्षण में एसडीएम, बीएसए और ज़िला अल्पसंख्यक अधिकारी शामिल होंगे।

दलील ये दी जा रही है कि सर्वेक्षण में मदरसे का नाम, उसका संचालन करने वाली संस्था का नाम, मदरसा निजी या किराए के भवन में चल रहा है इसकी जानकारी, मदरसे में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं की संख्या, पेयजल, फर्नीचर, विद्युत आपूर्ति और शौचालय की व्यवस्था, शिक्षकों की संख्या, मदरसे में लागू पाठ्यक्रम, मदरसे की आय का स्रोत और किसी गैर सरकारी संस्था से मदरसे की संबद्धता से संबंधित सूचनाएं इकट्ठा की जाएंगी।

जबकि एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी का कहना है कि योगी सरकार का ये फैसला मिनी एनआरसी की तरह है। और इसे सिर्फ मुसलमानों को परेशान करने के लिए लाया जा रहा है।

ओवैसी ने सरकार को आर्टिकल 30 की याद दिलाई और कहा प्राइवेट मदरसे खोलने के लिए किसी से परमिशन लेने की ज़रूरत नहीं है। जो मदरसे सरकारी पैसे पर चल रहे हैं उनके ऊपर ये शर्तें लागू होती हैं। लेकिन प्राइवेट मदरसों से ये सवाल पूछा जाना आर्टिकल 30 का उल्लंघन है। ओवैसी का ये भी कहना है कि इसके पीछे सरकार की मंशा ठीक नहीं है, इसके ज़रिए उत्तर प्रदेश और पूरे देश में ये संदेश देने की कोशिश है कि मदरसे देश के हित में नहीं है।    

ओवैसी ने ये भी कहा कि अगर सरकार का मकसद सिर्फ मुसलमानों को परेशान करना है तो खुलेआम ऐलान कर दे, कि कुरआन नहीं पढ़ें, नमाज़ नहीं पढ़ें, ख़ुद को मुसलमान भी न कहें।

ओवैसी के तर्क और योगी का सर्वेक्षण इसलिए राजनीतिक मालूम होता है, क्योंकि हर दिन ऐसी ख़बर आती हैं कि स्कूल में दलित महिला ने खाना बनाया है इसलिए सवर्णों ने नहीं खाया। सवर्ण बच्चियों को फोटो खींचने के लिए दलित बच्चों की वर्दी उतरवा दी। स्कूलों में आवारा पशु वास कर रहे हैं। इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ का ध्यान सिर्फ मदरसों की ओर  क्यों जा रहा है, ये बड़ा सवाल है।

इस सवाल का जवाब एक बार फिर बीते विधानसभा चुनावों में ही मिलेगा। जब योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि ये 80 बनाम 20 का चुनाव है। यानी योगी आदित्यनाथ ने वहीं हिंदू बनाम मुसलमान का बिगुल छेड़ दिया था। जिसमें बड़ी बात ये है कि योगी आदित्यनाथ के बयानों के वक्त ख़ुद को मुसलमानों का पालनहार कहने वाले प्रधानमंत्री मोदी भी मौजूद रहते थे।

यानी कहीं न कहीं आरएसएस के हिंदू राष्ट्र वाले सपने को धीरे-धीरे ही सही लेकिन भाजपा साकार करने में जुटी ज़रूर है।

क्योंकि सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि असम में भी इन दिनों मदरसों को आतंक का अड्डा बताया जा रहा है। पिछले 20 दिनों में असम के अंदर तीन मदरसे ढहाए जा चुके हैं। जबकि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा ख़ुद कह रहे हैं कि आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा नहीं दे सकते।

इसके जवाब में असम के धुबड़ी से लोकसभा सांसद अजमल ने कहा कि मदरसों को ढहाया जाना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, अगर जरूरत पड़ी तो इसके खि़लाफ़ उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट जाएगी। मदरसों में सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही नहीं दी जाती, वहां दूसरे सामान्य विषयों की भी पढ़ाई होती है। अगर मदरसों में चरमपंथी हैं तो सरकार उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करे। हम इसका विरोध नहीं करेंगे। लेकिन सिर्फ़ किसी चरमपंथी के वहां होने की वजह से मदरसा ढहा दिया जाए,ये मंज़ूर नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि देश की आजादी में मदरसों का अहम योगदान रहा है। इन मदरसों के उलेमाओं ने अंग्रेजों को यहां से निकलवाया था। मदरसों के लोगों ने गांधी जी को गांधी जी बनाया था। इसलिए इन मदरसों को नज़रअंदाज़ न करें।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में कथित चरमपंथी गतिविधियों में हाथ होने के आरोप में 37 लोगों की गिरफ्तारी के बाद इन मदरसों के खिलाफ ये कार्रवाई शुरू हो गई थी।

इससे पहले 29 अगस्त को होउली में जमीउल हुदा एकेडमी के नाम से चल रहे मदरसे को तोड़ दिया गया था। चार अगस्त को मोरीगांव में भी इसी नाम से चल रहे एक और मदरसे को गिराया गया था।

पिछले कुछ दिनों से असम में मदरसों को लेकर राजनीति गर्माई हुई है। इस महीने की शुरुआत में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने बताया था कि राज्य में 800 मदरसे हटा दिए गए हैं। बिस्वा ने कहा था कि असम इस्लामी कट्टरपंथियों का गढ़ बनता जा रहा है इसमें अब कोई शक नहीं रह गया है। जब आप चरमपंथियों के पांच मॉड्यूल को ध्वस्त कर देते हैं और पांच बांग्लादेशी नागरिकों का कोई अता-पता नहीं मिलता तब आप स्थिति की गंभीरता समझ सकते हैं।

असम की बात करें तो यहां इस्लाम मानने वालों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। यानी यहां कुल जनसंख्या के करीब 40 प्रतिशत लोग इस्लाम धर्म से ताल्लुक रखते हैं। इसके बावजूद अगर भाजपा यहां ऐसी हरकतें कर रही है और एक समाज को टारगेट कर रही है, तो मतलब साफ है कि मदरसों को गिराकर पूरे देश में संदेश दिया जा रहा है, कि आने वाले लोकसभा चुनाव हिंदुओं के सहारे ही लड़ा जाएगा।

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