गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने से आख़िर बदलेगा क्या?
साल 2014 में केंद्र में बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद से गाय और उससे जुड़े विवाद अक्सर ही सुर्खियों में रहते हैं। अब एक बार फिर गाय के इर्द-गिर्द चलने वाली बहस तेज़ हो गई है। इसे बढ़ाने में हाल ही में आई इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी ने काम किया है। बुधवार, 1 सितंबर को जैसे ही जस्टिस शेखर कुमार यादव ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात कही एक नया विवाद खड़ा हो गया।
आपको बता दें बीते सालों में गाय देश के लिए एक संवेदनशील मुद्दा रही है। गौकशी के शक में भीड़ द्वारा पीट-पीटर कई लोगों की जान तक ले ली गई। भीड़ की हिंसा और मॉब लिंचिंग की घटनाओं की रोकथाम के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में केंद्र सरकार से संसद में एक कानून लाने को कहा था। इसके साथ ही अदालत ने इन घटनाओं की रोकथाम, उपचार और दंडात्मक उपायों का प्रावधान करने के लिए अनेक निर्देश दिए थे।
तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि भीड़ की हिंसा के अपराधों से निपटने के लिए नए दंडात्मक प्रावधानों वाला कानून बनाने और ऐसे अपराधियों के लिए इसमें कठोर सज़ा का प्रावधान करने पर विचार करना चाहिए। इसके अलावा न्यायालय ने राज्य सरकारों से भी कहा था कि वे प्रत्येक ज़िले में पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को नोडल अधिकारी मनोनीत करें। हालांकि इस मामले में अब तक न तो कानून बन पाया है और न ही किसी को कठोर सज़ा मिली है। ऐसे में अब इलाहाबाद हाई कोर्ट की नई टिप्पणी ने लोगों के मन में कई सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान बुधवार को कहा कि गाय को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया जाना चाहिए। जज ने कहा कि गाय की भारतीय संस्कृति में अहम भूमिका है और पूरे देश में इसे मां का दर्जा दिया जाता है।
यह मामला 59 वर्षीय एक व्यक्ति पर मुकदमे से जुड़ा है, जिसे इसी साल मार्च में गोकशी के आरोप में उत्तर प्रदेश के संभल जिले से गिरफ्तार किया गया था। आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा कि गाय की रक्षा को हिंदुओं को मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए।
क्या-क्या कहा हाईकोर्ट ने?
जस्टिस यादव ने आरोपी की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि वह पहले भी गोकशी में सम्मिलित रहा है, जिसे सामाजिक सद्भाव को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि अगर आरोपी को रिहा किया गया तो वह फिर से वही अपराध करेगा।
अपने 12 पेज के फैसले में जस्टिस यादव ने कहा, "वेद और महाभारत जैसे भारत के प्राचीन ग्रंथों में गाय को महत्वपूर्ण रूप में दिखाया गया है। यही भारत की उस संस्कृति के प्रतीक हैं, जिसके लिए भारत जाना जाता है।”
उन्होंने कहा, "हालात को देखते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर देना चाहिए और गाय की सुरक्षा को हिंदू समाज का मूलभूत अधिकार बना देना चाहिए क्योंकि हम जानते हैं कि जब एक देश की संस्कृति और विश्वास को ठेस पहुंचती है तो देश कमजोर होता है।”
जस्टिस यादव ने कहा, "मूलभूत अधिकार सिर्फ गोमांस खाने वालों के ही नहीं होते बल्कि उनके भी होते हैं जो गायों की पूजा करते हैं और आर्थिक रूप से उन पर निर्भर हैं।”
जज ने देश में गोशालाओं की हालत पर भी टिप्पणी की और ऐसे लोगों पर भी गुस्सा जाहिर किया जो गोरक्षा की बात तो करते हैं लेकिन उसके दुश्मन बन जाते हैं। उन्होंने अपने आदेश में कहा, "सरकार गोशालाएं बनवा देती है लेकिन वहां जो लोग काम करते हैं वे गायों की देखभाल नहीं करते। इसी तरह निजी गोशालाएं आजकल बस दिखावे के लिए बनवाई जाती हैं।”
लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं
अब हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। कुछ लोग इसका स्वागत कर रहे हैं तो वहीं कुछ इसे धर्म विशेष और अपराध से भी जोड़कर देख कर रहे हैं।
बीजेपी की वरिष्ठ नेता और सांसद मेनका गांधी ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किए जाने की उच्च न्यायालय की सलाह का स्वागत किया है। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि पशुओं के प्रति उच्च अदालत की संवेदनशीलता प्रशंसनीय है। सरकारें जिस दिन पशु वध रोकने में कामयाब हों जाएंगी,उसी दिन इसकी सार्थकता सिद्ध होगी।
वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय सह संयोजक मनोज मेहता ने ट्विटर पर कहा, "अगर हिंदुत्व के स्वयंभू ठेकेदारों में जरा भी शर्म है तो उन्हें गाय के नाम पर राजनीतिक हिंसा बंद करनी चाहिए।”
"लाइव लॉ' वेबसाइट के मैनेजिंग एडिटर मनु सेबास्टियान ने एक ट्वीट में कहा, "तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मॉब लिंचिंग के खिलाफ संसद में एक कानून लाने को कहा था। अब तक नहीं हुआ है। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने और गोकशी को और सख्त अपराध बनाने को कहा है। देखते हैं कि यह होता है या नहीं।”
3 years ago the Supreme Court had urged Centre to bring a law in Parliament against mob lynching. That is not done yet.
Now Allahabad HC has asked for a Parliamentary law to make #cow the national animal & to make cow slaughter stricter offence. Let's see if it will be done.
— Manu Sebastian (@manuvichar) September 1, 2021
राष्ट्रीय प्रतीक की अपनी महत्ता है!
गौरतलब है कि भारत में कुल 13 राष्ट्रीय प्रतीक हैं, जिनमें राष्ट्रीय पशु भी एक है। राष्ट्रीय या राज्य पशु देश, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की पहचान को बताने और विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के प्रयासों को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश और अलग-अलग राज्यों के प्रतीक के रूप में एक विशेष जानवर और पक्षी का नामकरण करने की प्रथा 1970 के दशक से चली आ रही है। अभी तक भारत में राष्ट्रीय पशु बंगाल टाइगर है। अप्रैल 1973 में बाघों के संरक्षण के लिए जब रिज़र्व टाइगर बनाए गए थे तब उसे राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिला था। इसके साथ ही सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर का ऐलान भी किया था। इससे पहले शेर भारत का राष्ट्रीय पशु हुआ करता था।
मालूम हो कि गाय को लेकर पिछले सालों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जब कथित-गोरक्षकों ने गोकशी का आरोप लगाते हुए लोगों को पकड़ा और पीट-पीटकर मार डाला। मरने वालों में ज्यादातर गैर-हिंदू थे। जून, 2020 में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने एक अध्यादेश पारित किया था, जिसमें गोहत्या के लिए अधिकतम 10 साल के कठोर कारावास और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान था।
अक्टूबर 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने पाया था कि राज्य के गोहत्या कानून का बार-बार दुरुपयोग होने का खतरा था। कई मौकों पर अदालत ने कहा है कि एक आरोपी के कब्जे में पाए गए मांस को बिना किसी विश्लेषण के बीफ माना जाता था।
पिछले कुछ सालों में भारत के कई इलाकों में पशु व्यापार या जानवरों की खाल का काम करने वाले मुस्लिमों और वंचित जातियों के लोगों को खुद को गोरक्षक कहने वाले लोगों द्वारा गंभीर हिंसा का सामना करना पड़ा है। जो इस मामले को धर्म, राजनीति और अपराध से जोड़ देता है।
दुनियाभर में 'बीफ़' का सबसे ज़्यादा निर्यात करनेवाले देशों में से एक है भारत!
भारत की 80 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी हिंदू है जिनमें ज़्यादातर लोग गाय को पूजते हैं। गाय का देश में धार्मिक महत्व तो है ही लंबे समय तक खेती और एक आबादी की आजीविका का आधार रही हैं। लेकिन ये भी सच है कि दुनियाभर में 'बीफ़' का सबसे ज़्यादा निर्यात करनेवाले देशों में से एक भारत है। हालांकि देश के अधिकांश राज्यों में गो-वध पर पाबंदी है। देश के 29 राज्यों में से 24 पर गाय का मांस नहीं बिक सकता।
दरअसल 'बीफ़', बकरे, मुर्ग़े और मछली के गोश्त से सस्ता होता है। इसी वजह से ये ग़रीब तबक़ों में रोज़ के भोजन का हिस्सा है, ख़ास तौर पर कई मुस्लिम, ईसाई, दलित और आदिवासी जनजातियों के बीच। गो-हत्या पर कोई केंद्रीय क़ानून नहीं है पर अलग राज्यों में अलग-अलग स्तर की रोक दशकों से लागू है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में छुट्टा पशुओं को अन्ना पशु कहा जाता है, यहां सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में गोवंश चलते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह समस्या दूसरे जिलों तक भी पहुंच गई, जिससे निजात दिलाने के लिए सरकार ने गौशाला का भी निर्माण कराया लेकिन पूरी तरह से समस्या से मुक्ति नहीं मिल पायी। अब ये किसानों और सड़क पर चल रहे लोगों के लिए एक बड़ी समस्या हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किए जाने से गायों से जुड़ी कई समस्याएं और मुद्दे खत्म हो जाएंगे? क्या उनकी दशा और दुर्दशा में कोई परिवर्तन आएगा?
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