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ख़बरों के आगे-पीछे :  राहुल नार्वेकर अब 'गवली गैंग’ में शामिल

गवली परिवार का हिस्सा बने नार्वेकर ने यह भी कहा है कि वे गीता गवली को मुंबई का मेयर बनवाएंगे। 
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फाइल फोटो : द टेलीग्राफ

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की पार्टी को असली शिव सेना और अजित पवार की पार्टी को असली एनसीपी की मान्यता देने वाले महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने कहा है कि अब वे अरुण गवली के परिवार का हिस्सा हो गए हैं। एक तरफ जहां भाजपा के तमाम नेता मोदी के परिवार के हिस्सा बन रहे हैं, वहीं भाजपा नेता और लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे राहुल नार्वेकर गवली परिवार का हिस्सा हो गए हैं। हालांकि अभी भाजपा ने उनकी उम्मीदवारी घोषित नहीं की है लेकिन उससे पहले वे गवली के परिवार का हिस्सा बन गए है। मुंबई के अंडरवर्ल्ड में एक नाम अरुण गवली उर्फ अरुण गुलाब अहीर का भी है, जो लंबे समय से जेल में है। उन्होंने अखिल भारतीय सेना नाम से एक पार्टी बनाई थी। उनकी पत्नी आशा गवली विधायक और बेटी गीता गवली पार्षद रही है। गवली गैंग का संचालन दगड़ी चाल से होता था। दक्षिण मुंबई के भायखला और परेल के इलाके में उसका अच्छा असर था। गवली परिवार का हिस्सा बने नार्वेकर ने यह भी कहा है कि वे गीता गवली को मुंबई का मेयर बनवाएंगे। पिछले 25 साल से भाजपा इस प्रयास में है कि किसी तरह से मुंबई नगर निगम पर उसका कब्जा हो और उसका मेयर बने लेकिन राहुल नार्वेकर एक पार्षद वाली पार्टी की नेता गीता गवली को मेयर बनवा रहे हैं! इससे पता चल रहा है कि महाराष्ट्र में राजनीतिक हालात कैसे हैं और भाजपा के नेता चुनाव लड़ने की कैसी तैयारी कर रहे हैं।

सजायाफ्ता दिलीप रे को भाजपा के उम्मीदवार

भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत से सजा पाए होने के बावजूद भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से इंतजार हो रहा था कि दिलीप रे चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं और जब दिल्ली हाई कोर्ट उनकी सजा पर रोक लगा दी तो इस बात का इंतजार हो रहा था कि भाजपा उन्हें टिकट देती है या नहीं। यह इंतजार इसलिए हो रहा था क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत जोर-शोर से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे और कह रहे थे कि भ्रष्टाचारियों को वे छोड़ेंगे नहीं। अब इंतजार खत्म हो गया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ फर्जी लड़ाई के बीच भाजपा ने दिलीप रे को ओडिशा की राउरकेला सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतार दिया है। ओडिशा के नेता और कारोबारी दिलीप रे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कोयला राज्यमंत्री थे और उसी समय उन पर झारखंड में कोल ब्लॉक के आवंटन में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। दिसंबर 2020 में सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया था और सजा दे दी थी। इसके बाद उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग गई थी। लेकिन कुछ समय पहले ही दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी और उसके बाद भाजपा ने उनको राउरकेला सीट से उम्मीदवार बना दिया। इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी पूरी शर्मनिरपेक्षता के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने से लड़ने का दावा करते रहेंगे।

चुनावी बॉन्ड पर मोदी का बेमिसाल झूठ

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी झूठ बोलने या गलत बयानी करने के नए-नए कीर्तिमान बना रहे हैं। शायद उन्हें भी लगने लगा है कि इस चुनाव के बाद वे प्रधानमंत्री के रूप में झूठ नहीं बोल पाएंगे। उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई को पहले तैयार सवाल-जवाब के आधार दिए इंटरव्यू में चुनावी बॉन्ड योजना का बचाव करते हुए कहा है कि इसे राजनीति में काला धन रोकने के लिए लाया गया था। हालांकि इसके जो आंकड़े सामने आए हैं उनसे पता चला है कि कितनी ही कंपनियां सिर्फ बॉन्ड खरीद कर चंदा देने के लिए बनी। तीन साल से कम पुरानी कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन करके चंदा दिया। कई कंपनियों ने अपने मुनाफ़े के सौ गुना तक चंदा दिया। घाटे में चल रही कई कंपनियों ने भी मोटा चंदा दिया। यह भी खबर आई कि कई सौ करोड़ के बॉन्ड किसने खरीदे, यह पता ही नहीं है। एक रिपोर्ट यह भी आई कि कुछ किसानों से मुआवजे के कागज पर दस्तखत कराए गए और उनके नाम पर चुनावी बॉन्ड खरीद लिए गए। इन खबरों से चुनावी बॉन्ड में काले धन का खूब इस्तेमाल होने की पुष्टि होती है। लेकिन इस सबके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने इंटरव्यू में दिलचस्प तर्क यह दिया कि इस कानून की वजह से लोग चंदा देने वालों को जान पा रहे हैं। हकीकत यह है कि इस कानून में प्रावधान किया गया था कि चंदा देने वालों के बारे में किसी को जानकारी नहीं दी जाएगी। जब इसको चुनौती दी गई तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जनता को यह जानने का हक नहीं है कि किस पार्टी को किसने चंदा दिया। अदालत में सरकार ने हर तरह से इसकी गोपनीयता बनाए रखने का प्रयास किया लेकिन जब अदालत के फैसले से सब कुछ सार्वजनिक हो गया तो प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि इस कानून की वजह से लोग चंदा देने वालों को जान पा रहे हैं। असलियत यह है कि कानून की वजह से नहीं, बल्कि अदालत के फैसले की वजह से लोग चंदा देने वालों की हकीकत जान पा रहे हैं।

दिल्ली में गठबंधन है मगर तालमेल नहीं!

राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन है, लेकिन दोनों पार्टियों के बीच तालमेल का अभाव है। अभी आम आदमी पार्टी का फोकस अपने कोटे की चार सीटों- नई दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली पर है। कांग्रेस के कोटे में उत्तर पूर्वी दिल्ली, चांदनी चौक और उत्तर पश्चिमी दिल्ली की सीट है, जिस पर छह दिन पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा हुई है। कांग्रेस के उम्मीदवारों की घोषणा के बाद लग रहा था कि दोनों पार्टियों का साझा प्रचार शुरू होगा लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसने दो ऐसा उम्मीदवार उतारे हैं, जिनका कांग्रेस से पुराना नाता नहीं है और इसलिए कांग्रेस संगठन में उनकी पकड़ नहीं है। उदित राज 2014 में भाजपा की टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीते थे और 2019 के बाद कांग्रेस में आए हैं तो कन्हैया कुमार भी 2019 का चुनाव बिहार में सीपीआई की टिकट पर लड़े थे और उसके बाद कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इन दोनों को कांग्रेस संगठन से मजबूत समर्थन तो चाहिए ही साथ ही आम आदमी पार्टी की भी मदद चाहिए तभी से अच्छे से चुनाव लड़ पाएंगे। कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार जयप्रकाश अग्रवाल दिल्ली से सांसद और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। इसलिए उनके लिए ज्यादा समस्या नहीं है। उनकी चांदनी चौक लोकसभा सीट भी छोटी है। लेकिन अगर आम आदमी पार्टी अपनी सीटों पर ध्यान केंद्रित किए रहेगी तो कन्हैया कुमार और उदित राज के लिए मुश्किल होगी।

पत्नी को तैयार कर रहे हैं केजरीवाल

आम आदमी पार्टी ने गुजरात के लिए स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। इसमें तीन ऐसे नेताओं के नाम हैं, जो जेल में हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में है। केजरीवाल को उम्मीद है कि अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिल सकती है। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी और ईडी की हिरासत में भेजे जाने को चुनौती दी थी, जिस पर हाई कोर्ट ने उन्हें राहत नहीं दी। सुप्रीम कोर्ट ने भी पहली सुनवाई में राहत नहीं दी है और अब 29 अप्रैल को उनकी याचिका पर सुनवाई होगी। दूसरी ओर मनीष सिसोदिया ने अदालत से अंतरिम जमानत मांगी है ताकि वे लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार कर सके। सत्येंद्र जैन स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर थे लेकिन बाद में उनकी जमानत रद्द हो गई। अभी तत्काल उनकी रिहाई के आसार नहीं दिख रहे हैं। बहरहाल, सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में अरविंद केजरीवाल के बाद दूसरा नाम उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल का है, जबकि जमानत पर जेल से बाहर आए पार्टी के सबसे मुखर नेता और सांसद संजय सिंह का नाम सूची में सातवें नंबर पर है। ऐसा लग रहा है कि अरविंद केजरीवाल धीरे-धीरे अपनी पत्नी को अपनी जगह लेने के लिए तैयार कर रहे हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल को राहत नहीं मिलती है तो सुनीता केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बन सकती हैं।

सबका अपना अपना रामराज्य

दिल्ली में अब रामराज्य को लेकर विवाद मचा हुआ है। दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी ने एक वेबसाइट लॉन्च की है, जिसका नाम रखा है 'आप का रामराज्य’। पार्टी इस वेबसाइट के जरिए बता रही है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार का सारा काम रामराज्य की तर्ज पर हो रहा है। पार्टी का कहना है कि उसने लोगों को जो स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई है, जिस तरह की शिक्षा की व्यवस्था की है, पानी और बिजली फ्री किया है उससे लोगों का जीवन बहुत आसान हो गया है और यही रामराज्य की अवधारणा है। हालांकि उसके सारे दावे बहस का विषय है। फिर भी आम आदमी पार्टी का प्रचार भाजपा की नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त है। इसीलिए भाजपा की ओर से आम आदमी पार्टी को टारगेट किया गया है। लेकिन भाजपा का निशाना उसके दावों पर कम और रामराज्य का जिक्र करने पर ज्यादा है। भाजपा को यह चिंता सता रही है कि कहीं दिल्ली के लोग सचमुच केजरीवाल को रामराज्य लाने वाला न समझ लें। उसे अपना कोर हिंदुत्ववादी वोट टूटने की आशंका सता रही है। इसलिए भाजपा ने कहा है कि दिल्ली सरकार को रामराज्य कहना भगवान राम का अपमान है। सवाल है कि रामराज्य अगर एक बेहतर शासन की अवधारणा है तो कहीं की भी सरकार इसका दावा कर सकती है या उस रूपक का इस्तेमाल कर सकती है। भाजपा भी तो आखिर रामराज्य लाने की ही बात कर रही है! कुल मिलाकर भाजपा का मकसद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को किसी भी तरह सनातन विरोधी ठहराना है। 

रामनवमी मनाने में भाजपा पर तृणमूल भारी

ऐसा नहीं है कि भाजपा को सिर्फ दिल्ली में आम आदमी पार्टी के रामराज्य के प्रचार से दिक्कत है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने उसे अलग परेशानी में डाला है। भाजपा के शीर्ष नेता, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी कह रहे थे कि पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की सरकार रामनवमी के जुलूस रोकने की कोशिश कर रही है। लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी ने 17 अप्रैल को यानी रामनवमी के दिन सारा सीन ही पलट दिया। रामनवमी जुलूस निकालने में वह भाजपा पर भारी पड़ गई। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और अलग अलग सीटों से चुनाव लड़ रह प्रत्याशियों ने अपने-अपने इलाके में रामनवमी के जुलूस निकाले और राम नाम का जाप किया। हावड़ा सीट से तृणमूल कांग्रेस के सांसद प्रसून बनर्जी ने अपने चुनाव क्षेत्र में रामनवमी का बहुत बड़ा जुलूस निकाला। इसी तरह बीरभूम की सांसद और तृणमूल की प्रत्याशी शताब्दी रॉय ने भी अपने क्षेत्र में बड़ा जुलूस निकाला। सो, तृणमूल कांग्रेस जूलूस निकालने से रोक रही है, यह प्रचार पंक्चर हुआ। हालांकि रामनवमी के दिन भी भाजपा के कुछ नेता इसका जाप कर रहे थे लेकिन ज्यादातर नेताओं ने दूसरा राग शुरू कर दिया। अब वे कह रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस ने मजबूरी में रामजी की पूजा की, रामनवमी मनाई और जुलूस निकाला है। अब मजबूरी में जुलूस निकाला या श्रद्धा से निकाला, यह बाद की बात है लेकिन अभी तृणमूल कांग्रेस रामनवमी मनाने के मामले में भाजपा पर भारी पड़ी है।

हिमाचल में कांग्रेस का जोखिमभरा दांव

कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में अपने दो विधायकों को लोकसभा चुनाव में उतार कर बड़ा जोखिम लिया है। अभी 68 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ 34 विधायक हैं। यानी बहुमत से एक कम। फिर भी पार्टी दो विधायकों को लोकसभा का चुनाव लड़ा रही है। गौरतलब है कि कांग्रेस के छह विधायकों ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया था। कांग्रेस की शिकायत पर विधानसभा स्पीकर ने उनकी सदस्यता समाप्त कर दी थी। उनकी खाली हुई सभी छह सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं। इसके अलावा राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोट करने वाले तीन निर्दलीय विधायकों ने भी इस्तीफा दिया है, जिस पर स्पीकर को फैसला करना है। बहरहाल, कांग्रेस यह कांफिडेंस दिखा रही है कि उसके छह बागी विधायकों की सीट पर हो रहे उप चुनाव में वह जीत जाएगी और उसका फिर से सदन में बहुमत हो जाएगा। इसलिए दो विधायकों को चुनाव लड़ाया गया है। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा? कांग्रेस के नेता दावा कर रहे है कि छह में से दो-तीन सीटें कांग्रेस आराम से जीत जाएगी। अगर नहीं जीती तब तत्काल तीनों निर्दलीय विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाएगा ताकि सदन 65 सदस्यों का रहे और बहुमत का आंकड़ा 33 का रहे। अगर लोकसभा का चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के दोनों विधायक जीतते हैं तो कांग्रेस के विधायकों की संख्या 32 रह जाएगी। ऐसे में उसे साधारण बहुमत के लिए भी विधानसभा उप चुनाव में कम से कम तीन सीटें जीतनी होंगी।

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