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तिरछी नज़र: न आर, न पार, पूरे चार सौ बीस, इस बार

'न आर, न पार, चार सौ बीस इस बार', पर तो सरकार जी द्वारा अमल भी शुरू हो चुका है। सरकार जी को तो सूरत चाहिए, खजुराहो चाहिए।
Modi
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार- पीटीआई

सरकार जी ने नारा दिया है, अबकी बार, चार सौ पार। यह नारा सरकार जी ही नहीं लगा रहे हैं, सरकार जी के मंत्री भी यही नारा लगा रहे हैं, पार्टी के पदाधिकारी भी यही नारा लगा रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता भी यही नारा लगा रहे हैं। और तो और, गोदी मीडिया के एंकर भी यही नारा लगा रहे हैं। 

लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं। सात फेज में होने हैं और पहले फेज की तो वोटिंग भी हो चुकी है। यह नारा इसी चुनाव के लिए लगाया जा रहा है। अंदाजा यह लगाया जा रहा है कि यह नारा लोकसभा की सीटों की संख्या के लिए लगाया जा रहा है कि भाजपा की इस बार लोकसभा के चुनाव में चार सौ से अधिक सीटें आएँगी। पर क्या सचमुच ही यह नारा इसके लिए ही लगाया जा रहा है। मुझे तो नहीं लगता है।

मुझे तो लगता है कि यह नारा लगाया जा रहा है कीमतों के लिए। मतलब अबकी बार अरहर की दाल, चार सौ पार। हमारी सरकार लाओ, और दाल चार सौ रुपये पार पाओ। दो सौ रूपये पार तो पिछली बार जीतने पर हो गई थी तो इस बार जीते तो चार सौ पार। यही सरकार जी ने खाद्य तेलों के बारे में सोचा। सरसों का तेल हो या रिफाइंड आयल, पिछली बार दो सौ पार हुआ था तो इस बार सरकार बनी तो चार सौ पार जाना ही चाहिए, यही सरकार जी का संकल्प है। यही संकल्प पत्र है।

पेट्रोल और डीज़ल, यह चार सौ पार लगाना जरा मुश्किल है। एक सौ दस-पंद्रह तक तो जनता झेल भी चुकी है और जिता भी चुकी है। भक्त तो डेढ़ सौ, ढाई सौ तक के लिए भी तैयार हैं। बस जनता को तैयार करना है। अकेले पेट्रोल और डीज़ल भले ही न पहुंचे पर दोनों को मिला कर तो चार सौ पार पहुँचाया ही जा सकता है। सरकार जी के लिए तो यह बाएं हाथ का खेल है। तो सरकार जी जब चार सौ पार की बात करते हैं तो इन्हीं कीमतों, इन्हीं के चार सौ पार करने की बात करते हैं।

सरकार जी जब 2014 में आये थे तो डॉलर की बात कर के आये थे, डॉलर की कीमत की बात कर के आये थे। नहीं, नहीं, डरो मत। मत सोचो कि डॉलर भी चार सौ पार चला जायेगा। नहीं, नहीं, एक डॉलर चार सौ के पार नहीं जायेगा। सरकार जी जानते हैं, रुपया गिरता है तो सरकार जी गिरते हैं, देश की इज्जत गिरती है। तो सरकार जी धीरे धीरे गिरेंगे। देश की इज्जत भी धीरे धीरे गिराएंगे। एक डॉलर चार सौ पार का प्लान तो 2047 का है। अभी तो चार डॉलर चार सौ पार करने की, कराने की गारंटी है। सरकार जी की गारंटी है। 

हमारे सरकार जी महंगाई कितनी भी बढ़ा सकते हैं। किसी भी चीज का रेट चार सौ के पार ले जा सकते हैं। 'अबकी बार, चार सौ पार' का नारा बस यही है। फर्क है तो यह है कि किसी चीज को 2025 तक चार सौ पार ले जायेंगे तो किसी को 2029 तक और किसी को 2047 तक। सरकार जी की गारंटी है कि सबको चार सौ पार पहुंचायेंगे। आटा जो अभी चार सौ में दस किलो आता है, सरकार जी उसका दाम भी चार सौ रुपये में एक किलो तक पहुंचा कर ही दम लेंगे।

सरकार जी ने 'अबकी बार, चार सौ पार' का जो नारा दिया है, लोकसभा के चुनाव के मद्देनज़र तो हरगिज़ ही नहीं दिया है। वह तो महंगाई के लिए ही दिया है। अबकी बार आये तो सबकुछ चार सौ पार। लोकसभा की सीटों के लिए नारा देते तो कहते, अबकी बार चार सौ बीस। 'न आर, न पार, पूरे चार सौ बीस इस बार'। यह यह कार्यकर्ताओं में अधिक उत्साह भरता। चार सौ बीस भी तो चार सौ के पार ही होता है ना।

न आर, न पार; पूरे चार सौ बीस इस बार; यह नारा देते तो ऊपर से नीचे तक एक काम का सन्देश जाता। और काम कैसे करना है, यह सन्देश भी जाता। टारगेट तक पहुंचने के लिए कैसे काम करना है, उसे अचीव करने के लिए क्या क्या करना है, यह सरकार जी को तो पता ही है, सरकार जी वैसे ही काम कर रहे हैं,आम कार्यकर्ता को भी पता चल जाता और वह भी वैसे ही काम करता। 

'न आर, न पार, चार सौ बीस इस बार', पर तो सरकार जी द्वारा अमल भी शुरू हो चुका है। सरकार जी का दिल सिर्फ ईडी और आयकर के छापों से, अंधाधुंध गिरफ़्तारियों से, बैंक अकाउंट सीज़ करने जैसी चीजों से नहीं भर रहा है। सरकार जी को तो सूरत चाहिए, खजुराहो चाहिए। सरकार जी को चार सौ बीस सीट चाहिए। चाहे उसके लिए चार सौ बीसी चाहिए।

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