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कांग्रेस अध्यक्ष होगा कौन? गांधी या ग़ैर-गांधी

लंबे वक़्त के बाद आख़िरकार कांग्रेस ने अध्यक्ष पद के लिए चुनावी तारीख़ की घोषणा कर दी है। इस बीच राहुल गांधी को मनाने की भी क़वायद तेज़ हो गई है।
congress
फाइल फ़ोटो।

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का वजूद धीरे-धीरे आलोचनाओं की धूल से धुंधला होता जा रहा है। शायद ही ऐसा कोई दिन होता हो, जब पार्टी का अपना ही कोई पार्टी की आलोचना न करता हो। कभी 50 साल तक पार्टी का साथ निभाने वाले ग़ुलाम नबी आज़ाद बेहद तल्ख़ टिप्पणियों के साथ ख़ुद को अलग कर लेते हैं, तो कभी पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चौहाण, मनीष तिवारी और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता ऐसे वाक़्यात बयां कर देते हैं, कि वो कब पार्टी को अलविदा कह जाएं कुछ पता नहीं।

इन वरिष्ठ नेताओं की टिप्पणियां और पार्टी को छोड़ जाना, कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है, लेकिन ग़ौर करने वाली बात ये है कि इन सबकी और ज़्यादातर नाराज़ कांग्रेसियों की शिकायत में एक समानता है, वो ये कि कांग्रेस के पास मज़बूत लीडरशिप नहीं है। यानी कांग्रेस जैसी विशाल पार्टी को चलाने वाला एक अध्यक्ष तक नहीं है। अगर कुछ है तो वो सिर्फ़ गांधी परिवार के इर्द गिर्द घूमता है।

हालांकि अब ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार से इतर किसी मुखिया को चुनने की ओर अग्रसर है, जिसको लेकर पार्टी अध्यक्ष के लिए चुनावी तारीख़ का ऐलान भी कर दिया गया है।

कांग्रेस के मुताबिक़ आने वाले 17 अक्टूबर को पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होंगे। जबकि 19 अक्टूबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव से संबंधित तारीख़

नोटिफ़िकेशन: 22 सितंबर

नॉमिनेशन: 24 सितंबर से 30 सितंबर

चुनाव: 17 अक्टूबर

नतीजे: 19 अक्टूबर

इन तमाम तारीख़ों के अलावा एक शर्त ये भी है कि अगर अध्यक्ष पद के लिए सिर्फ़ एक उम्मीदवार होता है तो 30 सितंबर को ही नतीजों की घोषणा की जा सकती है। जिसकी ज़्यादा उम्मीद भी है।

ख़ैर, तारीखों का ऐलान हो गया है लेकिन कांग्रेस पार्टी के भीतर ऐसा कोई भी चुनाव करा कर अध्यक्ष चुनना आसान काम नहीं है, जिसमें गांधी परिवार की हिस्सेदारी नहीं है। ऐसा हम क्यों कह रहे हैं? इसका जवाब भी एक सवाल के साथ शुरु होता है कि, अगर ग़ैर-गांधी पार्टी का अध्यक्ष होगा तो राहुल गांधी की भूमिका पार्टी में क्या होगी।

आपको याद होगा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के लिए राहुल गांधी ने नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। जिसके बाद न चाहते हुए भी सोनिया गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कमान संभालनी पड़ी थी। अब क्योंकि सोनिया गांधी की तबीयत ठीक नहीं रहती ऐसे में वो ज़मीनी राजनीति में इतनी सक्रिय नहीं हो सकीं। जिसका नतीजा ये रहा कि कांग्रेस पार्टी एक के बाद एक कई विधानसभा चुनाव हार गई। हालांकि फ्रंट पर राहुल गांधी ही रहे हैं, और कांग्रेसी कहते हैं कि वे उन्हें ही अपना नेता मानते हैं। इसलिए वे बार-बार राहुल गांधी से फिर से अध्यक्ष पद संभालने की सिफारिश भी करते हैं।

दूसरी ओर आने वाले दिनों में कांग्रेस मंहगाई के ख़िलाफ़ दिल्ली में बड़ी रैली करने वाली है, वहीं कांग्रेस की ‘’भारत जोड़ो यात्रा’’ की शुरुआत भी सितंबर महीने में होगी। और इन सबकी अगुवाई राहुल गांधी ही करेंगे। अब सवाल ये है कि जब कांग्रेस के सभी बड़े कामों की अगुवाई राहुल गांधी ख़ुद कर रहे हैं, तो पार्टी में ग़ैर गांधी अध्यक्ष की बात कांग्रेसी नेता कितनी सुनेंगे। या फिर सत्ता पक्ष की भाषा में यूं कह दिया जाए कि ग़ैर-गांधी अध्यक्ष महज़ कठपुतली होगा। जिसका रिमोट राहुल या सोनिया गांधी के पास ही होगा।

ऐसा हम किस लिए कह रहे हैं, ये जानने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बयान काफ़ी हैं। चुनाव की तारीख़ घोषित हो चुकी हैं, किसी को भी नॉमिनेशन करने का हक दे दिया गया है इसके बावजूद अशोक गहलोत और हरीश रावत जैसे नेता कह रहे हैं, कि वो आख़िरी वक्त तक राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के लिए मनाने की कोशिश करेंगे।

सवाल ये भी बड़ा है कि जब ज़्यादा कांग्रेसी राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाना चाहते हैं तो फिर वो किसी का मान क्यों नहीं रहे हैं और क्यों इस पद से दूर भाग रहे हैं?

पहला कारण

दरअसल कांग्रेस में जी-23 समूह हो या पुराने कांग्रेसी, एक धड़ा हमेशा से राहुल गांधी के नेतृत्व और उनकी कार्यशैली को लेकर सवाल खड़े करता रहा है। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने भी राहुल गांधी पर अपरिपक्व और बचकाना व्यवहार करने का आरोप लगाया था। कांग्रेस को छोड़कर जाने वाले नेता चाहे वो कपिल सिब्बल हों या जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह हों बलराम जाखड़, लगभग सभी नेताओं ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं। उन लोगों का कहना है कि कांग्रेस अब परिवार की पार्टी हो गई है। राहुल पर यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने अध्यक्ष बनने के बाद से पुराने कांग्रेसियों को साइडलाइन करना शुरू कर दिया।

दूसरा कारण

राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद से अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी पार्टी की कमान संभाल रही हैं। राहुल गांधी के शीर्ष नेतृत्व का हिस्सा बनने के बाद से कांग्रेस 49 में से 39 विधानसभा चुनावों में और दो लोकसभा चुनावों में हार चुकी है।

इन दो कारणों के अलावा और बहुत सी बातें हो सकती हैं जो राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के लिए अखरती हों। जिसमें से एक बात इतिहास को याद करते हुए जोड़ देना बहुत ज़रूरी है कि जिस तरह राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा की अगुवाई करने वाले हैं, ऐसे ही 1983 में चंद्रशेखर ने भी पदयात्रा निकाली थी। बाद में वे भारत के आठवें प्रधानमंत्री भी बने। आपको बता दें कि जब चंद्रशेखर ने पदयात्रा की शुरुआत की थी तब उनकी पार्टी समेत बाक़ी नेताओं ने भी ख़ूब मज़ाक बनाया था, लेकिन उनकी यात्रा में वो ताक़त थी कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय कर लिया।

कौन बन सकता है पार्टी का अध्यक्ष

वैसे तो चर्चा ग़ैर गांधी परिवार से अध्यक्ष को लेकर चल रही है और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस सूची में आगे भी चल रहे हैं, इसके अलावा कई और भी ऐसे बड़े नेता हैं जो नॉमिनेशन कर सकते हैं। हालांकि जिस तरह से वरिष्ठ कांग्रेसियों के राहुल गांधी के पक्ष में बयान आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अंतत: राहुल गांधी को मानना ही पड़ेगा।

आपको बता दें जब कुछ दिनों पहले कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद की क़वायद तेज़ हुई थी, तब ऐसी ख़बरें सामने आई थीं कि पार्टी के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर सोनिया गांधी ही रहेंगी, जबकि दक्षिण भारत और उत्तर भारत में दो-दो पार्टी के उपाध्यक्ष बनाए जाएंगे। जिसमें दक्षिण भारत के लिए कर्नाटक से आने वाले राज्य सभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और केरल से आने वाले गांधी परिवार के क़रीबी रमेश चेनिथला का नाम सुझाया गया था। जबकि उत्तर भारत के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राजस्थान के ही युवा चेहरा सचिन पायलट का नाम आगे आया था। हालांकि इस फ़ॉर्मूले पर बाद में ज़्यादा चर्चा सुनाई नहीं दी।

इसके अलावा ये बात भी याद करना ज़रूरी है कि कुछ महीनों पहले जब रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस पार्टी को अपना प्रजेंटेशन दिया था, तब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के लिए सोनिया गांधी को ही अपनी पहली पसंद बताया था और उपाध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की बात कही थी। हालांकि प्रशांत किशोर की बात कांग्रेस पार्टी के साथ बन नहीं पाई थी।

वैसे तो कांग्रेस पार्टी के संविधान के मुताबिक़ हर पांच साल पर अध्यक्ष बदला जाना चाहिए लेकिन पिछले 21 सालों से कोई चुनाव नहीं कराया गया है। इससे पहले भी कांग्रेस के इतिहास में महज़़ दो बार ही अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए हैं, जबकि ज़्यादा वक़्त तक नेहरू-गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है।

आज़ादी के 75 सालों में 40 साल नेहरू-गांधी परिवार से कोई न कोई अध्यक्ष रहा तो 35 साल पार्टी की कमान गांधी-परिवार से बाहर रही। पिछले तीन दशक में सिर्फ दो ही मौके ऐसे आए हैं जब चुनाव कराने की ज़रूरत पड़ी हो।

पहला 1997 में सीताराम केसरी के ख़िलाफ़ शरद पवार और राजेश पायलट ने पर्चा भरा था, इस चुनाव में सीताराम केसरी 6224 वोट पाकर जीत गए थे। वहीं पवार को 882 और राजेश पायलट को 354 वोट मिले थे।

दूसरी बार चुनाव साल 2000 में हुआ था। तब सोनिया गांधी को कांग्रेस के भीतर से दिग्गज नेता जीतेंद्र प्रसाद से चुनौती मिली, हालांकि सोनिया गांधी को 7448 वोट मिले और वो पार्टी अध्यक्ष बनीं। वहीं प्रसाद को कुल 94 वोट मिले।

कैसे होता है चुनाव?

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव और देश में होने वाले चुनाव में ज़्यादा फर्क नहीं है। सबसे पहले चुनाव के लिए सेंट्रल इलेक्शन अथॉरिटी के अध्यक्ष यानी सीईए का गठन किया जाता है। सीईए का अध्यक्ष कौन होगा, इस टीम में किसे शामिल किया जाएगा, इसके लिए मौजूदा पार्टी अध्यक्ष और कांग्रेस वर्किंग कमेटी मिलकर फैसला करते हैं। अथॉरिटी का गठन हो जाने पर इसी के सदस्य पूरा चुनावी ख़ाका तैयार करते हैं।

वोट कौन डाल सकता है?

कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव की शुरूआत सदस्यता अभियान से होती है। यह अभियान क़रीब एक साल तक चलता है। सदस्यता अभियान पूरा होने के बाद बूथ कमेटी और ब्लॉक कमेटी बनाई जाती है। इसके बाद ज़िला संगठन बनाया जाता है। इन कमेटियों का गठन भी चुनाव के आधार पर किया जाता है। कई बार इन्हें निर्विरोध भी चुन लिया जाता है। ब्लॉक कमेटी और बूथ कमेटी मिलकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रतिनिधि या पीसीसी डेलिगेट्स चुनते हैं। हर ब्लॉक से एक प्रतिनिधि का चुनाव किया जाता है। इसके बाद हर 8 पीसीसी पर एक केंद्रीय कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधि या एआईसीसी डेलिगेट चुना जाता है। एआईसीसी और पीसीसी का अनुपात एक और आठ का होता है। पीसीसी डेलिगेट्स के वोटों से ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष और पार्टी अध्यक्ष के चुनाव किया जाता है।

कौन लड़ सकता है चुनाव?

कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति चुनाव के लिए हर प्रदेश में एक रिटर्निंग अधिकारी और एक से दो एपीआरओ यानी राज्यों के आकार के मुताबिक़ असिस्टेंट प्रदेश रिटर्निंग अफसर नियुक्त किए जाते हैं। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस समिति के सदस्य अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावक बनते हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के किसी भी व्यक्ति को बतौर प्रस्तावक 10 पीसीसी डेलिगेट्स का समर्थन हर हाल में चाहिए होता है। ऐसे में कांग्रेस के किसी भी सदस्य को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना है तो उसे पहले 10 पीसीसी डेलिगेट्स को अपने समर्थन में जुटाना होगा। उम्मीदवारों के नामों को रिटर्निंग अधिकारी के पास भेजा जाता है और चुनाव के लिए एक तारीख़ निर्धारित की जाती है।

फ़िलहाल देश की सबसे पुरानी पार्टी के हालात इन दिनों बेहद गंभीर हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन चुना जाएगा। क्योंकि ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अध्यक्ष चाहे गांधी परिवार से हो या ग़ैर-गांधी परिवार से कांग्रेस के नेताओं से समन्वय बैठा पाना थोड़ा मुश्किल ज़रूर होगा।

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