क्यों उपेक्षित और तिरस्कृत हैं हमारे सफ़ाई-सैनिक?
कोरोना काल में सफ़ाई-सैनिक भी अपनी जान जोखिम में डाल कर सफ़ाई व्यवस्था का मोर्चा संभाल रहे हैं। कोरोना वॉरियर्स के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। देश भर में कई सफ़ाई-सैनिक कोरोना से लड़ते हुए शहीद भी हो चुके हैं। फिर भी वे साफ़-सफ़ाई रखकर हमें कोरोना के संक्रमण से यथासंभव बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
बावजूद इसके इनकी उपेक्षा की जा रही है। ये तिरस्कृत हो रहे हैं। हाल ही में दक्षिण दिल्ली नगर निगम के सफ़ाई सैनिक विनोद की कोरोना से मौत हो गयी। इससे पहले पूर्वी दिल्ली की सफ़ाई सैनिक दया भी कोरोना संक्रमण के कारण अपनी जान गंवा चुकी हैं। गौरतलब है कि इसी नगर निगम की कोरोना संक्रमित संगीता और सुनीता लोकनायक जय प्रकाश अस्पताल में मौत से जूझ रही हैं। सफ़ाई कर्मचारी एक्शन कमेटी के वीरेंदर सिंह का आरोप है कि विनोद की मौत के लिए निगमायुक्त ज्ञानेश भारती जिम्मेदार हैं। क्योंकि बार-बार गुहार लगाने पर भी सफ़ाई कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराये जा रहे। कमेटी ने पहले चेताया था कि अगर किसी की मौत होती है तो इसके लिए निगमायुक्त जिम्मेदार होंगे। फिर भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया। यह तो राजधानी दिल्ली का हाल है।
दिल्ली से बाहर भी उनका तिरस्कार किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा में सुनहरी मस्जिद के पास मोहल्ला कटरा में तीन सफ़ाई कर्मचारियों की मोहल्ले वालों ने सिर्फ इसलिए पिटाई कर दी कि वे ट्राली में कूड़ा डालने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग यानी दूरी बनाने की अपील कर रहे थे।
आखिर क्यों होता है ऐसा कि सरकारी अफ़सरान इन सफ़ाई सैनिकों की सुरक्षा के प्रति इतनी लापरवाही बरतते हैं कि इसकी कीमत इन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है? क्यों बिना किसी ग़लती के मोहल्ले के लोग उनकी पिटाई कर देते हैं?
इसकी जड़ें सामाजिक व्यवस्था में हैं। व्यवस्था ने इन्हें सदियों से अपना गुलाम बनाकर रखा है। इनका शोषण किया है। इन्हें इनके हक़ के संसाधनों से वंचित रखा है। शिक्षा से वंचित रखा है। इसका परिणाम है कि आज ये गरीबी और अशिक्षा के शिकार हैं। जातिवादी मानसिकता के कारण शासन-प्रशासन भी इनकी ओर से आँखें मूंदे रहता है। कितना अजीब है कि जो सफ़ाई सैनिक हमें कूड़े में व्याप्त विभिन्न बीमारियों के कीटाणुओं-विषाणुओं से हमारी रक्षा करते हैं। हमें बचाते हैं। अपनी जान जोखिम में डालते हैं उनकी ही हम उपेक्षा करते हैं। उनका ही तिरस्कार करते हैं। उनको ही मरने के लिए छोड़ देते हैं। उनकी ही पिटाई लगाते हैं।
कोरोना के इस दौर में जब डॉक्टर, नर्स, पुलिस, मीडियाकर्मी जिस तरह कोरोना वॉरियर्स हैं। सफ़ाई सैनिक भी उनसे बिल्कुल कम नहीं हैं। जिस तरह वे जान जोखिम में डाल कर मानवता की सेवा कर रहे हैं उसी तरह हमारे ये सफ़ाई सैनिक। पर इन्हें सुरक्षा उपकरण जैसे पीपीई, सेनीटाईजर, ग्लव्स, साबुन, राशन आदि नहीं मिलता और न वो मान-सम्मान मिलता जिसके ये हक़दार हैं।
इन सफ़ाई सैनिकों की राजनैतिक उपेक्षा भी की जाती है। ये लोग अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं। वैसे तो सरकार ने इनके कल्याण के लिए अनेक योजनाएं बना रखी हैं। पर इन्हें उनका लाभ नहीं मिल पाता। इसके प्रमुख रूप से दो कारण नजर आते हैं। एक तो इनमें से अधिकतर लोग शिक्षित और जागरूक नहीं होते। दूसरी सरकार की नीयत। सरकार इनकी ऐसे उपेक्षा करती है मानो ये इस देश के नागरिक ही न हों। इनकी मौत चाहे वह कोरोना से हुई हो, सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करते हुए हुई हो, सरकार इस पर एक शब्द नहीं बोलती।
गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली में एक और मुंबई में तीन युवा सफ़ाई कर्मचारियों की सीवर कि सफ़ाई के दौरान मौत हो गई। पर सरकार ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। संवेदनहीनता की हद हो गई। जबकि आतंकवादियों से लड़ता हुआ कोई सैनिक मारा जाता है तो सरकार उसे न केवल शहीद का दर्जा देती है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर शोक व्यक्त किया जाता है। एकाध करोड़ मुआवजा उसके परिजनों को दिया जाता है। पर जब कोई सफ़ाई सैनिक मरता है तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 10 लाख का मुआवजा भी आसानी से उसके आश्रितों को नहीं दिया जाता। इसके लिए उसके परिवार को दर– दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं।
आज भले ही सरकार लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) बरतने को कह रही हो पर सफ़ाई समुदाय का ये वर्ग तो सदियों से सामाजिक दूरी और छुआछूत की मजबूरी से पीड़ित रहा है। जैसे सदियों से उसे क्वारंटाइन (एकांतवास) में रखा गया हो। जब सिर्फ अपनी सेवा की जरूरत हो तब उसे याद करो फिर उसे क्वारंटाइन में भेज दो। जहाँ-जहाँ ये रहते थे उस जगह व स्थान को हॉटस्पाट घोषित कर दिया जाता था। अभी भी कमोबेश यही स्थिति है।
आख़िर कब तक चलेगा ऐसा?
अब समय आ गया है कि ये सफ़ाई सैनिक अपने जीवन के तौर-तरीके बदलें। अपनी बुरी आदतों जैसे शराब सेवन, जुआ, बीडी-सिगरेट-गुटखा जैसे नशीले पदार्थों से दूर रहें। अन्धविश्वास से दूर रहें। व्यर्थ के कर्म-कांडों को छोड़ें। अपने बच्चों को अच्छी और उच्च शिक्षा दिलाएं। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को अपनाएं। उनके तीन मूलमंत्रों ‘शिक्षा, संगठन, संघर्ष’ का पालन करें। कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ी को इतना सक्षम बना दें कि वे अपनी आजीविका के लिए गैर-सफ़ाई पेशों को अपनाएं। ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी इस तरह बे-मौत अपनी जान न गवाएं।
(लेखक सफ़ाई कर्मचारी आन्दोलन (SKA) से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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