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जिन शिक्षकों को स्कूल में होना चाहिए, वे भूख हड़ताल पर क्यों हैं?

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) से प्राथमिक शिक्षा में डिप्लोमा (डीएलएड) को वैध करार देने की मांग को लेकर सैकड़ों शिक्षक पटना के गर्दनीबाग में 26 अक्टूबर से भूख हड़ताल पर हैं। बिहार के करीब ढाई लाख टीचरों का भविष्य सरकार के एक अजीबोगरीब आदेश के चलते अंधकार में डूबता नजर आ रहा है।
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मुजफ्फरपुर के रहने वाले 32 वर्षीय अविनाश कुमार ने बड़ी उम्मीद लेकर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) से प्राथमिक शिक्षा में डिप्लोमा (डीएलएड) किया था। उन्हें यकीन था कि ये डिग्री मिल जाने के बाद सरकारी स्कूल में स्थाई नौकरी मिल जाएगी, लेकिन पिछले डेढ़ दो महीनों में जो कुछ हुआ है, उससे उनकी और उसके परिवार की नींद उड़ी हुई है। उदासी का आलम ये है कि घर में ढंग से खाना नहीं बन पाता है और परिवार के लोग ठीक से खा भी नहीं पा रहे हैं।

अविनाश कहते हैं, 'जब से हमारी डिग्री को अमान्य घोषित किया गया है, तब से घर में कोई ढंग से खाना नहीं खा रहा है। मैं तो गार्जियन हूं। मुझ पर जो बीत रहा है, वो तो बीत ही रहा है, हमारे घर के लोग भी इससे बहुत दुःखी हैं। जब से उन्हें ये पता चला है, तब से वे निराश हैं।'

अविनाश 2015 से मुजफ्फरपुर के एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं, जहां उनकी तनख्वाह 4500 रुपए है। इतने रुपए में उन्हें दो बच्चों, पत्नी और बूढ़ी मां का पेट पालना पड़ता है।
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उन्होंने बताया, 'डिप्लोमा करने के बाद मैंने सेंट्रल टीचर्स एलिजिब्लिटी टेस्ट (सीटीईटी) भी पास कर लिया था। ये परीक्षा काफी कठिन होती है, मगर मैं पहली कोशिश में ही सफल हो गया। इस परीक्षा में पास करने से मैं किसी भी सूबे में शिक्षक की नौकरी के लिए आवेदन कर सकता हूं, लेकिन डीएलएड की डिग्री मान्य नहीं है, तो सीटीईटी का भी कोई मोल नहीं। मुझे तो अब इस बात का डर सता रहा है कि कहीं निजी स्कूल वाले ये कह कर मुझे नौकरी से न निकाल दें कि डीएलएड की मेरी डिग्री वैध नही है क्योंकि निजी विचार सरकारी दोनों तरह के स्कूलों के लिए डीएलएड अनिवार्य है।'

मधुबनी के रहनेवाले 49 साल के सुखेश्वर मोची ने भी डीएलएड किया है। वह बताते हैं, 'जब मैंने ये कोर्स किया था, तो कहा गया था कि सरकारी स्कूलों में नौकरी के लिए ये डिग्री अनिवार्य होगी, मगर अब इस डिग्री को ही अमान्य करार दे दिया गया है। कहां तो सपने देख रहा था कि टीचर की स्थाई नौकरी मिलेगी, तो कर्ज चुका देंगे, लेकिन यहां तो करियर ही चौपट होता दिख रहा है।'

सुखेश्वर के तीन बच्चे और बीवी हैं। वह एक निजी स्कूल में पढ़ाते हैं जहां 6000 रुपए मिलते हैं। वह कहते हैं, 'कर्ज में डूबे हुए हैं। कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। कर्ज लेकर ही कोर्स किया। अब दर-दर मारे फिर रहे हैं।'

अविनाश और सुखेश्वर की कहानियां महज बानगी हैं। उनकी ही तरह बिहार के करीब ढाई लाख टीचरों का भविष्य सरकार के एक अजीबोगरीब आदेश के चलते अंधकार में डूबता नजर आ रहा है।

डीएलएड सर्टिफिकेट वैध या अवैध?

देश में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू हुआ, तो प्राथमिक स्तर पर सभी सेवाकालीन शिक्षकों और ग्रेजुएट शिक्षकों के लिए (उच्च प्राथमिक स्तर पर) डीएलएड कोर्स अनिवार्य किया गया था।

इस अधिनियम में तय की गई अनिवार्यता के मद्देनजर डीएलएड कोर्स तैयार करने का फैसला लिया तो गया, लेकिन लंबे समय तक इसको लेकर टालमटोल जारी रहा। वर्ष 2017 में आखिरकार केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पहली से आठवीं तक के बच्चों को पढ़ा रहे अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए डीएलएड कोर्स तैयार करने को लेकर गंभीरता दिखाई और नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजूकेशन (एनसीटीई) से इस पर मशविरा मांगा। एनसीटीई के परामर्श पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) ने दो वर्षीय कोर्स तैयार किया। इसको लेकर अनिवार्य शिक्षा विधेयक भी लाया गया।

मार्च 2015 से बतौर टीचर पढ़ा रहे शिक्षकों को 2019 तक ये कोर्स कर लेने का वक्त दिया गया, ताकि ये कोर्स पूरा कर वे शिक्षकों के लिए निकलने वाली वैकेंसी का लाभ उठा सकें। पूरे भारत में ऐसे शिक्षकों की संख्या करीब 11.09 लाख है। अकेले बिहार में 2.5 लाख ऐसे शिक्षक हैं।
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उस वक्त तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने कहा था कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत पहली से आठवीं तक के बच्चों को पढ़ा रहे शिक्षकों को दो वर्ष का डीएलएड करना होगा। कोर्स 3 अक्टूबर 2017 से शुरू हुआ, जिसे 31 मार्च 2019 तक पूरा कर लेना था। चूंकि अक्टूबर 2017 से मार्च 2019 तक 18 महीने ही होते हैं, तो बाकी छह महीने की इंटर्नशिप (किसी स्कूल में पढ़ाना) रखी गई।

सरकार की घोषणा के साथ ही शिक्षकों ने कोर्स के लिए नामांकन कराया और कोर्स पूरा कर लिया।

डीएलएड डिग्रीधारी धर्मेंद्र कुमार कहते हैं, '11 लाख टीचरों को अगर एकसाथ क्लास कराया जाता, तो स्कूलों में पढ़ाने के लिए टीचर ही नहीं बचते इसलिए आनलाइन कोर्स कराया गया था। हम लोगों ने शनिवार और रविवार को प्रैक्टिकल क्लास किया, ताकि समय पर कोर्स पूरा कर लें।'

शिक्षकों ने बताया कि अव्वल तो जिन शिक्षकों ने इस कोर्स में नामांकन कराया था, वे सभी काफी समय से स्कूलों में पढ़ा रहे थे, इसलिए छह महीने की अलग से इंटर्नशिप का कोई मतलब नहीं था। दूसरा, कोर्स पूरा होने के बाद परीक्षा हुई और मार्कशीट भी दिया गया, जिसका मतलब है कि डिग्रियां वैध हैं।

इसी साल बिहार सरकार ने बड़े पैमाने पर प्राथमिक शिक्षकों की बहाली निकाली, तो इन शिक्षकों की खुशी का ठिकाना न था। शिक्षकों की बहाली 18 सितंबर से शुरू हुई, जो 9 नवम्बर तक चलेगी। लेकिन, उससे पहले 11 सितंबर को बिहार के शिक्षा विभाग के प्राथमिक शिक्षा निदेशालय से एक पत्र जारी होता है, जो इन शिक्षकों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं था।

एनसीटीई के 6 सितंबर के पत्र का हवाला देते हुए इस पत्र में लिखा गया था, 'राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक जिन्होंने एनआईओएस की ओर से संचालित सेवाकालीन 18 माह का डीएलएड कोर्स किया है, उनके प्रशिक्षण प्रमाण पत्र की मान्यता प्रारंभिक विद्यालयों में  शिक्षक नियोजन के लिए मान्य नहीं होगी।'

एनसीटीई के यू-टर्न से फंसा पेंच

दरअसल, इस पूरे विवाद की जड़ में एनसीटीई का यू-टर्न है। बिहार के शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि प्राथमिक शिक्षकों के लिए जब वैकेंसी निकली, तो सैकड़ों की संख्या में आवेदन मिलने लगे। ये आवेदक डीएलएड किए हुए थे।

बिहार सरकार ने जब एनसीटीई को पत्र लिख कर डीएलएड कोर्स के बारे में पूछा, तो एनसीटीई ने कह दिया कि 18 महीने का कोर्स मान्य नहीं है। इस पत्र की बुनियाद पर ही शिक्षा विभाग ने 11 सितंबर को पत्र जारी कर बताया कि प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए ये डिग्री मान्य नहीं है।

बिहार सरकार को मिले इस पत्र ने न केवल बिहार के ढाई लाख शिक्षकों के भविष्य पर तलवार लटका दी, बल्कि इसके लपेटे में हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों करीब 11 लाख टीचर आ गए हैं।
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केंद्रीय सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रहे उपेन्द्र कुशवाहा कहते हैं, 'शिक्षा का अधिकार अधिनियम में स्पष्ट था कि जो भी शिक्षक सरकारी व निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, उन्हें ट्रेनिंग लेनी होगी। इसी के मद्देनजर दो वर्ष का विशेष कोर्स तैयार किया गया। इसमें तय हुआ कि 18 महीने का कोर्स होगा और छह महीने की इंटर्नशिप करनी होगी। चूंकि ये शिक्षक स्कूलों में पहले से ही पढ़ा रहे थे, इसलिए उन्हें अलग से छह महीने के इंटर्नशिप करने की जरूरत नहीं थी। अत: डीएलएड करने वाले ये शिक्षक किसी भी दूसरे शिक्षकों जितना ही योग्य हैं और सरकारी स्कूलों में स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते हैं। मुझे लगता है कि ये बनावटी समस्या है, जिसका समाधान चुटकियों में हो सकता है।'

डीएलएड उत्तीर्ण एक शिक्षक धर्मेंद्र कुमार कहते हैं, 'कोर्स तो हमने दो वर्ष का ही किया है। इसमें 18 महीने का मूल कोर्स था और छह माह की इंटर्नशिप। हमलोग स्कूलों में पढ़ा ही रहे थे, इसलिए अलग से इंटर्नशिप नहीं किया, लेकिन इसकी परीक्षा दी और अंक भी मिले हैं। अब डीएलएड को अमान्य कहने का कोई तुक समझ में नहीं आ रहा है।'
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शिक्षकों का कहना है कि एनसीटीई को या बिहार शिक्षा विभाग को समझने में भूल हो रही है। अगर विभागों के अधिकारी इस पर गहराई से सोचेंगे, तो समस्या का हल निकल आएगा।

इस संबंध में जब शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा को फोन किया गया, तो उन्होंने किसी अधिकारी से इस संबंध में बात करने को कहा।

इधर, डिग्री को वैध करार देने की मांग को लेकर सैकड़ों डिग्रीधारी शिक्षक पटना के गर्दनीबाग में 26 अक्टूबर से भूख हड़ताल पर हैं। उनकी दिवाली सड़क किनारे बने अस्थाई टेंट में गुजरी। तीन शिक्षक इस बीच डेंगू की चपेट में आकर अस्पताल में भर्ती हैं। आमरण अनशन के कारण कई शिक्षक बीमार पड़ गए।

अनशन कर रहे शिक्षकों का कहना है कि जब तक सरकार उनकी डिग्री वैध नहीं करती है, वे आमरण अनशन जारी रखेंगे।

'हमारी जिंदगी ही चौपट हो जाएगी'

आकिब रहमान पूर्णिया में एक निजी स्कूल में 5300 रुपए माहवार पर पढ़ा रहे हैं। वह बाल-बच्चेदार हैं। स्कूल के पैसे से परिवार नहीं चलता, इसलिए वह ट्यूशन भी करवाते हैं।
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वह कहते हैं, 'मैं निजी संस्थान से बीएड या डीएलएड करने की सोच रहा था। इसी बीच मोदीजी की सरकार की तरफ से ये कोर्स आ गया था, तो हमें पूरा भरोसा था कि इसमें किसी तरह की समस्या नहीं आएगी। बहुत खुशी होकर हमने ओवरटाइम क्लास किया और रात-रात जाग कर असाइनमेंट तैयार कर ये कोर्स पूरा किया। डीएलएड करने के बाद इसी कोर्स को आधार बना कर सेंट्रल टीचर्स एलिजिब्लिटी (सीटीईटी) टेस्ट भी पास कर लिया। अपने आसपास के गांवों में सीटीईटी निकालने वाला मैं इकलौता था। घर के लोग भी बहुत खुश थे। लेकिन, शिक्षकों के नियोजन से ऐन पहले सरकार ने डिग्री को अमान्य करार दे दिया।'

'मेरी मेरी उम्र अभी 30 साल है। सरकार शिक्षकों की वैकेंसी पांच-छह साल में निकालती है। ये वैकेंसी मिस हो गई और सरकार ने डिग्री को मान्यता नहीं दी, तो दोबारा डिग्री लेनी होगी और पांच छह साल तक इंतजार करना होगा। इतने साल में तो जिंदगी ही चौपट हो जाएगी', रुआंसा होकर आकिब ने कहा।

उन्होंने कहा, 'सरकार चाहती है कि हमलोग दर-ब-दर ठोकरें खाते रहें। बिहार में डबल इंजन की सरकार है। अगर केंद्र में दूसरी और राज्य में दूसरी सरकार होती, तो मान लेते कि राजनीतिक कारणों से ऐसा किया गया होगा। लेकिन ऐसा नहीं है, फिर शिक्षकों के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा है?'

कई शिक्षकों का आरोप है बिहार में ज्यादातर निजी बीएड कालेज व अन्य ऐसे संस्थान राजनेताओं के हैं। एनआईओएस के कोर्स के कारण ढाई लाख टीचर इन संस्थानों से बच गए, जिससे ये राजनेता खफा हैं और सरकार के साथ सांठगांठ कर ये लोग शिक्षकों के खिलाफ साजिश रच रहे हैं ताकि वे मोटी फीस देकर इनके संस्थानों से डिग्री ले लें।

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