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अनुदेशकों के साथ दोहरा व्यवहार क्यों? 17 हज़ार तनख़्वाह, मिलते हैं सिर्फ़ 7000...

योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्विटर हैंडल से किए गए एक ट्वीट के बाद कमेंट्स की बाढ़ आ गई। और एक सच सामने आया कि कैसे अनुदेशकों का शोषण किया जा रहा है।
UP Teachers Protest
फ़ोटो साभार: दैनिक भास्कर

देश के भीतर जब महंगाई सारी हदें पार कर चुकी हो, बच्चों की पढ़ाई से लेकर खाने के लिए तेल, सब्जियों के दाम में आग लग चुकी हो। ऐसे में अगर आपको आपका मेहनताना ही न मिले, आपका हक ही न मिले तब आप क्या करेंगे? घर कैसे चलाएंगे और बच्चों को पेट भर कैसे खिलाएंगे।

दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार की बहुत बड़ी लापरवाही उस वक्त उजागर हो गई, जब योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्वीटर हैंडल से एक ट्वीट में ये कहा गया कि ‘’ कोई भी फाइल किसी पटल पर तीन दिन से अधिक लंबित न रखी जाए’’  

योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्वीटर हैंडल से किया गया ये ट्वीट सैंकड़ों जख्मों को कुरेदने लग गया। एक के बाद हज़ारों लोगों ने रिट्वीट कर योगी सरकार को आड़े हाथों लिया... किसी की ज़मीन का मामला, कहीं भर्ती घोटाले शिकायत, कहीं मज़दूरों के साथ शोषण, कहीं रिश्वत लेने के आरोपों से कमेंट बॉक्स फुल हो गया। ऐसा ही एक दर्द निकलकर और सामने आया प्राइमरी विद्यालयों में तैनात किए गए अनुदेशकों का... एक अनुदेशक ने लिखा कि ‘’महाराज जी, 3 दिन छोड़िए अधिकारीगण 2017 से अनुदेशकों की फाइल दबाकर रखे हैं। आप चाहेंगे तो हम लोगों को न्याय निश्चित रूप से मिलेगा।

ये सिर्फ एक मात्र कमेंट नहीं है। ऐसे ही हज़ारों कमेंट्स ने योगी आदित्यनाथ के इस दावों की कलई खोलकर रख दी। सिर्फ योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्वीटर पर ही इसका जवाब नहीं मांगा गया बल्कि बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह और डिप्टी सीएम बृजेश पाठक के कमेंट बॉक्स में भी इसको लेकर कमेंट किए जा रहे थे।

‘यूपी अनुदेशक योगी जी मांगे न्याय’’ नाम के ट्वीटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया जिसमें एक बच्ची ने तख्ती पकड़ी हैं, जिसपर लिखा है..’’ योगी जी बताएं कि पापा 7000 हज़ार रुपये में कैसे घर चलाएं।‘’

इस ट्वीट को ट्वीट कर लिखा गया कि ‘’ सीएम साहब इस बच्चे की गलती बस यही है। के इसका पिता अनुदेशक है। 5 साल से फाइल लंबित है 17000 की।‘’

बच्चे की इस मार्मिक तस्वीर ने कई सवाल खड़े कर दिए। कि 17000 हज़ार रुपये कब मिलेंगे? आखिर रुके कहां हैं? इतनी महंगाई में हमारे साथ ये अन्याय क्यों? हमारी मेहनत का मेहनताना किसकी जेब में जा रहा है?

आपको बता दें कि अनुदेशक शिक्षक अपनी तय सैलरी 17000 रुपये की मांग कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें चार साल से सिर्फ 7000 हज़ार रुपये ही मिल रहे हैं।

अनुदेशक शिक्षकों की बात करें तो इन्हें अपर प्राइमरी स्कूलों की शिक्षा में सुधार के लिए रखा गया था। इसे कुछ यूं समझिए... जैसे यूपी के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा मित्र बच्चों को पढ़ाते हैं, ठीक उसी तर्ज पर 2013-2014 में प्रदेश के 13,769 अपर प्राइमरी क्लास यानी छठी से आठवीं तक के स्कूल में 41,307 अनुदेशकों की नियुक्ति की गई थी। हर स्कूल में तीन का औसत रखा गया था। अनुदेशक स्कूलों में कृषि विज्ञान, शारीरिक शिक्षा, कला और कम्प्यूटर जैसे विषयों को पढ़ाते थे। इसके एवज में उन्हें महीने 7000 रुपये की तनख्वाह मिलती थी। जिसके लिए केंद्र और राज्य के बीच 60:40 का फंड तय हुआ, यानी अनुदेशकों पर आने वाले खर्च का 60 फीसदी केंद्र व्यय करेगा और 50 फीसदी राज्य।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2014 में 19 जून को 58,826 और 8 अप्रैल 2015 को 91,105 शिक्षा मित्रों को उस वक्त की अखिलेश सरकार ने सहायक अध्यापक बनाया तो अनुदेशक शिक्षकों की भी उम्मीद बढ़ गई।   संविदा से स्थाई किए जाने को लेकर उन्होंने मांग की लेकिन स्थाई नहीं किया गया। मार्च 2016 में अखिलेश सरकार ने अनुदेशकों के हित में फैसला लेते हुए 1470 रुपये बढ़ा दिए गए, ऐसे में अब उन्हें 8470 रुपये सैलरी मिलने लगी।

इसके बाद साल 2017 में विधानसभा चुनाव होने थे, तो सभी पार्टियां वादों का पिटारा लिए घूम रही थीं। इसी कड़ी में भाजपा ने सरकार बनने पर अनुदेशकों की सैलरी 17000 रुपये करने का वादा कर दिया था। दूसरी ओर अखिलेश यादव ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पीएबी यानी प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड में अनुदेशकों की सैलरी 17000 रुपये महीने किए जाने को लेकर प्रस्ताव भेज दिया। अब चुनाव भी थे और केंद्र में भाजपा की सरकार भी थी।  प्रदेश में भी भाजपा को सरकार बनानी थी। ऐसे में अखिलेश का ये प्रस्ताव मंज़ूर होने ज़रा मुश्किल था। और हुआ भी यही। 27 मार्च को पीएबी ने अखिलेश के प्रस्ताव को रद्द कर दिया। 6 अप्रैल को करीब 2 हज़ार शिक्षक नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने पहुंच गए। जिसके बाद सीएम योगी ने अखिलेश वाले ही प्रस्ताव को फिर से पीएबी को भेजा और इस बार प्रपोज़ल स्वीकार कर लिया गया। जिसे भाजपा ने ट्विटर हैंडल पर भी पोस्ट किया।

15 मई को पीएबी ने अनुदेशकों और शिक्षा मित्रों के लिए एक आदेश जारी किया जिसमें तीन बातें कहीं गईं:

  • अनुदेशकों की सैलरी 17000 रुपये
  • शिक्षा मित्रों को 10 हज़ार रुपये
  • रिसर्च शिक्षकों को 14,500 रुपये

पीएबी के आदेशानुसार अगले महीने से ही शिक्षामित्रों और रिसर्च शिक्षकों को तय सैलरी मिलने लगी लेकिन आज पांच साल बीत जाने के बाद भी अनुदेशकों को बढ़ी हुई सैलरी नहीं मिल रही है।

हैरान करने वाली ये है कि अनुदेशकों की बढ़ी हुआ तनख़्वाह के लिए केंद्र सरकार ने बजट भी जारी कर दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने उसे अप्लाई नहीं किया। यहां तक तो ठीक थी लेकिन गज़ब तब हुआ जब अखिलेश सरकार में बढ़ाई गए 1470 रुपये भी ग़लत बताकर काट लिए गए।

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट कहती है कि--- 1470 रुपये तो काटे ही गए बल्कि एक साल में उन्हें मिले करीब 13000 रुपयों की रिकवरी भी कर ली गई। अब प्रदेश की कार्यसमिति ने 2 जनवरी 2018 को अनुदेशकों की सैलरी 9800 करने का फैसला किया जिसके बाद अनुदेशकों ने हंगामा किया और कोर्ट चले गए।

क्या रहा कोर्ट का आदेश?

4 जुलाई 2018 को अनुदेशकों की अपील सुनते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने फैसला सुनाया और कहा कि सैलरी घटाने के फैसले को रद्द किया जाता है। सैलरी 17 हजार ही रहेगी। प्रदेश सरकार का फैसला प्रताड़ित करने वाला था इसलिए वह नौ फीसदी ब्याज के साथ जल्द से जल्द भुगतान करे।

हालांकि कोर्ट की फटकार के बाद भी राज्य सरकार ने सैलरी नहीं बढ़ाई। इस बार अनुदेशक इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए। 11 सितंबर 2020 को कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए अनुदेशकों को मिल रही 7000 हज़ार सैलरी को शिक्षकों का शोषण माना। राज्य सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा गया लेकिन जवाब नहीं दिया गया।

फिलहाल अब ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है, जिसको लेकर अनुदेशक संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह कहते हैं--- 12 मई को सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा। उम्मीद है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरह सुप्रीम कोर्ट भी हमारे हक में फैसला सुनाएगा। इसके अलावा आगे प्रदर्शन को लेकर विक्रम ने कहा कि अभी इसकी तैयारी नहीं है। सोशल मीडिया पर अनुदेशक लगातार मांग कर रहे हैं। अगर बात नहीं बनती तो अनुदेशक संघ पहले की तरह प्रदर्शन करने को मजबूर होगा।

सोशल मीडिया पर योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्वीट को रिट्वीट कर जवाब मांगते हैं कि--- इसमें अनुदेशकों के मानदेय वृद्धि की घोषणा का फ़ाइल 5 वर्षो से लम्बित है, क्या इसका निवारण भी उतनी ही तत्परता से किया जाएगा ?

वहीं इसी मामले में जीतू सिंह नाहर ट्वीट कर कहते हैं कि अनुदेशकों की हालत बेहद दयनीय हो चुकी है, कृपया इसका संज्ञान लें।

विवेक सिंह नाम के एक शख्स ने योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्वीट का जवाब देते हुए कहा कि---

क्या बात कहें या क्या बकवास

सालों से फाइल लंबित है अनुदेशकों की और अभी कुछ दिन पहले मानदेय वृद्धि की फाइल कहा अटकी तो दूर डस्टबिन में फेंक दिया गया उसी को तीन दिन में सही कराइये तब समझ मे आए की आपकी बात का कोई तवज्जो भी है या सिर्फ *****ही है

इन हजारों सवालों की जिस तरह से अनदेखी हो रही है, ये साफ तौर पर कोर्ट के कहेनुसार अनुदेशकों का शोषण दर्शाता है, साथ ही आपको ये भी बताते चलें कि साल 2013 में हुई पहली भर्ती के बाद से एक भर्ती नहीं हुई है।

  • आपको बता दें कि फिलहाल अनुदेशकों की कुल पांच मांगें हैं:
  • अनुदेशक शिक्षकों को उनके पद पर रेगुलर किया जाए
  • अनुदेशकों को 11 महीने की बजाए 12 महीने की सैलरी दी जाए
  • महिला अनुदेशकों को मातृत्व अवकाश दिया जाए
  • अनुदेशकों को उनके ब्लॉक में खाली पड़े पदों पर ट्रांसफर किया जाए
  • नियमित होने तक किसी भी अनुदेशक को कक्षा में छात्रों की संख्या 100 से कम होने पर हटाया नहीं जाए।

सोशल मीडिया पर पूछे जा रहे सवालों का जवाब भले ही सरकार न दे, भले ही लाख दावे कर ले, लेकिन सच तो यही है कि अनुदेशकों का खूब शोषण किया जा रहा है, जिसको लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट भी राज्य सरकार को चेतावनी दे चुका है। इसके बावजूद अभी तक इस मामले में कोई सुधार देखने को नहीं मिला। एक बड़ा सवाल ये भी है कि जब केंद्र सरकार ने अनुदेशकों के लिए बजट जारी कर दिया है तो उनकी तनख्वाह का रुपया आखिर जा कहां रहा है?

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