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देश में बाल विवाह की कुरीति को ख़त्म करने के प्रयास कम क्यों हो गए?

बाल विवाह को मानवाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है, बावजूद इसके देश में अभी भी हर पांच लड़की में से एक और छह में से एक लड़के की शादी क़ानून द्वारा निर्धारित उम्र से पहले या कम उम्र में होती है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : The Leaflet

"ये पहली सरकार है, जिसने भविष्य और देश के बच्चों के लिए बजट तैयार किया है। आपने 2025 तक बाल विवाह को 10 प्रतिशत तक लाने की बात कही है, हम उसे शून्य तक ला सकते हैं।''

ये बयान केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी का है, जो उन्होंने इसी साल फरवरी के महीने में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन की ओर से 'नेशनल कंसल्टेशन ऑन चाइल्ड मैरेज फ़्री इंडिया' के आयोजन के दौरान दिया था। यहां स्मृति ईरानी ने दावा किया था कि बाल विवाह एक अपराध है और हमें इसे पूरी तरह से ख़त्म करना होगा। हमारी सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के एक सर्वे ने यह उजागर किया है कि देश में हाल के कुछ वर्षों में बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने की दिशा में हुई प्रगति पूरी तरह से रुकी हुई है।

इस अध्ययन के मुताबिक भारत में पांच लड़कियों में से एक और छह लड़कों में से एक की शादी अभी भी शादी की कानूनी उम्र से पहले या कम उम्र में होती है। साल 2016 से 2021 के बीच, कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाल विवाह की प्रथा भी आम हो गई। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि 2030 तक बाल विवाह को खत्म करने के लिए मजबूत राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय नीति की तत्काल जरूरत है।

चाइल्ड मैरिज रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों में कमी

लैंसेट की इस रिसर्च में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथ-साथ भारत सरकार से जुड़े लोग शामिल थे। सभी अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि भारत में चाइल्ड मैरिज में राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट आई है। 1993 में गर्ल चाइल्ड मैरिज का 49% था, जो 2021 में 22% रह गया है। वहीं, बॉयज चाइल्ड मैरिज साल 2006 में 7% से घटकर साल 2021 में 2% पर आ गई है। लेकिन साल 2016 से 2021 के बीच चाइल्ड मैरिज रोकने के लिए किए जा रहे प्रयास काफी कम हो गए हैं। 2006 से लेकर 2016 के दौरान चाइल्ड मैरिज में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई थी।

बाल विवाह को मानवाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है और यह एक मान्यता के आधार पर लिंग और यौन-आधारित हिंसा है। बाल विवाह निषेध अधिनियम साल 2006 के मुताबिक़ शादी के लिए एक लड़की उम्र की 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए। अगर इससे कम उम्र में लड़के और लड़की की शादी कराई जाती है, तो इसके लिए क़ानून में सज़ा का प्रावधान किया गया है। फिलहाल देश में लड़के और लड़की की शादी की उम्र बढ़ाए जाने को लेकर सरकार विचार-विमर्श कर रही है।

बाल विवाह निषेध अधिनियम साल 2006 क़ानून के तहत अगर किसी का बाल-विवाह होता है, तो वो बालिग होने के दो साल के भीतर शादी को कोर्ट में चुनौती देकर निरस्त करा सकते हैं। वहीं राज्यों में बाल विवाह रोकने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की गई है, जिनका काम बाल विवाह रोकना, अगर कोई ऐसा करता है, तो बाल विवाह को लेकर साक्ष्य जुटाना, लोगों को जागरूक करना और काउंसलिंग करना शामिल है। वहीं बाल विवाह की जानकारी सामने आने पर मजिस्ट्रेट को ऐसी शादी रोकने के अधिकार भी दिए गए हैं।

लैंसेट ने अपने अध्ययन के लिए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की 1993 से लेकर साल 2021 तक के डेटा का संज्ञान लिया है। इस डेटा के मुताबिक मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल सहित 6 राज्यों में बालिका विवाह (18 से कम की लड़कियों की शादी) में इजाफा हुआ। वहीं, छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर और पंजाब सहित आठ राज्यों में बालक बाल विवाह (21 से कम के लड़कों की शादी) का ग्राफ बढ़ा है।

सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के लक्ष्य को हासिल करना अहम

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार 1993 से 2021 के बीच लड़कियों में बाल विवाह की कुल संख्या में 50 लाख से अधिक की कमी आई, हालांकि इस अवधि के दौरान सात राज्यों में बाल विवाह में वृद्धि देखी गई। इस रिसर्च में बाल विवाह को खत्म करने के लक्ष्य तक पहुंचने तथा भारत की सफलता के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के लक्ष्य 5.3 को हासिल करना अहम बताया गया है। सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 5.3 का लक्ष्य बाल, कम उम्र और जबरन विवाह और महिला जननांग विकृति जैसी सभी हानिकारक प्रथाओं को खत्म करने की वैश्विक संकल्प के हिस्से के रूप में 2030 तक लड़कियों के बाल विवाह को समाप्त करना है।

इस सर्वे में शोधकर्ताओं ने कहा है कि ग्लोबली चाइल्ड मैरिज खत्म करने के लिए किए गए प्रयास कारगर साबित नहीं हुए हैं। और भारत में पैसों का लेन-देन इसकी बड़ी वजह है। रिसर्चर्स का कहना है कि SDG 5.3 टारगेट हासिल करने के लिए राज्य सरकारों और यूनियन टेरिटरी की सेंट्रल गर्वनमेंट को साथ मिलकर इसके लिए दोबारा प्रयास करना होगा।

ध्यान रहे कि यूनिसेफ बाल विवाह को अपराध मानता है औऱ जानकारों के अनुसार बाल विवाह का मुख्य कारण रूढ़िवादी सोच, ग़रीबी और जागरूकता की कमी है। बाल विवाह एक महिला से हर संभावना को छीन लेता है जैसे समानता का अधिकार, पढ़ाई का अधिकार या नौकरी करने का अधिकार। वहीं कम उम्र में मां बनना, उनके स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी कई जागरूकता कैंपेन भी चल रहे हैं।

लड़कियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति से खिलवाड़

समाजिक कार्यकर्ता और बाल विवाह मुक्त भारत अभियान से पूर्व में जुड़ी सुचेता बताती हैं कि बाल विवाह को पूरी तरह खत्म करना अभी भी दूर की कौड़ी है। क्योंकि इसमें सिर्फ माता-पिता या घर के लोग ही शामिल नहीं होते बल्कि बड़े स्तर पर पंचायतें और शासन-प्रशासन के लोगों का भी इसे शह है। ये लोग सब जानते हुए भी लड़की की माहवारी आने से पहले ही उसकी शादी कर देना चाहते हैं, जिससे मायके वालों का बोझ उतर जाए। और ससुराल वाले लड़की को अपने तरीके से बड़ा कर उसे अपने रंग में ढाल सके।

सुचेता के मुताबिक ये बाल विवाह की प्रथा पितृसत्ता की ही देन है, जहां लड़कियों को हमेशा मर्दों के अधिन समझा जाता है। उन्हें लगता है कि लड़की अगर पढ़-लिख गई तो परिवार वालों की इज्जत नहीं करेगी, उनके जोर-जुल्म नहीं बर्दाश्त करेगी। इसके अलावा उसे कंट्रोल में रखना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए उसकी कच्ची उम्र में ही शादी कर उसे घर और बच्चे की तमाम जिम्मेदारियों में बांधने की कोशिश की जाती है। जबकि ये मातृ-शिशु मृत्यु दर में इज़ाफे का एक प्रमुख कारण है।

कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन की एक कार्यकर्ता रूचिका मानती हैं कि बाल विवाह को सिर्फ गरीबी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता क्योंकि ये कई बड़े पैसे और रसूख वाले लोगों के यहां भी होता है। कई ऐसे भी घर है, जहां कि औरतें खुद अपनी बच्चियों की बाल विवाह के खिलाफ हैं, लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं है, और वे कुछ कर नहीं सकतीं। वे इसे समाज की बीमारी तो मानती हैं, लेकिन इसका इलाज उनके पास नहीं है क्योंकि इसे समाज में बड़े-बुजुर्गों द्वारा स्वीकृति मिलती रही है।

दुनिया की तुलना में भारत में एक तिहाई बाल वधू

रूचिका की मानें तो, कई राज्यों की सरकारों ने इसे रोकने के लिए सराहनीय कदम उठाए हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन कितना सही है, ये अपने आप में बड़ा सवाल है। कई जगह ये प्रयास राजनीति से प्रेरित ज्यादा लगते हैं, तो कहीं इन्हें राजनीति का शिकार बना लिया जाता है। ऐसे में कई गैर सरकारी संगठन भी इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं, लेकिन ये सब किसी एक के बस की बात नहीं, सबकी संयुक्त जिम्मेदारी है। सरकार को बाल विवाह रोकने के लिए हर संभव प्रयास करने ही चाहिए, लेकिन एक नागरिक होने के नाते हमें भी अपने आस-पास लोगों को जागरूक करना चाहिए, इसके मामलों को रिपोर्ट करना चाहिए, साथ ही इसके खिलाफ एकजुट होकर आवाज़ उठानी चाहिए।

गौरतलब है कि पूरी दुनिया की तुलना में भारत में एक तिहाई बाल वधू हैं। यूनिसेफ 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 23 करोड़ बाल वधुएं हैं। करीब 15 लाख लड़कियों की शादी हर साल 18 से कम उम्र में कर दी जाती है। वहीं देश में सात प्रतिशत ऐसी महिलाएं है, जो 18 से कम उम्र में पहली बार गर्भवती हुईं। ये आंकड़े अपने आप में चिंताजनक हैं, जो महिलाओं की मानसिक-शारीरिक स्थिति के साथ खिलवाड़ तो हैं ही, साथ ही उनके भविष्य को भी अंधकार में धकेल देते हैं।

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