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बिहार में एलजेपी का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला एनडीए और नीतीश के लिए खतरे की घंटी क्यों है?

चिराग पासवान के अकेले चुनाव लड़ने से जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार का यह दावा कमजोर होता है कि वह बिहार में एनडीए के निर्विवाद नेता हैं और उनके ख़िलाफ़ किसी भी तरह की सत्ता विरोधी लहर नहीं है।
चिराग पासवान और नीतीश कुमार
Image courtesy: Timeshindi

लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने लोगों से अपील की है कि वे नीतीश कुमार के जेडीयू के पक्ष में मतदान नहीं करें। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद अगली सरकार उनकी पार्टी और भाजपा के गठबंधन की बनेगी।

उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए एलजेपी रविवार को ही बिहार में एनडीए से अलग हो गयी थी। चिराग पासवान ने एक खुले पत्र में बिहार के मतदाताओं से कहा कि जेडीयू को वोट देने से कल उनके बच्चे बाहर जाने के लिए मजबूर होंगे।

आपको बता दें कि बीजेपी एनडीए की प्रमुख घटक है और उसने पहले ही नीतीश कुमार को राज्य में गठबंधन का नेता घोषित कर दिया है।

चिराग पासवान ने कहा, ‘यह बिहार के इतिहास में सबसे निर्णायक क्षण है। यह राज्य के 12 करोड़ लोगों के जीवन और मृत्यु का प्रश्न है और हमारे पास खोने का समय नहीं है... एलजेपी के लिए आगे की राह आसान नहीं है। लेकिन हम लड़ेंगे और जीतेंगे भी।’

उन्होंने अपने "बिहार पहले, बिहारी पहले" दृष्टिकोण का भी उल्लेख किया और कहा कि उनके पिता को इस बात पर गर्व होगा कि उनका बेटा उस मुद्दे पर कायम है, जिसे उन्होंने उठाया था। चिराग पासवान ने कहा कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 15 साल के शासन काल के दौरान उत्पन्न सत्ता विरोधी लहर 2005 में लालू प्रसाद यादव नीत आरजेडी के कार्यकाल में पैदा हुई लहर से भी बड़ी है।

चिराग ने कहा कि उनकी पार्टी राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन से इसलिये बाहर आई है ताकि मौजूदा गठबंधन में बने रहने को लेकर बाद में उन्हें किसी बात का 'अफसोस' न हो। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ने तय कर लिया है कि वे नीतीश कुमार को एक बार फिर से मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते।

उन्होंने आरोप लगाया कि जेडीयू नेता नीतीश कुमार का ध्यान बिहार के विकास के लिये काम करने के बजाय केवल मुख्यमंत्री बने रहने पर है। फिलहाल एलजेपी के इस रुख पर बीजेपी ने कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन जेडीयू ने एक बयान जारी कर तीखी प्रतिक्रया व्यक्त की और चिराग पर निशाना साधा है।

पार्टी ने कहा, ‘उन्होंने अपने पिता की छत्रछाया में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की है। उनके पास अपना कोई रुख नहीं है। उन्हें जमीनी मुद्दों की कोई समझ नहीं है।’ जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, ‘यह सच्चाई है कि वंशवाद की राजनीति में लोग बिना बहुत योगदान किए बड़ी महत्वाकांक्षाएं रखते हैं।’ प्रसाद ने कहा कि बिहार चुनावों में चिराग की असली परीक्षा होगी। जनादेश उन्हें एहसास दिलाएगा कि जमीनी स्तर पर उन्हें कितना समर्थन प्राप्त है। बिहार के लोग उनकी लंबी बातों से प्रभावित नहीं होंगे।

फिलहाल वर्तमान विधानसभा में एलजेपी के मात्र दो विधायक है और जानकारों का दावा है कि दलित समुदाय के भीतर एक समूह से पार्टी को ज्यादातर समर्थन मिलता है। इसलिए सीधे वोट के मामले में शायद ही एलजेपी नीतीश कुमार के लिए चुनौती बन पाए। लेकिन एलजेपी के इस कदम से नीतीश कुमार की छवि पर बहुत प्रभाव पड़ने वाला है। पहला, चिराग पासवान का अकेले चुनाव लड़ने से जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार का यह दावा कमजोर होता है कि वह बिहार में एनडीए के निर्विवाद नेता हैं।

दूसरा, वह जीतने वाले प्रत्याशी भले ही न खड़ा कर पाए लेकिन सत्ताधारी गठबंधन खासकर जेडीयू के वोट काटने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसका प्रभाव जेडीयू द्वारा जीती गई सीटों की संख्या पर पड़ सकता है।

आपको बता दें कि बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में चौथे कार्यकाल के मैदान में उतर रहे हैं। इस बार उनके विरोध में आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन है। जानकारों का कहना है कि इस बार भी चुनाव मुख्यमंत्री द्वारा किए गए कामों और उनकी असफलताओं के बीच में ही होना है। साथ में सत्ता विरोधी लहर के संकेत भी मिल रहे हैं।

ऐसे में उन्हें अपने सहयोगी बीजेपी से अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है और बिहार में बड़े भाई की भूमिका के लिए भी संघर्ष करना पड़ेगा। उन्हें इस भूमिका के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी पड़ेंगी। ऐसे में हमें यह भी याद रखना होगा कि तमाम उठापठक के बाद उनके विरोधी गठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा पिछले हफ्ते ही हो गया है।

दूसरी तरफ आपको यह भी बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए के दोनों सहयोगी, पहले आरएलएसपी और अब एलजेपी चुनावी गठबंधन से बाहर आ गए हैं। ऐसे में तमाम जानकारों द्वारा किए जा रहे इस दावे कि एलजेपी के नीतीश विरोधी रुख को बीजेपी द्वारा हवा दी गई है इसलिए दिखावे के लिए भी बीजेपी के किसी नेता ने उसकी निंदा नहीं की है, के बावजूद एलजेपी का एनडीए से बाहर निकलता गठबंधन के लिए नुकसानदेह है।

गौरतलब है कि राज्यों के चुनाव में एनडीए का लगातार सिकुड़ता जाना एक बेहतर संकेत नहीं दे रहा है। यह बता रहा है कि एनडीए में क्षेत्रीय दलों के हितों की चिंता नहीं हो रही है। इससे पहले महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़ा है। शिवसेना और अकाली अलग-अलग कारणों से एनडीए से अलग हो सकते हैं, लेकिन बीजेपी की केंद्रीय प्रवृत्ति के साथ टकराव यकीनन एक कारक था।

दरअसल एनडीए की मुख्य पार्टी बीजेपी अपने आक्रामक चुनावी प्रचार और नरेंद्र मोदी की छवि के साथ जब चुनावी मैदान में उतरती है तो क्षेत्रीय सहयोगियों के हितों की चिंता नहीं करती है। ऐसे में एलजेपी का बाहर निकलना यह भी दर्शाता है कि एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं है। साथ ही एनडीए में लंबे समय से चल रही व्यवस्था में परिवर्तन का वक्त आ गया है, जिसमें क्षेत्रीय दलों की ज्यादा सहभागिता हो।

फिलहाल राजनीति के गढ़ रहे बिहार में चुनाव से कुछ महीने पहले तक नीतीश कुमार और एनडीए की राह जितनी आसान दिख रही थी अब वह नहीं दिख रही है। उम्मीद है कि बिहार की जनता विधानसभा चुनावों के जरिए राष्ट्रीय महत्व को रेखांकित करने वाला कोई वैचारिक आयाम भी दिखाएगी। एक ऐसा संदेश देगी जो आगामी कुछ सालों में देश का भविष्य तय करेगा।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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