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क्यों बढ़ रहा है भारत में जीएम फसलों का विरोध

राजनीतिक नेतृत्व धीरे-धीरे जीएम फ़सलों के लिए अपने पहले के प्रतिरोध को ख़त्म कर रहा है, नौकरशाह जीएम फ़सलों की अनुमति देने के लिए जोर-शोर से आगे बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये सब संसाधन संपन्न कॉर्पोरेट लॉबी के इशारे पर हो रहा है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

पिछले हफ्ते भारत में अनुवांशिक अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों (GM crops) पर विवाद फिर से भड़का। जून 2023 के पहले सप्ताह में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की 17 मई 2023 की बैठक के मिनिट्स सार्वजनिक पटल पर रखे गए। मिनिट्स से यह स्पष्ट हो गया कि गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना ने GEAC के उस निर्देश को खारिज कर दिया, जो उन्हें परीक्षण करके जीएम कपास के बीजों की एक नई किस्म का परीक्षण करने के लिए कह रहे थे। केवल हरियाणा, जो चौथा राज्य था जिसे इस तरह का परीक्षण करने के लिए कहा गया था, सहमत हो गया।

संयोग से, GEAC केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत आने वाली GM फसलों पर भारत सरकार की शीर्ष नीति- निर्माता और निर्णय लेने वाली संस्था है। और GEAC द्वारा परीक्षण के लिए अनुशंसित जीएम कपास के बीज की नई किस्म हैदराबाद स्थित कंपनी बायोसीड रिसर्च इंडिया द्वारा विकसित की गई थी, जो प्रमुख कॉर्पोरेट समूह, DCM समूह का एक प्रभाग है।

इससे पहले, 26 जनवरी 2023 को, तमिलनाडु के 20 जिलों में 90 पंचायतों ने अपने खेतों और थालियों तक जीएम फसलों की पहुंच को खारिज करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। 1 फरवरी 2023 को, उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के समक्ष हाल में स्वीकृत जीएम सरसों के परीक्षण और इसके व्यावसायीकरण को रोकने की बात उठाने का आग्रह किया। पर तमिलनाडु की पंचायतें अकेली नहीं थीं। पूरे देश में हाल में स्वीकृत जीएम सरसों के खिलाफ समान रूप से व्यापक विरोध देखा गया।

GEAC ने 26 अक्टूबर 2022 को जीएम सरसों को व्यावसायिक उपयोग के लिए मंजूरी दे दी थी। यह दो दशकों के अंतराल में मंजूरी पाने वाली देश की पहली अनुवांशिक रूप से संशोधित (GM) फसल है। यह भारत में मंजूरी पाने वाली वाली पहली खाद्य GM फसल भी है। इससे पहले, भारत ने केवल गैर-खाद्य GM फसल-कपास को मंजूरी दी थी, अर्थात, 2002 में भारत में वाणिज्यिक उत्पादन के लिए बीटी कॉटन को मंजूरी दी थी। इसी बीच GEAC ने बीटी बैंगन को भी मंजूरी दे दी थी, लेकिन देशव्यापी विरोध के कारण तत्कालीन पर्यावरण मंत्री द्वारा मंजूरी वापस ले ली गई। उन्होंने कारण के बतौर विभाजित वैज्ञानिक साक्ष्य और विशेषज्ञों के बीच आम सहमति के अभाव का हवाला दिया।

जीएम सरसों के अलावा, GEAC ने केले को आयरन और विटामिन ए फॉर्टिफाइड बनाने के लिए GM केले के परीक्षण को भी अनुमति दी है, और GM आलू को भी ताकि वह एक वायरल रोग, पोटेटो ब्लाइट (potato blight) के प्रति प्रतिरोधी बन सके। GEAC ने टाटा की सहायक कंपनी रैलिस इंडिया और बीज बहुराष्ट्रीय मोनसेंटो को GM मक्का के परीक्षण और कोट्टायम स्थित रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट को GM रबर के 15 साल के परीक्षण के अलावा रबड़ बोर्ड को असम में परीक्षण की अनुमति भी दी थी।  आश्चर्यजनक रूप से, भाजपा के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार फरवरी 2023 में मोनसेंटो के GM मक्का परीक्षणों के विरोध में सबसे आगे आई, और केरल सरकार ने जनवरी 2023 में GM रबर का जमकर विरोध किया।

इसके अलावा, रिपोर्टों से संकेत मिल रहे हैं कि केंद्र ने GM बीजों की 13 किस्मों के परीक्षण को भी मंजूरी दे दी है।

GM फसलों पर वैज्ञानिकों की राय भी बंटी हुई है। कॉर्पोरेट घराने सक्रिय रूप से उनके लिए पैरवी कर रहे हैं, जबकि किसान संगठन और कार्यकर्ता GM बीजों की खेती, बिक्री और खपत, यहां तक कि इन बीजों के परीक्षण की अनुमति देने का विरोध कर रहे हैं। आइए हम जीएम फसलों के पक्ष और विपक्ष में अपनी राय संक्षेप में पेश करें ।

जीएम फसलों के पक्ष में राय

जो लोग जीएम फसलों के पक्ष में हैं, उनका तर्क है कि पौधों के जीन्स (genes) को उपयुक्त रूप से संशोधित किया जा सकता है ताकि कीटों, बीमारियों और खरपतवारों को रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली शाकनाशियों (herbicides) के प्रतिरोध को बढ़ाया जा सके और उनका दावा है कि इससे उपज बढ़ेगी और उत्पादकता भी, और इस प्रकार किसानों की आय बढ़ेगी।

उनका दावा है कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल कम होगा और इस तरह यह पर्यावरण के अनुकूल भी होगा।

उनके अनुसार, इससे खाद्य उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा भी बढ़ेगी।

कुछ वैज्ञानिक सूक्ष्म पोषक तत्वों (micronutrients) और विटामिन की मात्रा को बढ़ाने के लिए अनुवांशिक संशोधन (genetic modification) के माध्यम से खाद्य फसलों को फॉर्टिफाई करने के पक्ष में तर्क देते हैं।

भारत जैसे देश में, जहां कई हिस्सों में बारहमासी सूखा पड़ता है या जलभराव रहता है, जिसके चलते लवणता प्रमुख समस्या है, कुछ लोगों का मानना है कि बीज में अनुवांशिक संशोधन सूखे और लवणता के प्रति अधिक सहनशीलता ला सकता है।

उनके समर्थकों के अनुसार, जीएम फसलों की शेल्फ लाइफ बढ़ सकती है और उत्पादन के बाद की बर्बादी कम हो सकती हैं। चलिये देखें विरोधी क्या तर्क दे रहे हैं।

विरोधियों की राय

जीएम फसलों के विरोधी पर्यावरण, स्वास्थ्य और व्यावसायिक आधार पर उनका विरोध कर रहे हैं।

पर्यावरण के दृष्टिकोण से, जीएम फसलों के आलोचकों का कहना है कि ये फसलें भारत की समृद्ध जैव विविध संपदा को नष्ट कर देंगी और लाखों किस्मों की फसलों की जगह ले लेगी ‘मोनोक्रॉपिंग’।

इसके अतिरिक्त, उन्हें यह भी डर है कि इन फसलों से संशोधित जींस साधारण पौधों में आ सकते हैं और फिर बेकाबू राक्षसी किस्म के खतरनाक खरपतवार पैदा कर सकते हैं, जो सामान्य खाद्य फसलों को नष्ट कर देंगे।

सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण से, किसान संगठन भी स्वाभाविक रूप से इन जीएम फसलों का विरोध करते हैं क्योंकि उन्हें अपने बीजों पर नियंत्रण खो देने का डर है। फिर बीजों का कारोबार बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा ले लिया जाएगा तो वे उन्हें सामान्य बीजों की तुलना में अत्यधिक कीमतों पर बेचेंगे, जो किसान नहीं खरीद पाएंगे। एक किलो साधारण कपास के बीज की कीमत 30-70 रुपये है जबकि 1 किलो बीटी कपास के बीज की कीमत 740 रुपये है। चूंकि जीएम बीजों की लागत बहुत अधिक होगी, छोटे किसान उनका उपयोग नहीं कर सकेंगे और केवल धनी किसान ही उनसे लाभान्वित होंगे। कई अध्ययनों ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया है कि कपास किसानों की कई आत्महत्याएं बीटी कपास की खेती की वजह से हुई थीं, जिसने उन्हें कर्जदार बना दिया था।

जीएम बीजों के नुकसान के बारे में मिलेअब तक के व्यावहारिक सबूत क्या है?

1999 के एक अध्ययन से पता चला कि बी.टी. मकई ने बैक्टीरिया बैसिलस थुरिंगिएन्सिस (Bacillus thuringiensis or Bt) द्वारा उत्पन्न एक टॉक्सिन पैदा किया, जो कई प्रकार के तितली लार्वा को नुकसान पहुंचाता है । इससे पता चलता है कि वे गैर-लक्षित कीड़ों और अन्य जीव-रूपों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिनमें वे जानवर और यहां तक कि मानव भी शामिल होंगे जो टॉक्सिन के संपर्क में आते हैं।

जीएम सोयाबीन और कपास जो शाकनाशियों (herbicides) के उपयोग को कम करने वाले माने जाते हैं, वास्तव में खरपतवारों को बढ़ाते हैं और इस प्रकार शाकनाशियों के उपयोग में वृद्धि करते हैं।

उच्च आय वाले जैविक खेती करने वाले किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना उच्च लागत पर निर्यात फसलों (export crops) की खेती करते हैं। आयात करने वाले देशों में कठोर परीक्षण विधियां होती हैं और यदि जीएम फसलें अनिवार्य रूप से गैर-जीएम फसलों के साथ मिल गईं तो उन उत्पादों के निर्यात को रद्द कर दिया जाएगा।

माना जाता है कि कीटों और रोगों के लिए अधिक प्रतिरोध वाली जीएम फसलें केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के कीटों और रोगों को लक्षित करती हैं। इस प्रक्रिया में वे नई किस्मों के कीटों और रोगों के उद्भव का कारण बनेंगी जो ज़्यादा तेज़ी से फैलेंगे और खतरनाक होंगे।

 जीएम फसलों से जुड़े कई जोखिम हैं, जो विभिन्न फसलों और क्षेत्रों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं। साथ ही जोखिम और लाभ के बीच का संतुलन समय-समय पर और एक देश से दूसरे देश में भिन्न भी हो सकता है।

अब तक का अंतरराष्ट्रीय अनुभव

जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्राजील और अर्जेंटीना जीएम फसलों की खेती की अनुमति देते हैं, यूरोप में जीएम फसलों पर प्रतिरोध तीव्र है। जबकि यूरोपीय संघ अलग-अलग देशों को जीएम फसलों की खेती की अनुमति देने पर निर्णय की स्वतंत्रता देता है, उसने सामान्य रूप से जीएम फसलों के खिलाफ सख्त नियमों को अपनाया है। फ़्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और ग्रीस ने अपने राष्ट्रों के अंदर कई जीएम फसलों पर प्रतिबंध लगा दिया है और स्विट्जरलैंड ने 2005 से सभी जीएम फसलों पर रोक लगा दी है।

चीन ने हाल तक जीएम फसलों की खेती की अनुमति नहीं दी थी, जब तक कि उसने नियमों में ढील नहीं दी और अपने मकई के खेतों के 1% से कम में जीएम मकई की अनुमति दी। चीन ने पशु चारे के रूप में उपयोग के लिए जीएम सोयाबीन के आयात की भी अनुमति दी है। भारत की तरह चीन भी जीएम फसलों पर अपनी नीति बदल रहा है।

रूस ने जीएम फसलों पर व्यावसायिक प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन उनसे संबंधित शोध की अनुमति दी है।

छोटे देशों में, कई ने जीएम फसलों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। अफ्रीका में, अल्जीरिया और मेडागास्कर ने जीएमओ पर प्रतिबंध लगा दिया है, और एशिया में, तुर्की, किर्गिस्तान, भूटान और सऊदी अरब ने ऐसा किया है। अंत में, अमेरिका में, बेलीज, इक्वाडोर, पेरू और वेनेजुएला सभी ने जीएमओ पर प्रतिबंध लगा दिया है।

जीएम फसलों के संभावित स्वास्थ्य प्रभाव

WHO ने घोषित किया है कि जीएम फसलों का सेवन करना हानिकारक नहीं  है। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) और यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (EFSA) केवल कंपनियों द्वारा प्रदान किए गए आंकड़ों के आधार पर जीएम फसलों की सुरक्षा का मूल्यांकन करते हैं। इसके अलावा, वे केवल उनकी एलर्जी, विषाक्तता और पोषण संबंधी दावों के लिए उनका मूल्यांकन करते हैं, लेकिन वे मानव, पशु और अन्य पौधों के जींस पर संशोधित जीन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए दीर्घकालिक अध्ययन नहीं करते हैं, जहां कारण संबंध स्थापित करना काफी मुश्किल होता है। संक्षेप में, अभी तक किसी भी बड़े स्वास्थ्य खतरे को चिन्हित नहीं किया गया है, चाहे वह मानव स्वास्थ्य संबंधी हो या पशु स्वास्थ्य संबंधी, लेकिन इसने अनुवांशिक संशोधन (genetic modification) के बारे में भय को समाप्त नहीं किया है। सार्स वायरस परिवार में एक वायरस के उत्परिवर्तन (mutation) के कारण महामारी ने इन आशंकाओं को और गहरा कर दिया है।

भारत में, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) और डॉ. वंदना शिवा की नवदान्य जीएम फसलों के विरोध में सबसे आगे हैं, CSE मुख्य रूप से पर्यावरण के दृष्टिकोण से और नवदान्य जैव विविधता सुरक्षित रखने के आधार को लेकर उनका विरोध करते हैं। कई एनजीओज़ भी जीएम फसलों का विरोध कर रहे थे जब तक मोदी ने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FCRA) को लागू करके उनके फंडिंग को पूरी तरह बंद नहीं कर दिया।  प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि जीएम सरसों को मंजूरी दिए जाने के बाद 111 डॉक्टरों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके दिया जिसमें जीएम फसलों और परीक्षण क्षेत्रों से फसलों को उखाड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।

ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक, डॉ. रूपल एम दलाल ने प्रतिष्ठित जर्नल डाउन टू अर्थ (Down to Earth) को बताया कि हस्ताक्षरकर्ता "GM सरसों DMH-11 और इसके दो पैतृक नस्लें जो हर्बिसाइड ग्लूफ़ोसिनेट अमोनियम के प्रति सहिष्णु हैं, पौधों के खतरनाक 'पर्यावरणीय निसार' (‘environmental release’) के बारे में गंभीर रूप से चिंतित हैं।"

"जीएम सरसों के मामले में, एक स्पष्ट रूप से असमर्थनीय दावा किया जा रहा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलील भी शामिल है, कि शाकनाशी ग्लूफ़ोसिनेट का उपयोग केवल बीज उत्पादन के लिए किया जाएगा और किसानों को कानून द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए उसका छिड़काव करने से रोका जाएगा। हालांकि, अवैध HT (Herbicide Tolerant) कपास और जहरीले हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट का छिड़काव एक दशक से अधिक समय तक अनियंत्रित रहा, और सरकारें इसे रोक पाने में सक्षम नहीं थीं।“

एक लेख में जीन कैंपेन की नेता डॉ. सुमन सहाय भी लिखती हैं…..

जीएमओ पर जीन कैंपेन की 2004 की जनहित याचिका, उसके बाद 2005 में रोड्रिग्ज द्वारा एक और याचिका की वजह से जीएम फसलों के मामले में अनुशंसा देने हेतु सुप्रीम कोर्ट ने एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति (TEC) की नियुक्ति की। सरकार ने कहा है कि TEC की सभी सिफारिशों का पालन किया गया है। स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं किया गया है, जैसा कि हम जीएम सरसों के मामले में देखते हैं, जिसमें HT विशेषता होती है।

एचटी तकनीक पर, TEC ने सुझाव दिया "स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक आर्थिक प्रश्नों पर चिंताओं के मद्देनज़र, शाकनाशी सहिष्णु (HT) फसलों के क्षेत्र परीक्षणों पर रोक लगाने की सिफारिश करता है ... जब तक कि विशेषज्ञों और हितधारकों की एक स्वतंत्र समिति ने एचटी प्रौद्योगिकी के संभावित प्रभाव और भारतीय संदर्भ में इसकी उपयुक्तता की जांच और मूल्यांकन नहीं कर लिया है।

नौकरशाही विश्वासघात

जबकि राजनीतिक नेतृत्व धीरे-धीरे जीएम फसलों के लिए अपने पहले के प्रतिरोध को खत्म कर रहा है, नौकरशाह जीएम फसलों की अनुमति देने के लिए जोर-शोर से आगे बढ़ रहे हैं- जाहिरा तौर पर संसाधन संपन्न कॉर्पोरेट लॉबी के इशारे पर।

ज़रा GEAC के नैतिक मानकों पर ही विचार करें। कुछ किसान संगठनों ने इसकी शिकायत की कि गुजरात के कुछ हिस्सों में जीएम फसलों की अवैध खेती हो रही है। अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। जब किसानों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया, तो GEAC ने पहली बार में ही ऐसी कोई शिकायत प्राप्त होने से इनकार किया। किसान अब इसकी सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं।

दूसरे, जब सुप्रीम कोर्ट ने जीएम सरसों को मंजूरी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं की, तब पहले ही GEAC ने GM सरसों के बीज के परीक्षण की अनुमति कैसे दे दी? यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के रेपसीड सरसों अनुसंधान के निदेशक श्री पीके राय, जिन्होंने पहले इस तरह के परीक्षणों को अस्वीकार कर दिया था, ने स्वयं बताया। उन्होंने खुलासा किया कि 3 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई शुरू होने से पहले ही जीएम सरसों के बीज छह स्थानों पर लगाए जा चुके थे। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को रोक दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसला देने से पहले ही इसकी पर्यावरणीय रिलीज को मंजूरी दे दी गई।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने कई परीक्षण किए थे और भारत में बाजार में बिकने वाले पैकेज्ड फूड में जीएम अनाज की मौजूदगी का खुलासा किया था। इस रहस्योद्घाटन के बावजूद, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) जिसे भारत में खाद्य सुरक्षा को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, ने चुप्पी साधे रखी।

जून 2021 में, यूरोपीय अधिकारियों ने यूरोपीय संघ को चावल निर्यात की कुछ खेपों में से 500 टन जीएम चावल को जब्त कर लिया और उन्हें वापस भेज दिया। भारत सरकार ने एक स्टैंड लिया कि जीएम चावल भारत में नहीं उगाया जाता है, लेकिन यह जांच करने के लिए कुछ नहीं किया कि जीएम चावल भारतीय निर्यात खेप के हिस्से के रूप में आखिर कैसे पाया गया? इसके लिए अब तक किसी को सजा नहीं हुई है। तो क्या जीएम चावल भारत में अवैध रूप से उगाए जा रहे हैं? इस सवाल का जवाब अब तक नहीं दिया गया।

भारतीय अधिकारियों के इस तरह के नैतिक दुःसाहस को देखते हुए हम समझ सकते हैं कि भारतीय लोगों की सुरक्षा ‘भगवान भरोसे’ ही है!

(लेखक स्‍वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं। विचार व्‍यक्तिगत हैं।)

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