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कोरोना वायरस से लड़ने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन क्यों ज़रूरी है?   

कोरोना वायरस या किसी भी आपदा को हराने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और ज़रूरी संसाधनों के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों को और सशक्त बनाना एकमात्र उपाय होगा।
coronavirus
Image courtesy: The Guardian

कोरोना वायरस महामारी के बीच में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प के विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की फंडिंग में कटौती करने के फैसले की चारों तरफ आलोचना हो रही है। ट्रम्प के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए कई लोगों ने इसे मानवता के खिलाफ एक अपराध भी कहा है। डब्ल्यूएचओ के खिलाफ ट्रंप की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण यह बताया गया कि संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य संगठन ने समय पर कोरोना वायरस महामारी की सूचना नहीं दी। जबकि डब्ल्यूएचओ ने 4 जनवरी 2020 को कोरोनोवायरस के बारे में अपनी पहली चेतावनी को ट्वीट किया। फिर उसी महीने के अंत में उसने "अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल" घोषित किया।

जनवरी के अंत और फरवरी में जब डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस के बारे में चेतावनी जारी की तो ट्रम्प ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। हजारों अमेरिकी आज जीवित होते अगर राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह को पहले गंभीरता से सुनने में अधिक समय दिया होता। इसके बजाय ट्रंप ने शुरू में तो डब्ल्यूएचओ की बात की अनदेखी की। जब हालात गंभीर हो गये तो एक बलि के बकरे की तलाश तेज हुई जो डब्ल्यूएचओ पर आकर खत्म हुई। ट्रम्प ने डब्ल्यूएचओ के लिए अमेरिकी फंडिंग पर रोक लगाने की घोषणा कर दी। यह आग लगने के बाद दमकल के ट्रकों को दूर हटाने जैसा काम है।

ट्रम्प की निष्क्रियता से अमेरिका ने डॉक्टरों और नर्सों के लिए पर्याप्त संख्या में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण हासिल करने का मौका गंवा दिया। कम समय में डब्ल्यूएचओ ने एक प्रभावी कोरोना वायरस परीक्षण किट विकसित किया जो दर्जनों देशों में उपयोग किया जा रहा है। जबकि तमाम दावों के बावजूद अमेरिका अभी भी पर्याप्त परीक्षण किट का बंदोबस्त नहीं कर सका है।

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने डब्लूएचओ पर हमला बोला और कहा कि अमेरिकी करदाताओं के धन का उपयोग करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों को अपने लक्ष्यों को पूरा करने की ज़रूरत है। हालांकि डब्ल्यूएचओ के शीर्ष आपात विशेषज्ञ डॉ. माइक रयान साफ कह चुके हैं कि 31 दिसंबर को अज्ञात उत्पत्ति के निमोनिया के मामलों के बारे में चीन द्वारा सूचित किए जाने के कुछ दिनों बाद ही डब्ल्यूएचओ ने 5 जनवरी को सभी सदस्य राज्यों को अलर्ट भेजा था। उस साझा की गई जानकारी और उस चेतावनी के जवाब में अमेरिका में बहुत ही उचित कार्रवाई की गई।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की स्थापना 1948 में संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक स्वास्थ्य निकाय के रूप में की गई। इसका गठन वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा देने, संक्रामक रोग से बचाव और गरीब लोगों की सेवा के लिए हुआ था। यह हैजा, पीत ज्वर और प्लेग जैसे संक्रामक रोगों से निपटने के लिए 19वीं शताब्दी में बने अंतरराष्ट्रीय सैनिटरी सम्मेलनों से प्रेरित था।

आर्थिक तौर पर बहुत कमजोर डब्ल्यूएचओ के पास केवल कोरोना वायरस और इबोला जैसी उभरती हुई बीमारियों के खतरों की जांच करने और आंकड़ों और तकनीकी सिफारिशों के लिए क्लियरिंग हाउस या मंजूरी देने वाले संगठन के रूप में कार्य करने की ही क्षमता है।

डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन को फंडिंग निर्धारित योगदान (assessed contributions) और स्वैच्छिक योगदान  (voluntary contributions) से मिलती है। इसके सदस्य राज्य डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित योगदान का भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह राशि उस देश की समृद्धि और जनसंख्या के हिसाब से निर्धारित होती है। सदस्य राज्य भी स्वैच्छिक योगदान का भुगतान करते हैं। डब्ल्यूएचओ का ज्यादातर कोष यानी करीब 80 प्रतिशत स्वैच्छिक योगदान से आता है। दो साल की अवधि 2010-11 के लिए निर्धारित योगदान 944 मिलियन डॉलर (20%) था और स्वैच्छिक योगदान करीब 3600 मिलियन डॉलर (80%) था। एक अनुमान के अनुसार केवल 38 संगठन डब्ल्यूएचओ को कुल स्वैच्छिक योगदान का 18% प्रदान करते हैं। बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ही अकेले 446 मिलियन डॉलर देते हैं।

अमेरिका ने 2017 में स्वैच्छिक योगदान में 401 मिलियन डॉलर का योगदान किया था। अमेरिका ने 2018 में डब्ल्यूएचओ को स्वैच्छिक योगदान घटा दिया और केवल 281 मिलियन डॉलर दिया। इसके अलावा अमेरिका ने पिछले एक साल से अपने निर्धारित योगदान का भुगतान भी नहीं किया है। डब्लूएचओ का 2018-19 का बजट केवल 4.8 बिलियन अरब डॉलर था। जबकि अमेरिका के 10 सबसे बड़े अस्पतालों में से एक टेक्सास के डलास शहर के 872-बेड के पार्कलैंड मेमोरियल अस्पताल का 2017 का सालाना बजट करीब 1.5 बिलियन (अरब) डॉलर था। सीमित संसाधनों में भी डब्ल्यूएचओ के समान कोई अन्य संगठन अपनी अंतरराष्ट्रीय भूमिका नहीं निभा सकता है। 

ट्रम्प ने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में डब्ल्यूएचओ को कोई योगदान नहीं दिया। अब वह इस काम में लगे संयुक्त राष्ट्र के संगठन को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समझौतों के लिए ट्रम्प का तिरस्कार सर्वविदित है। 2017 में उन्होंने अमेरिका को यूनेस्को और पेरिस जलवायु समझौते से बाहर कर लिया। अगले वर्ष वह ईरान परमाणु समझौते से हट गये।

डब्ल्यूएचओ पर इस तरह के हमले कोई नई बात नहीं है। अफ्रीका में सिएरा लियोन और लाइबेरिया के साथ लगे गिनी के एक दूरदराज के जंगली भाग में जहां स्पष्ट सीमाएं लगभग मौजूद नहीं थीं, 2014 में इबोला वायरस का प्रकोप शुरू हुआ। गिनी के गांवों से होकर जब यह घने शहरों में पहुंच गया, तब डब्ल्यूएचओ ने कार्रवाई शुरू की। तब तक छह महीने की देरी हो चुकी थी। डब्ल्यूएचओ की तत्कालीन महानिदेशक मार्गरेट चैन को इसके कारण सभी पक्षों की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी। डब्ल्यूएचओ के लिए इसके नतीजे गंभीर हो सकते थे और उसकी विश्वसनीयता घटी थी।

डब्ल्यूएचओ के अमेरिका के आलोचकों ने तब भी एक नया वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन स्थापित करने का सुझाव दिया था। बहरहाल राष्ट्रपति ओबामा ने इसका समर्थन नहीं किया। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट में तब कहा गया है कि संगठन की फंडिंग अपर्याप्त थी। सभी देशों की सरकारों ने वर्षों में अपने  योगदान को नहीं बढ़ाया है। वर्तमान महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घिबेयियस सहित सभी हितधारकों ने तब इसके वित्त पोषण में सुधार करने का संकल्प लिया था। 

अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञ इससे सहमत हैं कि डॉ. टेड्रोस के तहत डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने में बेहतर प्रदर्शन किया है। फरवरी की शुरुआत में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेबायियस ने चेतावनी दी थी कि कुछ सुरक्षात्मक चिकित्सा उपकरणों की कीमतें उनकी सामान्य कीमत से 20 गुना तक बढ़ सकती हैं। जैसे-जैसे कोरोना वायरस फैलता जाएगा, उन देशों के लिए यह स्थिति विशेष रूप से भयावह होती जाएगी जो सही  समय पर जरूरी चिकित्सा सामानों की आपूर्ति हासिल करने में विफल रहेंगे।

कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये दुनिया भर में सरकारें राष्ट्रीय स्तर पर जरूरी सामानों को जुटाने के लिये हर हथकंडा अपना रही हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ के सदस्यों सहित कई देशों ने विदेशों में बेचे जाने वाले सुरक्षात्मक मास्क, गाउन, दस्ताने, वेंटिलेटर और परीक्षण किट जैसे सामानों को रोकने के लिए निर्यात पर नियंत्रण के उपायों को लागू किया है। यह प्रतियोगिता इन सामानों की कीमतों को खतरनाक स्तर तक बढ़ाने का खतरा पैदा करती है। 

कोरोना वायरस के गंभीर प्रकोप का सामना कर रहे ब्राजील में परीक्षण किट के लिये जरूरी रासायनिक एजेंट की कमी है, क्योंकि वैश्विक आपूर्ति की बड़ी मात्रा अमेरिका जैसे बहुत अमीर देशों द्वारा खरीद ली जा रही है। अफ्रीका में स्थिति और भी खराब है। उदाहरण के लिये दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 40 लाख से अधिक की आबादी के लिए केवल 3 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं।

पूरी दुनिया में फैलती कोरोना वायरस महामारी के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह भी चेतावनी दी कि दुनिया को लगभग 60 लाख नर्सों की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने अपने साझेदारों नर्सिंग नाउ और इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स (ICN) के साथ एक रिपोर्ट में नर्सों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। दुनिया भर में आधे से अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता नर्सें हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि नर्सें वह सभी जरूरी साजो-सामान और समर्थन प्राप्त करें जो उन्हें दुनिया को स्वस्थ रखने के लिए चाहिए। पूरी दुनिया में इस समय 2.8 करोड़ नर्स हैं। डब्लूएचओ ने कहा कि अभी भी दुनिया में 59 लाख नर्सों की कमी है। डब्लूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में संकेत किया कि अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में नर्सों की संख्या में सबसे ज्यादा कमी है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बीच संक्रमण की बड़ी संख्या पर विशेष रूप से चिंतित हैं। कुछ देशों में 10 प्रतिशत तक स्वास्थ्य कर्मचारियों के संक्रमित होने की रिपोर्ट आई है, यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है।

हर देश को महामारी से निपटने के लिये कुछ आवश्यक चिकित्सा सामानों की आपूर्ति की जरूरत है। अत्यधिक असमान विश्व अर्थव्यवस्था में इसके लिए कुछ हद तक वैश्विक पुनर्वितरण की जरूरत होगी। इन सामानों के लिए बाजार की अनियंत्रित कीमतें उन देशों के लिए तबाही का कारण बन रही हैं, जो इनकी तेजी से बढ़ी कीमतों को वहन नहीं कर सकते हैं। डब्लूएचओ ने जरूरतमंद देशों में सुरक्षात्मक उपकरण, लैब डायग्नोस्टिक्स और ऑक्सीजन की खरीद और वितरण को समन्वित करेगा और बढ़ाने के लिए एक नया आपूर्ति कार्य बल बनाया है। डब्लूएचओ के हिसाब से हर महीने कम से कम 100 मिलियन मेडिकल मास्क और दस्ताने, 25 मिलियन एन-95 श्वासयंत्र, 2.5 मिलियन परीक्षण किट और बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन उपकरण उपलब्ध कराने की जरूरत होगी।

डब्ल्यूएचओ 2014 से अफ्रीका में इबोला के प्रकोप से जूझ रहा है। हर दिन डब्ल्यूएचओ लाखों गरीबों की जिंदगी बचाता है। इसने सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा दिया है। पिछले 25 वर्षों में प्रसव में मरने वाली महिलाओं की संख्या लगभग आधी हो गई है। यह सर्वाइकल कैंसर को खत्म करने के लिए संघर्ष कर रहा है। यह पोलियो के खिलाफ अभियान का हिस्सा है। इसने पूरी दुनिया में करोड़ों बच्चों को अपंगता से बचाकर उनका जीवन संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह एचआईवी/एड्स, तपेदिक और मलेरिया जैसे रोगों के खिलाफ लगातार सक्रिय रहता है। इसके वर्तमान कार्यक्रम में एक अरब से अधिक लोगों तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा का विस्तार करने, अन्य एक अरब लोगों का स्वास्थ्य आपात स्थितियों से बचाव और अन्य एक अरब लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। 

कोरोना वायरस संकट यह दिखाने का एक बड़ा अवसर बन सकता है कि मानव जाति की महामारी को नियंत्रित करने या जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने जैसी बड़ी समस्याओं को केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग से हल किया जा सकता है। कोरोना वायरस को हराने के लिए जरूरी संसाधनों के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों को और सशक्त बनाना एकमात्र उपाय होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)  

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