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लॉकडाउन का सवाल क्यों पूरी दुनिया को परेशान कर रहा है?

दुनिया का एक बड़ा हिस्सा कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन में है। भारत जैसे कई देश इसकी समयावधि या तो बढ़ा चुके हैं या फिर बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि यह कोरोना वायरस से निपटने में पूरी तरह से कारगर नहीं है, साथ ही अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी भी है लेकिन सरकारें फिर भी लॉकडाउन बढ़ा रही हैं।
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Image courtesy: The India Forum

दिल्ली: पिछले कुछ महीनों में हम लॉकडाउन शब्द से परिचित हो गए हैं। लॉकडाउन का अर्थ है तालाबंदी। लॉकडाउन एक आपातकालीन व्यवस्था है जो किसी आपदा या महामारी के वक्त लागू की जाती है। जिस इलाके में लॉकडाउन किया गया है उस क्षेत्र के लोगों को घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है। उन्हें सिर्फ दवा और खाने-पीने जैसी जरूरी चीजों की खरीदारी के लिए ही बाहर आने की इजाजत मिलती है।

इस समय कोरोना वायरस संकट के चलते दुनिया की करीब दो-तिहाई आबादी लॉकडाउन का सामना कर रही है। भारत सहित कई देश इस लॉकडाउन को या तो बढ़ा चुके हैं या बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। मुख्यमंत्रियों के साथ अपनी सबसे ताजा बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोरोना वायरस से ज्यादा प्रभावित राज्यों में तीन मई के बाद लॉकडाउन एक बार फिर बढ़ाने की बात कही है।

ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि लॉकडाउन कब तक रहेगा और इससे कितना फायदा या नुकसान हो रहा है?

सबसे पहले नुकसान की चर्चा करते हैं। चर्चित अर्थशास्त्री और भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि कोरोना वायरस के चलते मौजूदा लॉकडाउन को आगे बढ़ाना अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी होगा। उनका कहना था, ‘ये बड़ा जरूरी है कि आर्थिक गतिविधियां फिर शुरू की जाएं।’ रघुराम राजन का यह भी कहना था कि लॉकडाउन बढ़ाने का मतलब होगा कि सरकार पहली कोशिश में कामयाब नहीं हुई और इससे उसकी विश्वसनीयता घटेगी।

रघुराम राजन ने ये बातें कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ एक संवाद के दौरान कहीं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कोरोना वायरस के चलते पैदा हुए संकट को लेकर अर्थशास्त्रियों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ संवाद के एक सिलसिले की योजना बनाई है। रिजर्व बैंक के पूर्व मुखिया का यह भी कहना था कि लॉकडाउन से परेशानियों का सामना कर रहे वर्ग की मदद करने वाले उपायों के लिए करीब 65 हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी जो भारत जैसी अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किल नहीं है।

लॉकडाउन के साइड इफेक्ट के रूप में हम देश भर में मजदूरों, किसानों और गरीबों की दुर्दशा को भी देख चुके हैं। अनियोजित ढंग से लागू किए गए लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी हुई। इसके अलावा तमाम अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय एजेंसियों ने भी चेतावनी दी है कि दुनिया भर में इसके चलते भुखमरी और बेरोजगारी की समस्या बढ़ जाएगी। बड़ी संख्या में लोग पेटभर खाने के लिए मोहताज हो जाएंगें।
 
वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन से बहुत से देशों में इस वायरस से लड़ाई में फायदा हुआ है। भारत जैसे देश में भी लॉकडाउन के चलते यह संक्रमण अभी महामारी का रूप नहीं ले पाया है। ऐसे में देश की केंद्र सरकार और राज्य सरकारें बड़ा नुकसान होने के बावजूद लॉकडाउन को हटाने के पक्ष में नजर नहीं आ रही हैं। समय से लॉकडाउन लागू करने के भारत के फैसले को दुनियाभर के तमाम एजेंसियों ने सराहा भी है।

इसका एक दूसरा पक्ष यह भी है कि कोरोना संक्रमण से लड़ाई में हम आज भी वहीं खड़े हैं जहां पर दो महीने पहले थे। यानी न तो अभी तक इस वायरस का कोई इलाज खोजा जा सका है और न ही इससे बचाव का कोई टीका बन पाया है। अभी यह भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि एक बार संक्रमण होने पर इसके खिलाफ कोई इम्यूनिटी विकसित हो जाती है या नहीं। और अगर यह होती भी है तो कितने दिनों तक रहती है। ज्यादातर टीका और दवाएं अभी क्लीनिकल ट्रायल पर हैं और अब तक असफल ही हो रही हैं।

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि यह वायरस जल्दी जाने वाला नहीं है और इसलिए यह लड़ाई लंबी चलेगी। उनका कहना है कि दुनिया के ज्यादातर देशों में अभी इससे पैदा हुई महामारी यानी कोविड-19 शुरुआती दौर में ही है।


ऐसे में लॉकडाउन सरकारों के लिए सबसे बड़े हथियार के रूप में सामने आ रहा है। हालांकि दुनियाभर के तमाम चिकित्सा शोध संस्थानों ने इसे लेकर चेतावनी भी दी है। उनका कहना है कि कोरोना वायरस पर लॉकडाउन का असर एक हद तक और अस्थायी ही होगा। संस्थान का कहना था कि इससे महामारी की सबसे बुरी अवस्था के दौरान कोविड-19 के मामलों में लगभग 20-25 फीसदी की कमी तो आएगी लेकिन अगर सरकार ने इससे निपटने के लिए कुछ दूसरे जरूरी कदम नहीं उठाये तो यह कमी भी ‘अस्थायी’ ही होगी। यानी इससे देश भर में संक्रमित लोगों की कुल संख्या में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बस ऐसा थोड़े ज्यादा समय में होगा।

ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी को याद करने की जरूरत है।

WHO के डॉयरेक्टर जनरल टेड्रोस घेब्रेयेसस ने एक महीने पहले दुनिया भर से कहा था, 'आप किसी आग से अंधे होकर नहीं लड़ सकते। अगर हम यह नहीं जानते कि कौन सा व्यक्ति संक्रमित है, तो इस महामारी को नहीं रोक सकते। हमारा सभी देशों के लिए एक ही संदेश है- ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करें। हर संदिग्ध का टेस्ट करें।'

यानी अगर संक्रमण पहचानने के लिए बड़ी मात्रा में टेस्ट नहीं किया गया तो लॉकडाउन का मुख्य उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। आधिकारिक आंकड़े जोर देकर दावा करते हैं कि भारत पर्याप्त मात्रा में टेस्ट कर रहा है, लेकिन इन पर करीब से नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि यह नाकाफी है।

अमेरिका स्थित सेंटर फॉर डिसीज डॉयनेमिक्स इकनॉमिक्स एंड पॉलिसी ने भारत को लेकर अपनी रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा था, 'एक राष्ट्रीय लॉकडॉउन प्रभावी नहीं होगा और इससे गंभीर आर्थिक नुकसान हो सकता है, जिसमें भुखमरी भी शामिल है। इससे संक्रमण के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचने के वक्त में आबादी की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो जाएगी।'

संस्था ने अपने सुझाव में कहा कि लॉकडाउन के साथ-साथ बड़ी संख्या में टेस्टिंग और संक्रमित व्यक्ति, उसके संपर्कों की खोज करनी चाहिए। लॉकडॉउन वहीं करना चाहिए, जहां ज्यादा जरूरी हो।

हालांकि तीसरे चरण के लॉकडाउन में कुछ ग्रीन जोन इलाकों को छूट देने की बात हो रही है। हालांकि यह कैसे लागू होगा अभी तक इसका रोडमैप सरकार सामने नहीं ले आई है। तो वहीं दूसरी ओर आलोचकों का कहना है कि सरकार अपनी कमियां छिपाने के लिए लॉकडाउन का सहारा ले रही है और इसके खतरनाक परिणामों को नजरअंदाज कर रही है।

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