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क्या स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के बिना कोरोना से लड़ाई जीत पाएंगे?

क्या हमारा देश कोरोना वायरस की महामारी से लड़ने के लिए तैयार है? देश भर से जिस तरह की खबरें आ रही हैं उन्हें देखकर लगता है कि हमारी तैयारी नाकाफी है। सबसे बड़ी बात डॉक्टर्स, नर्स, सफाई कर्मचारी या फिर अन्य अस्पतालकर्मियों की सुरक्षा खतरे में नजर आ रही है। आपको बता दें कि इन्हीं पर इस महामारी से लड़ने की महती जिम्मेदारी है।
govt hospital
सांकेतिक तस्वीर

देश अभी कोरोना वायरस जैसी गंभीर महामारी के दौर से गुजर रहा है। संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मंगलवार को यह आंकड़ा अबतक 500 को पार कर गया है। अभी तक दस लोगों की मौत भी हो चुकी है।

अभी इस महामारी के और भी विकराल रूप लेने की आशंका है। अगर अभी इसे नहीं रोका गया तो स्थिति बहुत भयावह होगी और हमारा स्वास्थ्य का ढांचा इसका भार नहीं उठा पाएगा। हालांकि केंद्र और तमाम राज्य सरकारें इसे लेकर कदम उठा रही हैं लेकिन कई विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते अगर हम सजग हो जाते तो स्थिति यहां तक नहीं पहुंचती।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हम इस माहमारी से लड़ने के लिए तैयार हैं? देश के कई हिस्सों से जिस तरह की खबरें आ रही हैं वह डराने वाली हैं। जिन डॉक्टर्स, नर्स, सफाई कर्मचारी या फिर अस्पताल के अन्य लोग जो इस महामारी से लड़ने में बड़ी भूमिका निभाएंगें, क्या वो सुरक्षित हैं? क्या उनको मूलभूत सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है?  

गौरतलब है कि सबसे अधिक संक्रमण का खतरा इन्हीं कर्मचारियों को है। ये सीधे मरीजों के संपर्क में आते हैं। इनमें सबसे खराब हालत में सफाई और सुरक्षा कर्मचारी हैं। कई राज्यों से खबर आई है कि वहां तो डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के पास भी सुरक्षा इंतजाम नहीं है। चिंता की बात यह है कि बिना सुरक्षा उपकरण के हम इस महामारी से लड़ नहीं सकते हैं, क्योंकि अगर ये स्वास्थ्य कर्मचारी ही बीमार पड़ गए तो फिर मरीजों की देखभाल कौन करेगा?

सोमवार रात बिहार के दरभंगा मेडिकल कालेज (डीएमसीएच) से ख़बर आई कि वहां के डॉक्टरों ने काम करने से मना कर दिया है। कारण की उनके पास जरूरी दास्ताने और मास्क नहीं है। हालांकि कुछ देर बाद ही यह भी जानकारी आई कि डॉक्टरों ने फिर से काम शुरू कर दिया है। बिहार के भागलपुर मेडिकल कॉलेज और पटना मेडिकल कॉलेज से भी इसी तरह की खबरें आईं कि वहां डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों के पास पर्याप्त सुरक्षा इतंजाम नहीं हैं।  

बिहार के पत्रकार पुष्यमित्र ने फेसबुक पर एक डॉक्टर के हवाले से लिखा, 'एक बड़े डॉक्टर ने यह जानकारी दी है कि कोरोना संकट से जूझ रहे बिहार के स्वास्थ्य कर्मी (सिर्फ डॉक्टर नहीं, पारा मेडिकल और अन्य स्टाफ भी) दोहरी परेशानी से जूझ रहे हैं। एक तो उनके पास अपनी सुरक्षा के लिये समुचित इंतजाम नहीं है, दूसरी बात यह कि उनके अपने घर, परिवार और आस पड़ोस के लोग उन पर दबाव डाल रहे हैं कि वे घर लौटकर नहीं आएं। इस संकट के बीतने तक बाहर ही रहें। नहीं तो उनके संक्रमण का भी खतरा है। इसी वजह से हर जगह स्वास्थ्य कर्मी रोष में हैं। इस गुस्से को कम करने के लिये ही सरकार ने उनके लिये एक माह के मूल वेतन का पारितोषिक देने की घोषणा की है। "

आप सोचिए ऐसे में कोई डॉक्टर या नर्स काम कर सकता हैं, उनकी मनोस्थति क्या होगी?

एम्स के रेज़िडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (आरडीए) का 16 मार्च का एक पत्र सामने आया है जो उन्होंने अपने डायरेक्टर को लिखा है। जब आरडीए ने एम्स के अलग अलग वार्ड में चेक किया कि आपात स्थिति में कितने पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर हैं तो पता चला कि ज़्यादातर वार्ड में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी सामान पूरे नहीं हैं। आरडीए ने एम्स प्रशासन से अनुरोध कियाहै कि डॉक्टरों और नर्स के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर(PPE)की पर्याप्त व्यवस्था की जाए।

इसी तरह से मध्यप्रदेश में भी चार कोरोना पोज़िटिव मरीज़ भर्ती हैं। इस अस्पताल में N-95 मास्क सभी डॉक्टर के लिए नहीं हैं। उसी के लिए है जो मरीज़ के करीब जा रहा है।

देश की राजधानी दिल्ली की ही बात करे तो यहां भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं हैं। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कोरोना से संक्रमित मरीजों का इलाज किया जा रहा है लेकिन यहाँ भी नर्स और सफाई कर्मचारियों को कोई खास सुविधा नहीं मुहैया कराई जा रही है।

राम मनोहर लोहिया की एक महिला सुरक्षाकर्मी जो अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करना चाहती है। उसने बताया, 'हमें कोई मास्क भी देने को तैयार नहीं हैं, जबकि मैं संक्रमित मरीजों के लिए बने वार्ड के पास काम करती हूँ। बार बार मुझे गेट खोलना और बंद करना होता है इसके अलावा हम कई बार सीधे मरीजों के संपर्क में भी आ जाते हैं। लेकिन हमारे कई बार गुजारिश करने के बाद भी न हमें मास्क दिया जाता है न सैनिटाइजर जब हम इसकी मांग करते हैं तो नर्सिंग स्टाफ कहता है हमारे पास पहले से ही कम है,हम आपको कैसे दें।'

वो आगे कहती हैं, 'बहुत लड़ाई झगड़े के बाद अब हमें मास्क दिया गया है। लेकिन अभी भी अस्पताल में बहुत से ऐसे कर्मचारी हैं जो बिना सुरक्षा के काम कर रहे हैं।'

ऐसे ही एक सफाई कर्मचारी सेवक राम ने बताया,' वे आज भी बिना किसी गलब्स या मॉस्क के काम में जुटे हुए हैं। वे सीधे मरीज के संपर्क में जाते हैं क्योंकि सफाई करनी है लेकिन उन लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। जहां बाकी स्टाफ को कैमिकल, डिटॉल, मॉस्क और गलब्स दिया जा रहा है उन्हें इस तरह की सुरक्षा नहीं दी जा रही है।'

लगभग हर अस्पताल में यही हाल है और इस तरह के कर्मचारी ठेके पर काम करते हैं। इन्हें मुश्किल से ही न्यूनतम वेतन मिल पाता है बाकि सुरक्षा तो छोड़ दीजिए। ये कर्मचारी कहते हैं 'अगर हमे कुछ हो गया तो हमारे परिवार का क्या होगा'।

इसी तरह उत्तर प्रदेश के लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी मास्क की कमी का सामना करना पड़ रहा है। यहां नर्सों और अन्य कर्मचारियों को प्लेन और हाथ से बने मास्क दिए गए। बाकी सफाई और सुरक्षा कर्मचारी की तो बात ही छोड़ दीजिए।

इस पूरे मसले पर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने भी एक ब्लॉग लिखा है। उन्होंने इसमें अधिक जोर डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ पर ही दिया हैं। जबकि इससे निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारियों के हालत और भी ख़राब हैं। इन सबके बाद भी इस ब्लॉग में रवीश ने कई वाजिब सवाल किये हैं, जिनका जवाब सरकारों को देना चाहिए।

उन्होंने अपने लेख में कहा "दिसंबर,जनवरी और फरवरी गुज़र गया, इस मामले में क्या तैयारी थी? क्या हमारे डॉक्टरों की सुरक्षा उन्हें थैंक्यू बोलने से हो जाएगा, क्या उनके लिए सुरक्षा के उपकरण पर्याप्त मात्रा में पहले से तैयार नहीं होने चाहिए? तो फिर हम तैयारी के नाम पर क्या कर रहे थे? क्या हमने ढाई महीने यूं ही गंवा दिए"?

अंत में उन्होंने सवाल किया कि "आख़िर ढाई महीने से भारत क्या तैयारी कर रहा था कि डॉक्टर और नर्स के पास सुरक्षा के उपकरण तक नहीं हैं"?

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