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"नहीं बनने देंगे देश व संसद को विपक्षहीन", राहुल मामले पर बिहार-झारखंड में विपक्ष एकजुट

"भाजपा लोकतंत्र का गला घोंटकर विपक्षहीन सरकार चलाने पर उतारू है, लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे। विपक्ष डरने वाला नहीं है और आने वाले दिनों में भी इस मुद्दे को लेकर सदन से लेकर सड़क तक लड़ाई जारी रहेगी।"
Opposition Protest

तमाम मुद्दों पर बिखरा विपक्ष, राहुल गांधी मामले में एकजुट नज़र आया और राहुल पर की गई कार्रवाई को अलोकतांत्रिक बताते हुए इसका पुरज़ोर विरोध भी किया। विरोध का यह सिलसिला लगातार जारी है।

"राहुल गांधी को संसद में अयोग्य ठहराया जाना, केंद्र की सत्ता पर काबिज़ सत्ताधारी दल भाजपा की राजनैतिक बदले और लोकतंत्र का गला घोंटने की कारवाई है।"

लॉ-एक्टिविस्ट्स के राष्ट्रीय संगठन ‘आईलाज’ ने केंद्र की मौजूदा सरकार पर उक्त आरोप लगाते हुए कहा कि, "देश के सुप्रीम कोर्ट की अनुशंसा-निर्देशों को भी धता बताकर सरकार अपनी मनमर्ज़ी चलाने पर आमादा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, संसद एक ऐसा मजबूत कानून बनाए जिसके तहत राजनीतिक दलों के लिए उन लोगों की सदस्यता रद्द करना अनिवार्य हो सके, जिनके ख़िलाफ़ जघन्य और गंभीर अपराध के आरोप तय किए गए हैं। इसके बाद ही सांसद/विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने संबंधी कानून बना। लेकिन आज भाजपा अपनी सरकारों व पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को बचाने तथा विपक्ष और उसके नेताओं-कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ इसका खुलकर इस्तेमाल कर रही है।

जहां तक राहुल गांधी का मामला है, यह राजनैतिक बदले की भावना से प्रेरित कारवाई है जिसे राहुल गांधी की दोषसिद्धि से लेकर उन्हें ससंद के अयोग्य ठहराए जाने की घटनाओं की पूरी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। यह कृत्य हमारे देश के लोकतंत्र पर एक शर्मनाक हमला है। देश व संसद को विपक्षविहीन बनाने की साज़िश नहीं चलेगी।"

आपको बता दें कि बिहार विधानसभा के चालू बजट सत्र के दौरान 24 मार्च से प्रायः हर दिन ही विपक्षी महागठबंधन दलों के विधायकों और विधान पार्षदों द्वारा लगातार भाजपा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन जारी है। इसी कड़ी में 27 मार्च को भी सदन शुरू होने से पहले और बाद में भी विधानसभा परिसर में काली पट्टी बांधकर ‘एकजुट विरोध’ प्रदर्शन किया गया जिसमें भाकपा माले-सीपीएम-सीपीआई समेत महागठबंधन के घटक दल जदयू-राजद व हम पार्टी के विधायकों-विधान पार्षदों ने विरोध मार्च निकाला।

मोदी हटाओ-देश बचाओविपक्ष की आवाज़ दबाना बंद करोन्यायालयों से लेकर ईडी-सीबीआई इत्यादि का दुरुपयोग बंद करो, जैसे नारों के साथ राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किए जाने के ख़िलाफ़ आक्रोश प्रदर्शित किया गया। सभी प्रदर्शनकारी नताओं ने इस कार्रवाई के लिए भाजपा सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए अविलंब राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल करने की मांग की।

इस विरोध मार्च में शामिल बिहार कांग्रेस विधायक दल के नेता ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी को संसद में बोलने से रोकने के लिए यह सब किया गया है जोकि इस देश के लोकतंत्र को कलंकित करने जैसा है।

भाकपा-माले विधायकों ने भी विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि, "भाजपा लोकतंत्र का गला घोंटकर विपक्षविहीन सरकार चलाने पर उतारू है, लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे। विपक्ष डरने वाला नहीं है और आने वाले दिनों में भी इस मुद्दे को लेकर सदन से लेकर सड़क तक लड़ाई जारी रहेगी।"

बीते 24 मार्च को भी इसी सवाल पर महागठबंधन के विधायकों ने विधानसभा परिसर में विरोध प्रदर्शन करते हुए ये आह्वान किया कि, "देश में जो फ़ासीवाद चल रहा है उसके ख़िलाफ़ पूरे विपक्ष को एकजुट होकर मजबूती से लड़ना होगा।" वहीं इसके अलावा विधानसभा सदन में भी महागठबंधन और भाजपा के विधायकों में काफ़ी तीखी नोक-झोंक हुई थी।

इसी दिन भाकपा-माले के राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद अभियान के तहत बिहार प्रदेश के कई इलाक़ों में विरोध प्रदर्शन किया गया। पटना के कारगिल चौक पर आयोजित हुए प्रतिवाद-अभियान में भाकपा-माले पोलिट ब्यूरो एवं केंद्रीय समिति के सदस्यों के अलावा बिहार के कई विधायकों ने भी भागीदारी की। कार्यक्रम के माध्यम से ये आरोप लगया गया कि, "कथित अडानी घोटाले में घिरी भाजपा-मोदी सरकार अब कोर्ट का इस्तेमाल कर विपक्ष की आवाज़ दबाना चाहती है।"

पार्टी महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस बाबत कांग्रेस अध्यक्ष को विशेष पत्र लिखकर राहुल पर की गई कार्रवाई को लोकतंत्र हमला बताते हुए इसके ख़िलाफ़ व्यापक विपक्षी एकता की अपील की है।

झारखंड की राजधानी रांची में भी विरोध का सिलसिला जारी है। 26 मार्च को अलबर्ट एक्का चौक पर ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, फ़ादर स्टैन स्वामी न्याय मोर्चा, आदिवासी अधिकार मोर्चा व माले समेत कई सामाजिक जन संगठनों द्वारा मार्च निकालकर विरोध दर्ज कराया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एक्टिविस्ट व लेखक कुमार विनोद ने कहा, "यह पूरा मामला लोकतंत्र में लोगों की अभिव्यक्ति पर रोक लगाने का है। इस घटना ने भाजपा सरकार की तानाशाही को खुलकर सामने ला दिया है कि भाजपा या उसकी सरकार के ख़िलाफ़ कोई कुछ भी बोलेगा तो, या तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा या उसकी सामाजिक पहचान ही ख़त्म कर दी जाएगी। इसलिए भाजपा की अलोकतांत्रिक, सांप्रदायिक और तानाशाह सरकार को हटाने के लिए एकजुट मुहीम तेज़ करना ही समय की सबसे बड़ी मांग बन गई है।"

फ़ादर स्टैन स्वामी न्याय मोर्चा के फ़ादर टॉम ने भी विरोध दर्ज कराते हुए कहा, "इस देश को आज़ाद करने और यहां लोकतंत्र का शासन स्थापित करने में कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है जिसे हम किसी भी कीमत पर ख़त्म नहीं होने देंगे। लोकतंत्र विरोधी और तानाशाह आचरण वाली यह सरकार जो चंद पूंजीपतियों के हाथों में देश को गिरवी रखने पर आमादा है, इसे रोकना सबसे ज़रूरी हो गया है। ये आए दिन जनता के अधिकारों पर चोट कर रही है।"

विरोध प्रदर्शन के इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वहां मौजूद अन्य वक्ताओं ने भी कहा, "केंद्र में बैठी मौजूदा भाजपा सरकार में मेनस्ट्रीम मीडिया 'गोदी मिडिया' बनकर रह गया है। ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन भी दूर नहीं जब देश में लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव भी नहीं हो सकेंगे। राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द करने के लिए बेहद शातिराना खेल किया गया है जो लोकतंत्र के लिए काफ़ी घातक है।"

इस पूरे प्रकरण में भाजपा नेताओं और प्रवक्ताओं की भी टिप्पणी और प्रतिक्रियाएं आ रहीं हैं जिसपर विपक्ष का कहना है कि इनमे कोई तार्किक बात नहीं दिखती। चर्चा इस बात की भी है कि राहुल गांधी पर की गई ये कार्रवाई महज़ विपक्ष को रोकने के लिए थी या इसके माध्यम से अपने सभी विरोधियों (पार्टी के अंदर व बाहर दोनों) को ये संदेश देने का काम किया गया कि जो कोई भी विरोध की आवाज़ उठाएगा, उस पर गाज गिर सकती है!

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