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क्या ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मुक़ाबला कर सकेगी मोदी सरकार ?

यदि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को एक और जुमला नहीं बनना है, तो अब समय आ गया है कि विपक्ष यह मांग करे कि सरकार हरित हाइड्रोजन योजनाओं पर एक श्वेत पत्र लेकर आए।
 greenhouse gas
फ़ोटो साभार: TOI

6 फरवरी 2023 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरु में भारत ऊर्जा सप्ताह 2023 का उद्घाटन करते हुए औपचारिक रूप से राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (Green Hydrogen Mission) की घोषणा कर दी। उन्होंने ऐलान किया, "राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन 21वीं सदी में भारत को एक नई दिशा देगा।"

इससे पहले, 4 जनवरी 2023 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी थी। स्वीकृत योजना के अनुसार, भारत का लक्ष्य 2030 तक हरित हाइड्रोजन से 125 गीगा वाट (GW) बिजली के उत्पादन का है। इसमें 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश शामिल होगा। इससे जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) के आयात में 1 लाख करोड़ रुपये की कमी आएगी। यह भी घोषित किया गया था कि इससे वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 50 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) की कमी आएगी। 2030 तक, भारत संभवतः हरित हाइड्रोजन का उत्पादन और निर्यात केंद्र बन जाएगा।

मिशन के लिए प्रारंभिक परिव्यय (initial outlay)19,744 करोड़ रुपये होगा, जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप कार्यक्रम या साइट (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition or SIGHT) हेतु 17,490 करोड़ रुपये, पायलट परियोजनाओं के लिए 1,466 करोड़ रुपये, अनुसंधान एवं विकास के लिए 400 करोड़ रुपये का परिव्यय तथा अन्य मिशन घटकों के लिए 388 करोड़ रुपये का परिव्यय होगा।

SIGHT कार्यक्रम इलेक्ट्रोलाइज़र के घरेलू विनिर्माण और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए दो वित्तीय प्रोत्साहन तंत्र की पेशकश करेगा। उत्पादन -लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (Production-linked incentive or PLI) के समान, सरकार हरित हाइड्रोजन उत्पादकों को परियोजना लागत का कम से कम 10% प्रोत्साहन और उत्पादित हरित हाइड्रोजन पर प्रति किलोग्राम 30-50 रुपये की सब्सिडी देने की योजना बना रही है।

योजना के अनुसार एक मानक और विनियम ढांचा भी विकसित किया जाएगा। इसके अलावा, अनुसंधान एवं विकास (रणनीतिक हाइड्रोजन इनोवेशन पार्टनरशिप - SHIP) के लिए एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) ढांचे की सुविधा प्रदान की जाएगी।

कैबिनेट द्वारा अनुमोदित योजना से यह स्पष्ट होता है कि मिशन अभी प्रारंभिक चरण में है।

जल्द ही सरकारी अधिकारियों और भाजपा-समर्थक मीडिया ने इसे प्रचारित किया। यह ढिंढोरा पीटा गया कि हरित हाइड्रोजन भारत में ऊर्जा क्रांति लाएगा और भारत की समस्त ऊर्जा समस्याओं का समाधान करेगा। यह बताया गया कि स्वच्छ ऊर्जा क्रांति भारत को कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण में काफी हद तक सक्षम बनाएगी, जिसके लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है। इस प्रकार, यह मिशन भारत को 'ऊर्जा परिवर्तन' और ‘नेट ज़ीरो’ उत्सर्जन प्राप्त करने हेतु जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा।

वास्तव में यह एक बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है! इसकी क्रियात्मकता की जांच करने और इसके सामने आने वाली व्यावहारिक आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों को सूचीबद्ध करने से पहले, आइये हम हरित हाइड्रोजन के बारे में एक संक्षिप्त विवरण दें।

हरित हाइड्रोजन क्या है? इसका उत्पादन और उपयोग कैसे किया जाता है?

जब कोयला जलाया जाता है, तो वह ऑक्सीजन के साथ मिलकर कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करता है। संपूर्ण कोयला प्रमुख ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड में बदल जाता है।

पेट्रोल, डीजल, किरासिन तेल, संपीड़ित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas or CNG) और तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (Liquid Petroleum Gas or LPG) आदि जैसे पेट्रोलियम उत्पाद हाइड्रोकार्बन हैं, यानी कार्बन और हाइड्रोजन का रसायनिक संयोजन, और ईंधन के रूप में जलाए जाने पर वे ऑक्सीजन के साथ जलकर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करते हैं, लेकिन कच्चे कोयले की तुलना में कम मात्रा में।

यदि हाइड्रोजन का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है, चाहे वह तरल अवस्था में हो या गैस के रूप में, ऑक्सीजन के साथ वह जलकर पानी बनाता है और यह कोई कार्बन उत्सर्जित नहीं करता। अतः यह सबसे स्वच्छ ईंधन माना जाता है।

हाइड्रोजेन ईंधन की उत्पादन प्रक्रिया

हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन कैसे होता है? इलेक्ट्रोलिसिस नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से पानी के भीतर बिजली प्रवाहित करके पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग किया जाता है और हाइड्रोजन को निगेटिव चार्ज वाले कैथोड पर और ऑक्सीजन को पॉसिटिव चार्ज वाले एनोड पर एकत्र किया जाता है। एकत्रित हाइड्रोजन को क्रायोजेनिक तापमान (अत्यंत निम्न तापमान) तक ठंडा करके तरल हाइड्रोजन में बदल दिया जाता है और संग्रहीत किया जाता है। फिर यह स्टोव और परिवहन वाहनों व रॉकेट आदि में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।

पहली नज़र में यह सरल लगता है, लेकिन इससे केवल कोई नादान ही यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से हरित हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है और हरित हाइड्रोजन को जलाकर बिजली और पानी का उत्पादन किया जा सकता है, जिसे फिर से अधिक हरित हाइड्रोजन और बिजली आदि के उत्पादन के लिए पुनर्चक्रित किया जा सकता है। एक चक्रीय रूप से अंतहीन प्रक्रिया है! लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जो सिद्धांत में सरल दिखता है वह व्यवहार में कठिन चुनौतियों से भरा है। जब व्यावसायिक उत्पादन की बात आती है तो चुनौतियाँ आर्थिक लिहाज़ से और भी कठिन हो जाती हैं। सुरक्षा चुनौतियां भी काफी जटिल हैं।

आर्थिक चुनौतियां

सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक चुनौती यह है कि हरित हाइड्रोजन की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के लिए बिजली के उपयोग की आवश्यकता होती है। लेकिन उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली की तुलना में हरित हाइड्रोजन के माध्यम से कम बिजली का उत्पादन होता है।

हरित हाइड्रोजन निस्संदेह सबसे स्वच्छ ईंधन है लेकिन यह आर्थिक रूप से अप्राप्य है। आइए लागतों की तुलना करें।

450 रुपये की कीमत वाला 1 किलो ग्रीन हाइड्रोजन 6 किलोमीटर का माइलेज देता है।

100 रुपये प्रति लीटर की लागत से 4.5 किलोमीटर की माइलेज वाली बस 450 रुपये के डीजल से 20.25 किलोमीटर तक चल सकती है।

एक ग्रीन हाइड्रोजन बस की कीमत 1.85 से 2.3 करोड़ रुपये है।

डीजल बस की कीमत 34 लाख रुपये और सीएनजी बस की कीमत 38 लाख रुपये है।

हरित हाइड्रोजन का व्यावसायिक उत्पादन तब तक संभव नहीं है जब तक कि इसकी उत्पादन लागत में भारी कमी नहीं की जाती और सौर या पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) के अन्य स्रोतों की तुलना में कीमत भी काफी कम नहीं की जाती है।

इसके अलावा, अन्य ऊर्जा उपयोग उद्देश्यों के लिए भी, सौर ऊर्जा की 1 यूनिट की लागत लगभग 2.50 रुपये है और हरित हाइड्रोजन ऊर्जा की 1 यूनिट की लागत 7 रुपये होगी। जब तक विशेष रूप से तकनीकी कारणों से आवश्यक न हो, कोई भी सस्ती सौर ऊर्जा के बजाय इस दर पर हरित हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग क्यों करेगा?

हरित हाइड्रोजन को हरा इसलिए कहा जाता है क्योंकि हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग इनपुट के रूप में किया जाता है। यदि नवीकरणीय ऊर्जा के स्थान पर प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है, तो इससे कार्बन उत्सर्जन भी होगा और इस प्रकार उत्पादित हाइड्रोजन ईंधन किसी भी पर्यावरणीय लाभ को खो देगा।

सुरक्षा चुनौती

हरित हाइड्रोजन अत्यधिक ज्वलनशील होता है। दरअसल, यह पेट्रोल से भी अधिक ज्वलनशील होता है। वास्तव में, यह लिथियम आयन बैटरियों की तुलना में भी अधिक ज्वलनशील है, जिससे लिथियम आयन बैटरी पर चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहन - मुख्य रूप से दोपहिया वाहन, यहां तक कि कारें और बसें भी कई बार आग की लपटों से जल जाती हैं। इसके अलावा, तरल हाइड्रोजन और अन्य ईंधन प्रणालियों के लिए रिसाव-प्रूफ भंडारण सुविधाएं अभी भी विकसित होने की प्रक्रिया में हैं। उनकी भारी लागत की वजह से हरित हाइड्रोजन उपकरणों के उपयोग की लागत भी काफी बढ़ जाएगी।

हरित हाइड्रोजन पहल में अब तक की प्रगति

लेखक पीबी जयकुमार ने फॉर्च्यून इंडिया पत्रिका के 8 जून 2023 अंक में भारत में हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी और वाणिज्यिक विकास में प्रगति का संक्षिप्त सारांश दिया था। इस सारांश के अनुसार, हाइड्रोजन ईंधन सेल (Hydrogen fuel Cell or HFC) संचालित परिवहन वाहनों का पहला उपयोग भारत में पर्यटन सर्किट में शुरू किया जाएगा। निकट भविष्य में, लोग हाइड्रोजन ईंधन सेल (HFC) संचालित कटमरैन पर वाराणसी में गंगा में नाव का आनंद ले सकेंगे। इसी तरह, हाइड्रोजन से चलने वाली बसें वडोदरा से केवडिया में नर्मदा के तट पर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी तक आगंतुकों को ले जाएंगी। इसी तरह, नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की सहायक कंपनी, एनटीपीसी रिन्यूएबल्स, लेह, लद्दाख में पांच हाइड्रोजन ईंधन सेल बसें संचालित करने की योजना बना रही है।

अगस्त 2022 में, एक प्रदर्शन परियोजना (demonstration project) में, स्वदेशी रूप से विकसित HFC बस का पहला ट्रायल रन आयोजित किया गया था।

भारतीय रेलवे ने विभिन्न विरासत (heritage) और पहाड़ी मार्गों पर 35 हाइड्रोजन-संचालित ट्रेनें चलाने की योजना बनाई है। इन योजनाओं के तहत सबसे पहले उत्तर रेलवे जींद-सोनीपत सेक्शन में ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन चलाने की योजना बना रहा है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सभी दिखावटी शोपीस या पायलट प्रोजेक्ट हैं, जिन्हें आर्थिक व्यवहार्यता की परवाह किए बिना चलाया जा रहा है।

भारतीय कॉरपोरेट दिग्गज हरित हाइड्रोजन बाज़ार पर एकाधिकार जमाने के लिए तैयार

यह महसूस करते हुए कि हरित हाइड्रोजन एक ट्रेंडी चीज़ है, भारत में बड़े कॉरपोरेट घरानों ने अपनी भव्य दृष्टि (grand vision) की घोषणा की है।

मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने गुजरात में अगले 10-15 वर्षों में 5.95 लाख करोड़ रुपये की लागत से 100 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र विकसित करने की योजना घोषित की है, जिसमें सौर ऊर्जा के लिए फोटोवोल्टिक सेल्स (photovoltaic cells) के उत्पादन के अलावा एक हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र भी शामिल है।

गौतम अडानी ने अगले दशक में हरित हाइड्रोजन और संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र में अडानी न्यू इंडस्ट्रीज लिमिटेड (ANIL) द्वारा 50 बिलियन डॉलर के निवेश के अपने समूह की परिकल्पना का ऐलान किया है।

टाटा मोटर्स ने प्रोटोटाइप हाइड्रोजन ईंधन बसें विकसित की हैं और अब व्यावसायिक हाइड्रोजन ईंधन सेल बसों और ट्रकों के उत्पादन की योजना बना रही है।

लेकिन इन कॉरपोरेट घरानों ने केवल अपनी भविष्य की योजनाओं की घोषणा की है, और अभी तक ठोस निवेश आना शुरू नहीं हुआ है।

सरकार हरित हाइड्रोजन उत्पादन शुरू करने की योजना की घोषणा करने के लिए प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को भी प्रेरित कर रही है। BPCL, HPCL, IOC, ऑयल इंडिया की नुमालीगढ़ रिफाइनरी, चेन्नई पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और ONGC की मैंगलोर रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल उद्योगों ने तदनुसार 2030 तक हरित हाइड्रोजन उत्पादन करने की योजना की घोषणा की है।

लेकिन हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग में कठिन चुनौतियां शामिल हैं। यदि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को एक और जुमला नहीं बनना है, तो अब समय आ गया है कि विपक्ष यह मांग करे कि सरकार हरित हाइड्रोजन योजनाओं पर एक श्वेत पत्र लेकर आए। क्या सरकार विकट आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों पर काबू पा सकेगी, यह सबसे बड़ा सवाल है!

(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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