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क्या फ़िलिस्तीनियों का संघर्ष एक बार फिर महाशक्तियों के कुचक्र में फंस जाएगा?

चाहे अरब देश हों या अमेरिका समेत बाक़ी साम्राज्यवादी मु़ल्क़, सभी के लिए फ़िलिस्तीन अपनी एक वैश्विक रणनीति के सिवा कुछ भी नहीं है।
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फ़ोटो साभार : Reuters

गाज़ा पर इज़राइल से लगातार हो रहे हमले अब एक भयानक दौर में पहुंच गए हैं। बुधवार 18 अक्टूबर को गाज़ा के बैपटिस्ट अस्पताल में हुए एक मिसाइल हमले में कम से कम 500 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल भी हुए। गाज़ा की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया कि, "जिस अस्पताल में यह हमला हुआ है वहां सैकड़ों बीमार और घायल लोग थे और अन्य लोग भी थे, जो युद्ध की शुरूआत के बाद विस्थापित हो गए थे।" हमास के प्रवक्ता ने कहा कि, "इज़राइल द्वारा निर्दोष लोगों पर की जा रही बमबारी के परिणाम स्वरूप यह घटना हुई है।" लेकिन इज़राइल ने इस घटना में अपना हाथ होने से साफ़ इनकार किया है। उसका कहना है कि, "हमास के सहयोगी 'इस्लामी जेहाद' नामक संगठन द्वारा एक मिसाइल की ग़लत लॉन्चिंग के कारण यह घटना हुई।"

इस घटना में चाहे जिसका हाथ हो, लेकिन इज़राइल द्वारा गाज़ा पर किए गए लगातार हवाई हमलों से एक भयंकर मानवीय त्रासदी पैदा हो रही है। इज़राइल ने गाज़ा की चारों ओर से नाकाबंदी कर दी है, बिजली-पानी की सप्लाई पूरी तरह से ठप हो गई है, अस्पतालों में दवा तथा अन्य चिकित्सा सामग्री क़रीब-क़रीब समाप्त हो गई है।

गाज़ा के लोगों की मानवीय सहायता के मद्देनज़र सहायता सामग्री पहुंचाने के लिए वहां तक एक सुरक्षित रास्ता देने की संयुक्त राष्ट्र संघ की अपील तक इज़राइल ने ठुकरा दी है। 19 अक्टूबर को इज़राइल पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अस्पताल में हुए हमले के लिए इज़राइल को क्लीन चिट दे दी और यह भी कहा कि, "अमेरिका हर हाल में इज़राइल के साथ खड़ा रहेगा।" संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा भी लगातार दोनों पक्षों से शांति की अपील की जा रही है, परंतु ये अपीलें बेअसर साबित हो रही हैं। इज़राइल का कहना है कि वह ज़मीनी रास्ते से गाज़ा में प्रवेश करके हमास का सफ़ाया करेगा। इसके लिए उसने इज़राइल और गाज़ा की सीमा के चारों और टैंकों सहित सशस्त्र सेना तैनात कर दी है। मिस्र ने भी गाज़ा से लगी अपनी सीमा को सेना के ज़रिए पूरी तरह से बंद कर दिया है, जिससे फ़िलिस्तीनी शरणार्थी मिस्र में न घुस सकें।

क्या इस भयंकर मानवीय संकट से दुनिया दो भागों में बंट गई है। देखने में तो ऐसा लगता है, लेकिन यह बात पूरी तरह से सत्य नहीं है। सभी की अपनी वैश्विक रणनीतियां हैं। आम जनता का नरसंहार या उनका विस्थापन साम्राज्यवादियों के लिए कोई मायने नहीं रखता, ऐसा बार-बार देखा गया है। फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर भी ऐसा ही देखने में आ रहा है। ईरान, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन अगर सीधे-सीधे फ़िलिस्तीन के पक्ष में खड़े हैं तो इसका एक कारण यह है कि अमेरिका और इज़राइल ईरान के धुरविरोधी हैं। अमेरिका ने ईरान पर अनेक प्रतिबंध भी लगाए हैं। ईरान का परमाणु कार्यक्रम हमेशा इज़राइल और अमेरिका की आंखों को खटकता रहता है। यही वजह है कि ईरान, इज़राइल से हिसाब चुकता करने की सोच रहा था। वर्तमान संकट ने उसको एक सुनहरा मौका दिया और ईरान ने हमास को पूरी तरह से समर्थन दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि ईरान का इस हमले की रणनीति बनाने में तथा हथियार देने में हाथ है।

लेबनान में ईरान समर्थित लाखों की संख्या में 'हिज़बुल्ला ग्रुप के लड़ाके' हैं, वे भी लगातार इज़राइल पर रॉकेट्स से हमले कर रहे हैं। ईरान ने यह धमकी दी है कि अगर इज़राइल ने गाज़ा में प्रवेश किया, तो ईरान सीधे-सीधे युद्ध में कूद सकता है। हिज़बुल्ला को लड़ाई से दूर रखने के लिए अमेरिका ने दो एयरक्राफ्ट कैरियर मध्य-पूर्व में भेजे हैं। अमेरिका की वैश्विक रणनीति के तहत इज़राइल उसका प्रमुख सहयोगी है।

इस संघर्ष में रूस और चीन की अपनी-अपनी अलग ही रणनीतियां हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका यूक्रेन को भारी मात्रा में हथियार दे रहा था और उसके साथ सारे ही नाटो देश भी शामिल थे। रूस के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंध लगवाने तथा यूक्रेन में हो रहे मानवाधिकारों के मुद्दे पर रूस को कटघरे में खड़ा करने में भी अमेरिका की महत्वपूर्ण भूमिका थी, इसलिए अब जब इज़राइल, गाज़ापट्टी पर बमबारी कर रहा है और वहां सैकड़ों लोगों की मौत प्रतिदिन हो रही है, तब रूस को अमेरिका और पश्चिमी देशों की मानवाधिकार संबंधी "दोहरी नीति" को लेकर इन देशों को घेरने का अवसर मिल गया है।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर यह युद्ध समूचे मध्य एशिया में फैला तो बड़ा आर्थिक संकट पैदा हो सकता है, तेल की सप्लाई कम होने के कारण उसके दाम भी बढ़ सकते हैं। अभी हाल ही में ईरान ने घोषणा की थी कि "अरब देश इज़राइल को तेल की सप्लाई बंद कर दें।" अगर इज़राइल तथा पश्चिमी देशों को तेल की सप्लाई रुक जाए या कम हो जाए तो बड़ा आर्थिक संकट पैदा हो सकता है। रूस जो कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है वो इस बात का फ़ायदा उठा सकता है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अभी हाल में इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है तथा मध्य-पूर्व में चीन के राजदूत ने अपना बयान दिया है कि "इस युद्ध के लिए अमेरिका और इज़राइल पूरी तरह से ज़िम्मेदार हैं क्योंकि फिलिस्तीनियों के अधिकारों की कभी गारंटी नहीं दी गई।"

इसे चीन की ओर से सबसे बड़ा बयान माना जा रहा है। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वह आर्थिक और सैन्य दृष्टि से अमेरिका और पश्चिमी जगत को हर तरह से चुनौती दे रहा है। चीन को घेरने के लिए अमेरिका भारत के साथ न केवल सैन्य गठजोड़ कर रहा है, बल्कि उसे ग्लोबल साउथ का नेता भी बता रहा है।

चीन की "सी एंड रोड बेल्ट परियोजना" के मुक़ाबले जी-20 सम्मेलन में एक नयी रोड परियोजना जो भारत से यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन और इज़राइल के ज़रिए मूमध्यसागर तक ग्रीस होते हुए यूरोप तक 'इंडिया मिडिल ईस्ट-यूरोप इकॉनोमिक कॉरीडोर' बनाने की योजना थी, उस समझौते के पीछे बड़ा उद्देश्य अभी हॉल में ब्रिक्स के सदस्य बने सऊदी अरब एवं अन्य खाड़ी देशों से इज़राइल को मान्यता दिलाकर इन देशों को अपनी ओर खींचना था लेकिन इस युद्ध के कारण उस समझौते को धक्का लगा है।

इस समय सऊदी अरब ने फिलहाल इज़राइल से दूरी बना ली है और उसकी आलोचना भी की है। इसका फ़ायदा चीन उठा रहा है। अभी हॉल में चीन की रोड एवं बेल्ट परियोजना के दस वर्ष पूरा होने पर चीन ने एक बड़ा सम्मेलन किया, जिसमें क़रीब 120 देशों ने भाग लिया। सम्मलेन में रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी शामिल हुए जो जी-20 सम्मेलन में दिल्ली नहीं आए थे। चीन ने अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को मान्यता भी दे दी है, इसके प्रतिनिधि भी इस सम्मेलन में आए थे। इस सारे घटनाक्रम में सऊदी अरब की स्थिति सबसे विचित्र है। एक ओर उसे मुस्लिम देश होने के कारण फ़िलिस्तीन के पक्ष में बोलना है, क्योंकि मुस्लिम देशों के उसके नेता होने के वर्चस्व को ईरान लगातार चुनौती दे रहा है लेकिन अमेरिका के साथ उसके बहुत अधिक आर्थिक और सैन्य हित जुड़े हुए हैं, इसलिए यह उसे भी नहीं छोड़ सकता।

1948 में इज़राइल के गठन के बाद से लगातार फ़िलिस्तीनी लोग विस्थापन और भयंकर मानवीय त्रासदियों के शिकार हो रहे हैं। चाहे अरब के देश हों या अमेरिका समेत अन्य साम्राज्यवादी मु़ल्क़, सभी के लिए फ़िलिस्तीन अपनी एक वैश्विक रणनीति के सिवा कुछ भी नहीं है। आज गाज़ा में जो कुछ हो रहा है वो भी इसी तथ्य को रेखांकित करता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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