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क्या आईटी नियमों में नए संशोधन ऑनलाइन जुए पर लगा सकेंगें अंकुश?

ऑनलाइन गेमिंग पर संशोधित नियमों के ड्राफ्ट को पढ़ने और बारीकी से जांच करने पर पता चलता है कि ड्राफ्ट में ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाने वाली कोई बात नहीं है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : bestonlinecasinos/Pixabay

 

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने 2 जनवरी 2023 को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर "आईटी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021" के ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित ड्राफ्ट संशोधनों को पोस्ट किया और सभी हितधारकों से 17 जनवरी 2023 तक उस पर राय मांगी है। उसी दिन इन ड्राफ्ट नियमों पर मीडिया रिपोर्टरों को जानकारी देते हुए, श्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि संशोधित आईटी नियम प्रभावी रूप से ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए पर प्रतिबंध लगाएंगे। उनके शब्दों में  बयां करें तो राजीव चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘कोई भी खेल जो खेल के परिणाम पर दांव लगाते हैं या दांव लगाने की अनुमति देते हैं, प्रभावी रूप से  ‘अवांछित’ क्षेत्र हैं; यदि आप खेल के परिणाम पर दांव लगाते हैं, तो यह निषिद्ध है।’’

आईटी मंत्री ने आगे स्पष्ट किया कि संशोधित आईटी नियमों के तहत प्रस्तावित गेमिंग उद्योग की सेल्फ-रेगुलेटरी बॉडी को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी गेमिंग कंपनी द्वारा संचालित किए जाने वाले सभी गेम्स मौजूदा कानूनों का पालन करेंगे। ड्राफ्ट नियमों के साथ मंत्रालय द्वारा जारी एक व्याख्यात्मक नोट में यह भी कहा गया है, "मसौदा संशोधनों में यह परिकल्पना की गई है कि एक ऑनलाइन गेमिंग (gaming intermediary) अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय नियमों के तहत आवश्यक परिश्रम (diligence) का पालन करेगा जिसमें ऐसा उचित प्रयास शामिल है, जो उपयोगकर्ताओं को सलाह देगा कि वे ऑनलाइन गेम होस्ट न करें, जुआ या सट्टेबाजी पर किसी भी कानून सहित भारतीय कानून के अनुरूप नहीं होने वाले ऑनलाइन गेम को प्रदर्शित, प्रसारित व साझा न करें।“

एक प्रभावी कानून के बजाय आईटी नियमों में लापरवाही भरे संशोधन

ऑनलाइन गेमिंग पर संशोधित नियमों के ड्राफ्ट को पढ़ने और बारीकी से जांच करने पर पता चलता है कि ड्राफ्ट में ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाने वाली कोई बात नहीं है। स्पष्ट उल्लेख के अभाव में स्व-नियामक निकाय (Self-Regulating Body) किस कानूनी आधार पर सट्टेबाजी और जुए की अनुमति देने वाले किसी भी ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगा सकता है?

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (Internet Freedom Foundation) में एसोसिएट पॉलिसी काउंसिल, तेजस्वी पंजियार ने सवालों का स्पष्टिकरण देते हुए न्यूज़क्लिक को बताया, ‘‘इन नियमों ने ऑनलाइन सट्टेबाज़ी पर प्रतिबंध नहीं लगाया है क्योंकि इनका इरादा उन्हें प्रतिबंधित करने का था ही नहीं। जुए के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून पहले से मौजूद है। भले ही ऐसा कोई कानून मौजूद न भी हो, आईटी अधिनियम के तहत अधिसूचित नियम ऑनलाइन जुए पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं। इसे प्रतिबंधित करने के लिए एक विशेष नए कानून की ज़रूरत है।’’

सुश्री तेजस्वी निश्चित ही सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867 के पुराने और अप्रभावी औपनिवेशिक कानून का जिक्र कर रही थीं। कानून की किताबों में इस अधिनियम के मौजूद रहते हुए भी सभी प्रकार के जुए, मसलन पॉश क्लबों में ताश के खेल, घुड़दौड, या अन्य स्पोर्टस पर सट्टेबाज़ी़ और अब ऑनलाइन सट्टेबाज़ी बिना किसी बाधा के जारी हैं और किसी को भी इस कानून के तहत सज़ा नहीं मिलती है। यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि 1867 का कानून ‘गेम ऑफ चांस’ और ‘कौशल के खेल’ के बीच अंतर करता है और केवल पहले वाले को प्रतिबंधित करता है। किसी दिए गए क्रिकेट मैच में कौन जीतेगा या किसी चुनाव में कौन सी पार्टी या उम्मीदवार जीतेगा इन पर सट्टा लगाने वाली सभी ऑनलाइन जुआ कंपनियां ये तर्क देती हैं कि ये भी कौशल के ही खेल हैं। इसलिए सभी खामियों को दूर करके ऑनलाइन सट्टेबाजी पर, यहां तक कि कार्ड-गेम के जुआ तक पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक नया और अधिक प्रभावी विशेष कानून ही अंकुश लगा सकता है।

एक अन्य मत सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता-ऐक्टिविस्ट रवीद्र गढ़िया का है। उनका कहना है कि जुए को रोकने के लिए पहले से कानून मौजूद हैं, उसमें क्या खामियां रहीं इसपर मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए, ज़रूरत पड़ने पर आवश्यक सुधार करने चाहिए। फिर नए कानून लाने का सवाल ही नहीं उठता। उनका यह भी मानना है कि जुआ राज्य का मामला है इसलिए इसे राज्य पर ही छोड़ देना चाहिए।

‘1867 के इस टूथलेस’ कानून को बदलने के लिए कोई नया प्रभावी कानून लाने के बजाय, आईटी मंत्री आखिर यह झूठा दावा क्यों कर रहे हैं कि संशोधित आईटी नियम ऑनलाइन सट्टेबाज़ी और जुए पर प्रतिबंध लगाने में सक्षम होंगे? क्या ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि मंत्री जी एक पब्लिक धारणा बनाना चाहते हैं कि उनकी सरकार एक अप्रभावी औपनिवेशिक युग के कानून को जारी रखने की अनुमति देते हुए भी ऑनलाइन जुए पर प्रतिबंध लगाने की इच्छुक है ताकि ऑनलाइन सट्टेबाजी उद्योग पनप सके और ऑनलाइन सट्टेबाज़ी और जुआ परोक्ष रूप से जारी रह सके?

दरअसल, मंत्री जी ने स्वयं इसका खुलासा किया, ‘‘नियम सरल हैं। वास्तव में हम चाहते हैं कि ऑनलाइन गेमिंग सिस्टम का विस्तार और विकास हो और यह 2025-26 तक भारत के एक ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लक्ष्य के लिए एक महत्वपूर्ण उत्प्रेरक बने। ऑनलाइन गेमिंग उद्योग में स्टार्टअप्स के लिए हम एक बड़ी भूमिका की भी कल्पना करते हैं।” गेमिंग उद्योग के उद्योग मंडलों जैसे ऑल-इंडिया गेमिंग फेडरेशन (AIGF) [भारत में ऑनलाइन कौशल गेमिंग के लिए शीर्ष निकाय] ने ड्राफ्ट नियमों का स्वागत किया है। AIGF के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, रोलैंड लैंडर्स, इसे 'ऑनलाइन गेमिंग' के लिए व्यापक विनियमन के लिए एक महान पहला कदम बताते हैं और कहते हैं, ‘‘उम्मीद है कि यह राज्य-वार विनियामक विखंडन (state-wise regulatory fragmentation) को कम करेगा जो उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती थी”

इतनी हड़बड़ी क्यों?

इस हड़बड़ी के पीछे एक और पहेली है जिसके साथ आईटी मंत्रालय इन नियमों को लेकर आया है। 26 दिसंबर 2022 को ही कैबिनेट सचिवालय ने ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित मामलों के लिए MeiTY को नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करते हुए बिजनेस नियम, 1961 के आवंटन के तहत बदलाव को अधिसूचित करते हुए एक राजपत्र अधिसूचना जारी की थी। मुश्किल से एक सप्ताह पूरा होने से पहले, मंत्रालय ने सार्वजनिक परामर्श के लिए 2 जनवरी 2023 को ड्राफ्ट नियम जारी किए। हालांकि मंत्री ने कभी यह बताने की ज़हमत नहीं उठाई कि कैसे एक सप्ताह के भीतर उनका मंत्रालय सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद इन ड्राफ्ट नियमों को तैयार करने में सक्षम हुआ।

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने एक बयान में कहा है, “व्यवसाय के आवंटन नियम, 1961 के तहत अधिसूचित परिवर्तन केवल यह स्पष्ट करता है कि कौन सा मंत्रालय ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित मामलों का प्रबंधन करेगा, यह स्वचालित रूप से इसे प्रयोग करने की शक्तियां प्रदान नहीं करता है, बल्कि उसके लिए एक संसदीय अधिनियम की आवश्यकता है। हालांकि, संसद में जाने की बजाय, ये आईटी नियम ऑनलाइन गेमिंग को शामिल करने के लिए आईटी अधिनियम के दायरे में विस्तार करना चाहते हैं।

परिस्थिति के अनुरूप साक्ष्य बताते हैं कि इतनी जल्दबाजी के पीछे सिर्फ एक ही कारण है। तमिलनाडु विधानसभा ने 19 अक्टूबर 2022 को ऑनलाइन जुए पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक विधेयक पारित किया, जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा 2022 में जस्टिस चंद्रू की अध्यक्षता वाली समिति ने पाया कि पिछले 3 वर्षों में राज्य में 17 लोगों ने ऑनलाइन जुए में पैसा गंवाने के कारण आत्महत्या की थी। तमिलनाडु विधेयक ने गेम ऑफ चांस के साथ-साथ कौशल के खेलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की, क्योंकि दोनों में ही परिणामों पर सट्टेबाजी का पैसा शामिल था।

गेमिंग कंपनियों के एक संघ ई-गेमिंग फेडरेशन (ईजीएफ) ने कहा कि वे उच्च न्यायालय में तमिलनाडु अध्यादेश की वैधता को चुनौती देंगे, जिसे एक विधेयक के रूप में पारित किया गया था। ईजीएफ के सीईओ समीर बार्डे ने एक बयान में कहा, “अध्यादेश की जांच करने के बाद, हमने मुकदमा दायर करने का फैसला किया है, क्योंकि अध्यादेश रम्मी और पोकर को गेम ऑफ चांस के रूप में वर्गीकृत करता है। यह कई न्यायिक घोषणाओं के विपरीत है, जिसमें स्वयं मद्रास उच्च न्यायालय का एक हालिया निर्णय भी शामिल है। सर्वाेच्च न्यायालय और कई उच्च न्यायालयों ने कौशल-आधारित खेलों की वैध व्यावसायिक गतिविधि के रूप में फिर से पुष्टि की है और तमिलनाडु को एक सक्षम गेमिंग नीति विकसित करने में इन निर्णयों का संज्ञान लेना चाहिए जो खिलाड़ियों को प्रतिबंध का सहारा लेने से बचाते हैं।

दरअसल, तमिलनाडु में पिछली जयललिता सरकार ने इसी तरह का एक कानून पारित किया था जिसे मद्रास उच्च न्यायालय ने अगस्त 2021 में असंवैधानिक होने और भारत में कानूनी खेलों की पेशकश करने वाली व्यावसायिक कंपनियों के हितों को नुकसान पहुंचाने के नाम पर रद्द कर दिया था। इसलिए, मौजूदा डीएमके सरकार एक नया कानून लेकर आई।

जबकि तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि सट्टेबाजी से जुड़े ऑनलाइन खेलों पर प्रतिबंध लगाने वाले अध्यादेश को लागू करने के लिए सहमत हुए, उन्होंने अभी तक विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आगे नहीं बढ़ाया है। प्रसिद्ध टीवी एंकर टीएसएस मणि ने न्यूज़क्लिक को बताया कि केंद्रीय ड्राफ्ट नियम अब राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए न भेजने का बहाना उपलब्ध कराएंगे।’’

बारीक विभाजन रेखा

ऑनलाइन गेमिंग बेहद व्यापक है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में 140 मिलियन लोग गेमिंग सट्टेबाज़ी में शामिल हैं और सट्टेबाज़ी की मात्रा 10 फीसदी की चक्रवृद्धि दर के साथ लगभग $30 बिलियन है। ऑनलाइन गेमिंग, ऑनलाइन सट्टेबाजी की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है और भारत में ऑनलाइन गेमिंग सर्विसेज की पेशकश करने वाली कंपनियों की संख्या लगभग 1000 है। मंत्री ने स्वयं कहा है कि यह जल्द ही 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब होगा।

यह वास्तव में सच है कि गेमिंग को जुए से और ‘कौशल के खेल’ को ‘गेम ऑफ चांस’ से विभाजित करने वाली रेखा बहुत बारीक है, जिसे आसानी से धुंधला किया जा सकता है। न्यायमूर्ति चंद्रू समिति ने कहा था कि चूंकि कई ऑनलाइन गेम कंप्यूटर एल्गोरिथम (Algorithm) द्वारा नियंत्रित होते हैं, इसलिए एल्गोरिथम या सॉफ्टवेयर प्रोग्राम से अलग करके ऑनलाइन गेम में चांस या कौशल की डिग्री का आंकलन करना मुश्किल है। वकील और एक्टिविस्ट रवींद्र गढ़िया ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कौशल के हर खेल में चांस का तत्व भी होता है और इसके उलट भी। कानून के लिए अंतर करना बेहद ही मुश्किल है।

अगर ट्रैक किया भी जाता है तो इन विदेशी कंपनियों के खिलाफ भारतीय कानून के तहत कानूनी कार्रवाई करना संभव नहीं है। इसके अलावा, ऑनलाइन जुए में लगी कई कंपनियां टोकन के साथ उपयोगकर्ताओं को पुरस्कृत करती हैं, जिन्हें तीसरे पक्ष के साथ नकद या क्रिप्टो करंसी में आदान-प्रदान किया जा सकता है और इन क्रिप्टो के पैसे के निशान को ट्रैक करना बहुत मुश्किल है। इसके अलावा, कई विदेशी कंपनियां ऑफशोर बेटिंग सेवाएं भी प्रदान कर रही हैं।डिजिटल युग में, भारतीय धरती से सीमा पार सट्टेबाज़ी के ऐसे हर कृत्य को ट्रैक करना बहुत मुश्किल है और भले ही स्व-नियामक समिति (Self-Regulatory Comittee) सट्टेबाजी से जुड़े कुछ ऑनलाइन गेमों पर प्रतिबंध लगा सकती है, लेकिन एक व्यापक कानून के अभाव में गेमिंग कंपनियां एक अंतहीन मुकदमेबाज़ी का सहारा लेकर ऐसे प्रतिबंधों को विफल कर सकती हैं।

इस वक़्त जिस चीज की सबसे अधिक आवश्यकता है वह है एक विस्तृत कानून जो सभी प्रकार की ऑनलाइन सट्टेबाज़ी और जुए पर प्रतिबंध लगाता हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग, विशेषकर युवा, इसकी लत के शिकार हो जाते हैं, धन खो देते हैं, और मर भी रहे हैं। लेकिन महज़ एक कानून भी प्रभावी नहीं हो सकता है। नोएडा में ऐनिमेशन करने वाले एक तकनीकी विशेषज्ञ सिद्धार्थ ने कहा कि माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों का भी कुछ दायित्व बनता है कि वे बच्चों और युवाओं को भटकने से बचाएं।

(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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