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क्या संभव हो पाएगी 'बंदी सिखों' की रिहाई?

अमरीक |
पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ और मोहाली के बीच पक्का मोर्चा लगा हुआ है। पहले इस मोर्चे को गैर सियासी बताया गया था और अब पर्दे के पीछे से सियासत का खेल होने लगा है।
Sikh
बंदी सिखों की रिहाई के लिए प्रदर्शन। 

पंजाब में जन आंदोलनों और 'पक्के मोर्चों' की लंबी और विस्तृत रिवायत रही है। इन दिनों बंदी सिखों की रिहाई के लिए सूबे की राजधानी चंडीगढ़ और मोहाली के बीच पक्का मोर्चा लगा हुआ है। पहले इस मोर्चे को गैर सियासी बताया गया था और अब पर्दे के पीछे से सियासत का खेल होने लगा है। शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित भाजपा भी अपने-अपने तईं इस खेल में शामिल हैं। गरमपंथी और खालिस्तान समर्थक इसका फायदा उठाने की कवायद में हैं ही।

चंडीगढ़-मोहाली सरहद पर यह मोर्चा 7 जनवरी से लगातार जारी है और 500 के करीब सिखों की दिन-रात शमहूलियत से शुरू हुए मोर्चे में लोगों की तादाद में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है और अब किसान भी इसमें आकर डट गए हैं।

कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जर्मन और अन्य यूरोपियन देशों से इस मोर्चे को फंडिंग के जरिए अच्छा-खासा सहयोग मिल रहा है तथा एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित कई अन्य अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार संगठन भी इससे जुड़ गए हैं; इसलिए मोर्चे को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सुर्खियां हासिल हो रही हैं।

बंदी सिखों की रिहाई के लिए 'कौमी इंसाफ मोर्चा' काफी समय से सक्रिय है। कौमी इंसाफ मोर्चा की अगुआई एडवोकेट अमर सिंह चाहल, गुरचरण सिंह, दिलशेर सिंह, गुरनाम सिंह और जसपाल सिंह सिद्धू करते हैं और लंबे अरसे से सजा काटने के बावजूद रिहा नहीं किए गए लोगों (ज्यादातर सिखों) की रिहाई के लिए प्रयासरत हैं। कौमी इंसाफ मोर्चा की पहल पर देश और सुदूर विदेशों में बंदी सिखों की रिहाई के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया गया और अब तक लाखों लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं। इनमें नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल कृषि मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शुमार हैं। उन्होंने पंजाब आकर श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह की हाजिरी में दस्तखत किए। बेशक बाद में कहा कि कानून के अनुसार बंदी सिखों की रिहाई सुनिश्चित की जाएगी।

अन्य तमाम राजनीतिक पार्टियों के कतिपय नेताओं ने भी हस्ताक्षर किए हैं। हस्ताक्षर अभियान अब भी जारी है।

बंदी सिखों की रिहाई के लिए पंजाब में दो सालों के भीतर कई तदर्थ मोर्चे लग चुके हैं और अहिंसक धरना-प्रदर्शन भी कई बार हुए हैं। गुजरात में 2002 में हुए भीषण दंगों में सामूहिक बलात्कार की शिकार बिलक़ीस बानो के गुनहगारों को जब पिछले साल, तय सजा से पहले जेल से रिहा कर दिया गया और भाजपा ने वहां बकायदा जश्न मनाए और इधर हत्यारे एवं बलात्कारी डेरेदार गुरमीत राम रहीम सिंह को हरियाणा में भाजपा शासन वाली सरकार ने बार-बार पैरोल और फरलो देते हुए जेल से रिहा करने का सिलसिला शुरू किया तो बंदी सिखों का मामला गरमा तथा गहरा गया। अब यह पूरी तरह धधकने को है।

कौमी इंसाफ मोर्चा के वरिष्ठ नेता एडवोकेट अमर सिंह चाहल कहते हैं, "गुजरात में दंगों की शिकार एक मजलूम महिला के बलात्कारियों को सजा पूरी करने से पहले छोड़ दिया गया। गुरमीत राम रहीम सिंह बलात्कारी और कातिल है, दोहरी सजाएं भुगत रहा है और उसके खिलाफ कई आपराधिक मामले लंबित हैं--फिर भी उसे बार-बार किसी न किसी बहाने पैरोल पर रिहाई दी जा रही है तो सजा पूरी करने के बावजूद जेलों में बंद सिखों को रिहा क्यों नहीं किया जा रहा? सरकारों का यह दोहरा रवैया है। पक्का मोर्चा लगाकर हम इसका विरोध कर रहे हैं और पुरजोर मांग कि कम से कम उन लोगों को तो रिहा किया जाए जो अपनी सजा काट चुके हैं।" जबकि कौमी इंसाफ मोर्चा के ही एक अन्य प्रमुख नेता जसपाल सिंह सिद्धू का कहना है कि, "सरकार खुलकर क्यों नहीं बताती कि बंदी सिखों की रिहाई में क्या अड़चन है? कानून ने जो सजा उन्हें दी, उन्होंने पूरी कर ली लेकिन अब भी सलाखों के पीछे हैं। 'पक्का मोर्चा' उनकी रिहाई सुनिश्चित होने के बाद ही उठेगा।"

दूसरे राज्यों से सिख और अन्य समुदायों के लोग भी पक्के मोर्चे में आकर शिरकत कर रहे हैं। पिछले दिनों भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय संयोजक राकेश टिकैत भी अपने समर्थकों सहित इसमें शामिल हुए। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सांसद सुखबीर सिंह बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद हरसिमरत कौर बादल, संगरूर से सांसद सिमरनजीत सिंह मान, सर्वोच्च सिख संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसीपीसी), श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यवाहक मुख्य जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और पंजाब के विभिन्न किसान संगठनों तथा अन्य जत्थेबंदियों का खुला समर्थन भी इस पक्के मोर्चे को हासिल है।

बेशक अब बंदी सिखों की रिहाई के लिए लगाए गए पक्के मोर्चे पर धीरे-धीरे गरमपंथी ख्यालियों का कब्जा होने लगा है जो सिखों की रिहाई के साथ-साथ अलगाववाद की बोली बोलते हुए खालिस्तान की मांग बार-बार इस मंच से तथा इस बहाने शिद्दत से उठा रहे हैं। 'वारिस पंजाब दे' का स्वयंभू मुखिया अमृतपाल सिंह खालसा इसे अपनी मुहिम के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। उसकी भूमिका पर कोई भी बोलना नहीं चाहता। दो दिन पहले आया उसका यह बयान भी खासा विवादास्पद और भ्रम पैदा करने वाला है कि इस तरह के मोर्चों की अगुवाई श्री गुरु ग्रंथ साहिब करेंगे। पूछा जा रहा है कि यह कैसे संभव है? इस बयान एवं कथन की परिभाषा बेहद जटिल और संवेदनशील है; इसीलिए दबी जुबान में पंजाब और विदेशों में व्यापक सिख समुदाय इसका विरोध कर रहा है।

पक्के मोर्चे के साथ जुड़े एक वरिष्ठ सिख रहनुमा ने कहा, "अमृतपाल सिंह जो कह रहा है वह अव्यवहारिक है। इस तरह कभी संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने भी नहीं कहा। उसके इस कथन का यहीं और अभी विरोध न किया गया तो बात बहुत आगे चली जाएगी।" इसी तरह कई अन्य सिख विद्वान और चिंतक मानते हैं कि खालिस्तान का समर्थक अमृतपाल सिंह खालसा बंदी सिखों की रिहाई के लिए लगाए गए पक्के मोर्चे को हथियाने की कवायद में है।

कौन हैं बंदी सिख?

'बंदी सिख' दरअसल उन्हें कहा जा रहा है जो आतंकवाद से वाबस्ता थे और पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद अदालतों ने उन्हें सजाएं सुनाईं। कौमी इंसाफ मोर्चा की मानें तो ऐसे सिखों की तादाद 800 के करीब है जो विभिन्न जेलों में सजा पूरी होने के बावजूद रिहाई के इंतजार में हैं। कुछ तो तीस साल से ज्यादा अर्से से जेलों में बंद हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के इशारे पर उन्हें इसलिए रिहा नहीं किया जा रहा कि उन्हें अभी भी 'खतरनाक आतंकवादियों' की सूची में रखा गया है और केंद्र सरकार मानती है कि रिहा होने के बाद वे फिर देशद्रोही गतिविधियों में संलिप्त हो जाएंगे। एडवोकेट अमर सिंह चाहल के मुताबिक यह गैरसंवैधानिक सोच है। अंतरष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल का भी मानना है कि कानूनन सजा पूरी कर चुके बंदियों को जेलों में रखना मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है।

800 में से कुछ सिख ऐसे हैं जिनकी बाबत माना जाता है कि कोई भी सरकार उन्हें रिहा नहीं करेगी। बेशक उन्होंने सजा पूरी कर ली। साफ है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं सजा तो देती हैं लेकिन रिहाई के रास्ते पर लगे तालों की चाबी उनके पास नहीं है! यह एक गौरतलब पहलू है।

टाडा और अधिनियम 302 के तहत सजायाफ्ता गुरदीप सिंह खेड़ा, जगतार सिंह हवारा, लखविंदर सिंह लक्खा, गुरमीत सिंह, शमशेर सिंह, परमजीत सिंह ब्योरा, प्रोफेसर देविंदर पाल सिंह भुल्लर, बलवंत सिंह राजोआना और जगतार सिंह तारा उन बंदियों में शुमार हैं जो शायद ही कभी जेल से बाहर आ पाएं। इनमें से कई तीन दशक से ज्यादा अरसे से जेलों में बंद हैं लेकिन एक बार भी उन्हें पैरोल नहीं दी गई। मां या बाप की मृत्यु के बाद अंतिम रस्मों में शामिल होने के लिए भी नहीं।

सियासत का दोहरा चेहरा

शिरोमणि अकाली दल पंजाब और केंद्र में भाजपा के साथ सत्ता का साझीदार रहा है। तब उसने कोई दबाव नहीं बनाया। आज सुखबीर सिंह बादल बंदी सिखों की रिहाई को पंथक मसले के तौर पर उभार रहे हैं तो इसलिए कि अब उनकी सियासत को 'पंथ से जुड़े' अहम मुद्दों का ही सहारा है। अकाली दल अपना बुनियादी जनाधार फिलहाल तो खो चुका है। उसका 'राजनीतिक कारोबार' जिन सिख संस्थाओं के जरिए चलता है, उनमें शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अव्वल है। सुखबीर के निर्देशानुसार एसजीपीसी अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर लगे पक्के मोर्चे में शिरकत के लिए गए तो उनकी गाड़ी पर तलवारों, डंडों और पत्थरों से हमला कर दिया गया। सुरक्षाकर्मी उनके साथ थे। वह बाल-बाल बच कर वहां से निकले। यानी शिरोमणि अकाली दल की दाल भी वहां गल नहीं रही।

कांग्रेस बंदी सिखों की रिहाई के लिए भाजपा पर दबाव बनाने की बात कहती है तो भूल जाती है कि 2014 से पहले केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उसके बाद पांच साल पंजाब में कांग्रेस सत्तारूढ़ रही लेकिन बंदियों की रिहाई के लिए खास कुछ नहीं किया गया। अब आम आदमी पार्टी राज्य में सत्ता में है। उसका रवैया भी ढुलमुल है। भगवंत मान कहते हैं कि इस बाबत अहम फैसले भाजपा ने लेने हैं।

भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पंजाब आए और उन्होंने तलवंडी साबो में श्री अकाल तख्त साहिब के मुख्य कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह की उपस्थिति में बंदी सिखों की रिहाई के लिए जारी हस्ताक्षर मुहिम के तहत अपने हस्ताक्षर भी किए लेकिन बाद में यह भी कह दिया कि कोई भी सरकार 'संविधानत्तेर' नहीं हो सकती। इस कथन का मतलब साफ है। भाजपा की तरफ से संदेश यही दिया जा रहा है कि न तो वह बंदी सिखों की रिहाई के लिए लगाए गए पक्के मोर्चे के समर्थन में है और न मुखालफत में। तो इस पर भी सियासी 'गिद्धगिरी' जारी है।

इस सबके बीच बंदी सिखों की रिहाई के लिए लगाया गया पक्का मोर्चा किसी और राह तो नहीं चला जाएगा? जवाब में मोर्चे में डटे एक सिख किसान अजायब सिंह ढिल्लो कहते हैं, "हम ऐसा नहीं होने देंगे। ऐसी कवायद दिल्ली किसान मोर्चा के दरमियान भी हो चुकी है लेकिन उसे नाकामयाब कर दिया गया। नतीजा सबके सामने है।"

(जालंधर स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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