मणिपुर संघर्ष के दौरान बलात्कार की घटनाओं का पर्दाफ़ाश करने वाली महिला ने उठाई आवाज़

मणिपुर में जारी हिंसा के बीच रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों ने रविवार रात, 7 मई, 2023 को इम्फाल में फ्लैग मार्च किया। छवि सौजन्य: पीटीआई
हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज में सहायक प्रोफेसर होइनिलिंग सितल्हो ने सबसे पहले 2 जून को न्यूज़क्लिक में प्रकाशित एक लेख में मणिपुर में चल रहे संघर्ष के दौरान कुकी महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं का खुलासा किया था। प्रज्ञा सिंह ने ईमेल के जरिए किए गए साक्षात्कार में, वे बता रही हैं कि कैसे उन्हें घटनाओं के बारे में पता चला, उनकी पुष्टि की, और वे उन घटनाओं में से उस एक परेशान करने वाले वीडियो के वायरल होने के बारे में क्या सोचती हैं। पेश अहीन संपादित अंश:
प्रज्ञा सिंह: अब जब मीडिया ने कुकी महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर ध्यान दिया है और उनके बारे में रिपोर्ट किया जा रहा है, तो क्या आपको लगता है कि इन घटनाओं का पर्दाफ़ाश करने के आपके प्रयास व्यर्थ नहीं गए हैं?
होइनिलिंग सितल्हो: हां, मुझे लगता है कि मेरे प्रयास व्यर्थ नहीं गए हैं। हालाँकि उन्हें न्याय मिलने में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन राज्य के अधिकारियों और जनता दोनों द्वारा पीड़ितों पर किए जा रहे पीड़ितों के खिलाफ अत्याचार को स्वीकार करना एक महत्वपूर्ण कदम है। मुझे अब उम्मीद है कि मीडिया समर्थन सहित इसमें शामिल सभी हितधारक अंत तक डटे रहेंगे।
पीएस: आपने मणिपुर में संघर्ष के दौरान बलात्कार की इन घटनाओं के बारे में पहली बार कैसे सुना?
एचएस: इंफाल में कार धोने का काम करने वाली दो लड़कियों की मौत की खबर वायरल हो गई थी, हालांकि किसी ने भी इस जानकारी की पुष्टि नहीं की थी। मुझे लगता है कि लड़कियों के माता-पिता को यह फैसला लेने में वक़्त लगा कि क्या करना चाहिए। उन्होंने उनके सहकर्मियों से अपनी बेटियों के साथ जो हुआ उसके बारे में भयावह खबर सुनी थी, इसलिए आप कल्पना कर सकते हैं कि वे कितने व्याकुल हो गए होंगे। लेकिन सबसे तकलीफ़देह पहलू यह है कि वे अपनी बेटियों की लाशें देखने के लिए घाटी भी नहीं जा सके।
जहां तक नंगा कर परेड कराना और यौन उत्पीड़न मामले का सवाल है, जिसका वीडियो हमने अब देखा है, मुझे इसके बारे में ज़ोमी स्टूडेंट्स फेडरेशन द्वारा बनाई गई एक डॉक्यूमेंट्री से पता चला था। मणिपुर में जो कुछ हो रहा है उससे कुकी-ज़ो समुदाय का हर व्यक्ति गहराई से प्रभावित है और भावनात्मक रूप से गुस्से में है, इसलिए उथल-पुथल की खबर तेजी से वायरल हो गई है।
मुझे यह अजीब लगा कि ये दोनों घटनाएं, हालांकि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले में समान थीं, राज्य के विभिन्न हिस्सों - इंफाल और कांगपोकपी जिले के एक गांव में - लेकिन बहुत ही करीबी तारीखों, यानी 4 और 5 मई को हुई थीं।
पीएस: आपने इन घटनाओं के बारे में लिखने का निर्णय क्यों लिया और आपने उनकी पुष्टि कैसे की?
एचएस: बहुत सारी गलत सूचनाएं चारों ओर फैल रही थीं, जैसे कि मैंने अपने लेख में संघर्ष के पहले दिनों के दौरान कुकी पुरुषों द्वारा मैतेई महिलाओं के साथ बलात्कार किए जाने के उदाहरणों का उल्लेख किया था। हालाँकि चिंतित नागरिकों ने अक्सर इन फर्जी समाचारों का पर्दाफ़ाश किया, लेकिन उनके खुलासे का कभी भी उतना प्रभाव नहीं पड़ा जितना कि फर्जी खबरों का पड़ा। उदाहरण के लिए, मणिपुर के बाहर स्थित एक व्हाट्सएप ग्रुप पर, एक अन्य पूर्वोत्तर राज्य के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने "कांगवई [चुराचांदपुर जिले के एक गांव] में बलात्कार की गई पांच मैतेई महिलाओं" के बारे लगातार पूछताछ की।
जबकि व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य मणिपुर के बाहर से थे, जहां सख्त इंटरनेट प्रतिबंध था, लेकिन टेलीफोन और एसएमएस सेवाएं चालू थीं। मणिपुर के बाहर से आने वाले या राज्य में लौटने वाले लोग एसएमएस और फोन का जमकर इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे फर्जी खबरें फैलने में मदद मिली। हालाँकि, प्रसारित तस्वीरें उन घटनाओं की थीं जिनका मणिपुर से कोई संबंध नहीं था जैसा कि दिखाया गया था।
मुझे एहसास हुआ कि बहुत से लोग ऐसे दुष्प्रचार पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं। इन नतीजों से अनाभिज्ञ लोगों द्वारा फैलाया गया फर्जीवाड़ा अफवाह नहीं था – बल्कि इसका उद्देश्य जनता को गुमराह करना था। जीवित बचे लोगों के कुछ दस्तावेजों ने यह साबित कर दिया है कि इन अफवाहों और अभियानों का इस्तेमाल उनके गलत विद्रोहियों के खिलाफ "प्रतिशोध की भावना" के रूप में किया गया था।
सभी फर्जी खबरें और उनका खंडन करने वाली खबरें पहले से ही चारों ओर फैल रही थीं - मुझे बस उन्हें एक कहानी में एक साथ बुनना था। इसके लिए, मैं इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के मीडिया सेल को भी श्रेय देती हूं, जो चल रहे जातीय नरसंहार के हर पहलू का बड़ी मेहनत से दस्तावेजीकरण कर रहा था।
शुरू में, मैंने सोचा कि असंबद्ध हिंसा के दो अलग-अलग उदाहरण थे। जब तक मैंने जीवित बचे लोगों की बातें नहीं सुनीं तब तक मुझे एहसास नहीं हुआ कि फर्जी खबरों और कुकी-ज़ो महिलाओं पर किए गए वास्तविक अत्याचारों के बीच कोई संबंध था।
पीएस: कुकी महिलाओं के खिलाफ प्रतिशोध का बहाना देने वाली फर्जी खबरों के बीच आप जो संबंध स्थापित करती हैं, उसके अलावा आप यह भी उजागर करती हैं कि लोग इस फर्जी खबर के प्रति संवेदनशील थे - ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्हें अपनी नफरत को प्रदर्शित करने का मौका मिल गया था। ऐसी घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए क्या रास्ता है?
एचएस: मणिपुर भूगोल और जनसंख्या की दृष्टि से एक छोटा राज्य है। इसलिए, अगर कोई प्रयास करता तो अफवाहों, विचारों और अनुमानों की जांच करना असंभव नहीं था! इसीलिए मेरा मानना है कि जिन लोगों को लगा कि फर्जी खबर सही है, उनके पास इस पर विश्वास करने का कोई कारण होना चाहिए।
कुकी और मेइती के बीच अब जो भौगोलिक अलगाव हो रहा है, कुछ इलाकों को छोड़कर, वह महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से अच्छा है। इसलिए, महिलाओं की दीर्घकालिक सुरक्षा तय करने के लिए एक अलग प्रशासन का दृष्टिकोण सबसे प्रभावी होगा। महिलाओं पर सबसे अधिक अत्याचार जातीय संघर्ष की शुरुआत में ही हुए थे। लेकिन मैं यह नहीं कह सकती कि अब अत्याचार नहीं हो रहे हैं। ऐसे मामले भी हो सकते हैं जो रिपोर्ट न किए गए हों और जो पुलिस द्वारा दर्ज न किए गए हों।
पीएस: कुकी महिलाओं के साथ जो हुआ वह उनके शरीर पर युद्ध का नाटक करने जैसा था। क्या कुकी महिलाओं की सुरक्षा के मामले में राज्य और केंद्र सरकारें अलग-अलग कदम उठा सकती थीं?
एचएस: मणिपुर में हिंसा से बचे कई लोगों ने अलग-अलग हालातों में अपनी दुर्दशा के प्रति राज्य पुलिस और कमांडो की लापरवाही के बारे में बात की है, तब-जब उनके घर जलाए जा रहे थे या जब वे मदद के लिए पुलिस स्टेशनों की तरफ भाग रहे थे, लेकिन उन्हे मदद नहीं मिली। महिलाओं की परेड का वीडियो वायरल होने के बाद राज्य ने इस मुद्दे में दिलचस्पी ली है क्योंकि शीर्ष राजनेताओं ने इस घटना पर ध्यान देने का आदेश दिया है। रविवार, 23 जुलाई तक वीडियो में दिख रहे पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
पीड़ित परिवार अब आशंकित हैं क्योंकि उन्हें उसी पुलिस की जांच पर भरोसा करना मुश्किल लगता है जो उनके प्रति लापरवाह या अपराधियों के पक्ष में उदासीन थी। वही पुलिस आपराधिक प्रक्रिया संहिता आदि के अनुसार उनके बयान दर्ज करेगी।
बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक विशेष जांच दल या राष्ट्रीय महिला आयोग की निगरानी में एक तथ्यान्वेषी टीम बनाई जाए। आख़िरकार, यह महत्वपूर्ण है कि न्याय को न केवल राज्य के दृष्टिकोण से बल्कि पीड़ितों के परिवारों के दृष्टिकोण से भी परिभाषित किया जाए।
पीएस: वीडियो लीक होने पर आपकी अपनी प्रतिक्रिया क्या थी? क्या ऐसी क्रूरताओं की ओर ध्यान आकर्षित करने का यही एकमात्र तरीका था?
एचएस: वीडियो वायरल होने के बाद से पूरा कुकी-ज़ो समुदाय शोक में है। देश भर में लाखों लोगों द्वारा हमारी बहनों का सार्वजनिक अपमान देखना बहुत ही दुखद बात है। हमें इस बात पर गुस्सा आया कि किस तरह हमारी पीड़ित बहनों को सबके सामने बेइज्जत किया गया, परेशान किया गया और उनके साथ छेड़छाड़ की गई। हमें इस तथ्य से राहत मिली कि दुनिया भर में कई लोग हमारे दुख में शामिल हुए और अपराधियों को प्रोत्साहित करने वाली राजनीतिक व्यवस्था की निंदा की। यह इस बात का प्रमाण था कि दुनिया में मानवता का कुछ स्तर बचा हुआ है, भले ही वह मणिपुर में अस्तित्वहीन होने की हद तक सिकुड़ गया हो। मुझे लगा कि यह संबंधित महिलाओं के साथ अन्याय था। उन्होंने काफ़ी कष्ट झेले हैं, और अब उन्हें फिर से अग्निपरीक्षा से गुज़रने पर मजबूर होना पड़ेगा।
दुख की बात है, लेकिन मुझे कहना होगा कि यह वीडियो इन महिलाओं की दुर्दशा के प्रति देश को जगाने में बहुत प्रभावी था।
पीएस: क्या मीडिया ने मणिपुर में संघर्ष में महिलाओं से संबंधित मुद्दों को उठाया जैसा कि आप उम्मीद या इच्छा रखते थे? क्या दिल्ली का मीडिया आपके द्वारा रोशनी में लाए गए बलात्कारों पर रिपोर्टिंग में मणिपुर के मीडिया से अधिक सक्रिय है?
एचएस: एक महिला होने के नाते, अत्याचारों की कहानियाँ सुनना या पढ़ना (और अब देखें) वह व्यथित करने वाला था। जब मैंने इंफाल के कोनुंग ममांग में कार वॉश में पीड़ितों के माता-पिता से बात की, तो उन्हें बहुत उम्मीद थी कि मैं उनकी बेटियों के साथ हुए अन्याय के बारे में कुछ कर सकती हूं। लेकिन यह सच है कि मेरे पास उनकी कहानी को दुनिया के सामने लाने के अलावा उस तरह की कोई ताकत नहीं थी। मैं उनकी शक्तिहीनता, लाचारी और उनके दर्द को महसूस कर सकती हूं - यह एक ऐसी कहानी है जिसे सभी उत्पीड़ित अल्पसंख्यक समझेंगे। मुझे ख़ुशी है कि न्यूज़क्लिक ने मुझ पर और मेरी खोज पर भरोसा किया।
मणिपुर में अधिकांश मीडिया हाउस बहुत पक्षपाती और एकतरफ़ा हैं। ऐसी भी कहानियाँ हैं कि कैसे मणिपुर की यात्रा करने वाले पत्रकारों को उन भीड़ द्वारा धमकाया गया जो वस्तुनिष्ठ रिपोर्ट नहीं चाहते थे - जैसे कि इंडिया टुडे ग्रुप की अफरीदा हुसैन। दिल्ली में मीडिया दोनों विभाजित पक्षों की कहानियों को सामने लाने में अधिक सक्रिय रहे हैं, जो बहुत सराहनीय है।
पीएस: क्या मणिपुर के भीतर मीडिया पर मैतेई का प्रभुत्व है, और क्या महिलाओं के खिलाफ हिंसा को लगभग पूरी तरह से नजरअंदाज करने में इसकी कोई भूमिका थी?
एचएस: हां, इसमें कोई संदेह नहीं है। मेरे मामले में, मैंने अपनी कहानी स्थानीय दैनिक समाचार पत्रों को नहीं देने का फैसला किया था—मुझे लगा कि वे इसे प्रकाशित नहीं करेंगे। यदि उन्होंने ऐसा किया भी, तो यह अनावश्यक रूप से पीड़ितों को खतरे में डाल सकता है, क्योंकि अपराधी उन्हें चुप कराने के की ताक में हो सकते हैं।
पीएस: यदि इंटरनेट पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया होता, तो क्या राष्ट्रीय मीडिया, दिल्ली में राजनीतिक व्यवस्था और भारतीय जनता ने इन अत्याचारों पर अलग-अलग या कम से कम पहले ही प्रतिक्रिया दी होती?
एचएस: मैं इस बारे में निश्चित नहीं हूं।
पीएस: क्या आप हमें उन महिलाओं के बारे में बता सकती हैं जिनके बारे में आपने 1 जून को न्यूज़क्लिक में प्रकाशित कहानी में लिखा था? वीडियो लीक पर उन्होंने या उनके दोस्तों और परिवारों ने क्या प्रतिक्रिया दी है?
एचएस: मणिपुर एक जातीय-टकराव वाला राज्य है, और हम संघर्ष और अव्यवस्था की स्थितियों के आदी हैं। लेकिन पीड़ित परिवारों ने यह नहीं सोचा होगा कि मामला इस हद तक बढ़ जाएगा, इतने लंबे समय तक चलेगा या उनके अपने परिवार के साथ ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट सकती है।
पीएस: 3, 4, 5 मई और उसके बाद की घटनाओं की क्रूरता का कुकी महिलाओं पर क्या असर पड़ा है? क्या वे शक्तिहीन महसूस कर रही हैं?
एचएस: मुझे ऐसा लगता है कि पीड़ितों को अपने साथी मनुष्यों से इस स्तर के अमानवीय कृत्य की उम्मीद नहीं थी। लेकिन आइए राजनीतिक प्रश्न के बारे में भी स्पष्ट रहें; महिलाओं को इसलिए निशाना नहीं बनाया गया क्योंकि वे महिलाएं हैं, बल्कि इसलिए कि वे कुकी-ज़ो महिलाएं हैं।
पीएस: हम अभी तक नहीं जानते कि यह वीडियो किसने "लीक" किया या क्यों किया। क्या यह कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिसे महिलाओं पर हमले के बाद पश्चाताप महसूस हुआ हो? क्या यह किसी राजनीति का हिस्सा है? क्या यह मणिपुर में हिंसा पर विराम लगाने या संघर्ष को बढ़ाने के लिए किया गया है? आपका शिक्षापर्द अनुमान क्या है?
एचएस: यह वही सवाल है जो हर कोई पूछ रहा है। हमारे पास केवल अटकलें और अनुमान हैं। क्या यह जानबूझकर संघर्ष भड़काने या उसे बढ़ाने के लिए हो सकता है? सबसे पहली बात, इस जघन्य अपराध की वीडियो रिकॉर्डिंग क्यों की गई? क्या इंटरनेट पर प्रतिबंध ने उन्हें इसे पहले जारी करने से रोक दिया था? क्या वीडियो जारी करने का उद्देश्य कुकी-ज़ो पुरुषों को चुनौती देना और उन्हें महिलाओं की सुरक्षा में उनकी अक्षमता की याद दिलाना था? या ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने मैतेई महिलाओं के खिलाफ हमलों के बारे में फर्जी समाचार अभियानों पर विश्वास किया था और यह प्रदर्शित करना चाहते थे कि वे बदला लेने में सक्षम हैं? यदि यह पीड़ितों के पक्ष के लोगों द्वारा लीक किया गया था - जैसा कि अपराधियों के पक्ष में खड़े लोग आरोप लगा रहे हैं - तो सवाल उठता है कि उन्हें इतना संवेदनशील वीडियो कैसे मिला?
पीएस: क्या आपको लगता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा का पूरा मामला सामने आ गया है?
एचएस: महिलाओं पर अत्याचार के अन्य मामले भी हैं, जो जरूरी नहीं कि प्रकृति में यौन हों। उदाहरण के लिए, 9 जून को खोकेन गांव की बुजुर्ग महिला श्रीमती डोमखोहोई (उम्र 75 वर्ष) की इबादत करते वक़्त हत्या कर दी गई थी। तब उन्हें कुकी उग्रवादियों का स्नाइपर करार दिया गया था। 6 जुलाई को, सिज़ोफ्रेनिया की मरीज, 62 वर्षीय श्रीमती डोनगाइचिंग की भी दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई और उसे आत्मघाती हमलावर करार दिया गया था।
मुझे लगता है कि यह घोर अन्याय और मृतकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है कि उन्हें बदनाम किया गया। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है, जो न केवल जीवित व्यक्तियों के लिए बल्कि मृतकों के लिए भी जीवन, उचित व्यवहार और सम्मान का अधिकार देता है। इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 499 के अनुसार, किसी मृत व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से दिए गए या प्रकाशित किसी भी बयान से उसे बदनाम नहीं किया जा सकता है। उनकी 'सामाजिक छवि' की रक्षा करने के लिए, इन निर्दोष पीड़ितों को उचित श्रद्धांजलि मिलनी चाहिए।
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Woman who Broke Story of Rapes During Manipur Conflict Speaks out
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