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बंगाल : मज़दूरों का लॉन्ग मार्च जारी, 10 को कोलकाता में जमावड़ा

राज्य की सभी सड़कों पर लॉन्ग मार्च को देखने के लिए मज़दूरों की भीड़ उमड़ रही है क्योंकि विभिन्न ज़िलों के औद्योगिक क्षेत्रों के मज़दूर कोलकाता और सिलीगुड़ी तक मार्च निकाल रहे हैं।
Protest

पिछले 6 दिनों में, मज़दूरों के लॉन्ग मार्च ने पास के बर्धमान ज़िले और कोलकाता के चित्तरंजन के बीच की कुल 283 किलोमीटर की दूरी में से लगभग 137 किलोमीटर की दूरी को तय कर लिया है। बाक़ी बचे 5 दिनों के भीतर मज़दूर 146 किलोमीटर की दूरी को भी लॉन्ग मार्च के ज़रीये तय करेंगे, लॉन्ग मार्च के समापन से पहले 11 दिसंबर को कोलकाता में एक विशाल आम सभा होगी।

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5 दिसंबर, गुरुवार की सुबह, यानी छठे दिन, हज़ारों मज़दूर गलसी, पुरबा बर्धमान से मार्च में शामिल हो गए थे। मज़दूरों के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए छात्र, युवा, महिला, किसानों और कृषि मज़दूर बड़ी तादाद में उनके साथ मार्च में हिस्सा ले रहे हैं। स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफ़आई), डेमोक्रेटिक यूथ फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (डीवाईएफ़आई), ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेन्स एसोसिएशन (एआईडीडबल्यूए), ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस), और ऑल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन (एआईएयू) ने लॉन्ग मार्च को अपना पूरा समर्थन दिया है, जिसे सीटू के बैनर तले आयोजित किया गया है।

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हालांकि, पश्चिम बंगाल में केवल यही एकमात्र लॉन्ग मार्च नहीं हो रहा है बल्कि एक अन्य मार्च 1 दिसंबर को मालदा से शुरू हुआ था और वह सिलीगुड़ी की तरफ़ जा रहा है, जहां 10 दिसंबर को एक आमसभा आयोजित की जाएगी। पूरे राज्य में जैसे सड़कों पर मज़दूरों की बाढ़ सी आ गई है क्योंकि वे विभिन्न ज़िलों में सभी औद्योगिक क्षेत्रों कोलकाता से सिलीगुड़ी तक मार्च में शामिल हो रहे हैं।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, चितरंजन-कोलकाता लॉन्ग मार्च में हिस्सा लेने वाले एक बेरोज़गार युवक माखन मुलिक ने कहा, “राज्य में नौकरियां नहीं हैं। युवाओं को काम की तलाश में दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। यह ऐसा समय है जब हमें कुछ करना चाहिए और इसलिए मैं यह सुनिश्चित करने के लिए लगभग 300 किलोमीटर के पैदल मार्च में शामिल हुआ हूं ताकि सरकार हमारी अनदेखी न करे।”

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मोदी सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) के निजीकरण के ख़िलाफ़, राज्य में औद्योगिकीकरण और सभी के लिए रोज़गार की मांग को लेकर साथ ही 'सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को बचाओ' के नारे के साथ लॉन्ग मार्च का आयोजन किया गया है। यह मार्च भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा देश भर में नागरिकों की राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने (एनआरसी) के प्रस्तावित कार्यान्वयन का भी विरोध करता है। मार्च में भाग लेने वाले लोगों ने घोषणा की है कि वे किसी भी परिस्थिति में एनआरसी को स्वीकार नहीं करेंगे।

दैनिक वेतन भोगी मज़दूर रूपन रूइदास ने न्यूज़क्लिक को बताया, “मैंने बिना रुके 22 दिन तक काम किया, ताकि मैं 11 दिनों के लॉन्ग मार्च में शामिल हो सकूं। मैं एक निर्माण मज़दूर हूं; मैं संघर्ष को समझता हूं। इसलिए, मुझे किसी को भी इस मार्च के महत्व को समझने की ज़रूरत नहीं पड़ी। हम हर दिन अपनी आजीविका के लिए लड़ रहे हैं। यह लॉन्ग मार्च भी एक लड़ाई है, जिसे अगर एक बार जीत लिया गया, उससे राज्य भर के लाखों मज़दूरों का जीवन आसान हो जाएगा।”

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न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, उत्तर 24 परगना सीटू के ज़िला सचिव, गार्गी चटर्जी ने कहा कि, “राज्य सरकार ने अभी तक इस संघर्ष को दर्ज नहीं किया है। हालांकि, सरकार के इस रुख ने मज़दूरों को हतोत्साहित नहीं किया है। इसने मज़दूरों के इरादे को और अधिक मज़बूत कर दिया हैं, और अधिक दृढ़ बना दिया है।” उन्होंने बताया कि हर दिन, ज़्यादा से ज़्यादा लोग लॉन्ग मार्च में शामिल हो रहे हैं क्योंकि यह विभिन्न गांवों और इलाक़ों से गुज़र रहा है। उन्होंने कहा, "इन लोगों ने जो ताक़त दिखाई है, और जिस दृढ़ संकल्प का परिचय दिया है, इससे राज्य सरकार को समझ आ जाना चाहिए कि पश्चिम बंगाल की जनता जनविरोधी नीतियों और नकली वादों से तंग आ चुकी है। अब वे सिर्फ़ शिक्षा, रोज़गार और औद्योगीकरण चाहते हैं।”

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