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बंगाल: एडिटोरियल्स से लेकर संगठन न्यूज़क्लिक रेड के ख़िलाफ़ दे रहे हैं अपनी प्रतिक्रियाएं

कई एडिटोरियल्स ने घटना की निंदा करते हुए इसे देश में प्रेस की आज़ादी के लिए एक ‘काला युग’ करार दिया।
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कोलकाता: सबसे ज़्यादा प्रसारित होने वाले बंगाली दैनिक आनंदबाज़ार पत्रिका से लेकर गणशक्ति दैनिक और मार्क्सवादी पथ, सीपीआई (एम) के मुखपत्र को मिलाकर पश्चिम बंगाल के कई समाचार पत्रों ने नई दिल्ली में हुई घटनाओं पर अपना दुख व्यक्त किया है, जहां 3 अक्टूबर को न्यूज़क्लिक पोर्टल के दफ़्तर तथा उसे जुड़े पत्रकारों, योगदानकर्ताओं और सामान्य कर्मचारियों के घरों पर छापा मारा गया और उनके लैपटॉप और मोबाइल उपकरणों को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ज़ब्त कर लिया था।  

आनंदबाज़ार पत्रिका ने शुक्रवार को अपने एडिटोरियल में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा बखान की जाने वाली मीडिया स्वतंत्रता के वर्तमान मानकों के आधार पर भी यह मीडिया की स्वतंत्रता पर एक गंभीर हमला है। एडिटोरियल में कहा गया है कि कठोर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) कानून को लागू करने का मतलब है कि न्यूज़क्लिक पर यह हमला देश की पूरे मीडिया जगत  पर भारी पड़ सकता है।

गणशक्ति ने अपने एडिटोरियल में कहा कि न्यूज़क्लिक पर हमला कोई अकेला हमला नहीं है बल्कि यह देश में मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला है।

मार्क्सवादी पथ ने अपने एडिटोरियल में कहा है कि न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ, जिन्हें वर्तमान सरकार ने जेल में डाल दिया है, आपातकाल के दौरान भी जेल गए थे। इसमें कहा गया है कि ये समय अघोषित आपातकाल के समय और भारत में मैकार्थी युग की वापसी को दर्शाता है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए मार्क्सवादी पथ के सहयोगी संपादक ने कहा कि “पिछले नौ वर्षों में, भारत विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 21 रैंक पीछे चला गया है। अब चुप रहना गुनाह होगा।” उन्होंने कहा कि “आने वाली पीढ़ियों के लिए, हमें इसके खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करना होगा।”

सेंटर ऑफ ट्रेड यूनियन, इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन एसोसिएशन, इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉइज फेडरेशन ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन और अल्पसंख्यक संगठन आवाज़ जैसे संगठनों ने भी दिल्ली पुलिस द्वारा पत्रकारों पर कठोर यूएपीए लगाने और उसके संपादक की गिरफ्तारी की निंदा की है। 

विरोध प्रदर्शन का प्रसारण सोशल मीडिया पर हुआ और कई लोगों ने घटनाओं की निंदा करते हुए कहा कि यह "देश की प्रेस स्वतंत्रता के इतिहास में एक काला युग" है।

दिव्यांगों के अधिकारों के राष्ट्रीय मंच के उपाध्यक्ष अनिर्बान मुखर्जी ने अपने फेसबुक पोस्ट में घटना और गिरफ्तारियों की आलोचना की है। उन्होंने न्यूज़क्लिक के ह्यूमन रिसोर्स हेड अमित चक्रवर्ती, जो शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति हैं, के साथ हुकूमत द्वारा किए जा रहे व्यवहार पर भी नाराज़गी व्यक्त की है। मुखर्जी और कई अन्य लोगों ने मानवाधिकारों पर जर्मन पादरी नीमोलर की कविता को यहां उद्धृत किया :

“पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए और मैंने कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था,

फिर वे डेमोक्रेट्स के लिए आए और मैंने कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं डेमोक्रेट्म नहीं था,

फिर वे ट्रेड यूनियन वालों के लिए आए और मैंने कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन वाला नहीं था,

तब वे यहूदियों के लिये आए, और मैं कुछ न बोला, क्योंकि मैं यहूदी न था,

फिर वे मेरे लिए आए और मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं बचा था।”

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