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प्रबीर के लिए: कोई भी जेल भविष्य के न्यायआधारित समाज के रास्ते पर आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती

बेहतर और अधिक समावेशी भविष्य के लिए जनता की आकांक्षाओं का गला घोंटने और उन्हें अपने अधीन करने के आरएसएस-भाजपा के गुमराह प्रयासों के बावजूद, प्रबीर की लगातार बढ़ती विरासत भारतीय बौद्धिक और भौतिक आत्मनिर्भरता के संघर्ष को प्रेरित करती रहेगी।
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फ़ोटो साभार : लेफ्टवर्ड बुक्स

2 और 3 दिसंबर 1984 को, भोपाल के यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से गैसों का एक जहरीला मिश्रण लीक होकर पूरे शहर में फैल गया था, जिसे दुनिया की सबसे भयानक  औद्योगिक आपदाओं में से एक के रूप में जाना जाता है। रिसाव शहर के 40 वर्ग किमी के दायरे में फैल गया था, जिसमें भोपाल के 56 नगरपालिका वार्डों में से 36 शामिल थे। इस आपदा से तत्काल 5.5 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 20,000 से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की असामयिक मृत्यु हो गई थी। 9 से 11 दिसंबर के बीच, दिल्ली साइंस फोरम की एक तथ्य-खोज टीम जिसमें प्रबीर पुरकायस्थ और दिनेश अब्रोल, दोनों तत्कालीन युवा इंजीनियर और डीएसएफ के संस्थापक सदस्य इसमें शामिल थे, जिन्हे आपदा का तकनीकी विश्लेषण तैयार करने का काम सौंपा गया था।

दो दिनों के दौरान, टीम ने संयंत्र के आसपास के इलाकों का दौरा किया, जो कॉर्पोरेट के लालच के तर्क द्वारा प्रायोजित थोक हत्या के इस प्रकरण में सबसे अधिक प्रभावित था; उन्होंने जीवित बचे लोगों से, संयंत्र में काम करने वाले श्रमिकों से, और स्थानीय पत्रकारों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और डॉक्टरों सहित अन्य लोगों से बात की। इस जांच का नतीजा एक ऐतिहासिक था - इसने लोकप्रिय जन आंदोलनों द्वारा उठाए गई कई मांगों को आधार प्रदान किया, जिसमें औद्योगिक लाइसेंसिंग और व्यावसायिक सुरक्षा के विनियमन से संबंधित मामले भी शामिल थे। जब 4 दिसंबर, 1985 को भारत की राजधानी में श्रीराम फूड एंड फर्टिलाइजर्स द्वारा संचालित एक कारखाने से ओलियम गैस का रिसाव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली के 700 से अधिक निवासियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी। जिसमें रिसाव की जांच करने और सुधारात्मक उपाय सुझाने के लिए डीएसएफ के प्रबीर पुरकायस्थ भी शामिल थे। इस मामले और इसके बाद हुए फैसले को पर्यावरणीय न्यायशास्त्र में एक ऐतिहासिक मामला कहा जाता है। हालाँकि, यह ध्यान दिया जाना बाकी है कि न तो यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन और न ही डॉव केमिकल कंपनी - अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी जिसने 2001 में यूसीसी की सभी संपत्तियों और देनदारियों का अधिग्रहण कर लिया था और jo अब कंपनी की मालिक बन गए थे - को कभी भी उक्त कांड के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया; आपदा के समय यूसीसी के मुख्य कार्यकारी वॉरेन एंडरसन कभी मुकदमे का सामना नहीं किया और 92 वर्ष की आयु में फ्लोरिडा समुद्र तट पर उनका निधन हो गया। भारत के राजनीतिक नेता और न्यायिक संस्था न्याय के इस उल्लंघन में सहभागी हैं।

यह वह प्रबीर पुरकायस्थ हैं जिन्हें दिल्ली पुलिस ने अब कठोर क़ानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में गिरफ्तार किया है, बावजूद इसके कि उन्होंने एक स्वतंत्र और संप्रभु भारतीय राजनीति को आगे बढ़ाने में कई दशक बिताए हैं। 3 अक्टूबर, 2023 को, सरकारी दुर्भावना से प्रेरित एक सत्तावादी निज़ाम के तहत, दिल्ली पुलिस ने ऑनलाइन समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक के संस्थापक और मुख्य संपादक प्रबीर और न्यूज़क्लिक के मानव संसाधन प्रमुख अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी से पहले लगभग 50 पत्रकारों और मंच के योगदानकर्ताओं के खिलाफ सुबह-सुबह छापेमारी की गई, जिनसे अन्य मुद्दों के अलावा, इस बारे में पूछताछ की गई थी कि क्या उन्होंने केंद्र सरकार के कठोर कृषि कानूनों के खिलाफ साहसी किसानों के संघर्ष को कवर किया था या नहीं। आरएसएस-भाजपा के तहत स्वतंत्र, आज़ाद और निर्भीक पत्रकारिता पर हमला लंबे समय से चल रहा है। एक अध्ययन में कहा गया है कि 2014 के बाद से 135 से अधिक पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया, हिरासत में लिया गया, पूछताछ की गई या कारण बताओ नोटिस दिए गए। इसे आवश्यक रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उपनिवेशवाद-विरोधी विरासत के खिलाफ एक हमले के रूप में और वैश्विक व्यापार की जन-विरोधी और परजीवी संवेदनाओं द्वारा समर्थित साम्राज्यवादी उद्यम की वेदी पर भारत की संप्रभुता के खिलाफ हमले के रूप में देखा जाना चाहिए। इसे तर्कसंगतता के ख़िलाफ़ और प्रगतिशील जन आंदोलन की जनवादी और संवैधानिक चेतना के निर्माण की परियोजना के ख़िलाफ़ हमले के रूप में देखा जाना चाहिए।

यद्यपि भारत में समाजवाद के पक्षधरों के खिलाफ देश के राजनीतिक व्यवस्था द्वारा दशकों से चलाये जा रहे हमले में मैककार्थीवाद का अपना स्वाद रहा है, लेकिन चौथे स्तंभ को कमजोर करने की नवीनतम घटना झूठे दावों के कारण हुई है। न्यूयॉर्क टाइम्स के पन्नों ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था। हालाँकि, जब यह न्यूज़क्लिक और प्रबीर के दुनिया भर में लोगों के आंदोलनों के प्रति मजबूत समर्थन और दुनिया भर में व्याप्त नव-औपनिवेशिक अभियानों द्वारा किए गए सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और नैतिक विनाश के खिलाफ एक आवाज के रूप में पोर्टल के बढ़ते महत्व के संदर्भ में है। यह स्वाभाविक है कि अमेरिकी साम्राज्य के मुखपत्र हर जगह जनविरोधी सरकारों के झूठ और धोखे को उजागर करने वाली आशा की रोशनी को धूमिल और वश में करने की कवायद में मदद करेंगे। इसलिए, उत्पीड़न, शोषण और धोखे के खिलाफ लोगों के प्रतिरोध को चिह्नित करने वाली एक महत्वपूर्ण सूची को खत्म करने के इस नवीनतम अभियान में, हम आरएसएस-भाजपा और अमेरिकी साम्राज्य की साम्राज्यवादी मशीनरी के विभिन्न रंगों के बीच सहज जुड़ाव देखते हैं।

जब कोई प्रबीर पुरकायस्थ के बारे में बात करता है, तो वह अक्सर आपातकाल के दौरान उनके साहस के बारे में बात करता है, जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के एक कार्यकर्ता के रूप में, उन्हें दिल्ली पुलिस द्वारा अपहरण कर लिया गया था और फिर बाद में उन्हे एक साल तक मीसा के तहत जेल में रखा गया था। यह कहानी उतनी ही प्रेरणादायक है, अगर अधिक नहीं, तो कम से कम यह तो है कि कैसे जेल से रिहा होने के बाद सालों तक उन्होंने लोगों की सेवा में लोकतंत्र और विज्ञान के समर्थक के रूप में भारत में प्रगतिशील जन आंदोलन को बढ़ावा दिया और जारी रखा ताकि  बेहतर और अधिक समावेशी भविष्य के लिए जनता की आकांक्षाओं का गला घोंटने और उन्हें अपने अधीन करने के आरएसएस-भाजपा के गुमराह प्रयासों के बावजूद, प्रबीर की लगातार बढ़ती विरासत भारतीय बौद्धिक और भौतिक आत्मनिर्भरता के लिए संघर्ष को प्रेरित करती रहेगी। यह इस सपने को बनाए रखने के लिए है, जिसकी नींव पर भारतीय उपनिवेशवाद-विरोधी स्वतंत्रता आंदोलन ने अपनी जड़ें जमाईं थीं, प्रबीर ने अपने कामकाजी जीवन का अधिकांश हिस्सा उन लोगों के लिए समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए समर्पित कर दिया, जिनका पसीना और आंसू देश के ताने-बाने तथा भारतीय सामज को एक साथ जोड़ते नज़र आते हैं। यह कोई ऐसा सपना नहीं है जिसे गिरफ़्तारियों या कट्टरपंथियों के उग्र विरोध के माध्यम से ख़त्म किया जा सके, क्योंकि पूरी दुनिया में इतनी जेलें नहीं हैं और दुनिया के सभी शस्त्रागारों में इतनी गोलियाँ नहीं हैं जो समय की गति को एक बेहतर और न्यायाधारित समाज के रास्ते पर आगे बढ़ने से रोक सकें। 

लेखक एसएफ़आई, यूनाइटेड किंगडम के सचिव हैं। विचार निजी हैं। 

मूल अंग्रेजी लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

For Prabir: No Jail Can Arrest March of Time Towards More Just Tomorrow

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