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World Sparrow Day : ओ री गौरैया लौट के आ जा...

आज वर्ल्ड स्पैरो डे है यानी गौरैया के संरक्षण और जागरूकता को समर्पित दिन है। क्या है इस बार के स्पैरो डे का थीम और क्यों इसे मनाना ज़रूरी है, पढ़िए इस रिपोर्ट में। 
World Sparrow Day

भीष्म साहनी की एक कहानी है 'दो गौरैया' जिसमें वे कुछ यूं लिखते हैं,''आंगन में आम का पेड़ है। तरह-तरह के पक्षी उस पर डेरा डाले रहते हैं। पिताजी कहते हैं जो भी पक्षी पहाड़ियों-घाटियों पर से उड़ता हुआ दिल्ली पहुंचता है, वही सीधा हमारे घर पहुंच जाता है, जैसे हमारे घर का पता लिखवाकर लाया हो। यहां कभी तोते पहुंच जाते हैं, तो कभी कौवे और कभी तरह-तरह की गौरैया। वह शोर मचता है कि कानों के पर्दे फट जाएं, पर लोग कहते हैं कि पक्षी गा रहे हैं''!

और फिर वे आगे लिखते हैं, ''अब एक दिन दो गौरैया सीधी अंदर घुस आई और बिना पूछे उड़-उड़कर मकान देखने लगी। पिताजी कहने लगे कि मकान का निरीक्षण कर रही हैं कि उनके रहने योग्य है या नहीं। कभी वे किसी रोशनदान पर जा बैठती, तो कभी खिड़की पर। फिर जैसे आई थी वैसे ही उड़ भी गई। पर दो दिन बाद हमने क्या देखा कि बैठक की छत में लगे पंखे के गोले में उन्होंने अपना बिछावन बिछा लिया है, और सामान भी ले आई है और मजे से दोनों बैठी गाना गा रही है. जाहिर है, उन्हें घर पसंद आ गया था''

भीष्म साहनी ने जब इस कहानी को लिखा होगा उस वक़्त घर आंगन वाले हुआ करते होंगे, उस आंगन में आम, नीबू, अमरूद या फिर कोई और दरख्त लाज़मी तौर पर होता होगा, घर की चारदीवारी के अंदर एक पूरा संसार। घर में आटे के लिए धोकर सुखाए गए गेहूं से बिना रोक-टोक के गौरैया अपना हिस्सा ले जाती थी, चिड़ियों की आमद, कोयल की कूक, गाय, बछड़ों का घर में होना एक दुनिया को साथ लेकर चलना और उस दुनिया का हिस्सा होने का एहसास करवाती थी। पर GOOD, BETTER, BEST की दौड़ में क्या पता था कि Best को तलाश करने निकले इंसान ने Good को भी खो दिया।

एक दिन गौरैया के नाम 

आज #WorldSparrowDay है, ये दिन गौरैया को बचाने, लोगों को गौरैया के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन गौरैया से जुड़े जागरूकता फैलाने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। 

क्या है वर्ल्ड स्पैरो डे का थीम ? 

इस साल वर्ल्ड स्पैरो डे का थीम है ''आई लव स्पैरो'', इस नन्हीं सी चिड़िया से इंसानी रिश्ता क़रीब 10 हज़ार साल पुराना है, लेकिन वक़्त के साथ ये रिश्ता भौतिक ज़रूरतों की चाहत में कमज़ोर हो गया था और उसी को एक बार फिर जोड़ने और थामने रखने की ज़रूरत को देखते हुए इस दिन को मनाने की ज़रूरत महसूस हुई। 

2010 में पहली बार मनाया गया था वर्ल्ड स्पैरो डे

गौरैया को बचाने के लिए नासिक में रहने वाले मोहम्मद दिलावर (Mohammed Dilawar) ने फ्रांस की एक संस्था के सहयोग से 'नेचर फॉरएवर सोसाइटी' (Nature Forever Society) की शुरुआत की थी। साल 2010 में पहली बार वर्ल्ड स्पैरो डे मनाया गया था, उसके बाद हर साल 20 मार्च को ये दिन मनाया जाने लगा। हमने फोन पर Nature Forever Society के फाउंडर मोहम्मद दिलावर से बात की और 2010 में गौरैया को बचाने की शुरू हुई मुहिम 2023 तक कहां पहुंची इसके बारे में पूछा। जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि, "काफी बदलाव आया है, लोगों का व्यवहार अब बदल रहा है, विज़न में बदलाव आया है, 2010 में जब हमने काम करना शुरू किया था, मैं ख़ासकर ज़िक्र करना चाहता हूं इंडियन सांटिफिक कम्युनिटी से जुड़े लोग का, उस वक़्त वे इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि गौरैया को संरक्षण की ज़रूरत है, उनके मुताबिक़ गौरैया के मुक़ाबले उन पक्षियों को बचाने की ज़्यादा ज़रूरत है जो एकदम ख़त्म होने की कगार पर हैं। वैसे इस तरह की सोच हम आज भी देखते हैं। तो उस वक़्त एक बड़ी समस्या ये थी कि ये माना जाए कि गौरैया को संरक्षण की ज़रूरत है, उन्हें बचाने की ज़रूरत है और ये उतना ही ज़रूरी है जितना की शेरों को। तो उस वक़्त एक रवैया ये भी देखने को मिला था कि अगर आपको गौरैया को बचाना है तो फंडिंग की ज़रूरत है। पर हमने तय कर रखा था कि गौरैया के संरक्षण के लिए पैसों की नहीं नीयत की ज़रूरत है। और हमारे लिए तो ये Life Long Mission है, तो हमने इसके लिए फंडिंग की राह देखने की बजाए भारत के आम लोगों को अपनी कोशिश का हिस्सा बनाया। और वर्ल्ड स्पैरो डे मनाने की शुरुआत के पीछे भी यही सोच थी।
लोगों का प्रयास काम आया

मोहम्मद दिलावर बताते हैं कि किस तरह से आम लोग गौरैया को बचाने की मुहिम में जुड़े। वे कहते हैं कि ''शुरू से ही हम आम लोगों को गौरैया के संरक्षण के साथ जोड़ना चाहते थे, हमने पिछले क़रीब 15 सालों में देश के नागरिकों को जागरूक किया है, हमने ऐसे लोगों को गौरैया के संरक्षण में जोड़ा है जिन्हें पहले लगता था कि ये काम तो NGO का है, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का है। लेकिन हमने लोगों को गौरैया के बारे में बताया, समझाया, उन्हें जागरूक किया कि हमें पैसों की ज़रूरत नहीं है बल्कि आप अपने घरों में गौरैया के लिए दाना और पानी रखें तो फायदा होगा। फिर हमने सोचा कि जिस तरह से टाइगर डे होता है, पर्यावरण या फिर दूसरे दिन मनाए जाते हैं उसी तरह से गौरैया के लिए भी एक दिन होना ज़रूरी है और उसका असर आप देख सकती हैं कि आज ट्विटर पर नितिन गडकरी गौरैया के लिए ट्वीट कर रहे हैं, इंडियन रेलवे गौरैया के लिए ट्वीट कर रहा है, तो बीते सालों में गौरैया को लेकर लोगों के व्यवहार में बदलाव तो ज़रूर आया है।''

''गौरैया ने दिला दी बेटी की याद''

मोहम्मद दिलावर के पास गौरैया और उनकी परवाह करने वाले इंसानों से जुड़ी तमाम इमोशनल स्टोरी हैं, वे बताते हैं कि किस तरह एक दिन मुंबई के डोंबीवली से एक महिला ने उन्हें रोते हुए फोन किया था और बताया था कि जिस तरह एक चिड़िया उनके घर आई, अंडे दिए और उनमें से बच्चों के निकलने और उनके कुछ बड़ा होने का इंतजार कर रही थी, वे उन्हें लेकर उड़ गई थी,ये बिल्कुल वैसा ही था जब उनकी बेटी प्रेग्नेंसी के दौरान उनके पास आई थी और बेबी के होने के बाद कुछ महीने रह कर चली गई थी। बेटी के जाने के बाद जैसा सूनापन था चिड़िया के उड़ जाने के बाद भी वैसी ही उदासी घर में छा गई थी। 

''इको सिस्टम में बदलाव आया है''

इंसानों के क़रीब रहने वाली गौरैया कब दिखनी कम हो गई इसका एहसास कुछ देर से हुआ। गौरैया की चीं-चीं कब गाड़ियों और दूसरे शोर ने ले लिया पता ही नहीं चल पाया। 

शहरों में बढ़ता शोर, पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, बढ़ता शहरीकरण, तमाम तरह से रेडिएशन आदि वे कारण हैं जिनकी वजह से गौरैया दिखनी कम हो गई थी, मोहम्मद दिलावर बताते हैं कि ''पिछले 10 हज़ार साल से गौरैया इंसानों के साथ रह रही है। अगर मैं अपने बचपन को याद करता हूं तो सुबह होते ही हम खिड़कियों को खोलते थे और पूरा दिन चिड़िया कभी अपना घर बनाने के लिए तिनके लाती थी तो कभी अपने बच्चों के लिए दाना, लेकिन पिछले 15 सालों में हमारे लाइफ़ स्टाइल में बहुत बड़े बदलाव आए हैं। हमने अपने खिड़की दरवाज़े बंद कर लिए हैं, पहले तस्वीरें दिवारों पर कुछ ऐसी टंगी होती थी कि जिनके पीछे चिड़िया घोंसले बना लिया करती थीं लेकिन अब तो फोटो फ्रेम ही ऐसे आते हैं जो दिवारों पर चिपका कर लगते हैं। ऐसे में हमारे साथ रहने वाली चिड़िया अब कैसे आएगी''? 

''शीला दीक्षित ने बहुत साथ दिया था''

मोहम्मद दिलावर शीला दीक्षित की गौरैया के संरक्षण को लेकर किए गए प्रयासों को याद करते हुए बताते हैं, ''जब हमने 2010 में वर्ल्ड स्पैरो डे शुरू किया था उस वक़्त दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित थीं और वे हमेशा ही गौरैया के संरक्षण के लिए मददगार के तौर पर दिखीं। एक कार्यक्रम था और हमने उनसे गुज़ारिश की थी कि गौरैया किसी भी राज्य की स्टेट बर्ड नहीं है तो मैडम आप क्यों न इसे अपनी स्टेट (दिल्ली) बर्ड घोषित कर दें। इस बातचीत के बाद वे जब स्टेज पर गई तो उन्होंने उसी वक़्त गौरैया को दिल्ली की स्टेट बर्ड घोषित कर दिया था।'' 

''लौटने लगी हैं गौरैया''

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली में तो गौरैया के संरक्षण के प्रयासों का असर दिख रहा है साथ ही देश के दूसरे राज्यों में भी लोग जागरूक हो रहे हैं, मोहम्मद दिलावर बताते हैं कि, ''पुणे में हम एक लोकल कम्युनिटी के साथ काम कर रहे हैं। एक रिहाइशी इलाक़ा है जहां 25-30 इमारतें हैं। जब हमने उनके साथ काम करना शुरू किया था उस वक़्त वहां 10 गौरैया थीं लेकिन आज वहां दो से तीन हज़ार गौरैया हैं। 

बच्चों की बनाई पेंटिंग

गौरैया के लिए निराला सहयोग

मोहम्मद दिलावर बताते हैं कि गौरैया के संरक्षण में लोग अलग-अलग तरह से सहयोग दे रहे हैं। सहयोग करने वालों में दिल्ली की निया तनेजा भी हैं। निया कलाकार हैं और बच्चों को बर्ड पेंटिंग सिखाती हैं। जब हमने निया से बात की तो उन्होंने कुछ ऐसी बातें बताई कि तय करना मुश्किल हो रहा है कि उन बातों पर हैरान होना है या फिर परेशान। निया बताती हैं, ''जब मैं बच्चों को बर्ड पेंटिंग करना सीखाती हूं या फिर बर्ड पर बात करना शुरू करती हूं, या किसी भी बर्ड की तस्वीर दिखाती हूं तो बच्चे सबसे पहले कहते हैं स्पैरो (गौरैया)। स्पैरो उन्होंने कभी देखी नहीं होती, सिर्फ़ नाम से पता है। उनके लिए बर्ड का मतलब ही स्पैरो है, तो मैं ना सिर्फ़ उन्हें गौरैया की पेंटिंग बनाना सिखाती हूं बल्कि उन्हें गौरैया को लेकर जागरूक भी करती हूं। बताती हूं कि क्यों गर्मियों में छत पर पानी और दाना रखना चाहिए।'' 

पटना के संजय कुमार की गौरैया को बचाने की ख़ास कोशिश 

पटना में रहने वाले PIB के उपनिदेशक संजय कुमार की ज़िंदगी भी जैसे गौरैया के आस-पास ही सिमट गई है। एक दिन अचानक ही घर में प्यासी गौरैया को देखकर उसके लिए पानी रखने का सिलसिल जो शुरू हो हुआ तो आज तक जारी है। उनका तीसरी मंजिल का घर गौरैया के लिए एक ख़ास ठिकाना बन गया है, उनकी बालकनी में तरह-तरह के गौरैया के लिए घोंसले रखे गए हैं। साथ ही कुछ ख़ास पौधे लगाए गए हैं। संजय कुमार बताते हैं कि ''2007 से मैं गौरैया के लिए अपने घर पर दाना और पानी रखना शुरू किया था और मैं उनकी देखभाल करता था लेकिन 2010 में जब पहली बार वर्ल्ड स्पैरो डे मनाया गया और इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाने की कोशिश की गई कि गौरैया दिखनी कम हो गई है तब मैंने गंभीरता से उनके बारे में पढ़ना शुरू किया और कब मैं उनके संरक्षण में डूब गया पता ही नहीं चला। आज की तारीख़ में मेरी गौरैया पर दो किताबें आ चुकी हैं, 'अभी मैं जिंदा हूं...गौरैया' और 'ओ री गौरैया' पहली किताब जहां गौरैया की तस्वीरों पर बेस्ड है, वहीं दूसरी साहित्य और फ़िल्मों में गौरैया से जुड़े गीत, किस्से और कहानियों पर है।'' 

संजय कुमार की लिखीं दो किताबें

संजय कुमार को देखकर बहुत से लोग प्रभावित होते हैं और आस-पास के लोग भी उनकी इस मुहिम में सहयोग करते हैं। वे बताते हैं, ''मेरे एक सहयोगी की दादी गांव में रहती हैं। बेहद बुज़ुर्ग हैं लेकिन जब उन्हें पता चला कि मैं गौरैया के संरक्षण के लिए काम करता हूं तो उन्होंने धान की बाली कूट कर दी जिसे हमने रेलिंग पर टांग दिया था, धान की बाली गौरैया बहुत शौक से खाती है।'' 

संजय कुमार गौरैया के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए समय-समय पर प्रदर्शनी और जागरूकता कार्यक्रम करते रहते हैं। साथ ही वे बताते हैं कि अगर गौरैया को वापस अपने घरों में बुलाना है कि तो कुछ क़दम उठाए जा सकते हैं, जैसे कि हर कोई अपने घरों की छत या फिर बालकीन में दाना और पानी रख दे और बर्ड फीडर (Bird Feeder) लगा सकता है तो लगा दे। साथ ही कुछ छोटे पेड़ जैसे नींबू लगा दे। इस पर गौरैया को बैठने की जगह मिल जाती है।

इसके अलावा कीटनाशकों का इस्तेमाल भी कम किया जाना चाहिए। हमें एक ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश की जानी चाहिए जिसमें वे नन्हीं चिरैया लौट कर आ सके जो कभी हमारे और आपके बचपन की यादों का हिस्सा है, उसकी आवाज़ एक बार फिर से हमारे घरों में गूंजना ज़रूरी है क्योंकि ये गौरैया से ज़्यादा हमारे और आपके पर्यावरण के उस संतुलन के लिए ज़रूरी है जिसका हिस्सा गुम होती गौरैया भी है। 

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