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जबैदा का दर्द : 15 दस्तावेज़ पेश करने के बावजूद "विदेशी" घोषित

नागरिकता साबित करने की क़ानूनी लड़ाई में सारे पैसे ख़र्च हो गए। पति गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। अब उनके पास अदालत जाने के पैसे नहीं है। बेटी खाने के लिए रोती है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर ; साभार: जनसत्ता

असम की रहने वाली जबैदा बेगम द्वारा पेश किए गए 15 दस्तावेज़ों को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भारतीय नागरिकता के लिए प्रमाण मानने से इनकार कर दिया है। एनआरसी में उनका नाम बाहर हो गया था।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने मतदाता सूचीमाता-पिता का एनआरसी क्लियरेंसभूमि राजस्व भुगतान रसीदगांव के प्रधान द्वारा जारी निवास प्रमाण पत्र और शादी प्रमाणपत्रराशन कार्डपैन कार्ड और बैंक पासबुकपिता जुबैद अली के 1966, 1970 और1971 के वोटर लिस्ट में नाम से जुड़े दस्तावेज सहित 15 दस्तावेज दिए थे। फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपनी नागरिकता साबित करने में हार जाने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन उन्हें वहां भी हार का सामना करना पड़ा। ज़ुबैदा का पूरा परिवार असम की एनआरसी से बाहर हो गया।

जबैदा असम के बक्सा ज़िले के गुवाहारी गांव की रहने वाली हैं जो गुवाहाटी से लगभग सौ किलोमीटर दूर है। ब्रह्मपुत्र नदी के कटाव में जमीन चले जाने के बाद वह बक्सा इलाक़े में आकर बस गई। वह अपने परिवार की अकेली सदस्य हैं जिनके कमाई से घर का पूरा खर्च चलता है। एनडीटीवी से बात करते हुए वह बताती हैं कि उनकी कमाई उतनी नहीं है जिससे कि वह क़ानूनी लड़ाई लड़ सकें। उनके पास तीन बिगहा ज़मीन था जिसे कानूनी लड़ाई के लिए एक लाख रुपये में बेच दिया। अब उनके पास पैसे नहीं हैं कि वह अपनी नागरिकता साबित करने के लिए खर्च कर सके। दूसरी तरफ उनका पति गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं जिनके चलते वे काम नहीं कर सकते।

जबैदा के पास अपने पति के इलाज के लिए पैसे तक नहीं हैं। वह महज़ 150 रुपये रोज़ कमा पाती हैं जिससे उनके घर का ख़र्च किसी तरह चल पाता है। क़ानूनी लड़ाई के चक्कर में उनका सारा पैसा खर्च हो चुका है। उनकी तीन बेटियां थीं जिनमें एक लापता हो गई वहीं दूसरे बेटी की एक दुर्घटना में मौत हो गई। तीसरी बेटी अस्मिना पांचवीं में पढ़ती है। उनके पास खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं। छोटी बेटी कई बार खाने के लिए रोती है।

ज्ञात हो कि मई 2019 में फॉरेन ट्रिब्यूनल द्वारा उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने खुद को भारतीय साबित करने के लिए उपरोक्त दस्तावेज गुवाहाटी हाईकोर्ट में पेश किए थे लेकिन वह अपने माता-पिता और भाई-बहन के साथ संबंध को साबित करने में विफल रही। उन्हें असम में भारतीय नागरिक माने जाने के लिए यह साबित करना था कि वह या उनके पूर्वज 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं।

नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेजों के दो सेट (सूची ए और सूची बी) दिए जाने थे। सूची ए में यह साबित करने वाले दस्तावेज थे कि व्यक्ति विशेष या उनके पूर्वज 1971 (1951 के एनआरसी, 1971 से पहले के मतदाता सूचियों आदि) से पहले असम में रहते थे। 1971 के बाद पैदा हुए लोग 1971 से पहले रह रहे परिजनों से खुद का संबंध दिखाने के लिए सूची बी दस्तावेज (पैन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र आदि) जमा कर सकते थे।

जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक जबैदा बेगम की वकील अहमद अली ने कहा कि उनकी उम्र लगभग 50 वर्ष है और वह अनपढ़ और गरीब हैं। अली ने कहा, “हमने कई दस्तावेज दिए लेकिन अदालत संतुष्ट नहीं हुई क्योंकि उसे लगा कि ये दस्तावेज उसका उसके माता-पिता के साथ संबंध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।”

हाईकोर्ट के वकील सैयद बुरहानुर रहमान कहते हैं, “बेगम अपने माता-पिता के साथ अपने रिश्ते को जोड़ने में सक्षम नहीं थी। 1997 की मतदाता सूची में उन्होंने अपने माता-पिता का नहीं बल्कि अपने पति का नाम लिखवाया था। इसके अलावा, उन्हें ‘डी’ (संदिग्ध) मतदाता के रूप में चिह्नित किया गया था। तकनीकी रूप से, अदालत के आदेश में कोई दोष नहीं है। जबकि गांव पंचायत दस्तावेज एक वैध प्रमाण पत्र है और इसका इस्तेमाल विवाहित महिला के लिए उसका संबंध साबित करने के लिए किया जा सकता है। इस विषय पर आगे की जांच होनी चाहिए।”

रहमान ने कहा कि ज़ुबैदा हाईकोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर कर सकती हैं और सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं। उन्होंने कहा, “वह सवाल कर सकती है कि गांव के प्रधान द्वारा जारी दस्तावेज को क्यों खारिज कर दिया गया। इसके अलावा, एविडेंस एक्ट की धारा 50 के तहत, उनके भाई की गवाही यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि वह उनकी बहन है।”

जज ने अपने फैसले में कहा, “इस मामले में, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह जुबैद अली की बेटी है। वह अपने कथित माता-पिता के साथ खुद का संबंध स्थापित करने वाला कोई भी दस्तावेज दाखिल नहीं कर सकी। एक गांव प्रधान द्वारा जारी प्रमाण पत्र कभी भी किसी व्यक्ति की नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता है। इस तरह के प्रमाण पत्र का उपयोग केवल एक विवाहित महिला द्वारा यह साबित करने के लिए किया जा सकता है कि शादी के बाद वह अपने वैवाहिक गांव में स्थानांतरित हो गई।”

आदेश में कहा गया कि “यह कोर्ट मोहम्मद बाबुल इस्लाम बनाम भारत संघ [WP(C)/3547/2016] के मामले में पहले ही मान चुका है कि पैन कार्ड और बैंक दस्तावेज नागरिकता के प्रमाणपत्र नहीं हैं। याचिकाकर्ता के कथित भाई मोहम्मद समसुल अली ट्रिब्यूनल के सामने सबूत पेश हुए। समसुल ने दावा किया कि उनकी उम्र 33 साल है और उनका नाम 2015 के वोटर लिस्ट में है। याचिकाकर्ता अपने कथित भाई से रिश्ते को साबित करने वाले कोई दस्तावेज पेश नहीं कर सकी।”

अदालत ने आदेश में यह भी कहा कि “भूमि राजस्व भुगतान दस्तावेज किसी भी व्यक्ति की नागरिकता को साबित नहीं करते हैं। इसलिए, हम पाते हैं कि ट्रिब्यूनल ने इससे पहले रखे गए सबूतों को सही ढंग से देखा और ट्रिब्यूनल के निर्णय में हमें कोई गलती नहीं मिली है। इस स्थिति में हम इस बात को दोहराएंगे कि याचिकाकर्ता अपने कथित माता-पिता और भाई के साथ रिश्ते को साबित करने में विफल रही। इसलिए हम इस याचिका को खारिज करते हैं।”

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