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अडानी की ऑस्ट्रेलिया खनन परियोजना की लंबी छाया

क्वींसलैंड की कोयला खदानें ऑस्ट्रेलिया से लेकर झारखंड तक जन अधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरण पर बरपाई गईं आपदाओं का सबब हैं।
coal harm death
Image from New Internationalist blog

31अगस्त को, क्वींसलैंड सरकार ने वांगान और जगलिंगू (डब्ल्यूएंडजी) के स्वदेशी लोगों की पारंपरिक भूमि के 1,385 हेक्टेयर हिस्से को हड़प लिया साथ ही अडानी की भारतीय बिजली की दिग्गज कंपनी ने एक दशक पहले प्रस्तावित की गई कारमाइकल माइन साइट भी हड़प ली है। सरकार के निर्णय का अंदाज़ा होने के कारण वांगान और जगलिंगू परिवार खनन स्थल के पास ही डेरा डाले हुए हैं, अजीब बात तो यह है कि उन्हें उनकी ही भूमि से जबरन बेदख़ली और क़ानूनी रूप  से किसी और की संपत्ति को घेरने का आरोप लगने की उम्मीद थी।

जिस ज़मीन पर कोयला खनन शुरू हुआ है, उस ज़मीन के देशी या स्वदेशी मालिकों ने पिछले हफ़्ते एक छोटा सा वीडियो जारी किया। यह वीडियो एड्रियन बुरुगाबा, डब्ल्यूएंडजे के बुज़ुर्ग और प्रमुख हस्तियों के प्रतिरोध के स्वर के साथ खुलता है, जो ख़ुद भूमि पर उनके अपने लोगों के संप्रभु अधिकारों की घोषणा करते है। सभी देशी/स्वदेशी और ग़ैर-स्वदेशी लोगों को उनकी अपनी पवित्र भूमि पर स्वागत करते हुए, बुरागबा ने लड़ाई को जारी रखने के लिए डब्ल्यू एंड जे के संकल्प को दोहराया है।

वांगान और जगलिंगू ने 2004 में इस ज़मीन के लिए मूल शीर्षक (यानी मालिक होने) का दावा दायर किया था, यह दावा गैलील बेसिन में कोयला खदानों के प्रस्तावों के विकसित होने से छह साल पहले किया गया था। क्वींसलैंड सरकार ने पिछले हफ़्ते तक यानी चौदह साल तक उनके ज़मीन के मूल शीर्षक के सवाल को अनसुलझा छोड़ दिया था। फिर सरकार ने डब्ल्यू एंड जे के दावे वाली लगभग आधी ज़मीन को फ्रीहोल्ड कर दिया और इसे कारमाइकल खदान के लिए अडानी को सौंप दिया।

डब्ल्यू एंड जे कार्मिकेल कोलमाइन के ख़िलाफ़ प्रतिरोध और अपनी पैतृक भूमि को पुनः हासिल करने का छह साल से लंबा संघर्ष चला रहा है। आख़िर में, वे ऑस्ट्रेलिया और क्वींसलैंड की कोयले की महत्वाकांक्षाओं से हार गए। डब्ल्यू एंड जे ने अदालत के भीतर और बाहर, दोनों जगह निरंतर प्रतिरोध किया, फिर भी वे सफल नहीं हो सके। डब्ल्यू एंड जे के लोगों ने कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के फ़र्स्ट नेशन पीपल्स के साथ एक जीवाश्म ईंधन एकजुटता समूह का गठन किया, जो ख़ुद अपनी ज़मीनों पर लगायी जा रही बड़ी अर्क परियोजनाओं और पाइपलाइनों के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय बैंक को भी अपनी आवाज़ सुनायी जो कार्मिकेल परियोजना को वित्तपोषित कर रहे थे। ऑस्ट्रेलिया के भीतर और भरपूर वैश्विक एकजुटता और मज़बूत सार्वजनिक समर्थन के बावजूद डब्ल्यू एंड जे अपनी उस भूमि को नहीं बचा पाए, जिसे ऑस्ट्रेलिया के भीतर श्वेत आबादी के बसने के दौरान छीन लिया गया था।

देशी/स्वदेशी सांस्कृतिक मूल्यों, पवित्र स्थलों और मूल भूमि की सारी की सारी सीमाओं को तहस नहस करते हुए एक चालाक मूल निवासी अधिनियम लाया गया और उस क़ानून को 1993 में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने मंज़ूरी दे दी थी। इसके प्रावधानों के तहत भुमि के मूल धारकों (डब्ल्यू एंड जे जैसे दावेदारों) के साथ बातचीत करने के लिए एक खनन कंपनी की आवश्यकता होती है जिसे इंडीजीनस लैंड यूज़ ऐग्रीमेंट या ILUA के रूप में जाना जाता है और अपनी भूमि पर खनन कार्यों के लिए मुआवज़े पर समझौता करता है।

यदि दोनों पक्ष किसी भी समझौते पर पहुंचने में विफल रहते हैं, तो खनन कंपनी मूल नेटिव टाइटल ट्रिब्यूनल में जा सकती है, जिसे अधिनियम द्वारा भी मंज़ूरी दे दी गई है। यह न्यायाधिकरण राज्य को पट्टे जारी करने के नाम पर आदेश देकर खनन करने का रास्ता साफ़ कर सकता है। राज्य तब मूल मालिक के दावे को हटा कर भूमि खनन परियोजना को कंपनी को सौंपने का हक़दार हो जाता है। इस तरह, मूल शीर्षक-धारकों को कुछ भी नहीं मिलने का जोखिम उठाना होता है, जबकि उन्हीं की भूमि को खनन द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।

टोनी मैकएवॉय, ऑस्ट्रेलिया के पहले देशी/स्वदेशी वरिष्ठ वकील, जो डब्ल्यू एंड जे परिवार के सदस्य हैं, क्वींसलैंड में समुदाय द्वारा लड़ी गई लंबी क़ानूनी लड़ाई के केंद्र थे। उन्होंने कहा है कि मूल शीर्षक अधिनियम "नस्लवाद को अपने भीतर संजोय हुए है" और कंपनी के नियमों को मानने के लिए स्वदेशी समूहों पर "हिंसक दबाव" बनाया जाता है और जिसकी वजह से उन्हें सब कुछ खोने का जोखिम रहता है। 

क्वींसलैंड और अडानी समुह के साथ डब्ल्यू एंड जे के क़ानूनी संघर्ष ने उनके सामने पेश क़ानूनी चुनौतियों के कारण अधिक चकराने वाली स्थिति पैदा की है। उन्होंने तर्क दिया था कि एनटीए प्रावधानों ने ऑस्ट्रेलिया की संघीय अदालत को जुलाई महीने में अदानी को स्वदेशी भूमि-उपयोग समझौते को रद्द करने की अपनी चुनौती को ख़ारिज करने की अनुमति दी थी, भले ही यह दोषपूर्ण था।

डब्ल्यू एंड जे परिवार परिषद के प्रतिनिधि ने आरोप लगाया कि अडानी ने खनन परियोजना के पक्ष में लाने के लिए पैसा खिलाया और परिवार के ग़ैर-सदस्यों को भर्ती करके, अप्रैल 2016 में एक विवादास्पद ILUA बैठक में नकली 'सहमति' का निर्माण किया था। हालाँकि, इस मामले की NTA के प्रावधानों के तहत जांच नहीं की जा सकती है।

4 सितंबर को, न्यू साउथ वेल्स के 63 वर्षीय शिक्षक विल डगलस ने अडानी के रेल कॉरिडोर पर ड्रिल रिग के साथ खुद को ताला मार लिया था। 

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छवि सौजन्य: फ्रंटलाइन एक्शन ओन कोल।

अधिनियम के लिखित प्रावधानों के अनुसार क्वींसलैंड सरकार ने डब्ल्यूएंडजे द्वारा दावा की गई मूल शीर्षक भूमि को लगभग आधा कर दिया और इसे अडानी को सौंप दिया, ताकि खदान के लिए बुनियादी ढांचा तैयार किया जा सके। यह सब तब हुआ जब एक आंकलन में पाया गया कि गलील में कोयला परियोजनाएं व्यावहारिक नहीं हैं। जब डब्ल्यू एंड जे ने कंपनी द्वारा धोखाधड़ी से उपयोग समझौते के आधार पर हड़प ली गई भूमि से उनके मूल शीर्षक को मिटाने की कोशिश के खिलाफ अपील की तो इसने भी मुक़दमे कोई मदद नहीं की।

मुक़दमे का दूसरा पहलू मानव अधिकारों के उल्लंघन की अंतरराष्ट्रीय श्रृंखला है जिन्हें खनन परियोजना थोपेगी, अब जब उन्हें डब्ल्यूएंडजी भूमि सौंप दी गई है। कारमाइकल द्वारा उत्पादित जलते हुए कोयले से जलवायु परिवर्तन का व्यापक वैश्विक जोखिम (और कुछ अन्य खदानें जो अब शुरू हो सकती हैं) एक बड़ा पर्यावरणीय उल्लंघन है।

मानवाधिकारों के उल्लंघन का यह सिलसिला ज़मीन और समुद्री रास्तों से होकर गुज़रेगा जिसके ज़रिये इस कोयले को बिजली के रूप में निकाला, पहुँचाया, भेजा, या जलाया जाएगा।

इस श्रृंखला में हम डब्ल्यू एंड जे की पवित्र भूमि को शामिल कर सकते हैं, क्वींसलैंड में रीफ पर्यटन और खेती कर सकते हैं, प्रशांत द्वीप समूह के सभी देश जो बढ़ते समुद्र के स्तर के कारण डूब जाने के जोखिम से गुजर रहे हैं, भारत के ग़रीब-जिनके लिए कारमाइकल खदान को समय-समय पर नैतिक औचित्य के रूप में उपयोग किया जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित कौन होंगे, वे लोग जिनके पास इसका सामना करने की क्षमता नहीं है और निम्न-स्तर पर रहने वाली बांग्लादेश की ग़रीब आबादी, जो इस थर्मल पावर का अंतिम गंतव्य स्थान है और जो यह कोयला उत्पन्न करेगा।

यह अंतरराष्ट्रीय कोयले का जाल सेंट्रल क्वींसलैंड में उत्पन्न होता है, लेकिन यह भारत के झारखंड में गोड्डा से होकर गुज़रेगा, जहां पहले से ही राज्य सरकार ने संथाल समुदाय की ज़मीन को ज़बरदस्ती एक बिजली परियोजना के लिए छीन लिया है जिसे अडानी चलाएगा और संचालित करेगा। इस संयंत्र के ख़िलाफ़ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए जिन्हें हिंसक रूप से कुचल दिया गया था। एक कंपनी/निगम के पक्ष में काम करने वाली राज्य सरकार की विडंबना यह है कि वह झारखंड को इस संयंत्र में उत्पादित थर्मल पावर से कोई लाभ नहीं होगा। इसकी बिजली को ख़रीदने के लिए 2017 में अडानी के साथ बांग्लादेश का हस्ताक्षरित समझौता हुआ है और बिजली बंग्लादेश को दी जाएगी  - वह भी महंगी दर पर।

अब और जब अडानी का कोयला, डब्ल्यू एंड जे के लोगों की जन्मभूमि से खोदा जाएगा, और अंतरराष्ट्रीय मार्ग से इसे ले जाया जाएगा, तो यह मानव अधिकारों और वातावरण को रौंद देगा।

इस बीच, क्वींसलैंड में अदानी के खिलाफ प्रतिरोध कम नहीं हुआ है। 18 महीने की नाकाबंदी, जो बोवन में कोयला खनन शहर से दूर(खदान साइट से तीन या चार घंटे) स्थित है, अब वहां सभी उम्र और सभी क्षेत्रों के स्वयंसेवकों की भरमार से प्रफुल्लित होना शुरू हो गया है। वे बंदरगाह, रेल और खनन गतिविधियों को रोकने के लिए गिरफ़्तार होने के लिए तैयार हैं।

नाकाबंदी शिविर अपने आप में पिछले एक दशक में ऑस्ट्रेलिया में नागरिक समाज के कोयला खनन के खिलाफ प्रतिरोध की एक निरंतर विशेषता बन गए हैं। व्हाइटहैवेन कोल की खदान के ख़िलाफ़ उत्तरी न्यू साउथ वेल्स के लेयर्ड स्टेट फॉरेस्ट में 2012 में पहली नाकाबंदी व्यापक रूप से गैर-हिंसक कार्यवाही के लिए जानी जाती है - मुख्य रूप से कार्यकर्ताओं ने अपने को मशीन पर ताला मार लिया था। उन्हें गोमेरो के स्वदेशी पारंपरिक मालिकों, विरोध समूहों और ऑस्ट्रेलियाई नागरिक समाज के साथ गठबंधनों और स्थानीय किसानों के बीच सहयोग के लिए भी जाना जाता है। इस चक्काजाम के उफान वाले दिनों के दौरान, लार्ड कैंप में रोज़ाना सैकड़ों स्वयंसेवक इकट्ठा होते थे।

कई लेयर्ड फ़ॉरेस्ट नाकाबंदी के नेता और स्वयंसेवक अब मध्य क्वींसलैंड में अडानी विरोधी नाकाबंदी शिविर में शामिल हो रहे हैं, हालांकि न्यू साउथ वेल्स की साइटों की तुलना में यह अपेक्षाकृत काफ़ी दूर है। अब जब अडानी खदान ने उत्पादन शुरू कर दिया है तो क्वींसलैंड सरकार नागरिक अवज्ञा आंदोलन के अंदेशे में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस निगरानी को बढ़ा रही है

यदि क्वींसलैंड सरकार ने वांगान और जगलिंगो के अधिकारों को उनकी अपनी भूमि से बेदखल नहीं किया होता, तो कुछ उपायों के ज़रिये जिसमें पहले के अन्याय जिसमें स्वदेशी लोगों का विस्थापन शामिल है और जलवायु पर बुरे प्रभाव के भविष्य के असर को एक अच्छे फ़ैसले में समेट लिया होता। लेकिन तबाही मचाने वाले निगम को ज़मीन देना जिसने मानवाधिकार उलंघन के रिकॉर्ड बनाए हैं, जबकि पारंपरिक मालिकों के पास इसके ख़िलाफ़ प्रतिरोध के सभी संभावित साधन समाप्त हो गए हैं, उन्होंने अतीत और भविष्य को एकतरफ़ा बना दिया है।

रुचिरा तालुकदार स्कूल ऑफ़ सोशल एंड पॉलिटिकल साइंसेज़, यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी, सिडनी में पीएचडी स्कॉलर हैं। उनके शोध ने भारत और ऑस्ट्रेलिया में कोयला राजनीति और प्रतिरोध आंदोलनों की तुलना की है।

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