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आधार की अनिवार्यता से कम होगी आयुष्मान की पहुँच

सरकार का आदेश इस बाबत कोई स्पष्ट जानकारी नहीं देता कि जिन लोगों के पास आधार कार्ड नहीं हैं क्या उन्हें योजना में शामिल करने का कोई वैकल्पिक तरीका खोजा जाएगा।
आयुष्मान भारत

भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना ‘आयुष्मान भारत’ का लाभ सिर्फ आधार कार्ड धारक ही ले पाएँगे। गौरतलब है कि सरकार के अनुसार इस योजना का लाभ 50 करोड़ लोगों को पहुँचेगा। केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए टैंडर में कहा गया है कि वे लाभार्थी जिनके पास आधार कार्ड नहीं है, केवल एक बार ही इस योजना का लाभ ले सकेंगे। योजना का लाभ जारी रखने के लिए उन्हे नज़दीकी आधार कार्ड केंद्र पर पंजीकरण करवाना होगा।

आश्चर्य की बात है कि केंद्र सरकार ने यह फ़ैसला तब लिया जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को आदेश दिया था कि योजनाओं का लाभ देने के लिए आधार को अनिवार्य न किया जाये। सरकार का आदेश इस बाबत कोई स्पष्ट जानकारी नहीं देता कि जिन लोगों के पास आधार कार्ड नहीं है क्या उन्हें योजना में शामिल करने का कोई वैकल्पिक तरीका खोजा जाएगा।

आदेश के दस्तावेज़ो का अध्ययन करने से मालूम चलता है कि पूरी योजना आधार पर आधारित है। इसकी अनिवार्यता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लाभार्थी को दूसरी बार चिकित्सा के लिए आधार पेश करना आवश्यक होगा। जिन लाभार्थियों के पास आधार नहीं होगा उनसे एक लिखित हलफनामा लिया जाएगा जिसके तहत वे यह सुनिश्चित करेंगे कि अगली बार योजना का लाभ उठाने से पहले उनके पास आधार होगाI

योजना के अंतर्गत अस्पतालों को आयुष्मान मित्रों की नियुक्ति करने का भी आदेश दिया गया है। जिनका काम लोगों की मदद करना, दस्तावेज़ो की जाँच करना, पंजीकरण कराना और योजना के लिए योग्यता से अवगत कराना होगा। आयुष्मान मित्र नज़दीकी आधार केंद्र में अपना पंजीकरण तय समय के अंदर कराने पर भी सलाह देंगे।

योजना के तहत अगर परिवार का कोई सदस्य योजना में शामिल होना चाहता है तो उसे अपनी पहचान का सत्यापन कराना होगा जो केवल आधार से ही हो पाएगा। योजना के तहत राज्य सरकारों को पूरी औपचारिकता निभाने के लिए कहा गया है। ज़्यादतर राज्यों ने योजना के ज्ञापन पर अपनी सहमति दे दी है सिवाय ओडिशा सरकार के। गौरतलब है कि ओडिशा सरकार ने 70 लाख परिवारों को योजना के तहत लाने की माँग रखी थी लेकिन केद्रं ने 61 लाख परिवारों की ही अनुमति दी।

योजना को भारतीय मैडिकल परिषद की भी नाराज़गी झेलनी पड़ी हैI परिषद ने कहा है कि सरकार ने जो रेट तय किया है वो 30 फीसदी प्रक्रिया को भी कवर नहीं करते और इसकी पुन:समीक्षा की जानी चाहिए।

परिषद के अध्यक्ष डा. रवि वानखेड़कर के अनुसार, “कोई अस्पताल बिना मरीज़ों की सुरक्षा से खिलवाड़ करे इन रेट पर काम नहीं कर सकता। सरकार लागत कम करने के लिए लोगों की जान खतरे में डाल रही है। 9,000 रूपये में डिलिवरी का ऑपरेशन माँ और बच्चे दोनों की सुरक्षा के साथ समझौता है”।

वे आगे कहते है केंद्र कि “इस योजना से कोई नई धरोहर तो नहीं बनने वालीI अगर यही निवेश मौजूदा सरकारी अस्पतालों में किया जाये तो ग़रीब जनता के लिए प्राथमिक के साथ-साथ द्वितीय और तृतीय सुविधाएँ भी मुहैया करवाई जा सकती हैंI”

वानखेड़कर ने यह भी कहा कि, “इससे न ही कोई नए अस्पताल बनेंगे और साथ-साथ जो कंपनियाँ इस योजना की देखरेख करेंगीं उनके हाथों सरकार को 400 करोड़ का नुकसान भी झेलना पड़ेगाI बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवाएँ एक असफल प्रयास है।“

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