Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

आदिवासी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मप्र के वन विभाग द्वारा हिरासत में रखकर उन्हें बेरहमी से मारा गया था

गिरफ्तार होने वाले ये दोनों आदिवासी कार्यकर्त्ता इस क्षेत्र में वन भूमि की सफाई और पेड़ों की कटाई के खिलाफ सक्रिय तौर पर शामिल थे।
आदिवासी
प्रतीकात्मक तस्वीर

दो आदिवासी कार्यकर्ताओं ने मध्य प्रदेश के बुरहानपुर क्षेत्र में दर्जनों वन विभाग के अधिकारियों पर उनके साथ लॉक अप के दौरान मारपीट करने के आरोप लगाए हैं, जिसका कि बरेला और भिलाला आदिवासियों के खिलाफ हिंसा का इतिहास रहा है।

29 अगस्त के दिन दो आदिवासियों- जबरसिंह केरिया और सोमला चामरसिंह को तब हिरासत में ले लिया गया जब वे सामान खरीदने के बाद अपने गाँव की ओर वापस जा रहे थे। उन्हें जमानत पर छुड़ाने के लिए रहमानपुर गाँव से साथी आदवासी कार्यकर्त्ता कैलाश जामरे और प्यारसिंह वासकाले बुरहानपुर जिला अदालत पहुँचे थे। इन दोनों को अदालत परिसर से ही अवैध तौर पर रोकर वन विभाग की हिरासत में ले लिया गया था।

बाकी के गाँव वालों को इन कार्यकर्ताओं की कोई भी खोज-खबर 29 अगस्त की देर रात से पहले तक नहीं दी गई थी। इन दोनों कार्यकर्ताओं को, जो भारी पैमाने पर घगराला क्षेत्र में जंगलों के साफ़ किये जाने का पुरजोर विरोध कर रहे थे, को खकनार रेंज ऑफिस के लॉकअप में बंद रखा गया था।

जामरे और वासकाले का आरोप है कि तकरीबन 20-25 की संख्या में कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा उन दोनों की बारी-बारी से बेरहमी से पिटाई की गई थी।

जामरे के अनुसार दो या तीन लोग “उनके हाथ-पाँव पकड़ लेते थे जबकि बाकी के लोग उन्हें डंडों से पीटते थे।” उसका कहना था कि इनमें से ज्यादातर अधिकारी नशे की हालत में होते थे और उन्हें “कानून का पाठ लगातार पढाने के लिए और संगठन के नेता होने के कारण” निरंतर अपशब्दों का इस्तेमाल करते रहते थे।

शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि पुलिस ने उनकी शिकायत को दर्ज करने से इंकार कर दिया और उल्टा उन्हें गिरफ्तार कर लेने की धमकी दी थी। उधर वन विभाग ने भी अपनी तरफ से न तो कोई सुबूत पेश किये और न ही उन दोनों के खिलाफ किसी अपराध को लेकर कोई आरोप-पत्र ही पेश किया है। इसके बावजूद उनकी जमानत याचिका ख़ारिज कर दी गई।

उनकी गिरफ्तारी के एक दिन बाद इन दोनों कार्यकर्ताओं को अदालत में पेश किया गया। लेकिन जामरे के साथ हुई कथित क्रूरता की वजह से वह बेहोश हो गया था। उसे छह दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था, लेकिन अभी भी वह ठीक से चल-फिर नहीं पा रहा है।

जामरे और वासकाले दोनों ही जंगल की अवैध कटाई के खिलाफ सक्रिय रहे हैं, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह सब वन अधिकारियों की सक्रिय सहयोग के चलते ही संभव हो पा रहा है। रहमानपुर गाँव के अन्य आदिवासियों के साथ वे भी वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत इन वनों के अधिकारों के दावेदार हैं।

पिछले वर्ष इसी जिले में वन विभाग ने अवैध तरीके से आदिवासी दावेदारों के खेतों को नष्ट कर दिया था और सिवाल गाँव में पेलेट गन फायरिंग में पाँच आदिवासियों को घायल कर डाला था। वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) दावेदारों के निष्कासन पर रोक लगाता है, जब तक कि अधिकारों के निपटान की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है।

‘वन विभाग कानूनों की धज्जियाँ उड़ा रहा है’

इस क्षेत्र के आदिवासियों ने वन विभाग के कर्मचारियों के खिलाफ काफी लम्बे समय से संघर्ष का मोर्चा संभाल रखा है, जो फसलों की बुआई और कटाई के बदले में आदिवासियों से पैसे वसूलने के साथ-साथ उन्हें झूठे आरोपों में फँसाने की धमकी देते रहते हैं।

पिछले दो सालों से जामरे और वासकाले जाग्रत आदिवासी दलित संगठन (जेएडीएस) के झंडे तले वन अधिकारों और अन्य क़ानूनी अधिकारों और आदिवासियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में लगे हुए हैं।

इस मुद्दे पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए जेएडीएस की माधुरी कृष्णास्वामी कहती हैं “इस सम्बंध में हमने जिलाधिकारी से मुलाकात की थी। लेकिन वे अभी तक शिकायत के बारे में विचार ही कर रहे हैं, और इस बारे में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। हम चाहते हैं कि वन विभाग के अधिकारियों पर अपहरण, गैर-क़ानूनी तरीके से हिरासत में लेने, मारपीट और अत्याचारों के आरोपों के तहत मामला दर्ज किया जाए। यहाँ पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का काम हुआ है जिसमें वन विभाग ने राज्य के साथ मिलकर मुद्दों से ध्यान भटकाने और आदिवासी आवाजों को कुचलने का कम किया है।”

वन विभाग के पास किसी भी "आरोपी" को रोक कर रखने या किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार नहीं है, सिवाय गंभीर अपराधों को नियंत्रित करने वाली धाराओं को छोड़कर, जोकि इस मामले में लागू नहीं होती हैं। अदालत से विशेष अनुमति प्राप्त करने के बाद ही किसी को हिरासत रखकर में पूछताछ करने की अनुमति है, जिसे कि नहीं लिया गया था।

रात में पूछताछ पर पूरी तरह से रोक है, जबकि शारीरिक हिंसा पूरी तरह से और स्पष्ट तौर पर गैर-क़ानूनी कृत्य है। यहां तक कि गिरफ्तारी के मामलों तक में, गिरफ्तार व्यक्ति के किसी रिश्तेदार या शुभचिंतक को आधिकारिक तौर पर इसके बारे में सूचित करना आवश्यक है। लेकिन इस मामले में न सिर्फ ऐसा कोई काम नहीं किया गया बल्कि ग्राम समुदाय का तो यहाँ तक कहना है कि उन सबको जानबूझकर गलत जानकारी दी जाती रही थी।

इस प्रक्रिया में बुरहानपुर वन प्रभाग, कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करता नजर आता है, जिसमें गंभीर वन्यजीव अपराधों के मामले में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो द्वारा किसी अभियुक्त की गिरफ्तारी और इस मामले में दोषी की गिरफ्तारी पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता नजर आता है।

अपहरण और मारपीट के कथित कृत्यों के जरिये वन अधिकारियों ने आदिवासियों के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, जो कि न केवल गैरकानूनी हैं, बल्कि एससी/ एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत भी अत्याचार के श्रेणी में आता है। इस सबके बावजूद दोषी अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

जेएडीएस ने एफआरए के तहत जमीन के कानूनी दावेदारों के खिलाफ सभी "झूठे और निराधार" मामलों को वापस लिए जाने की मांग की है। इसके अनुसार “वन विभाग द्वारा आदिवासियों को आतंकित और डराने की कोशिशों पर तत्काल रोक लगाई जाए।” इसके अलावा संगठन ने माँग की है कि जबरसिंह केरिया और सुमला चामरसिंह को जिस प्रकार से गिरफ्तार किया गया था, ऐसे में उनके बयानों को दर्ज किया जाए और इन दोनों की "अवैध" गिरफ्तारी के प्रति जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित किया जाए।

यदि इन मामलों पर कार्यवाही नहीं की जाती है तो संगठन की ओर राजनीतिक तौर पर इस महत्वपूर्ण इलाके में विरोध प्रदर्शन की शुरुआत तय है। मध्य प्रदेश में होने जा रहे उप-चुनावों के मद्देनजर यह मुद्दा बेहद अहम हो सकता है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Adivasi Activists Allege They Were Brutally Thrashed in Forest Department’s Custody in MP

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest