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अफ़ग़ान छात्रों को भारत से वापस भेजे जाने पर तालिबान द्वारा हत्या का डर

कुर्बान हैदरी ने हाल ही में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर्स ख़त्म की है। उनका वीज़ा 31 अगस्त को ख़त्म हो गया है। समृद्धि सकुनिया लिखती हैं कि कुर्बान हैदरी ने भारत में रह रहे सभी अफ़ग़ान छात्रों का वीज़ा बढ़ाने के लिए एक ऑनलाइन याचिका चलाई है, जिसमें अब तक 40,000 से ज़्यादा लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं।
अफ़ग़ान छात्रों को भारत से वापस भेजे जाने पर तालिबान द्वारा हत्या का डर

तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद, 2011 से देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे अफ़ग़ानी भारत छोड़ने को लेकर चिंतित हैं। हालांकि अफ़ग़ानों की हालत पर दुनियाभर से दुख और सहानुभूति जताई जा रही है। लेकिन भारत में रह रहे अफ़ग़ान छात्रों के डर और चिंताओं को लेकर बहुत बात नहीं की जा रही है, जबकि इन लोगों का वीज़ा अगले कुछ दिनों में ख़त्म होने वाला है। 

कुर्बान हैदरी ने हाल में जेएनयू से कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर्स डिग्री ली है। हैदरी को डर है कि अगर उन्हें वापस भेजा जाता है, तो उनकी जान को ख़तरा हो सकता है। हैदरी का छात्र वीज़ा 31 अगस्त को ख़त्म होने वाला है। उन्होंने भारत में रह रहे सभी अफ़ग़ानी छात्रों का वीज़ा बढ़वाने के लिए एक ऑनलाइन याचिका शुरू की है। अभी तालिबान की सरकार को वैश्विक समुदाय से आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं मिली है, इस तथ्य के चलते इन छात्रों की स्थिति और भी बद्तर हो गई है.

जो भी व्यक्ति भारत में वीज़ा ख़त्म होने के बाद ठहरता है, उसे "विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946 (फॉरेनर्स एक्ट) के प्रावधानों का उल्लंघन माना जाता है। अधिनियम की धारा 14 के मुताबिक़, उल्लंघन करने वाले शख़्स को "पांच साल तक का अधिकतम कारावास और जुर्माने" की सजा दी जा सकती है। पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के मुताबिक़, जो भी व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है या शक होता है कि संबंधित शख़्स ने अधिनियम की धारा 3 के तहत नियमों का उल्लंघन किया है, तो उसे बिना वारंट के गिरफ़्तार किया जा सकता है। 

अफ़ग़ानिस्तान लौटने पर जान का ख़तरा

हैदरी के दो बड़े भाई अशरफ गनी और हामिद करजई की सरकारों में सुरक्षा प्रतिष्ठानों के सदस्य थे। हैदरी को डर है कि अगर भारत उन्हें वापस भेजा, तो तालिबान उन्हें सजा दे सकता है। 

उन्होंने कहा, "मैं नहीं जानता कि अगर मैं वापस आया, तो तालिबान मेरे बारे में क्या सोच सकता है। वह मुझे अफ़ग़ान सैनिक समझकर सीधे सिर में गोली मार सकता है या मुझे जेल में बंद कर सकता है। मुझे उनके ऊपर विश्वास नहीं है। आखिर क्यों अफ़ग़ान भाग रहे हैं? उन्हें तालिबान पर विश्वास नहीं है। मैं तब लौट सकता हूं, जब अफ़ग़ान अपने अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू कर सकते हैं।"

याचिका पर करीब़ 40,000 लोगों ने हस्ताक्षर किए

हैदरी की ऑनलाइन याचिका पर अब तक करीब़ 40,000 हस्ताक्षर हो चुके हैं। 12 जुलाई को वीज़ा ख़त्म होने के बाद उसे 31 अगस्त तक बढ़ाया गया था। वह कहते हैं, "मेरी यूनिवर्सिटी द्वारा सर्कुलर जारी किए जाने के बावजूद भी मुझे प्रामणिक पत्र नहीं मिला है। यह मेरे वीज़ा आवेदन के लिए जरूरी है; मैं कई बार विभाग में गया, लेकिन यह पत्र मुझे हासिल नहीं हो पाया। बिना आवेदन के मेरे वीज़ा नहीं बढ़ पाएगा।" हैदरी वीज़ा बढ़ाए जाने की पूरी प्रक्रिया को बताते हैं और समझाते हैं कि कैसे अफ़ग़ान छात्रों को भारत में विश्वविद्यालयों में प्रवेश मिलता है। चूंकि उन्हें भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICAR) के ज़रिए विशेष छात्रवृत्ति मिली थी, इसलिए उन्हें जेएनयू में प्रवेश मिल गया। भारतीय विश्व विद्यालयों में प्रवेश का दूसरा तरीका ICCR में आवेदन लगाना या किसी निजी कॉलेज में पंजीकरण करवाना है। किसी छात्र द्वारा प्रामणिक पत्र ICCR की वेबसाइट पर अपलोड कर, वीज़ा बढ़ाने की अनुमति मिल सकती है। 

मज़ार-ए-शरीफ़ में खराब हालात

हैदरी का परिवार मज़ार-ए-शरीफ़ में रहता है, जो अफ़ग़ानिस्तान का चौथा सबसे बड़ा शहर है, जिसपर तालिबान ने 14 अगस्त को कब्ज़ा कर लिया था। हैदरी वहां के भयावह हालातों को बताते हुए कहते हैं, "लोगों को काम करने या अपने मनमुताबिक़ चीजें करने की आज़ादी नहीं है।" हैदरी, हजारा समुदाय से आते हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान में तीसरा सबसे बड़ा नृजातीय समूह है। हजारा समुदाय के ऊपर अक्सर तालिबान हमला करता रहा है।

"तालिबान द्वारा कब्ज़ा किए जाने और इंटरनेट को जाम किए जाने के एक हफ़्ते बाद मैं किसी तरह अपने परिवार से बात करने में सफल हो पाया। मेरी बहनों और भांजियों को बिना हिजाब के बाहर जाने की अनुमति नहीं है और उन्हें शरिया का पालन करना पड़ता है।" हैदरी की मां ने उन्हें अफ़ग़ानिस्तान ना लौटने की चेतावनी दी है।  

अपने परिवार की खस्ता माली हालत बताते हुए हैदरी कहते हैं कि "उनके परिवार की बचत एक महीने में ही खर्च हो जाएगी, तालिबान से बड़ा ख़तरा भूख है, क्योंकि वहां कोई नौकरियां नहीं हैं।" वह बताते हैं कि उनके दोनों भाई अब बेरोज़गार हो चुके हैं, वे जिस कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे, वह तालिबान के कब्ज़े के बाद बंद हो चुकी है। "मेरे जीजा, जो पहले अफ़ग़ान राष्ट्रीय सेना में थे, वे और उनके परिवार का भविष्य आगे स्याह है, अब सिर्फ़ अपनी बचत के बल पर ही वे अपनी जरूरतें पूरी कर सकते हैं।" 

"भारत में पढ़ाई कर और पैसे कमाकर अपने परिवार की मदद करने के लिए मेरा वीज़ा बढ़ाया जाना जरूरी है। मैं एक और ICCR छात्रवृत्ति लेने की कोशिश कर रहा हूं। जैसे ही मुझे यह मिलती है, उसके बाद मैं नौकरी की तलाश शुरू कर दूंगा।" हैदरी कहते हैं कि वो अफ़ग़ानिस्तान में जिनको भी जानते हैं, उन सभी की माली हालत खराब़ है, क्योंकि वहां सरकारी या निजी क्षेत्र में नौकरियां ही नहीं हैं।

ICCR ने 2021/22 में 1000 अफ़ग़ानी छात्रों को छात्रवृत्ति देने की पेशकश की है। "ICCR पूर्ण छात्रवृत्ति के साथ-साथ भत्ता भी छात्रों को देता है, ताकि उन्हें फ़ीस और दूसरे खर्चों के लिए अपने परिवार पर निर्भर ना रहना पड़े।"

तालिबान के शासन में रहना

पुराने तालिबान शासन में कैसे हैदरी के परिवार के बेहद भयावह अनुभव रहे, उसे बयां करते हुए वे कहते हैं, "जब मैं 12 साल का था, तो मज़ार-ए-शरीफ़ में एक बम धमाके में मैंने अपना बांया हाथ खो दिया। 12 साल के बच्चे के लिए 18 सर्जरी से गुजरना बहुत दुखदायी और भयानक था। 2015 में तालिबान ने मेरे एक बड़े भाई की हत्या भी कर दी थी।"

हैदरी तालिबान के उस दावे को झूठा बताते हैं, जिसमें संगठन ने पहले की तुलना में उदार होने की बात कही है। हैदरी कहते हैं, "जबतक आप अफ़ग़ानिस्तान में नहीं हो, तब तक आप हमारे परिवारों पर गुजर रहे हालातों को नहीं समझ सकते। महिलाओं को बिना हिजाब के बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। वे उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सकतीं। तालिबान अपने तरीकों में बदलाव की बात कहकर दुनिया को बेवकूफ बना रहा है। तालिबान महिला-विरोधी है; तालिबान महिलाओं के पढ़ने या काम करने के अधिकार के खिलाफ़ है।"

भारत में रह रहे हैं 14,000 अफ़ग़ानी छात्र

भारत में करीब़ 14,000 अफ़ग़ानी छात्र रह रहे हैं, जिनमें से 4000 दिल्ली और 3000 महाराष्ट्र में रह रहे हैं। या तो यह लोग भारत में सरकार की अनुमति से नई जिंदगी शुरू कर सकते हैं या फिर तालिबान के शासन में रहने के लिए वापस जा सकते हैं। सरहद नाम के NGO द्वारा बुलाई गई एक बैठक में अफ़ग़ान छात्रों के प्रतिनिधि मंडल से बात करते हुए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने हाल में उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा, "मैं सरकार से जरूरी सहायता लेने की कोशिश करूंगा।"

महाराष्ट्र के उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री उदय सामंत ने भी ऐसा ही भरोसा दिलाया है, उन्होंने परेशान छात्रों की मदद करने के लिए समिति बनाने का वायदा भी किया है। 

लेकिन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जब 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के उप कुलपतियों के साथ ऑनलाइन बैठक की, तो उसमें अफ़ग़ान छात्रों की परेशानी एजेंडे में नहीं थी। हैदरी और जेएनयू के अन्य 13 छात्र विदेश मंत्रालय से वीज़ा बढ़ाने के अपने आवेदन के जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं।

(समृद्धि सकुनिया ओडिशा में रहने वाली स्वतंत्र पत्रकार हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीति पर लिखती हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

यह लेख मूलत: द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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