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अफ़ग़ानिस्तान: गढ़े गये फ़सानों के पीछे की हक़ीक़त

विदेशी ताकतों की दखल के चलते तालिबान की वापसी हुई है। अब जनता को इन तालिबान से निपटना होगा।
Taliban

15 अगस्त को काबुल में ख़तरनाक तालिबान के घुसने और देश की कमान संभालने के बाद कुछ नहीं कर पाने की विवशता से पैदा होने वाले ग़ुस्से की लहर ने पश्चिम और इसके प्रभाव में आने वाले अन्य हिस्सों को अपने आगोश में ले लिया है। हमेशा की तरह, अमेरिकी सहयोगियों के बीच एक दूसरे पर भावनात्मक कीचड़ उछाला जा रहा है, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन को इस 'शिकस्त' के लिए निशाना बनाया जा रहा है। "लम्बे समय तक चलने वाला यह युद्ध", कोई शक नहीं कि अब तक का सबसे लंबा चलने वाला युद्ध है, जिसे  अमेरिका ने लड़ा है, आख़िरकार 20 सालों बाद यह लड़ाई ख़त्म हो चुकी है। वह शासन, जिसे 2001 में अमेरिका/नाटो ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करके सत्ता से बाहर कर दिया गया था, अब वह सत्ता में फिर से वापस आ गयी है।

हमेशा की तरह जानकार टीकाकार यह समझाने को लेकर परेशान हैं कि लोकतंत्र के निर्माण और चार दशकों से अधिक समय से युद्ध की चपेट में रहे इस बेबस देश में समृद्धि लाने के शानदार प्रयास में क्या कुछ ग़लत हुआ। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने लोगों के 'दिल-ओ-दिमाग़' को जीतने के लिए एक ट्रिलियन डॉलर ख़र्च कर डाले, यहां तक कि उन्होंने तालिबान के ख़िलाफ़ दुनिया में सबसे परिष्कृत सशस्त्र बल भी तैनात कर दिये। इसके बावजूद, इसका नतीजा सिफ़र रहा। सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ ? ये सब कैसे हो गया ?

इसके जवाब में जो कुछ उल्टी-सीधी बातें कही जा रही हैं, उनमें हक़ीक़त से कहीं ज़्यादा फ़साना है। किसी नशेड़ी की तरह स्राम्राज्यवादी अमेरिकी न तो भूलते हैं और न ही सीखते हैं। यहां पेश है ऐसे ही कुछ फ़साने और कड़वी हक़ीक़त, जिन पर पर्दा डालने की कोशिश हो रही है।

फ़साना: "अमेरिका ने एक नया अफ़ग़ानिस्तान बनाने में एक ट्रिलियन डॉलर ख़र्च कर डाले..."

अफ़ग़ानिस्तान के कब्ज़े वाले इस मशहूर प्रसंग में दो फ़साने हैं। एक तो यह कि अमेरिका और उसके सहयोगियों ने क़रीब 1 ट्रिलियन डॉलर ख़र्च कर डाले और दूसरा फ़साना यह कि इस रक़म को अफ़ग़ानिस्तान के लोगों पर ख़र्च किया गया है।

आधिकारिक तौर पर अमेरिकी रक्षा विभाग ने 2002 और 2021 के बीच के ख़र्च को 837 बिलियन डॉलर बताया है। इसके अलावा, विभिन्न सहायता और पुनर्निर्माण एजेंसियों ने 'अफ़ग़ानिस्तान पुनर्निर्माण' पर 133 बिलियन डॉलर ख़र्च कर दिये, जिसमें स्कूलों की स्थापना और बाज़ारों और सड़कों आदि का निर्माण शामिल है।

हालांकि, स्वतंत्र अनुमानों के मुताबिक़ युद्ध की वास्तविक लागत 2.26 ट्रिलियन डॉलर है, जो आधिकारिक आंकड़ों के दोगुने से भी ज़्यादा है। ब्राउन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक़, ख़र्च की गयी इस रक़म में पाकिस्तान के सीमावर्ती ज़िलों में तालिबान के ख़िलाफ़ ऑपरेशन पर ख़र्च की गयी राशि, अमेरिकी घायल सैनिकों की चिकित्सा और युद्ध के वित्तपोषण के लिए वाणिज्यिक उधार को लेकर यूएस ट्रेजरी की तरफ़ से ब्याज के भुगतान पर ख़र्च की गयी राशि शामिल होनी चाहिए।

आधिकारिक अनुमान के मुताबिक़, कथित 'अफ़ग़ानिस्तान पुनर्निर्माण' उप-शीर्ष के तहत अफ़ग़ाननिस्तान के लोगों पर महज़ 16% पैसे ख़र्च किये गये। लेकिन, अगर आप अनौपचारिक अनुमान की मानें, तो यह रक़म युद्ध की कुल लागत की 6% जितनी छोटी रक़म है। यहां तक कि इस रक़म के भीतर भी विभिन्न अमेरिकी नागरिक सलाहकारों, ठेकेदारों, बिचौलियों आदि को किये गये भुगतान शामिल हैं और इससे इन पैसों का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं भुगतानों में चला गया है।

ऐसे में फ़साना यह है कि अमेरिका और उसके सहयोगी हर साल अफ़ग़ानों को शिक्षित करने, उन्हें समृद्ध बनाने में मदद करने आदि के लिए एक बड़ी राशि ख़र्च कर रहे थे, ये सब हवा-हवाई है।

फ़साना: "इस पराजय के लिए भ्रष्ट अफ़ग़ान ज़िम्मेदार हैं..."

यह एक ऐसी बात है, जिसे ज़ोर-शोर से कहा जाता रहा है। इस समय भी पुरज़ोर तरीक़े से कहा जा रहा है कि अमेरिका अच्छे इरादों के साथ काम कर रहा था, इतने सारे जीवन बलिदान कर रहा था, अपने पैसे ख़र्च कर रहा था और अफ़ग़ानों को यह सिखाने की कोशिश कर रहा था कि आधुनिक लोकतंत्र कैसे चलाया जाये, लेकिन अशरफ़ ग़नी और उनके नौकरशाहों ने इन पैसों का गबन कर लिया, वे इस रास्ते पर नहीं चल पाये।

सबसे पहले, जैसा कि ऊपर बताया गया है, अफ़ग़ानिस्तान के लोगों पर इस रक़म का महज़ एक छोटा हिस्सा ही ख़र्च किया गया। ज़्यादातर पैसे रेथियॉन, लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन और जनरल डायनेमिक्स जैसे उन अमेरिकी हथियार निर्माताओं पर ख़र्च किये गये, जो अमेरिकी सरकार के सबसे बड़े हथियार ठेकेदार हैं (अर्थात, उन्हें अमेरिकी युद्ध में इस्तेमाल होने वाले सभी तरह के हथियार बनाने के लिए अनुबंध दिये जाते हैं)। एक अध्ययन के मुताबिक़, जैसा कि एस एंड पी 500 (S&P 500) में दिखाया गया है कि इन पांच शीर्ष हथियार निर्माताओं के शेयर की क़ीमतों में पिछले 20 सालों में समग्र शेयर बाजार के मुक़ाबले 58% ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। वित्तीय साल 2020 में अमेरिकी सरकार अनुबंध दस्तावेज़ों की एक समीक्षा के मुताबिक़ इन शीर्ष पांच हथियार निर्माताओं को बड़ी रक़म के अनुबंध दिये जाते रहे।ये हैं: लॉकहीड मार्टिन (74.2 अरब डॉलर), रेथियॉन टेक्नोलॉजीज (27.4 अरब डॉलर), जनरल डायनेमिक्स (22.6 अरब डॉलर), बोइंग (21.5 अरब डॉलर), नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन कॉर्प (12.7 अरब डॉलर)।

अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध हमेशा की तरह पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था,ख़ासकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को थामे रखने के लिए एक वरदान था। इन पैसों का इस्तेमाल अमेरिका और यूरोप में रोज़गार पैदा करने और बड़े-बड़े कॉर्पोरेटों को ज़बरदस्त मुनाफ़ा कराने के लिए ज़्यादा और लोकतंत्र के निर्माण और अफ़ग़ानिस्तान में आर्थिक उत्थान लाने के लिए कम किया जा रहा था।

दूसरी बात कि इतिहास अमीर देशों के अक्सर बंदूक की नोक पर शुरू किये जाने वाले 'सभ्य बनाने के मिशन' की घटनाओं से भरा पड़ा है, जो आख़िर में इन देशों को तबाह कर देते हैं और उन्हें सांप्रदायिक हिंसा से बर्बाद कर देते हैं, उनकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है और चारों तरफ़ रक्तपात का बोलबाला हो जाता है। पिछले कुछ दशकों में ही आप इराक़, सीरिया, लीबिया, यमन में अमेरिकी हस्तक्षेपों के नतीजे देख सकते हैं, और जैसा कि कभी एक अमेरिका राष्ट्रपति ने कहा था कि ये सभी देश 'तबाह होकर पाषाण युग' में पहुंच गये। अफ़ग़ानिस्तान इस ‘सभ्य बनाने के मिशन’ का एक और जीवंत उदाहरण है। ब्राउन यूनिवर्सिटी के 2019 के अनुमान के हिसाब से पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और सीरिया में युद्ध की लागत 6.4 ट्रिलियन डॉलर आंकी गयी है।

इससे पहले, 20वीं शताब्दी में इसी मिशन को कम्युनिस्ट देशों-वियतनाम, लाओस और कंबोडिया के ख़िलाफ़ और लैटिन अमेरिका में छद्म तरीक़े से बार-बार चलाया गया था। लेकिन,यह कहीं भी कामयाब नहीं हो पाया, और हर जगह लोगों ने अमेरिका और परदे के पीछे से काम कर रहे उसके तानाशाहों से किसी न किसी तरह से छुटकारा पाया है।

हैरत की बात नहीं कि आख़िर में आम अफ़ग़ानों के बीच यह अहसास बहुत ज़्यादा है कि कब्ज़ा करने वाले जा चुके हैं और आख़िरकार युद्ध ख़त्म हो गया है। सच है कि कठपुतली चोरशाह सहित इस दखल से जिन तबकों को फ़ायदा हुआ और जिन्होंने पहले हामिद करज़ई और फिर अशरफ़ ग़नी की अगुवाई में अफ़ग़ानिस्तान पर शासन किया, वे ही भयभीत होंगे। बहरहाल, यह सब सबको पता है।

फ़साना: "तालिबान मुक्तिदाता है..."

तालिबान क्या हैं, इसका मूल्यांकन किये बिना कुछ तबकों के बीच तालिबान के हाथों अमेरिकी साम्राज्य निर्माण को मिली एक और अपमानजनक हार का स्वागत किया जा रहा है। हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका की अगुवाई वाली दखलंदाज़ी की हार स्वागत योग्य कदम है, लेकिन अफ़ग़ान लोगों को अब इस्लामी कट्टरपंथियों से निपटना होगा। उन सभी धार्मिक कट्टरपंथियों की तरह, जो एक धर्म आधारित शासन के निर्माण का सपना देखते हैं। तालिबान के पास भी एक मध्ययुगीन दृष्टिकोण और एक बेहद प्रतिगामी सामाजिक नीति है। मुमकिन है कि तालिबान 2.0 पहले की तरह क्रूर न हो। भले ही वे नरम पड़ गये हों, लेकिन वे इस्लाम की एक व्याख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अफ़ग़ान लोगों की आर्थिक और सामाजिक मुक्ति के अनुकूल नहीं है। एक आधुनिक औद्योगिक समाज के निर्माण के लिए एक ऐसे आमूलचूल बदलाव की ज़रूरत होती है, जिसमें शामिल हैं- शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण का प्रसार, आधुनिक कृषि तकनीकों की शुरूआत करते हुए उत्पादक क्षमताओं की आज़ादी, अमेरिकी दखल के समय ख़ूब फलने-फूलने वाली अफ़ीम की खेती से मुक्ति, अफ़ग़ानिस्तान के लिथियम, कोबाल्ट, तांबा और धरती के नीचे के दूसरे दुर्लभ तत्वों के विशाल खनिज संसाधनों का लगातार इस्तेमाल और बाक़ी दुनिया के साथ जुड़ाव।  

इसका मतलब यह नहीं है कि शिकार की ताक में बैठे पश्चिमी कार्पोरेटों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया जाये। उन्हें सभी अफ़ग़ानों पर इस्लाम के अपने ब्रांड को थोपने की आधिपत्य की उस आकांक्षा को भी छोड़ना होगा, जिसमें विभिन्न जातीय समूह (उज़्बेक, ताजिक, आदि) और यहां तक कि शिया (हज़ारा, क़िज़िलबाश) जैसे संप्रदाय शामिल हैं।

ठीक है कि तालिबान को लेकर किसी भी तरह के फ़ैसले पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन इस बात के संकेत को लेकर हमारे पास बहुत कुछ नहीं है कि तालिबान ने ख़ुद को नये रूप में बदल लिया है। तालिबान का पिछला रिकॉर्ड भयानक और काठ मार देने वाला है। उस अतीत की छाया को त्याग देने को लेकर एक बड़े बदलाव की ज़रूरत है। अगर ऐसा नहीं होता है, तो अफ़ग़ानों को उनके मूल अधिकारों और अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। कम से कम इस समय विदेशी दखल देने वालों को परे रखते हुए उस लड़ाई में शामिल हुआ जा सकता है।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

newsclick.in/afghanistan-behind-smoke-and-mirror

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