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अहमदाबाद: आधी रात डीएनटी आदिवासी छारा बस्ती में पुलिस ने मचाया आतंक, 29 लोग किए गिरफ्तार

इस उत्पात में लगभग 80 लोग घायल हुए, जिनमें से 25 को गंभीर चोटें आई हैं।
gujrat

यह 26 मई की रात के 12.30 बजे की घटना है जब अहमदाबाद में छारा समुदाय की एक बस्ती, चंद्रनगर के लोग, अपने बंद दरवाजों पर पुलिस की लाठी मारने, गाली बकने और चिल्लाने की आवाज़ से उठ गये।चूंकि कुछ छारा आदिवासी राज्य में शराबबन्दी के बावजूद गैर-कनूनी ढंग से शराब बेचते हैं, इसलिए यहाँ पुलिस छापे आम बात है। हालांकि, किसी ने स्थिति के इतने गंभीर होने की उम्मीद नहीं की थी जब तक कि उन्हें एहसास हुआ कि यह एक सामान्य पुलिस हमला नहीं।

लगभग 500 पुलिसकर्मियों ने, जो लगभग 50 वैन मैं भरकर आये थे, छारा आदिवासी बस्ती पर हमला किया, सुबह के 5 बजे तक क्षेत्र को बंद कर दिया गया और स्थानीय लोगों को अंधाधुंध पीटा गया।

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छारा, एक विमुक्त जाति है जिसे 1871 में आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत एक आपराधिक जनजाति घोषित किया गया था। उल्लेखनीय है कि जब तक ब्रिटिशों द्वारा अधिनियमित कानून ने उन्हें 'आपराधिक' घोषित नहीं किया, तब तक वे घुमंतू आदिवासी थे, इस कानून ने उनके घूमने को कम कर दिया। तब से ये आदिवासी कलंक और भेदभाव भरा जीवन जीने के लिए मजबूर किए जाने से छारों को गैर-कानूनी शराब, छोटी चोरी और जुआ बाज़ी करने के लिए मजबूर कर दिया गया है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, कई छारा लोगों ने इस कलंक को धोने का प्रयास किया है। ऐसे लोग जो अब वकालत, रंगमंच कलाकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं जो पूरे समुदाय को अपराधियों के रूप में ब्रांड करने के खिलाफ अपनी आवाज़ उठा रहे हैं।

 

यह क्षेत्र, नरोदा पाटिया, अहमदाबाद से करीब दो किलोमीटर दूर है, जो 2002 के दंगों में सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ था, यहाँ छारा समुदाय के लगभग 6,000 परिवार रहते हैं।"रात में करीब 12.30 का वक्त था और हम सोने की तैयारी कर रहे थे जब हमने बाहर शोर सुना। पुलिस हमारी कारों और दो पहियाओं पर लाठियों से हमला कर रही थी और क्षेत्र के लोग चिल्ला रहे थे और खुद को पीटे जाने से बचाने के लिए दौड़ रहे थे। मैं अपने घर से बाहर निकला और देखा कि छरणगर के अंदर पुलिस की कई वैन अंदर आ गयी," बुद्धान थियेटर से जुड़े रंगमंच कलाकार और कार्यकर्त्ता अतीश इंदरेकर ने न्यूज़क्लिक को बताया।

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उन्होंने बताया: "इस अराजकता में मेरे चचेरे भाई हमें देखने आए और पुलिस ने मेरे सामने उन्हें पीटा। यही वह वक्त है जब मैंने अहमदाबाद पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन किया तो उन्होंने बताया कि वे छरण नगर में प्रवेश करने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्हें क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। इस बीच, पुलिस ने अनिश्चितता का फायदा उठाते हुए दुर्व्यवहार जारी रखा। मैं बाहर गया और कुछ पुलिसकर्मियों से वाहनों को नुकसान पहुंचाने का कारण पूछा। मेरे प्रश्न का जवाब देते हुए, दो कर्मियों ने मुझे पकड़ लिया और तीसरे ने मुझे मारना शुरू कर दिया। उन्होंने मुझे पुलिस वैन में खींच लिया और जैसे-जैसे वैन आगे बढ़ी मुझे मारने वाले पुलिस कर्मियों की संख्या में इज़ाफा होता गया। उन्होंने मेरी पीठ पर लात मारी और मैं पुलिस वैन के अंदर गिर गया। इस बीच, मेरे चाचा और फोटोजर्नलिस्ट प्रवीण इंदरेकर जिन्होंने अत्याचार की तस्वीरों लेने की कोशिश की, पुलिस ने उन्हें भी पकड़ लिया। उनके लाखों रुपये का कैमरे तोड़ दिया गया और उन्हें तब तक पीटा गया जब तक कि उनके हाथ पर कई फ्रैक्चर नहीं हो गये। कुछ स्थानीय लोगों ने 108 आपातकालीन चिकित्सा एम्बुलेंस सेवा बुलायाI पहले छरणगर के बाहर पुलिस ने एम्बुलेंस रोकी, लेकिन बाद में उन्होंने इसे मेरे चाचा को इलाज के लिए लेके जाने की अनुमति दी। जैसे ही उन्हें अस्पताल से रिहा किया गया, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। "

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महिलाओं सहित पुलिस ने 29 लोगों को आरोपी बना गिरफ्तार कर लिया गया। भारतीय दंड संहिता की धारा 392, 332, 333, 143, 147, 148, 149, 337, 427, 341 और186 के तहत लूटपाट और दंगों जैसे आरोपों के साथ उनमें सभी के खिलाफ 11 एफआईआर दर्ज़ हैं। 29 में, प्रवीण इंदरेकर एक प्रमुख फोटोजर्नलिस्ट हैं, अतीश इंदरेकर एक रंगमंच कलाकार और कार्यकर्त्ता हैं और तीन अन्य वरिष्ठ वकील हैं। बाकी सब्जी विक्रेताओं, अचल संपत्ति दलाल, मज़दूर हैं, लेकिन कोई भी कथित तौर पर शराब बेचने वाला नही हैं। 1 अगस्त को अहमदाबाद की निचली अदालत से ज़मानत मिलने के बाद 29 में से 8 को रिहा कर दिया था।

"पुलिस लॉकअप में, हमें फिर से पीटा गया था। मैंने पानी माँगा, लेकिन किसी ने मुझे लगभग तीन घंटे तक पानी नहीं दिया। मैंने अपने होंठ गीले करने के लिए शौचालय से पानी का इस्तेमाल किया क्योंकि मैं बहुत प्यासा था।” अतीश ने बताया, जो अब रिहा हो चुका है और इलाज चल रहा है।, "जेल में स्थानांतरित होने के बाद, पुरुषों की नंगा करके जाँच की गयीI" 

"वहाँ कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं थी और पुरुषकर्मियों ने ही हमारी महिलाओं को पीटा। यहाँ तक कि बूढ़ी और गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया था,"I एक रंगमंच कलाकार और छारा कार्यकर्त्ता डाक्क्सिन बजरेंज ने दावा किया कि उन्होंने अपनी बूढ़ी सास को बचाने की कोशिश की थी। उसकी कार जो घर के बाहर खड़ी थी, क्षतिग्रस्त हो गई थी।

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रिपोर्ट के अनुसार, 27 मई की शाम को, पुलिस सब-इंस्पेक्टर डीके मोरी और हेड कांस्टेबल महेंद्र सिंह बाल्देव सिंह एक निजी कार में छरणगर आए थे। उन्होंने दो स्थानीय लोगों से पूछना शुरू कर दिया। जब वार्तालाप गरमा गयी, तो स्थानीय छारा युवाओं ने कथित तौर पर पुलिस कर्मियों से दुर्व्यवहार किया। घटना के बाद, पुलिस ने उस रात देर से चंद्रनगर को धराशायी कर दिया, जिसमें 80 से अधिक वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया, जिसमें छारों के वे ऑटो रिक्शा भी शामिल थे, जो जीवित रहने के लिए रोज़ी देते हैं। पुलिस ने दरवाजे तोड़ दिए और छारों के घर में प्रवेश किया ओर पंखे, वाशिंग मशीन, टेलीविजन, बल्ब इत्यादि को ध्वस्त कर दिया।

"यह पागलपन ही था जो सुबह 5 बजे तक चलता रहा। एक युवा फिल्म निर्माता और छरणगर के निवासी अभिषेक इंदरेकर कहते हैं, "हम में से ज्यादातर को यह पता नहीं चला कि यह क्या हो रहा था।" उन्होंने कहा " मैं भागने मैं उस वक्त कामयाब रहा जब पुलिस पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मार रही थी, मैं भागने और छिपाने में कामयाब रहा।"

शमशाद पठान की अध्यक्षता में एक तथ्य-खोज समिति के मुताबिक, जनसंघर्ष मंच से जुड़े वकील और कार्यकर्ता अहमदाबाद स्थित मानव अधिकार संगठन, अल्पशंख्यक अधिकार मंच, ने कहा जब हमला हुआ तो ज्यादातर लोग सो रहे थे या टेलीविजन देख रहे थे, जब उन्होंने आवाज सुनी तो उनके  वाहनों को ठोका जा रहा था। लगभग हर कोई जो शोर सुनकर बाहर आया, उसे अंधाधुंध पीटा गया। लगभग 80 लोग घायल हो गए हैं, जिनमें से 25 को गंभीर चोटें आई हैं।

पुलिस ने एक छारा के घर से तीन कलोगों को गिरफ्तार कर लिया और लकवाग्रस्त एक महिला को पीटा। एक और घर में, एक गर्भवती महिला को धक्का दिया गया और एक जवान लड़के को पीटा। अधिकांश परिवारों को यह नहीं पता था कि पुलिस ने इतनी बड़ी ताकत में हमला क्यों किया था। एक अन्य स्थानीय नाम अतुल गगदेकर, जिसे मधुमेह है, और दो बार  दिल के दौरे से बच गया है, जब वह अपने घर में सो रही थी तो पोलिके ने घर मैं घुसते ही उसकी 16 वर्षीय बेटी को मारना शुरू कर दिया था। जब उसने हस्तक्षेप किया, पुलिस ने उसे अपने बैटन से मारा और उसे गिरफ्तार कर लिया।

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सेना के एक कर्मी की कार भी क्षतिग्रस्त हो गई इसलिए क्योंकि वह छारा है। विशेष रूप से, स्थानीय लोगों का दावा है कि पीएसआई, डीके मोरी हमेशा से बिना आधिकारिक प्रोटोकॉल के कानून का दुरुपयोग और शक्तियों के दुरुप्योग का इतिहास रहा है।
"उस रात, मैंने मोरी और संयुक्त आयुक्त पुलिस (जेसीपी) अशोक यादव को मौके पर पहचाना। वास्तव में, यह जेसीपी यादव था जो चिल्लाया और मुझे यानी छारा को दूर करने का आदेश दिया, "अतीश ने कहा।29 गिरफ्तारियों के जमानत आवेदन को संभालने वाले वकील अंकुर गैरेज ने कहा, "सोलह पीड़ितों ने अब तक मेट्रो कोर्ट अहमदाबाद के कोर्ट नंबर 17 में अपने बयान दर्ज किए हैं।"

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29 जुलाई को, छारा समुदाय ने शहर में एक अनूठा विरोध किया - एक बेसना, जैसा कि उन्होंने कहा, राज्य के कानून और व्यवस्था के अंतिम संस्कार का अनुष्ठान। एक विशाल सभा में महिलाओं ने मारसी (मृत्यु के बाद जोर से रोने की अनुष्ठान) की, बच्चों ने कहा कि 'मैं छारा हूँ, आपराधी नहीं हूँ'। उसके बाद, वे चुपचाप संबंधित पुलिस स्टेशन चले गए और पुलिस को गुलाब प्रस्तुत किए। छारा अब मांग कर रहे हैं कि संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए। एसआईटी बनाने की मांग के बीच, जांच का प्रभार अपराध शाखा (डीसीबी) और विशेष संचालन समूह (एसओजी), अहमदाबाद को जांच के लिए सौंप दिया गया है।

"एसओजी छारों के खिलाफ पुलिस शिकायतों और दीपेन भदृन, पुलिस उपायुक्त (डीसीपी), डीसीबी के खिलाफ पुलिस द्वारा किए हमलों के आरोपों की जांच कर रही है। अहमदाबाद के एसीपी एसओजी बीसी सोलंकी ने कहा, "29 गिरफ्तारियों में से नौ को जमानत मिली है और बाकी को भी सभी संभावनाओं में जमानत मिलेगी।"

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