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डीवीसी पर मनमानी का आरोप, नकेल लगाएगी झारखंड सरकार

जिस प्रदेश की मिट्टी–पानी–कोयला–मानव श्रम और सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके डीवीसी का अस्तित्व कायम है, उसी राज्य के लोगों को महज तथाकथित बकाया विवाद के नाम पर वह बिजली कटौती करने की मनमानी पर अडिग है।
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चित्र साभार: हिंदुस्तान

यह काफी विडंबनपूर्ण के साथ-साथ नाटकीय भी है कि एक ओर केंद्र की मौजूदा सरकार देश के सारे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और औद्योगिक ईकाइयों को विनिवेश की बलि वेदी पर चढ़ने के लिए पूरी तरह से तत्पर है। यहाँ तक कि सरकार के इस निजीकरण के फैसले के खिलाफ इन सभी संस्थानों के व्यापक कर्मचारी–मजदूर लगातार आंदोलनरत हैं। वहीं दूसरी ओर, इन्हीं सार्वजनिक उपक्रमों का इस्तेमाल कर गैर भाजपा राज्य सरकारों को तंग तबाह करने में भी कोर-कसर नहीं रखती दिख रही है।

वर्तमान झारखंड सरकार बनाम डीवीसी यानि दामोदर घाटी निगम का विवाद प्रकरण कुछ ऐसा ही लगता है। झारखंड की विद्युत आपूर्ति के बकाए को लेकर जो डीवीसी पिछली भाजपा सरकार के समय भींगी बिल्ली सी बनी रहती थी, प्रदेश में गैर भाजपा सरकार के सत्तासीन होते ही अचानक से शेर की तरह से उसका हमलावर हो जाना, आम चर्चा का विषय बन गया है। 

दिसंबर 2019 में हेमंत सोरेन सरकार द्वारा प्रदेश की गद्दी संभालते ही डीवीसी ने अपने बिजली बकाया राशि फौरन चुकता करने का फरमान जारी कर दिया था। तय समय पर भुगतान नहीं किए जाने पर जनवरी 2020 के शुरू होते ही धनबाद–बोकारो–गिरीडीह–हजारीबाग–रामगढ़ समेत कई इलाकों में ब्लैक आउट व लोड शेडिंग शुरू कर आम जनजीवन में अफरा तफरी पैदा कर दी।

डीवीसी के इस मनमानी से कुपित होकर हेमंत सरकार ने चेतावनी भी दी कि हद में रहे डीवीसी! ज़मीन हमारी, पानी–कोयला भी हमारा और हमारे ही लोगों को बिजली नहीं! जिसका डीवीसी पर कोई असर तो नहीं ही हुआ उल्टे उसने अपने बिजली बकाए को जल्द से जल्द नहीं चुकाने पर पूरी तरह से बिजली काट देने की धमकी दे डाली।

उधर भाजपा समर्थित चैंबर ऑफ कॉमर्स से लेकर कई उद्योग घरानों व सामाजिक हिस्सों ने भी हेमंत सोरेन सरकार पर दबाव देना शुरू कर दिया। तो डीवीसी ने झारखंड सरकार के जेबीवीएनएल से अलग होकर सीधा उसी से बिजली लेने वालों को निर्बाध बिजली आपूर्ति देने का ऑफर जारी कर दिया। 

हालात से मजबूर झारखंड सरकार ने खजाना खाली और कोरोना महामारी संक्रमण से उत्पन्न संकटों का हवाला देते हुए मौजूदा केंद्र सरकार से अपेक्षित मदद देने और मध्यस्थता की गुहार लगाई। जिसका कोई सकारात्मक नतीजा तो सामने नहीं ही आया बल्कि केंद्र ने आरबीआई की मदद से झारखंड को दी जाने वाली केंद्र सहाता राशि मद से 1417 करोड़ जबरन काट कर डीवीसी को दे दिया। झारखंड सरकार द्वारा इसका विरोध किए जाने पर केंद्र ने त्रिपक्षीय समझौता के पालन का हवाला सुना दिया।

केंद्र सरकार के इस भेदभाव और उपेक्षापूर्ण रवैये के खिलाफ झारखंड सरकार ने अपनी कैबिनेट के फैसले के तहत ‘त्रिपक्षीय समझौता’ कमेटी से खुद के अलग होने का ऐलान करते हुए केंद्र के खिलाफ बगावत का मोर्चा खोल दिया। जवाब में केंद्र के ही इशारे से डीवीसी ने बकाया भुगतान के नाम पर झारखंड सरकार के उपक्रम जेबीवीएनएल पर नए सिरे से ‘लेटर ऑफ क्रेडिट’ देने का दांव खेला। डीवीसी के अपने घोषित मूल लक्ष्यों को ताक पर रखकर मौजूदा केंद्र सरकार का कारिंदा बन जाने का प्रकरण अब पूरी तरह से सियासी रंग ले चुका है।

इसी का मुजाहिरा हुआ 9 मार्च को झारखंड विधान सभा के चालू बजट सत्र बहस के दौरान। जब सरकार के घटक दल कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी व उमाशंकर अकेला तथा निर्दलीय अमित यादव द्वारा ‘कार्यस्थगन प्रस्ताव’ लाया गया जो डीवीसी की मनमानी के खिलाफ केन्द्रित था। सदन में चर्चा के दौरान उक्त विधायकों ने आरोप लगाया कि डीवीसी उनके विधान सभा क्षेत्रों में मनमानी कर बिजली संकट पैदा कर रहा है। झारखंड प्रदेश के ही सारे रिसोर्सों का इस्तेमाल करता है लेकिन सीएसआर के तहत अपनी परियोजना प्रभाव के इलाकों और आदिवासी-मुस्लिम बहुल गांवों में कोई काम नहीं करता है। 

जवाब में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी डीवीसी की मनमानी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इससे आज पूरा झारखंड त्रस्त है। पिछली रघुवर सरकार से बकाया वसूली की इतनी बेचैनी क्यों नहीं थी। क्या वजह है कि आज कोरोना संक्रमण की इस संकटपूर्ण स्थिति में भी बकाया वसूली के नाम पर बिजली कटौती पर अड़ा हुआ है। जो साबित करता है कि डीवीसी आज अपने घोषित उद्देश्यों के विपरीत जाकर राज्य की जनता के विरोध में अपनी मोनोपोली कायम करना चाहता है। यह केंद्र का एक अहम उपक्रम होकर भी राज्य हित के खिलाफ काम कर रहा है। हमारे संसाधनों पर चलता है और हमें ही हेंकड़ी दिखा रहा है। गरीबों को बिजली देने की बजाय पूंजीपतियों और बड़े औद्योगिक कंपनियों–घरानों को ही बिजली देने में रुचि दिखा रहा है। अपने प्रभाव इलाकों में न तो तयशुदा सामाजिक जवाबदेहियों को निभा रहा है और न ही कमांड एरिया में सही ढंग से बिजली आपूर्ति कर रहा है। राज्य का विपक्ष भी अगर हमारा साथ दे तो हम इसकी सभी मनमानियों पर पूरी तरह से नकेल लगा सकते हैं। हेमंत सोरेन के इस प्रस्ताव पर विपक्ष भाजपा–आजसू की ओर से कोई खंडन नहीं आया। विपक्ष के कई विधायकों ने भी कहा कि इस मामले में विपक्ष हर स्तर पर सरकार का साथ देने के लिए तैयार है। साथ ही इस बात पर भी चर्चा हो कि आखिर किसकी गलत नीतियों का खामियाजा प्रदेश कि जनता को भुगतातना पड़ रहा है।

सनद हो कि आज़ादी उपरांत राष्ट्र नवनिर्माण के तहत भारत की प्रथम बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजना के तौर पर 7 जुलाई 1948 को डीवीसी यानी दामोदर घाटी निगम की स्थापना हुई थी। जिसका के प्रमुख उद्धेश्य–बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और विद्युत उत्पादन–पारेषण और वितरण था। जिसके लिए झारखंड के धनबाद स्थित मैथन में देश के सबसे पहले व एकमात्र भूतल विद्युत उत्पादन केंद्र-परियोजना का उद्घाटन स्वयं प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू जी ने किया था।

सूचनाओं के अनुसार डीवीसी द्वारा आज भी मध्य प्रदेश, दिल्ली के डिस्कौम, हरियाणा व पंजाब इत्यादि इलाकों बिजली सप्लाई होती है।

सवाल उठता है कि जिस प्रदेश की मिट्टी–पानी–कोयला–मानव श्रम और सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके डीवीसी का अस्तित्व कायम है, उसी राज्य के लोगों को महज तथाकथित बकाया विवाद के नाम पर तंग तबाह करना क्या ‘देशहित’ कहलाएगा? 

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