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ट्रंप ने किया अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की कमजोर कड़ी का खुलासा

अगले कुछ वर्षों में अमेरिकी कांग्रेस को मौजूदा कानूनों की पहरेदारी को मजबूत करने और 200 वर्षों से चले आ रहे कुछ लोकतांत्रिक कायदों को संहिताबद्ध करने की जरूरत है, जिन्हें डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने पिछले 4 सालों में खुलेआम उल्लंघन किया है।
  
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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों के हालिया इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण चुनाव अभी-अभी संपन्न हुआ है। रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रहे थे। उन्हें डेमोक्रेटिक पार्टी के जोए बाइडन से मात खानी पड़ी है। कोविड-19 वैश्विक महामारी से अब तक जूझ रहा अमेरिकी समाज एक पुलिसकर्मी की गोली से एक काले व्यक्ति के मारे जाने से भड़के नस्ल विरोधी प्रदर्शनों से विभाजित हो गया है, वहां नस्लवाद अभी भी व्यवस्थित रूप में मौजूद है और राष्ट्रपति ने जानबूझकर अमेरिकी असाधारणता के भाव, पितृसत्ता की प्रभुता और काले पर गोरों की सर्वोच्चता की बुरी भावनाओं को “मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन” (अमेरिका को फिर से महान बनाने) के नाम पर फिर से उन्मुक्त कर दिया। उनका जलवायु परिवर्तन समझौते मानने से इनकार, ब्राजील के एक अन्य दक्षिणपंथी नेता बोलसोनारो को समर्थन, ब्रिटेन के बोरिस जॉनसन और निश्चित रूप से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन, आयुध जखीरा खड़ा करने, इसराइली विस्तारवाद को उनका समर्थन और इस तरह की उनकी कई विदेश नीतियों ने उन्हें विश्व में कुख्यात बना दिया है। अतः इस चुनाव को लेकर विश्व के लोगों के हित और सरोकार जुड़े हैं। न्यूज़क्लिक इन आकलनों को समय-समय पर प्रकाशित करेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 के नतीजे को पूरी दुनिया की प्रेस ने व्यापक रूप से प्रकाशित किया है। इस चुनावी नतीजे के विश्लेषण के साथ यह डिस्पैच एक अन्य मसले पर भी गौर करेगा : 2020 के चुनावी सिलसिलोें के दौरान और उसके बाद हुईं राजनीतिक महत्व की घटनाओं को भी रेखांकित करेगा। 

इसके पहले, हम 2020 के चुनावी नतीजों की संक्षिप्त समीक्षा कर लेते हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति बाइडन ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इन राज्यों में लगभग निम्नलिखित अंतरों से पराजित करते हुए चुनाव जीत लिया : मिशिगन (154,000 मतों से), पेंसिलवेनिया (81,000 मतों से), विस्कोंसिन (20,000 मतों से), एरीजोना (10,000 मतों से) और जॉर्जिया (11,000 मतों से)।  

राष्ट्रपति ट्रंप ने 2016 में अपने प्रतिद्वंदी डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को निम्नलिखित तीन में से दो राज्यों में बहुत कम अंतर के मतों से पराजित किया था: मिशिगन(11,000 मतों से), पेंसिलवेनिया में (68,000 मतों से), विस्कोंसिन में (27,000 मतों से)। 2016 में एरीजोना और जॉर्जिया रिपब्लिकन के लिए सुरक्षित राज्य थे और ट्रंप वहां से अच्छे मतों से विजयी रहे थे।
 

निर्वाचक मंडल में, ट्रंप और बाइडेन, दोनों प्रत्याशियों, को 2020 और 2016 में क्रमशः 306 वर्सेज 232 मतों के साथ समान रूप से एकतरफा वोट मिले थे। लोकप्रिय मतों में बाइडेन को ट्रंप की तुलना में 7 मिलियन से ज्यादा वोट ( 51.4% वर्सेज 46.9%) मिले थे। बाइडेन और ट्रंप को 81M+ and 73M+ मतों ने अमेरिका के पिछले सभी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। 2016 के चुनाव में ट्रंप निर्वाचक मंडल में जीत गए थे। लेकिन उन्हें हिलेरी क्लिंटन की तुलना में पॉपुलर वोट में 2.8 मिलियन वोट कम (45.9% की तुलना में 48%). मिले थे। 
 

जॉर्जिया 

अमेरिकी सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के चुनाव नतीजे चकित करने वाले थे और यह डेमोक्रेट के लिए बड़ा ही अपमानजनक था। डेमोक्रेट को सीनेट में कुल 1 सीट मिली। यहां मौजूदा आंकड़ा 50-48 रिपब्लिकन के पक्ष में झुका हुआ है। 5 जनवरी 2021 को जॉर्जिया में सीनेट की 2 सीटों के लिए अंतिम दौर के चुनाव होंगे। जॉर्जिया को आज भी रिपब्लिकन के प्रति झुकाव वाला राज्य माना जाता है। यद्यपि यहां दोनों तरफ से धुआंधार चुनाव प्रचार अभियान जारी है,रिपब्लिकन के दोनों उम्मीदवार डेविड पर्ड्यू और केली लोफ्लर कि चुनाव हारने के कयास हैं, भले ही थोड़े मतों से। उनके मुकाबले डेमोक्रेटिक के जॉन ओसॉफ और रेवरेंड राफेल वार्नॉक उम्मीदवार हैं। इनमें रेवरेंड एबेनेज़र बैपटिस्ट चर्च के काले पादरी हैं,जहां डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने धर्मोपदेश दिया था।
 

अब तक केवल एक बार वाद-विवाद-संवाद हुआ है, जिसमें केली ने रिवरेंड वार्नोक को एक घंटे में 13 बार “कट्टरपंथी समाजवादी वार्नोक” कहा है। दुर्भाग्य से, खौफ पैदा करने की चालें, ज्यादातर समय पक्षपातपूर्ण काम और बहुत कम सूचनाओं से लैस वोटर। हमें इसके नतीजे 7 और 8 जनवरी 2021 को मिल जाएंगे। अगर रिपब्लिकन जॉर्जिया की 2 सीटों में से कम से कम एक पर भी चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें अमेरिकी सीनेट में बहुमत मिल जाएगा। रिपब्लिकन के नेता मिच मैककोनेल एक बहुत ही घाघ नेता हैं, वह भावी बाइडन प्रशासन द्वारा अमेरिकी सीनेट में लाए गए किसी भी महत्वपूर्ण विधेयकों को अटकाने की स्थिति में होंगे, जब तक कि 2022 में अगला मध्यावधि चुनाव न हो जाता है। नवंबर 2022 में पूरे हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट की एक तिहाई सीटों के लिए फिर चुनाव होंगे। 
 

इस बार के चुनाव में डेमोक्रेटिक ने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की 9 सीटें गंवा दी है और उसे 211 की तुलना में 222 सीटों के साथ मामूली बहुमत मिला है। इस पीढ़ी में यह मामूली मार्जिन है। डेमोक्रेटिक स्पीकर नैंसी पेलोसी एक चतुर और काफी अनुभवी राजनीतिक है, जो राष्ट्रपति ट्रंप के समक्ष विगत 2 वर्षों में मजबूती से खड़ी रही हैं। वह जोए बाइडन प्रशासन को सीनेट में अपने लोकप्रिय विधेयकों को पारित कराने के लिए रिपब्लिकन के ऊपर नकेल कसने के गुर बताएंगी। अगर सीनेट का स्वरूप अपेक्षा के मुताबिक ही रहा तो 2022 के नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनाव में विशेष टकराव होगा। 2020 के मतों के आंकड़ों के प्रारंभिक विश्लेषण से निम्नलिखित शुरुआती निष्कर्ष मिलते हैं :
अ). राष्ट्रपति ट्रंप की उम्मीदवारी के शीर्ष ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति ने दोनों प्रत्याशियों के पक्षों में वोटरों का कम झुकाव देखने को मिला है। 
ब). उपनगरीय मतदाताओं का अच्छा खासा अनुपात, खासकर महिलाओं ने, शीर्ष पर बाइडन को वोट दिया है, लेकिन कांग्रेस संबंधी और राज्य स्तरीय दौड़ में रिपब्लिकन उम्मीदवारों को अपना मत दिया है।
स). इस चुनाव में अश्वेतों, हिस्पैनिक (दक्षिण अमेरिका से आए हिस्पानी मूल के लोग) और एशियाई-अमेरिकन मतदाताओं ने डेमोक्रेट के पक्ष में वोट दिया है।(दो में से 1 हिस्पैनिक और एशियन मतदाता, 85 से 15 अश्वेत मतदाता)। हालांकि इन मतदाता-समूहों में ट्रंप के मत प्रतिशत में भी आश्चर्यजनक रूप से सुधार हुआ है। उन्हें 2016 की तुलना में इस बार 3-4 फीसद मतों की बढ़ोतरी हुई है। 
 

ट्रंप का नस्लवाद का तूर्यनाद करने और कोविड-19 महामारी से निबटने में उनकी भारी अक्षमता के बावजूद, कामकाजी वर्ग के बहुत सारे अल्पसंख्यक मतदाताओं में रोजी-रोटी और अन्य सामाजिक मुद्दों को लेकर श्वेत कामकाजी मतदाताओं जितनी ही गंभीर चिंता थी। भविष्य में सफल होने के लिहाज से, डेमोक्रेट्स को शहरी और ग्रामीण इलाकों के सभी नस्लों के कामकाजी वर्ग के मतदाताओं के साथ अपना संवेदनात्मक जुड़ाव रखने के लिए व्यावहारिकता पर आधारित एक कामगार समर्थक एजेंडा पर अगले 2 सालों में क्रियान्वयन करना होगा। 

इसके अलावा, डेमोक्रेटिक कार्यकर्ताओं को इस नीतिगत एजेंडे पर सरजमीनी स्तर पर लोगों की लामबंदी के लिए न केवल चुनावी चक्रों के दौरान बल्कि पूरे साल भर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। यह मीडिया की दक्षिणपंथी शाखा और राजनीतिक विरोधियों द्वारा साल भर चलाए जाने वाले अपवादों और गुमराह करने वाली सूचनाओं से निपटने का एक बहुत ही असरकारक तरीका होगा। 2020 के चुनावी चक्रों के दौरान, रिपब्लिकन ने डेमोक्रेट के खिलाफ “समाजवाद के एजेंट” और “पुलिस के डिफंडिंग” को लेकर लगातार निंदा अभियान चलाता रहा था। हालांकि ये आधारहीन आरोप डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों पर चस्पां नहीं होते थे, लेकिन गुमराह करने वाले उनके सतत अभियानों ने अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और अमेरिकी सीनेट के लिए चुनावों में उपनगरीय और सभी नस्लों के कम सूचित बहुत सारे ग्रामीण मतदाताओं को इधर से उधर तो कर ही दिया।

 नतीजे की घोषणा रोकने का ट्रंप का प्रयास

अब हम नवंबर 2020 के चुनाव के दौरान और उसके बाद हुई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की समीक्षा करते हैं। ट्रंप और उनके समर्थकों का प्रचंड बहिष्कार और तिरस्कार अपेक्षा के मुताबिक चुनाव में नहीं हुआ। यह वास्तविकता है कि रिपब्लिकंस यह उम्मीद करते थे कि राष्ट्रपति ट्रंप ने 2020 के सभी स्तरीय- सीनेट, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और राज्य की विधायिकाओं-चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया था। इसके आगे बढ़ते हुए, नस्लवादी चुनाव प्रचार की रणनीति के जरिये अमेरिकी श्वेतों में असुरक्षा का भाव जगाने की कवायद राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में जीतने का फार्मूला नहीं हो सकता। लेकिन यह कई शहरों, कुछ राज्योें की विधायिकाओं, अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और देश के कुछ हिस्से में राज्य स्तरीय पदों (गवर्नर, अमेरिकी सीनेटर) की लड़ाई जीतने में कारगर हो सकता है। क्या कुछ रिपब्लिकन प्रत्याशियों द्वारा अपनाई गई यह रणनीति भविष्य में टॉप ऑफ टिकट के लिए डोनाल्ड ट्रंप जैसे सर्वाधिक प्रभावी ध्रुवीकरण करने वाले नेता की गैरहाजिरी में उतनी ही कारगर होगी? ये रिपब्लिकन पार्टी और संपूर्ण रूप से पूरे देश की भावी दशा-दिशा पर गहरे प्रभाव डालने वाले कुछ अनसुलझे सवाल हैं।

फिलहाल तो अमेरिकी लोकतंत्र 2020 में बाल-बाल बच गया है। चुनावी प्रामाणिकता पर सबसे बड़ा आघात किसी बाहरी स्रोत से नहीं, बल्कि इस जमीन के सर्वोच्च निर्वाचित अधिकारी-राष्ट्रपति ने दिया है। भारत से आए एक अकादमिशियन ने मुझसे निजी बातचीत में कहा, “ निरंकुश लोकतंत्र में निरंकुश नेता अपने दूसरे कार्यकाल में अपना असली रंग दिखाते हैं। आपको अमेरिका में इस अवांछित परिस्थिति से बचने का उपाय करना होगा।”
जैसा कि मैंने इस सारगर्भित प्रतिक्रिया पर गौर करते हुए, मैं तुर्की में प्रेसिडेंट एर्दोगन और भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपने को जोड़ लिया, तो मैंने पाया कि इन दोनों ने अपने दूसरे कार्यकालों को बिल्कुल भिन्न तरीके से शुरू किया। अनेक स्वतंत्र विश्लेषक ने गौर किया है कि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में बेहद अधिनायकवादी तरीके से काम किया है। हम सौभाग्यशाली हैं कि मतदाताओं ने ट्रंप को खारिज कर दिया है और हमें आगे के दूसरे कार्यकाल में अधिनायकवाद का झटका नहीं खाना पड़ेगा।  
 

यद्यपि 2020 के चुनाव के पहले भी अमेरिका के कई राज्यों में वोटरों द्वारा डाक से अपने बैलेट भेजने या ईमेल के जरिए वोटिंग का लंबा सफल इतिहास रहा है। इस प्रक्रिया में किसी तरह की कोई धोखाधड़ी नहीं पाई गई है। ट्रंप द्वारा नियुक्त किए गए एफबीआई के डायरेक्टर क्रिस्टोफर रे ने चुनाव से कुछ ही महीने पहले कांग्रेस को इस प्रक्रिया की विश्वसनीयता की पुष्टि की। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप 2020 के अपने चुनावी अभियान में ई वोटिंग को लेकर फिर भी गंभीर चिंता जताते रहे और कुछ स्विंग करने वाले राज्यों में चुनाव हारने की स्थिति में इस चिंता को भविष्य की कानूनी चुनौतियां देने का एक आधार बनाते रहे। डोनाल्ड ट्रंप के हिसाब से 2020 के चुनावों के स्पष्टत: दो ही नतीजे थे : या तो वे चुनाव जीत जाते या फिर उनसे चुनाव को चुरा लिया जाता।
3 नवंबर को चुनाव समाप्त होने के बाद, जब कुछ ही दिनों में इलेक्ट्रॉनिक और मेल से आए वोटों की प्रारंभिक गिनती से यह संकेत मिल गया कि ट्रंप कई स्विंग वाले राज्यों में चुनाव हार गए हैं तो उनके चुनाव अभियानी एवं कानूनी टीम ने 3 से 4 हफ्ते के दौरान पांच राज्यों और संघीय न्यायालयों में 50 से ज्यादा मुकदमे दायर कर दिए।

राज्य और संघीय न्यायालयों के न्यायाधीशों ने अपनी कड़ी टिप्पणी में इन याचिकाओं को तुच्छ और भद्दा बताते हुए इन सभी मामलों को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया। इनमें से कई न्यायाधीश रिपब्लिकन गवर्नर और स्वयं राष्ट्रपति ट्रंप के नियुक्त किए हुए थे। ट्रंप द्वारा 2017 में नियुक्त किए गए न्यायाधीश स्टेफानोस बिबास ने पेनसिल्वेनिया के फिलाडेल्फिया की संघीय अपीलीय अदालत की तीन सदस्यीय खंडपीठ की तरफ से फैसला देते हुए कहा, “मुक्त और निष्पक्ष चुनाव हमारे लोकतंत्र के लिए जीवनदायी रक्त के समान है। पक्षपातपूर्ण चुनाव को लेकर लगाए गए आरोप गंभीर हैं। लेकिन चुनाव को अनुचित कह देने भर से यह अनुचित नहीं हो जाता। अभियोग लगाने के लिए विशिष्ट आरोपों की जरूरत होती है और फिर गवाहों की। हमारे पास दोनों में से एक भी नहीं है।”

शेन गोल्डमाकर और मैगी हैबरमैन ने 1 दिसंबर 2020 को न्यू यॉर्क टाइम्स की अपनी रिपोर्ट में लिखा : "चुनाव बाद नरम पड़ने के बजाय, मिस्टर ट्रंप का बेशुमार ईमेल के जरिए अपने समर्थकों से धन देने का अनुरोध किया जा रहा है। वे अपने समर्थकों से कह रहे हैं कि ‘चुनाव रक्षा कोष’में इस धन की आवश्यकता है।” वास्तविकता में, जैसा कि इसके फाइन प्रिंट से जाहिर होता है कि अनुदान में मिलने वाली ऐसी राशियों का 75 फीसद फिलहाल एक नई राजनीति एक्शन कमेटी (पीएसी) ‘सेव अमेरिका’ में भेजा जाता है, जिसे ट्रंप ने नवंबर के मध्य में गठित किया था, ताकि इस कोष का उपयोग अपनी आगे की राजनीतिक गतिविधियों को आगे जारी रखने, स्टाफ को वेतन देने और यात्रा मद में किया जाए। शेष प्रत्येक अनुदान का 75 फीसद रिपब्लिकन नेशनल कमिटी में जाता है। दानदाताओं को उनके किसी रिकाउंट अकाउंट में धन देने से पहले कम से कम $5000 का अनुदान ट्रंप की नई पीएसी में जमा कराना होता है।”

मीडिया की खबरों में कहा गया है कि तथाकथित चुनाव रक्षा कोष के लिए ट्रंप के अभियान संगठनों की तरफ से की गई इन अपीलों के जरिए दिसंबर 2020 के मध्य तक 200 मिलियन डॉलर की भारी रकम जमा हो गई थी, जिसके दानदाता अधिकतर कम आय वाले हैं। और ई-मेल से धन मांगने का अनुरोध अभी भी जारी है। 
प्रिय पाठक, क्या यह आपको कानूनी धोखाधड़ी की कोई स्कीम लगती है?

कानूनी चुनौतियों के अलावा, ट्रंप ने खुलेआम और बेशर्मी से जिलों और स्विंग करने वाले राज्यों में सरकारी अधिकारियों पर इस आशय का राजनीतिक दबाव बनाया कि वे विधिवत चुनावी नतीजों को प्रमाणित न करें। इसके अलावा, उन्होंने स्विंग करने वाले राज्य के रिपब्लिकन विधायक नेताओं को व्हाइट हाउस में न्योता देकर बुलाया और उन्हें राज्यों के सचिवों द्वारा विधिवत प्रमाणित किए गए चुनावी नतीजों को स्वीकार न करने और निर्वाचक मंडल में ट्रंप समर्थक निर्वाचकों के एक वैकल्पिक सेट को नियुक्त करने के लिए प्रेरित किया। अगर ये विधायक इस दिशा में बढ़े होते तो यह पूरी तरह से अवैधानिक होता पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। 

लोक-सेवक, विधायक और न्यायाधीशों ने किया ट्रंप की दबावकारी-चालों का विरोध

हम अपने सभी साहसिक लोक सेवकों, राज्य स्तर के निर्वाचित पदाधिकारियों, विधायकों और न्यायाधीशों की संविधान के प्रति उनके अपने दायित्वों के निर्वहन करने की सामूहिक निष्ठा और सदिच्छा के लिए सदा के लिए ऋणी रहेंगे। उन्होंने राजनीतिक रूप से बहिष्कृत किए जा रहे लोगों की धमकियों और कुछ मामलों में तो शारीरिक हिंसा का भी साहसपूर्वक सामना किया।

हम यहां एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर रे जैसे अधिकारियों की बात कर रहे हैं, जिन्होंने मेल से आने वाली वोटिंग की विश्वसनीयता के मसले पर ट्रंप की राय का खंडन किया; जॉर्जिया के रिपब्लिकन राज्य सचिव ब्रैड रैफ़ेंसपर की, जिन्होंने प्रारंभिक गिनती और दूसरी गिनती में भी बाइडन के जीत जाने की पुष्टि की; और साइबर सुरक्षा निदेशक क्रिस क्रेब्स की, जिनकी एजेंसी ने यह वक्तव्य जारी किया कि “2020 का चुनाव अमेरिकी इतिहास में सर्वाधिक सुरक्षित चुनाव था।” इन्हें हद से बाहर जाना मानते हुए ट्रंप तत्काल आग बबूला हो उठे थे। 
ऐसे ही अनेक अन्य जिला और राज्य निर्वाचन बोर्ड के अधिकारी थे, रिपब्लिकन विधायक थे जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति के राजनीतिक के दबाव के आगे झुकने से इंकार कर दिया था। डोनाल्ड ट्रंप के दबाव ने नियंत्रण और संतुलन करने की हमारी संवैधानिक प्रणाली को चुनौती दी है और इसमें हमारा संविधान समय पर खरा उतरा है। 
 

हालांकि उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव की तीन स्तरीय जटिल प्रक्रिया की कमजोर कड़ियों को उजागर कर दिया है। अगले कुछ वर्षों में अमेरिकी कांग्रेस को मौजूदा कानूनों की पहरेदारी को मजबूत करने और 200 वर्षों से चले आ रहे कुछ लोकतांत्रिक कायदों को संहिताबद्ध करने की जरूरत है, जिन्हें डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने पिछले 4 सालों में खुलेआम उल्लंघन किया है।
 

यद्यपि अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन नेताओं ने वैसा साहस और मजबूत रीढ़ का परिचय नहीं दिया, एक अकेले सीनेटर मिट रोमनी को छोड़कर जिन्होंने 3 नवंबर के काफी पहले ट्रंप को अमेरिकी संवैधानिक प्रक्रियाओं को तोड़ने- मरोड़ने के प्रयास से बाज आने को कह दिया था। वहीं, अन्य वरिष्ठ रिपब्लिकन नेताओं, जिनमें सीनेट के बहुमत नेता मिच मैककोनेल भी थे, उन्होंने खुलेआम ट्रंप का समर्थन किया था और अनेक हफ्तों चुप रह कर एक तरह से उनका सहयोग किया था। यह स्तब्धकारी था क्योंकि अमेरिकी संविधान के मुताबिक अमेरिकी कांग्रेस राष्ट्रपति पद की समान शाखा है। राष्ट्रपति को जवाबदेह न ठहराने में उसकी यह विफलता अति गंभीर है क्योंकि ट्रंप के कार्यों से हमारी चुनावी प्रक्रिया और हमारे लोकतंत्र की बुनियादी संरचना ही खतरे में पड़ गई थी। इन रिपब्लिकन नेताओं में से किसी के पास लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होने और ट्रंप को नाखुश करने का नैतिक साहस नहीं था। 
 

जब 16 अन्य रिपब्लिकन अटार्नी जनरलों के समर्थन से टेक्सास के अटार्नी जनरल ने मिशिगन, पेंसिलवेनिया, विस्कोंसिन और जॉर्जिया में विधि-सम्मत तरीके से डाले गए 20 मिलियन वोट और उनकी प्रामाणिकता को खारिज करने के लिए सीधे अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया, तो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में 125 रिपब्लिकन सदस्यों, जिसमें हाउस में अल्पसंख्यक नेता केविन मैकार्थी भी शामिल थे, ने उस मुकदमे के समर्थन में एक संक्षिप्त वक्तव्य पर दस्तखत किया था।
 

सर्वोच्च न्यायालय के 9 न्यायाधीशों ने, जिनमें तीन न्यायाधीश ट्रंप द्वारा नामित किये थे, एक मत से इस मामले की सुनवाई करने से इंकार कर दिया था। बिना दस्तखत के एक छोटे वक्तव्य में अदालत ने कहा कि टैक्सास अटार्नी जनरल के पास चुनावी प्रक्रिया और अन्य राज्यों में चुनावी नतीजों को चुनौती देने का कोई आधार नहीं है। अमेरिका विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन करने वाला कोई भी गंभीर छात्र 17 रिपब्लिकन स्टेट्स के विद्वान अटॉर्नी जनरल और 125 रिपब्लिकन हाउस मेंबर्स, जिनमें अधिकतर अधिवक्ता हैं, को सीधे सुप्रीम कोर्ट में ऐेसे मुकदमे दायर करने की फिजूल कवायद से बचने की नेक सलाह दे सकता था। क्या ट्रम्प का पक्ष लेना और राजनीतिक नाटक ही इन राजनेताओं की एकमात्र प्रेरणा थी?

वाशिंगटन में रिपब्लिकन पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा इस तरह की कायरता और चाटुकारिता के प्रदर्शन के क्या कारण है? व्हाइट हाउस छोड़ने के बाद भी ट्रंप यह उम्मीद करते थे कि वह अपने कट्टर रिपब्लिकन समर्थक, लगभग इससे 35 मिलियन, मतदाताओं के बलबूते फिर से वह कद प्राप्त कर लेंगे।

इसके अलावा, ट्रंप का 150 मिलियन के अभियानी बटुए (पर्स) पर भी अधिकार रहेगा, जिसे धन उगाही की गुमराह करने वाली प्रक्रिया अपनाते हुए चुनाव बाद ‘चुनाव रक्षा कोष” के नाम पर हासिल किया गया था। ये दोनों चीजें अपनी संयोजकता में ट्रंप को अन्य रिपब्लिकन राजनीतिकों के बनिस्बत असामान्य शक्ति देगी, जो अगले 4 वर्षों में राष्ट्रपति के चुनाव लड़ेंगे। “राजनीति में, ताकत ही सब कुछ है”- राष्ट्रीय राजनीति के एक चतुर समीक्षक ने इसे रेखांकित किया। 
 

हम अमेरिकी लोकतंत्र में उदास कर देने वाली इस मौजूदा स्थिति तक कैसे पहुंचे? यह जानने के लिए आप मेरे अगले डलास डिस्पैच के साथ बने रहें। 
 
(पुरकायस्थ अमेरिका के टेक्सास प्रांत के डलास शहर में रहते हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान से गहरे जुड़े हैं।)
 

 

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