NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आपको मालूम है अरुणाचल इन दिनों किस आग से जूझ रहा है?
अरुणाचल की सारी जनजातियां नागरिक हैं लेकिन सारी जनजातियां परमानेंट रेजिडेंट नहीं है। इस तरह से जनजातियों को नियंत्रित करने के लिहाज से अरुणाचल ही नहीं बल्कि पूरा नार्थ ईस्ट एक संवेदनशील इलाका है। इसमें हल्का भी बदलाव बहुत बड़ा तूफान खड़ा कर देता है।
अजय कुमार
27 Feb 2019
arunachal pradesh
Image Coutesy: ANI

कुछ मसले बहुत संवेदनशील होते हैं। इनमें पूरी तरह किसी एक के पक्ष में खड़ा होना मुश्किल होता है, लगता है दूसरे के साथ नाइंसाफी हो रही है। अरुणाचल प्रदेश में परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट से जुड़ी परेशानी भी ऐसी ही है। जॉइंट पॉवर्ड कमेटी ने अरुणाचल प्रदेश में छह समुदायों को परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट का दर्जा देने के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके विरोध में हिंसा भड़की उठी। उप मुख्यमंत्री के घर को जला दिया गया। कई सरकारी भवनों  में आग लगा दी गयी। ईटानगर के ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट यूनियन के दफ्तर में आग लगा दी गयी। कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए। मुख्यमंत्री के घर की तरफ प्रदर्शनकारी बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू ने कहा है कि यह विधेयक नहीं लाया जाएगा। विरोध करने वाले इन छह समुदायों को राज्य का मूल बाशिंदा नहीं मानते। अभी हाल की खबर यह है कि जॉइंट पॉवर्ड कमेटी ने यह साफ़ कर दिया है कि इस अध्याय को पूरी तरह बंद कर दिया गया है। लेकिन हकीकत यह है कि परमानेंट रेजिडेंट की मांग बहुत पुरानी है और ऐसा नहीं है कि यह पूरी तरह शांत हो चुकी है। इसकी मांग समय-समय  पर  उभरती रहती है  और आगे भी उभर सकती है।  

परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट

परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट यानी स्थायी निवासी प्रमाणपत्र यानी एक ऐसा क़ानूनी दस्तावेज जो  किसी व्यक्ति के  निवास स्थान के प्रमाण पत्र के तौर पर काम करता है। निवास प्रमाण पत्र हासिल होने का मतलब कई तरह के लाभों के लिए एक जरूरी योग्यता को पूरा करना है। यह लाभ होते हैं- राज्यों की नौकरी, नौकरी में आरक्षण, योजनाओं, स्कॉलरशिप और राशन कार्ड आदि के लिए दावा प्रस्तुत करने के योग्य बन जाना। इसलिए परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट में जब भी किसी को शामिल करने की कोशिश की  जाती है, माहौल खुद ब खुद गंभीर हो जाता है। यही अरुणाचल प्रदेश में हुआ है। जिन छह आदिवासी समुदायों को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ। उन्हें अरुणाचल प्रदेश के लोग गैर अरुणाचल आदिवासी जनजाति के तौर पर देखते हैं। यह जनजातियां देवरॉय, सोनोवाल, काचारिस, मोरेंस और मिशिंग हैं।  लम्बे समय से ये जनजातियां परमानेंट रेजिडेंस सर्टिफिकेट की मांग कर रही हैं। लेकिन राज्य के मजबूत समूहों द्वारा इसे ख़ारिज किया जाता रहा है। यह जनजातिया लामसाई और चांगलांग जिले की निवासी हैं। और यह जिले अरुणाचल और असम के सीमा पर स्थित है। ये जनजातियां जमीनों की मालिक भी हैं। लेकिन इन जनजातियां को कहना है कि न तो इन्हें असम से परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट हासिल हुआ है और न ही अरुणाचल प्रदेश से। हाल के समय में ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट यूनियन जैसी अरुणाचल के मजबूत संस्थाओं ने भी इसका समर्थन किया है। उनका भी कहना है कि अरुणाचल सरकार को इनकी मांगों को सुनना चाहिए। लेकिन विरोध प्रदर्शन से साफ़ तौर पर साबित होता है कि अरुणाचल की पूरी जनता ऐसा नहीं सोचती है। जो विरोध प्रदर्शन हुआ, उसका कोई लीडर नहीं था। वह  किसी पार्टी और बैनर के अंतर्गत नहीं हो रहा था। बताया जाता है कि अचानक जनता का गुस्सा फूटा और भीड़ विरोध करते हुए आक्रामक हो गयी और तोड़फोड़ करने लगी। 

इस पूरे विषय पर अरुणाचल प्रदेश के निवासी आईएएस अधिकारी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत करते हुए कहा  कि अरुणाचल प्रदेश साल 1987 में भारत का एक पूर्ण राज्य बना। इसके पहले इसे साल 1972 तक नार्थ ईस्ट फ्रंटियर के तौर पर जाना जाता था। एक बड़ी अंतराष्ट्रीय सीमा के साथ यह वास्तविक अर्थों में एक फ्रंटियर राज्य है। क्योंकि यह अपने पश्चिम में भूटान, पूर्व में म्यांमार और उत्तर में चीन के साथ सीमा बनाता है। यह एक पहाड़ी राज्य है। यह हिमालय की सबसे पूर्वी परिरेखा पर स्थित है। इसलिए यह जनजातियों से भरपूर इलाका है। यहां मुख्य जनजातियों की संख्या 26 है। जबकि उप जनजातियों की संख्या 100  से अधिक है। इनमे से केवल 12 जातियों का जिक्र ही अनुसूचित जातियों से होता है। चूँकि यह पूरी तरह से बॉर्डर से जुड़ा हुआ पहाड़ी इलाका है। इसलिए अभी भी यहां पर देशी आदिवासी जैसा मसला हल  नहीं हो पाया है। जिन आदिवासियों का नाम अनुसूचित जाति के तौर पर शामिल नहीं होता है  वह अनुसूचित जाति में शामिल होने के लिए जूझते हैं। और जो पहले से राज्य के परमानेंट निवासी बन चुके हैं, वह उन्हें रोकते हैं ताकि उनके हाथों में मौजूद संसाधनों का बंटवारा न हो।  इसलिए इनका गुस्सा भड़कता है।  यहां समझने वाली बात है कि  परमानेंट रेजिडेंट और नागरिकता दो अलग अलग चीजें हैं। अरुणाचल की सारी जनजातियां नागरिक हैं लेकिन सारी जनजातियां परमानेंट रेजिडेंट का सर्टिफिकेट नहीं है।  परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट उन्हें ही मिलता है जो मूल रूप से अरुणाचल की निवासी रही हैं। यानी जो देशी जनजातियां हैं।  इस तरह से जनजातियों को नियंत्रित करने के लिहाज से अरुणाचल ही नहीं बल्कि पूरा नार्थ ईस्ट एक संवेदनशील इलाका है। इसमें हल्का भी बदलाव बहुत बड़ा तूफान खड़ा कर देता है।  यहाँ  यह भी समझने वाली बात है कि जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन आम राज्यों की तरह नहीं होता है। यह प्रशासन संविधान की अनुसूची 5 और 6 के तहत होता है।  जिसके अंतर्गत देशी जनजातियों की परम्परागत संस्कृति और उनकी विशिष्टता  बचाने की लिहाज से ऑटोनोमस  कौंसिल  के जरिये शासन किया जाता है। जिसका मतलब यह है कि अरुणाचल प्रदेश में  जनता से जुड़े  ज्यादतर मुद्दों पर प्रशासन करने का  काम ऑटोनोमस कौंसिल का है, न कि राज्य का।  इसलिए एक ही राज्य में ऐसी स्थिति है जिसमें गहरा अलगाव मौजूद है।  संस्कृति और अपनी स्थानीय विशिष्टता बचाने के लिहाज से यहां की जनजातियां उस तरह से एक दूसरे के साथ घुली मिली नहीं हैं। जिस तरह से शेष भारत में एक बिहारी, गुजराती और बंगाली एक दूसरे से मिल जाते हैं। यानी यहाँ अलगाव गहरा है।  ऐसी स्थिति में ऐसा कोई भी कानून जो जनजातियों की स्थति में बदलाव के लिए लाये जाएगा  उसे  विरोध सहन करना पड़ेगा। इसलिए यह स्थिति बहुत नाजुक है।  इसका एक ही उपाय है कि लोग खुद ब खुद इतना बदल जाए कि एक दूसरे को स्वीकारने लगें। 

Arunachal Pradesh
North East
tribal communities
Permanent Resident Certificate
PRC
Bengal Eastern Frontier Regulations 1873
Arunachal Pradesh Scheduled Tribe

Trending

100 दिनः अब राजनीतिक मार करेंगे किसान
अक्षर-अश्विन की फिरकी में फंसी इंग्लैंड टीम, भारत श्रृंखला जीतकर विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप फाइनल में
तापसी पन्नू, कश्यप ने छापेमारी के बाद पहली बार अपनी बात रखी, ‘दोबारा’ की शूटिंग फिर से शुरू की
लखनऊ में महिला दिवस पर कोई रैली या सार्वजनिक सभा करने की इजाज़त नहीं!
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: सड़क से कोर्ट तक संघर्ष करती महिलाएं सत्ता को क्या संदेश दे रही हैं?
#HinduITcell​ ट्रैकिंग ब्रिगेड बेनक़ाब?

Related Stories

संकट में आदिवासी
डॉ. राजू पाण्डेय
संकट में आदिवासी
09 August 2020
जैसा कि हर आपदा में होता है समाज का जो तबका सर्वाधिक वंचित और हाशिए पर होता है वह आपदा से सर्वाधिक प्रभावित होता है और उसकी स्थिति पहले से भी कमजोर
lockdown
भाषा
अरुणाचल प्रदेश के राजधानी परिसर में छह जुलाई से एक सप्ताह तक रहेगा पूर्ण लॉकडाउन
04 July 2020
ईटानगर : अरुणाचल प्रदेश सरकार ने शनिवार को कहा कि राजधानी परिसर में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के मद्देनजर छह जुलाई से 1
covid-19
सुबोध वर्मा
उत्तर-पूर्व राज्यों में मंडराता कोविड-19 का ख़तरा
29 June 2020
अप्रैल की गर्मी का पूरा महिना और मई महीने का बड़ा हिस्सा, पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्यों -असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रि

Pagination

  • Previous page ‹‹
  • Next page ››

बाकी खबरें

  • Bhasha Singh
    न्यूज़क्लिक टीम
    #HinduITcell​ ट्रैकिंग ब्रिगेड बेनक़ाब?
    06 Mar 2021
    वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बातचीत की रिपोर्ट्स कलेक्टिव की सृष्टि से जिन्होंने ट्रोलिंग रैकेट का पर्दाफाश कियाI
  • Urmilesh
    न्यूज़क्लिक टीम
    केरल, तमिलनाडु और बंगाल: चुनाव में केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल
    06 Mar 2021
    किसान आंदोलन के आज सौ दिन पूरे हो गये. दूसरी तरफ पांच राज्यों में चुनाव का बिगुल बज गया. बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुड्डुचेरी के इन लोकतांत्रिक चुनावों को भाजपा ने सचमुच किसी छद्म-युद्ध जैसा बना…
  • kmp protest
    भाषा सिंह
    100 दिनः अब राजनीतिक मार करेंगे किसान
    06 Mar 2021
    100 दिनों के लंबे संघर्ष ने किसानों को और तपा दिया है। किसानों ने शनिवार को पांच घंटे का जाम केएमपी एक्सप्रेस-वे पर किया और इस तरह से आंदोलन को अलग वेग के साथ जिंदा रखने का ऐलान किया।
  • किसान आंदोलन: KMP हाईवे जाम, किसानों ने चुनावों के लिए कमर कसी
    न्यूज़क्लिक टीम
    किसान आंदोलन: KMP हाईवे जाम, किसानों ने चुनावों के लिए कमर कसी
    06 Mar 2021
    संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर आज किसानों ने कुंडली मानेसर हाईवे पाँच घंटों के लिए जाम रखा. उन्होंने यह भी याद दिलाया कि भाजपा को किसान आने वाले चुनावों में सबक़ सिखाएँगे.
  • सिमी
    भाषा
    सूरत: 19 साल बाद 122 लोग सिमी का सदस्य होने के आरोप से बरी
    06 Mar 2021
    इन सभी को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन 'ठोस, विश्वसनीय और संतोषजनक' साक्ष्य पेश करने में नाकाम रहा।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें